- मनोज भक्त
फासीवाद के खिलाफ मौजूदा कठिन जंग में शहीद महेंद्र सिंह हमारे लिए ऊर्जा के बड़े स्रोत हैं. आजादी की जंग से हासिल लोकतंत्र और संविधान पर मोदी सरकार चोट कर रही है. नागरिकों के अधिकारों को धर्म के नाम पर छीन रही है. कॉरपोरेट हितों के लिए वनाधिकार को खत्म कर रही है. संवैधानिक संस्थाओं को अंदर से तोड़ रही है. बेरोजगारी चरम पर है और सरकार की गोदी मीडिया हमें सिखा रही है कि महंगाई ही विकास है. फासीवाद की तबाही से मुक्ति के लिए देश आंदोलनों के जरिये रास्ता तलाश रहा है. ऐसे ही कठिन राजनीतिक दौर के निडर मार्गदर्शक थे कामरेड महेंद्र सिंह.
उनकी हत्या झारखंड गठन के लगभग चार साल बाद 16 जनवरी 2005 में कर दी गई. बाबूलाल मरांडी सरकार के पतन के बाद अर्जुन मुंडा की सरकार की आ चुकी थी. भाजपा सरकार के गठन के बाद से ही झारखंडियों की आकांक्षा का सरकार के जरिये दमन का सिलसिला शुरू हो गया था. भ्रष्ट अधिकारियों, माफिया और कॉरपोरेट घरानों के संरक्षण के लिए आदिवासियों, आम नागरिकों का भाजपा सरकारों ने खून बहाना शुरू कर दिया था. कामरेड महेंद्र सिंह इस दौर में सरकारी दमन के खिलाफ जन प्रतिरोध की आवाज बन गए थे.
उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत में थाने की रंगदारी के खिलाफ थाने का हुक्का-पानी बंद करवा दिया था. बाद में बिहार राज्य में पंचायत चुनाव वर्षों से न कराये जाने के खिलाफ ग्रामीणों के जरिये ग्राम सभा चुनाव आंदोलन शुरू किया और ग्रामीणों की सत्ता की दावेदारी को स्थापित किया. विधायक बनने के पहले और विधायक बनने के बाद उन्हें बार-बार झूठे मुकदमों में जेल में रहना पड़ता था. वे जेल को भी अपने आंदोलन की प्रयोगशाला में बदल देते थे. आज के दौर में न्याय के लिए चौतरफा आंदोलनों की जरूरत है.
जमीनी ताकतों की गोलबंदी और फासीवादी नीतियों के खिलाफ राजनीतिक आंदोलन
कामरेड महेंद्र सिंह जुझारू एवं अदम्य आंदोलनकारी, आंदोलनों के संगठनकर्ता और प्रतिरोध की पंक्ति के सबसे अगुआ के रूप में वे लोकप्रिय हो गए थे. विधान सभा में सरकारों के बौनेपन और हिंसक कुरूपता को वे उजागर करते थे और उनके आंदोलनों ने मरांडी सरकार और मुंडा सरकार का पानी उतार दिया था. डोरंडा गोलीकांड, तपकरा गोलीकांड, सेमरीबंजारी गोलीकांड, घंघरी गोलीकांड, प्रशांत सहाय की हत्या, लेवाटांड में ग्रामीणों पर हमला, बेरमो में ननों पर हमला – इनके खिलाफ कामरेउ महेंद्र सिंह की पहलकदमियों से भाजपा घबराने लगी थी. झारखंड में महेंद्र सिंह को भाजपा अपने भविष्य के लिए खतरा के रूप में देखने लगी थी. झारखंड की जनता की बढ़ती दावेदारी को दबाने के लिए भाजपा सरकार ने महेंद्र सिंह की हत्या करवा दी.
कामरेड महेंद्र सिंह भाकपा(माले) की केंद्रीय कमिटी सदस्य थे. तमाम लोकतांत्रिक शक्तियों के साथ घनिष्ठ रूप से वे जुड़े हुए थे. वे मोर्चा में तमाम छोटी-बड़ी ताकतों को कुशलता के साथ शामिल करते थे. दबे-कुचले लोगों का हित उनके लिए सर्वापरि था. ब्राह्मणवाद के खिलाफ वे लोकप्रिय तरीके से आधारों-कतारों को गोलबंद करते थे. उनके जीवन में कोई दोहरापन नहीं था. वे जिन आदर्शों को मानते थे, उन पर कठोरता से अमल भी करते थे. महेंद्र सिंह की शहादत को सलाम करने का मतलब है कि हम जनता के अंदर फासीवाद के खिलाफ बढ़ती बेचौनी को समझ रहे हैं और उनके साथ खड़े हैं.