- उमेश सिंह
[ बिहार के बक्सर जिला के चौसा में विद्युत परियोजना हेतु कृषि भूमि का अधिग्रहण के खिरलाफ व किसानों द्वारा जमीन के उचित मुआवजा हेतु चलाए जा रहे आंदोलन पर पुलिस और कंपनी द्वारा दमन की एक संक्षिप्त रिपोर्ट ]
बिहार के बक्सर जिला के चौसा में कोयला आधारित एक थर्मल पावर प्लांट लगाने की योजना वर्ष 2013 में ही स्वीकृत की गयी था. जिसके निर्माण के लिए बिहार स्टेट पावर होल्डिंग कंपनी लिमिटेड और बिहार इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनी के साथ एसजेबी एन कंपनी का समझौता हुआ और इसके तहत इसके निर्माण का ठेका एसजेबीएन को मिला. इसके निर्माण कार्य की, मार्च 2019 में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के द्वारा आधारशिला रखने के साथ, शुरुआत हुई. इसके निर्माण कार्य पर 10, 500 करोड़ रूपया खर्च होना है और इससे 1320 मेगावाट बिजली का उत्पादन होना है.
किसानों के साथ ताजा विवाद तब शुरू हुआ जब किसानों के जमीन का मुआवजा दिए बगैर ही कंपनी ने इस पावर प्रोजेक्ट के लिए रेल लाइन और गंगा नदी से पानी ले जाने हेतु पाइप लाइन बिछाने का कार्य प्रारंभ कर दिया.
विदित हो कि उक्त कार्य हेतु 309 किसानों से 137 एकड़ जमीन अधिग्रहित कि गयी है, लेकिन इसका मुआवजा अभी तक किसानों को नही मिला है. कंपनी और सरकार किसानों को पुराने दर पर मुआवजा देना चाहती है जबकि किसानों की मांग है कि 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून के हिसाब से वर्तमान दर पर किसानों की जमीन का मुआवजा का भुगतान होना चाहिए, और साथ ही उस पर निर्भर अन्य लोगों के लिए भी मुआवजे और रोजगार का प्रबंध होना चाहिए. इन मांगों को लेकर किसान अक्टूबर 2022 से ही लगातार धरना का कार्यक्रम चला रहे थे और सरकार और कंपनी के समक्ष अपनी मांगों को उठा रहे थे. लेकिन, कोई सुनवाई नहीं हो रही थी और बिना मुआवजा दिए कंपनी ने किसानों के जमीन पर निर्माण कार्य प्रारंभ कर दिया.
कार्य रोकने के लिए किसान 9 जनवरी 2023 को जमीन पर और कंपनी के गेट पर जाकर आंदोलन करने लगे. फिर भी कोई सुनवाई नहीं हुई. उल्टे, 10 जनवरी 2023 की रात्रि को स्थानीय पुलिस ने बनारपुर के आंदोलित किसानों के घर पर छापेमारी की तथा चार किसानों को न सिर्फ गिरफ्तार कर लिया. इतना ही नहीं, पुलिस ने घरों में घुस कर महिलाओं के साथ अपमानजनक व्यवहार किया और इसका वीडियो वायरल हो गया. परिणामतः पूरे इलाके में पुलिस और कंपनी के खिलाफ भारी आक्रोश पैदा हो गया और देखते-देखते आसपास के लगभग बीस गांवों का किसान 11 जनवरी को कंपनी के कार्यालय पर चढ़ बैठे. पुलिस ने अक्रोषित किसानों से वार्ता करने के बजाय उनका दमन किया, उन पर लाठियां चलायीं और बुरी तरह से मारा-पीटा जिसमें दर्जनों किसान घायल हो गए. लोगों का दावा है कि पुलिस फायरिंग भी किया था, लेकिन पुलिस इस बात से इंकार कर रही है.
इस घटना के उपरांत, पुलिस ने चार सौ किसानों पर पुनः मुकदमा कर दिया जबकि किसान अभी भी शांतिपूर्ण हें और उसी तरीके से अपना धरना का कार्यक्रम चला रहे हैं. संघर्ष अब और तेज हुआ है और विभिन्न राजनीतिक दल तथा किसान संगठन किसानों के इस धरने के कार्यक्रम में भागीदारी कर रहे हैं.
