वर्ष - 31
अंक - 50
03-12-2022

हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधान सभा तथा दिल्ली नगर निगम चुनावों के परिणाम आ रहे हैं (चुनाव परिणाम आ चुके हैं – सं.), तो आइये, हम इन चुनावों में भाजपा द्वारा चलाई गयी मुहिम पर एक करीबी नजर डाल लेते हैं.

हिमाचल प्रदेश में अत्यधिक आंतरिक विक्षोभ को देखते हुए नरेंद्र मोदी ने खुलेआम मतदाताओं से कहा कि वे उम्मीदवारों के बारे में न सोचें और सिर्फ उनके लिये वोट डालें. दिल्ली में नगर निगम का चुनाव मोदी शासन का खुला शक्ति प्रदर्शन बन गया था. वहां पहले के तीन निगमों को एक साथ मिलाकर केंद्रीकृत पुनर्गठन किया गया था, वार्डों का योजनाबद्ध तरीके से पुनर्नामांकन किया गया और गुजरात चुनावों के समय ही निगम के चुनाव की अचानक घोषणा कर दी गई – इस पूरी चुनावी कवायद में भाजपा की कुत्सित साजिश साफ साफ नजर आ रही थी. और गुजरात में भाजपा का चुनावी विमर्श 2002 के जनसंहार के बाद हुए चुनाव से मेल खा रहा था, जब नरेंद्र मोदी ने गोधरा के बाद हुए नरसंहार को ‘गुजरात गौरव’ का मामला बना दिया था.

गुजरात जनसंहार के दो दशक बाद अमित शाह, जो केंद्रीय गृह मंत्री हैं, अपने चुनावी अभियान के दौरान उस जनसंहार को उचित ठहरा रहे थे. शाह ने कहा कि दंगाइयों को समुचित सबक सिखा दिया गया, और उससे गुजरात में ‘स्थायी शांति’ कायम हो गई है. कई सारे न्यायिक फैसलों, प्रशासकीय कदमों और राजनीतिक संकेतों की पृष्ठभूमि में उनका यह भाषण सामने आया है, और इन चीजों ने न्याय के हितों को पहले ही नुकसान पहुंचा दिया था. जाकिया जाफरी की याचिका खारिज कर दी गई, सच को बुलंद करने और न्याय हासिल करने के अपने प्रयासों के चलते तीस्ता सीतलवाड और आरबी श्रीकुमार को जेल भेज दिया गया, बिलकिस बानो मामले में बलात्कार व हत्या के अभियुक्तों को भारत की आजादी की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर रिहा कर दिया गया और उनका स्वागत किया गया, जनसंहार के एक अभियुक्त के एक परिजन को नरोदा विधानसभा क्षेत्र से भाजपा का उम्मीदवार बनाया गया, तथा सर्वोच्च न्यायालय ने 2002 के गुजरात दंगे से संबंधित सभी न्यायिक प्रक्रियाओं को बंद कर दिया जिसमें उसने विशेष जांच टीम नियुक्त किया था जो गुजरात जनसंहार 2002 से जुड़े 9 प्रमुख मामलों में जांच व अभियोजन चला रही थी.

जनसंहार के जरिये गुजरात में ‘स्थायी शांति’ कायम करने के अमित शाह के दावे को महज ‘अतीत की उपलब्धि के गान’ के बतौर ही नहीं देखा जा सकता है बल्कि इसे वर्तमान के संदर्भों में भी समझा जाना जरूरी है. जिस तरह संघ ब्रिगेड 1992 के अयोध्या कांड को पूरे देश में दुहराना चाहता है, उसी तरह ‘स्थायी शांति’ के गुजरात फार्मूला को भी ‘पूरे देश के लाभ’ के लिये उभारा गया है! नरसिंहानंद जैसे लोग खुलेआम जनसंहार का आह्वान जारी करते हैं, वहीं भाजपा के नेतागण और मोदी सरकार के तमाम मंत्री अपने-अपने तरीके से ऐसा बयान देते हैं.

