भाकपा(माले) की जांच रपट :
नवादा जिले के रजौली प्रखंड के हरदिया गांव में प्रशासन द्वारा विगत 14 अक्टूबर को मुस्लिम, दलित व पिछड़ी जाति के 23 घरों (68 परिवार) को बुलडोजर चलाकर जमींदोज कर दिया गया. इस घटना की जांच के लिए पार्टी की एक राज्यस्तरीय टीम 19 अक्टूबर को हरदिया पहुंची. जांच टीम में भाकपा-माले की राज्य कमिटी सदस्य व घोषी विधायक रामबलि सिंह यादव, राज्य कमिटी सदस्य नरेन्द्र शर्मा, नवादा जिला सचिव भोला राम तथा राज्य कमिटी सदस्य मनमोहन कुमशार शामिल थे. जांच टीम ने जांचोपरांत जिला पदाधिकारी से भी मुलाकात की और उजाड़े गए परिवारों के बीच राहत चलाने की मांग की. यह भी कहा कि उजाड़ने की कार्रवाई पर रोक लगाई जाए. जांच टीम ने तथ्यों का हवाला देते हुए कहा कि कहीं से किसी भी प्रकार का अतिक्रमण का मामला है ही नहीं. गरीबों को बेवजह परेशान किया जा रहा है.
दरअसल, पूरा मामला 1985 में निर्मित फुलवरिया जलाशय के निर्माण से है. जलाशय निर्माण के कारण 22 गांवों – चिरैला, मरमो, पीपरा, सिंगर, परतौलिया, नरिमास, कमात, बिद्या, महुआ टांड़, डैनिक हार, भितिआही आदि गांवों के परिवारों को विस्थापित होना पड़ा था और तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के आदेश पर इन विस्थापित परिवारों को हरदिया गांव में सेक्टर का निर्माण कर तत्कालीन डीएम ने 25-25 डिसमिल जमीन निर्गत की थी. लगभग 386 डिसमिल जमीन पर 640 परिवारों को पर्चा दिया गया और कोई एक हजार लोगों को बसाया गया. 1993-94 में पुनः 186 लोगों को पर्चा दिया गया. विस्थापन के समय विस्थापित परिवारों को यह भी आश्वासन दिया गया था कि एक परिवार से एक सदस्य को सरकारी नौकरी भी दी जाएगी.
जिला प्रशासन ने पर्चा तो कई परिवारों को दे दिया लेकिन कई परिवारों को कब्जा दिलाए बगैर बस जाने को कहा. उनके पर्चे वाली जमीन अब भी दूसरे के कब्जे में है. तब जहां जगह खाली मिली, लोग बसने लगे. कई लोग सिंचाई विभाग के बने पुराने क्वार्टर में रहने लगे. उन्हें कहा गया कि बाद में पर्चा मिल जाएगा, लेकिन उन्हें आज तक नहीं मिल सका है. कई लोग सिंचाई विभाग द्वारा अधिग्रहित 319 एकड़ भूमि के खाली हिस्से में भी बस गए. सिंचाई विभाग ने विस्थापितों को बसाने के साथ-साथ 319 एकड़ भूमि का अलग से अधिग्रहण किया था, जो आसपास के पहाड़ी इलाके की बंजर जमीन थी. इस भूमि को विद्यालय, चारा सेक्टर, पंचायत भवन, सामुदायिक भवन, तालाब, सड़क, कुआं, कुम्हार लोगों के लिए मिट्टी,धर्मस्थल, श्मशान, कब्रिस्तान आदि के नाम पर खाली रखा गया था. फिलहाल कई संरचनाएं बनी हुई हैं. अभी भी बहुत जमीन खाली पड़ी हुई है. कृष्णा चंदेल ने जिन 640 परिवारों के खिलाफ उच्च न्यायालय में आवेदन दिया था, उनमें बड़ा हिस्सा उन परिवारों का ही है जिन्हें जमीन का पर्चा तो मिला था, लेकिन उनकी जमीन पर दूसरे के कब्जे में होने के कारण खाली जमीन पर बसते गए. सिंचाई विभाग की इस खाली जमीन पर बसे होने से कभी किसी को कभी दिक्कत भी नहीं रही. ऐसे ही 125 घरों को तोड़ डालने का नोटिस जारी हुआ.
पटना उच्च न्यायालय के निर्देश पर 14 अक्टूबर को बुलडोजर द्वारा 9 मुस्लिम, 33 राजवंशी (रजवार), 11 मांझी, 8 रविदास, 4 कहार, 2 तेली और 1 पासी जाति के परिवार के घर तोड़ दिए गए. सेक्टर-बी में भी 11 परिवारों के मकानों पर बुलडोजर चलाया गया जिनमें आफताब हुसैन, महताब हुसैन तथा नसीमउद्दीन के मकान की ढलाई महज 2 माह पूर्व हुई थी. ये मकान इन्हें इंदिरा आवास के रूप में मिले थे. इनके पर्चे वाली जमीन पर कासिम मियां नाम का एक व्यक्ति कब्जा किए हुए है. नसीमउद्दीन की पत्नी रौशन खातून अपने तीन माह के बच्चे के साथ अभी दूसरे मकान में रह रही हैं. सेक्टर-सी में 28 तथा डी में 29 परिवार अचानक बेघर हो गए. किसी को भी चावल-दाल और अपना कपड़ा निकालने तक का मौका प्रशासन ने नहीं दिया. सेक्टर डी में स्व. तुलसी साव की विधवा तेतरी देवी पेड़ के नीचे प्लास्टिक ओढ़कर रात काटने को मजबूर कर दी गई हैं. जांच टीम को उन्होंने बताया कि उन्होंने 1998 में इंदिरा आवास के तहत अपना मकान बनवाया था. 20 हजार रुपया पास हुआ था. 3 हजार अधिकारी खा गए और बाकि से घर बनवाया था.
कृष्णा चंदेल लगातार पंचायत का चुनाव लड़ते आए हैं लेकिन उनकी हार ही होती रही है. उसी से बौखलाकर वे पटना उच्च न्यायालय तक चले गए और उच्च न्यायालय ने भी तथ्यां की ठीक से जांच-पड़ताल किए बगैर अपना फरमान सुना दिया. इसी गांव से भाकपा-माले के नेता मेवालाल राजवंशी जिला पार्षद हैं. विस्थापित परिवार मेवालाल राजवंशी को वोट करते आए हैं. इसी कारण कृष्णा चंदेल को मेवालाल राजवंशी से जलन रही है. स्थानीय लोगों ने बताया कि कृष्णा चंदेल का जुड़ाव सीपीएम से रहा है और सबसे ताज्जुब की बात यह कि सीपीएम 1985 में विस्थापित परिवारों को हरदिया में बसाने के विरोध में था. उसकी स्थानीय यूनिट ने कई सालों तक इसके खिलाफ आंदोलन भी किया.
23 घरों को तोड़े जाने के बाद फिलहाल कार्रवाई बंद कर दी गई है. लेकिन सभी लोग सशंकित हैं, पता नहीं किस वक्त बुलडोजर फिर उनका घर तोड़ने आ पहुंचे. यह अन्याय नहीं तो क्या है कि आज तक प्रशासन विस्थापितों को जमीन पर कब्जा तो नहीं दिला सका लेकिन उन्हें उजाड़ने आनन-फानन में पहुंच गया. दरअसल, सरकार और प्रशासन ने विस्थापित परिवारों के साथ आज तक धोखा ही किया है.