जानकारी हो कि अक्टूबर महीने से ही चल रहा यह धरना का कार्यक्रम बिल्कुल स्वतःस्पफूर्त था. किसी भी किसान संगठन या राजनीतिक दल का नेतृत्व नही था. अखिल भारतीय किसान महासभा की बक्सर जिला इकाई ने कई बार जाकर धरने का समर्थन किया और इसको बड़ा बनाने का प्रयास किया. लेकिन किसानों ने इसे स्थानीय स्तर पर ही चलाने की नीति अपनायी. ऐसी हालत में यह मामला दब कर रह गया और प्रशासन ने भी यह समझकर कि इसके पीछे कोई संगठन नहीं है, दमन का मनसूबा बना लिया.
11 जनवरी के घटना के तुरंत बाद अखिल भारतीय किसान महासभा और भाकपा(माले) के बक्सर जिले की एक टीम ने घटना स्थल का दौरा किया जिसका नेतृत्व भाकपा(माले) के डुमरांव विधायक कामरेड अजीत कुमार सिंह ने किया. उनके साथ किसान नेता जगनारायण शर्मा, युवा नेता नीरज कुमार और शिवाजी राम थे. यह टीम प्रभावित किसानों से मिली और लगातार शांतिपूर्ण चल रहे धरना को भी संबोधित किया और घटना की प्राथमिक जांच रिपोर्ट जारी की. भाकपा(माले) और किसान महासभा ने 13 जनवरी को पूरे राज्य में इस घटना के खिलाफ विरोध दिवस आयोजित किया. कई जिलों में विरोध प्रदर्शन हुए.
पुनः 14 जनवरी 2013 को अखिल भारतीय किसान महासभा और भाकपा(माले) का एक उच्चस्तरीय जांच दल ने अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय महासचिव व भाकपा(माले) पोलित ब्यूरो के सदस्य कामरेड राजाराम सिंह (पूर्व विधायक) के नेतृत्व में यहां का दौरा किया और किसानों पर बर्बर पुलिस दमन और उसके बाद किसान आंदोलन के उग्र हो जाने की घटना के तमाम पहलूओं की जांच की. जांच टीम में किसान महासभा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मंजू प्रकाश (पूर्व विधायक), भाकपा(माले) विधायक अरुण सिंह, विधयक व किसान महासभा नेता सुदामा प्रसाद, बिहार राज्य अध्यक्ष विशेश्वर प्रसाद यादव, राष्ट्रीय कार्यकारणी सदस्य उमेश सिंह, पूर्व विधायक चंद्रदीप सिंह व भाकपा(माले) के डुमरांव विधायक अजीत कुशवाहा के साथ-साथ अलख नारायण चौधरी, रामदेव यादव आदि स्थानीय नेता भी शामिल थे.
टीम ने बनारपुर गांव का दौरा किया जहां रात में सो रहे किसानों के ऊपर पुलिस ने लाठियां चलाई थी. जांच टीम को पीड़ितों ने पुलिस कार्रवाई का वीडियो भी दिखलाया.
का. राजाराम सिंह ने बनारपुर में लगातार चल रहे किसानों के धरना कार्यक्रम को भी संबोधित किया और किसानों को उनके आंदोलन और मांगों को राष्ट्रीय स्तर से लेकर बिहार के विधान सभा में प्रमुखता से उठाने का आश्वासन दिया. नेताओं ने कहा कि भाजपा की केंद्र की सरकार पहले कृषि कानून लाकर खेती और खेत को छीन लेने की कोशिश की और फिर अब जगह-जगह पर बिना मुआवजा के किसानों की जमीन कंपनियों के लिए छीन लेने की कोशिश कर रही है हमे इसका डटकर मुकबला करना है. हम लड़ेंगे और जीतेंगे भी. कहा कि स्थानीय सांसद व भाजपा नेता अश्विनी कुमार चौबे ने इस मामले में मौन धारण कर लिया है लेकिन उन्हें इस बात का जवाब देना होगा कि किसानों को उनकी जमीन का मुआवजा देने की जगह पर उनके शांतिपूर्ण धरना पर लाठी क्यों चलाई जा रही है, उन पर झूठे मुकदमे क्यों लादे जा रहे हैं? केंद्र सरकार के साथ-साथ बिहार सरकार को भी इसका जवाब देना होगा. अश्विनी कुमार चौबे जो केंद्रीय मंत्री भी हैं उनके कई सारे रिश्तेदार भी इस कंपनी के कार्यों में ठेका-पट्टा कर रहे हैं और कंपनी के साथ मिल कर किसानों की जमीन हड़प लेना चाहते हैं और अब घरियाली आंसू बहा रहे है. किसान सब समझ रहे हैं और इन्हें मुहतोड़ जवाब देंगे.