शाह दंगा पीड़ितों के लिये ‘दंगाई’ शब्द का इस्तेमाल करते हैं, जबकि ‘दंगाइयों को समुचित सबक सिखाना’ का आशय है ठंडे दिमाग से जनसंहार और बलात्कार को जारी रखना, और ‘स्थायी शांति’ खौफनाक खामोशी, मरघट की भयावह शांति का ही संघी जुमला है. और अब यह दिन की रोशनी की तरह साफ हो चुका है कि विरोध की हर आवाज के लिये, सत्य और न्याय चाहने वाले हर इन्सान को डराने-धमकाने व दंडित करने के लिये इसी शांति का नुस्खा आजमाया जा रहा है.

शाह की ‘स्थायी शांति’ से कोई कम स्पष्ट जुमला ‘पकाई जाने वाली मछली’ नहीं है, जिसे फिल्मी अभिनेता और भाजपा के पूर्व सांसद परेश रावल ने अपने गुजरात चुनावी भाषण में कहा था. रावल ने एक भाषण के दौरान कहा था कि ‘गुजराती लोग बढ़ती कीमतें और रोजगार का अभाव तो बर्दाश्त कर सकते हैं, किन्तु वे कभी भी बंगालियों के लिये ‘पकाई जाने वाली मछली’ नहीं बन सकते हैं. चारों तरफ से प्रतिवाद उठने के बाद रावल ने ‘स्पष्ट किया’ कि बंगालियों से उनका वास्तविक तात्पर्य रोहिंग्याओं और बंग्लादेशियों से था.

इससे हमें संघ-भाजपा का वह विशिष्ट चारित्रिक विमर्श मिलता है, जिसे वे बढ़ती कीमतों और फैलती जाती बेरोजगारी के खिलाफ जनाक्रोश का मुकाबला करने के लिये इस्तेमाल करते हैं और इसके लिये वे जनता के बीच के हर संभव विभेदों – धर्म, भोजन की आदतों, भाषा या संस्कृति से जुड़े विभेदों – के आधार पर नफरत और पूर्वाग्रह भड़काते रहते हैं. आज के गुजरात में, जहां मोरवी प्रतीक बन गया है, शाह और रावल हमें यह स्पष्ट दिखाते हैं कि नफरत, हिंसा व प्रचार की तिकड़मों के अलावा जनता को देने के लिये भाजपा के पास और कुछ भी नहीं है.

और फिर, मोदी की व्यक्ति पूजा को केंद्र करके धुआंधार प्रचार चलाया जा रहा है. चाहे हिमाचल प्रदेश हो या गुजरात, भाजपा की यह मुहिम मोदी के नाम पर वोट बटारने पर ही केंद्रित रही. यहां तक कि मोरवी पुल के ढहने को भी भाजपा सरकार ने वहां की बहु-प्रचारित मोदी भाषा को केंद्र करके प्रचार का एक माध्यम बना डाला, जब मोदी खुद वहां वोट डालने गये तो उन्होंने एक ‘रोड-शो’ प्रचार ही कर डाला और इस प्रकार चुनाव आचार संहिता की धज्जियां उड़ा दीं और निर्वाचन मानकों को तोड़ने और उसका माखौल उड़ाने की ऐसी हर कार्रवाई के कलंक से बचने के लिये भाजपा शासन अब निर्वाचन आयोग को मूक दर्शक बना देना चाहता है, जिसमें उसके द्वारा हाथ पकड़कर बिठाये गए निष्ठावान नौकरशाह भरे रहेंगे, जिन्हें संदेहास्पद तरीके से निर्वाचन आयुक्त बना दिया जाएगा.

इस प्रकार इन चुनावों को हताशा से भरे मोदी शासन द्वारा निर्वाचन प्रक्रियाओं में हेराफेरी करने और उन्हें पूरी तरह मजाक बना देने की साफ चेतावनी के बतौर देखा जाना चाहिए. हमें इन चुनावों को एक शक्तिशाली जन आंदोलन में तब्दील कर देना होगा, जैसा कि लैटिन अमेरिका के देशों में हो रहा है, ताकि दमन और लूट के इस निजाम को खत्म किया जा सके.