उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन (संबद्ध ऐक्टू) ने 6 माह तक चले धारावाहिक आंदोलन के अंतिम चरण में जिला मुख्यालयों पर ‘दस्तक दो’ कार्यक्रम के साथ राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के कार्यालय के सामने प्रदर्शन के साथ अपने आंदोलन का समापन किया.
15 मई 2022 को राज्य स्तरीय कन्वेंशन में लिए गए निर्णयों के क्रम में 6 जून 2022 को जिला स्तरीय प्रदर्शनों से शुरू करके अपनी मांगों के समर्थन में प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक दिवसीय महापड़ाव के सफल आयोजन के साथ काली पट्टी बांधकर काम करते हुए प्रतिरोध सप्ताह और उसके बाद 27 व 28 सितंबर 2022 को राज्य व्यापी धिक्कार दिवस संगठित किया गया. उसके बाद 17, 18, 19 अक्टूबर 2022 को जिला मुख्यालयों पर जोरदार प्रदर्शन कर भ्रष्ट्राचार की रोक के लिए निगरानी तंत्र बनानेए 5 वर्षा में आशा कर्मियों के कृत कार्य की घोषित प्रोत्साहन राशियों में 1.5 लाख करोड़ के घोटाले की जांच और उसका सही आकलन कर उसके भुगतानए 45/46 वें श्रम सम्मेलन की सिफारिशो के अनुरूप न्यूनतम वेतन की गारंटी, 10 लाख रूपये का स्वस्थ बीमा व 50 लाख रूपये का जीवन बीमा दिए जाने, त्योहारी व राष्ट्रीय अवकाश के साथ-साथ साप्ताहिक, वार्षिक व मातृत्व अवकाश दिए जाने, विगत 5 वर्षा में काम के दौरान दुर्घटनाओं में मृत आशा कर्मियों के परिजनों को 20 लाख रू. का मुबावजा दिए जाने, आशा कर्मियों को स्वास्थ्य राज्य कर्मी का दर्जा दिए जाने आदि मांगों को सरकार के समक्ष रखा और भविष्य में बड़े आंदोलन की चेतावनी भी दी.
उत्तर प्रदेश में दमन के लिए कुख्यात योगी सरकार के आतंक को चुनौती देते हुए यह आंदोलन प्रारंभ से आखिर तक अपनी पूरी ऊर्जा और उत्साह बनाए रखते हुए व्यापक गोलबंदी और विस्तार करते हुए आगे बढ़ा. 5 जिलों से शुरू हुआ यह आंदोलन अंतिम चरण तक प्रदेश के 40 से अधिक जिलों में फैल गया और 6 जून से लेकर 19 अक्टूबर 2022 तक आंदोलन के विभिन्न चरणों में 70,000 से ज्यादा आशा कर्मियों ने हिस्सा लिया. बरेली, हाथरस, अलीगढ़, हरदोई, पीलीभीत, गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, राय बरेली, इलाहाबाद, बस्ती, मऊ, वाराणसी, बाराबंकी, कानपुर, हमीरपुर, लखीमपुर, बदायूं व उन्नाव जनपद बड़ी गोलबंदी के केंद्र रहे. कुछ जिलों में आंशिक भागेदारी हुई.
इस पूरे दौर में सरकारी मशीनरी, स्वास्थ्य विभाग, सरकारी संरक्षण में पलने वाले एनजीओ मार्का संगठन आदि ने आंदोलन को कमजोर करने, तोड़ने व विफल करने के प्रयास किए. योगी सरकार द्वारा जगह-जगह धारा 144 लगाकर प्रदर्शनों को रोकने की कोशिश की गई, गिरफ्तारी, लाठी चार्ज, सेवा से बाहर कर देने की धमकी आदि के अलावा अन्य कई तरह के प्रचार अभियान संगठित कर संगठन और आंदोलन से आशा कर्मियों की विमुख करने की हर कोशिश का जबाव और ज्यादा गोलबंदी तथा साहस के साथ देते हुए उभरे नए नेतृत्व ने अपने अपने जिलों में कुशलता पूर्वक आंदोलन को दिशा दी.
लखनऊ के महापड़ाव की अनुमति रद्द कर दी गई और कार्यक्रम न करने का दबाव बनाया गया, किंतु सरकार की सारी कोशिशों को धत्ता बताते हुए सूरज की पहली किरण के साथ प्रदेश के दूरदराज के इलाकां से पड़ाव स्थल पर हजारों आशा कर्मी आ डटीं और प्रशासनिक उकसावे की हर कार्यवाही को नजरंदाज कर नेतृत्व ने उनकी साजिश को विफल कर अपने कार्यक्रम को सफलता पूर्वक संपन्न किया.
इसी तरह बरेली जिलाध्यक्ष को जेल भेज देने की धमकी के साथ उनके साथ सीएमओ बरेली द्वारा गाली गलौज व बदसलूकी की कार्यवाही की गई जिसका जोरदार प्रतिवाद करते हुए 17 अक्टूबर को एक हजार से ज्यादा की संख्या में आशा कर्मियों ने जिला मुख्यालय पहुंच कर प्रतिवाद किया और उसके विरुद्ध अपराधिक मुकदमा दर्ज करने की मांग की. इसी तरह कुशीनगर में जिलाध्यक्ष रेणु राय के विरुद्ध एक ऑडियो में कुसी को धमकाने के फर्जी आरोप मे गिरफ्तारी का भय दिखाकर कार्यक्रम रद्द करने का दवाब बनाया गया और पूरे जिले में आतंक का माहौल बनाने की कोशिश की गई किंतु जिला मुख्यालय के सामने स्थित मैदान में 2 हजार से ज्यादा आशा कर्मियों ने एकत्र होकर प्रशासनिक आतंक की धज्जियां उड़ा दी.
गोरखपुर में प्रस्तावित धरना स्थल पर पुलिस ने डेरा डाल दिया और प्रदर्शन के लिए एकत्र होने वाली आशा कर्मियों को खदेड़ने की कार्यवाही शुरू की, जिसका प्रतिवाद करते हुए वे सभी सड़क के बीचोबीच जम गईं और बाद में प्रशासन ने घुटने टेक दिए. आशा कर्मियों ने 2 किलोमीटर का लंबा मार्च निकालकर योगी के आतंक के गढ़ गोरखपुर में लूट और भ्रष्ट्राचार के विरुद्ध आवाज बुलंद करते हुए जिला मुख्यालय में जोरदार प्रदर्शन कर अपना मांगपत्र सौंपा.
6 माह के लंबे आंदोलन के विभिन्न रूपों ने जहां एक ओर अपने बुनियादी सवालों को केंद्र में लाने में सफलता हासिल की, वही प्रदेश भर में इनके बीच से ही एक नेतृत्व भी उभर कर सामने आया जिसने संगठन निर्माण के साथ साथ अपने आंदोलनों को भाजपा की मेहनतकश और महिला विरोधी विचारधारा के विरुद्ध मोड़ते हुए आगे बढ़ रहा है.
इस पूरे आन्दोलन में उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन की प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मी, वरिष्ठ उपाध्यक्ष कमलजीत कौर, राज्य सचिव साधना पांडेय, सहसचिव जौली वैश्य, शिववती साहू व जय श्री (बरेली), दुर्गेश व उषा (हाथरस), मुकलेश (हरदोई), हुस्ना चौहान व विनेश (अलीगढ़), उर्मिला (कानपुर), अर्चना रावत व किरण यादव (बाराबंकी), मीनू व सेवाती यादव (गोरखपुर), सविता सत्यावती व कंचन मिश्रा (देवरिया), गीता मिश्रा (राय बरेली) और रेणु राय व सृजाबती मिश्रा (कुशीनगर) आदि ने प्रमुख भूमिका निभाई.
– मो. अफरोज