चौसा में निर्मित हो रहा थर्मल पावर प्लांट एनटीपीसी का प्रोजेक्ट है. वह अपनी सहयोगी कंपनी एसजीवीएन के जरिए निर्माण कार्य चला रही है. इसके लिए 2010-11 में ही लगभग एक हजार एकड़ जमीन के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हो गई थी. तय हुआ था कि 36 लाख रु. प्रति एकड़ की दर से जमीन का मुआवजा मिलेगा, लेकिन अपने वादे से मुकरते हुए सरकार महज 28 लाख रु. प्रति एकड़ की दर से मुआवजा देने लगी. किसानों ने इसका विरोध शुरू कर दिया. 50% से अधिक किसानों ने मुआवजा नहीं लिया.
मुआवजे के साथ-साथ कंपनी के सीएसआर फंड से इलाके में स्कूल, होटल एवं रोजी-रोजगार के संसाधन बढ़ाने तथा नौकरी में स्थानीय लोगों को वरीयता देने का भी वायदा किया गया था और तभी जाकर किसानों ने एग्रीमेंट पर दस्तख्त किए थे, लेकिन एग्रीमेंट के बाद कम्पनी अपनी बात से मुकर गई. यहां तक कि लोगों पर जुल्म करना शुरू कर दिया. सभी कर्मियो की बहाली अन्य प्रदेशों से की गई.
किसानों का आरोप है कि सीएसआर फंड नेताओं व अधिकारियों की चापलूसी और उन्हें खुश करने में कंपनी ने पानी की तरह बहाया. कई अधिकारियों को नजराने के तौर पर लाखों की सौगात दी गई. किसानों पर जिस अधिकारी द्वारा जितना अधिक जुल्म हुआ उसे कम्पनी द्वारा उतनी सुविधा उपलब्ध कराई गई.
पुनः कम्पनी ने 2022 में 309 किसानों से रेलवे पाइप लाइन के लिए लगभग 137 एकड़ जमीन अधिग्रहण करने की कार्रवाई शुरू की. किसानों ने पुराने बकाए और कंपनी द्वारा किए गए वादों को पूरा करने के साथ-साथ इस बार के भूमि अधिग्रहण के लिए वर्तमान दर पर मुआवजे की मांग उठानी शुरू कर दी. इसी मुद्दे को लेकर वे विगत 2 महीने से आंदोलन कर रहे थे.
इसी दौरान अचानक 10 जनवरी की रात बनारपुर में पुलिस का छापा पड़ा. भाकपा(माले) विधायक का. अजीत कुशवाहा ने डीआईजी व एसपी से इस बाबत प्रश्न पूछा कि आखिर किसके कहने पर यह पुलिस कार्रवाई हुई? डीआईजी व एसपी दोनों मुकर गए और उन्होंने कहा कि ऐसा कोई आदेश उनके कार्यालय से जारी नहीं हुआ है. वे सारा दोष चौसा थाना प्रभारी के मत्थे मढ़ गए. इसी घटना के बाद किसानों का प्रदर्शन हिंसक हुआ था. अतः इसकी पूरी जिम्मेदारी व जवाबदेही प्रशासन की बनती है.
चूंकि यह योजना केंद्र सरकार की है, इसलिए वह अपनी जिम्मेवारी से बच नहीं सकती. किसानों के लिए घड़ियाली आंसू बहाने वाली भाजपा सरकार यह बताए कि आखिर वह किसानों के साथ किए गए वादों को पूरा क्यों नहीं कर रही है? जांच टीम को ग्रामीणों ने यह भी बताया कि स्थानीय भाजपा सांसद अश्विनी कुमार चौबे भी अपने लोगों को कंपनी में ठेका दिलवाने का काम करते हैं.
किसान महासभा व भाकपा(माले) के जांच दल ने आंदोलन की उपर्युक्त सभी मांगों का समर्थन करते हुए दमन की घटना के जिम्मेवार पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की है. लांच दल ने कहा है कि कंपनी प्रशासन को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तरीके से खुश कर किसानों का गला घोंट रही है. यह बेहद संगीन मामला है, अतः इसकी उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए.