लेखकों-कलाकारों ने फासीवाद के खिलाफ आजादी, प्रतिरोध और लोकतंत्र की आवाज बुलंद की
जन संस्कृति मंच का 16वां राष्ट्रीय सम्मेलन 8-9 अक्टूबर, 2022 को रायपुर (छत्तीसगढ़) के जोरा स्थित पंजाब केशरी भवन में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ. यह सम्मेलन कोरोना महामारी की वजह से 5 साल के बाद आयोजित हुआ था. सम्मेलन में देश भर से लेखक, कवि, गायक, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी, चित्रकार, साहित्य प्रेमी व सामाजिक-मानवाधिकार कार्यकर्ता शामिल हुए.
इस सम्मेलन का उदघाटन चर्चित मानवाधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने किया. जाने-माने कवि देवी प्रसाद मिश्र सम्मेलन में मुख्य अतिथि थे. आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी विशिष्ट अतिथि के रूप में सम्मेलन में शरीक हुईं. इस सम्मेलन में 250 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने उत्साहपूर्ण भागीदारी निभाई.
सम्मेलन का स्वागत वक्तव्य देते हुए राजकुमार सोनी (छत्तीसगढ़) ने शंकर गुहा नियोगी को याद किया और कहा कि देश के कोने-कोने में को गैस चेम्बर में बदल दिया गया है. मुसोलिनी और हिटलर के फासीवाद के विभिन्न रूप-प्रतिरूप यहां मौजूद हैं. साथ ही पूरे विश्व में दक्षिणपंथ का उभार हो रहा है.
सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए चर्चित सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने कहा कि कॉर्पारेट को फायदा पहुंचाने और जल-जंगल-जमीन पर कब्जा करने के लिए आदिवासियों को मारा जा रहा है. उन्होंने बताया कि जब सुकमा जिले में 17 आदिवासियों को मार डाला गया तो हमने इसकी निष्पक्ष जांच के लिए उच्च न्यायालय का शरण लिया. इसके लिए न्यायालय ने मुझ पर पांच लाख रूपये का जुर्माना और नहीं तो जेल में डालने का आदेश सुनाया है. मुझे जेल जाना पसंद है लेकिन मैं आदिवासियों के साथ विश्वासघात नहीं कर सकता.
‘मैं एक कार सेवक था’ पुस्तक के लेखक भंवर मेघवंशी ने कहा कि ब्राह्मणवाद, सामंतवाद, पूंजीवाद, जातिवाद इन सभी चीजों का मिश्रण फासीवाद है. हमलोगो को हिन्दुत्व नहीं, बंधुत्व का आंदोलन खड़ा करना होगा.
युवा एक्टिविस्ट नवकिरन नत ने कहा कि फासीवाद फैल चुका है किसानों का जमीन छिनने गांव-गांव में पहुंच गया है. फासीवाद का मुकाबला करने के लिए हमे एकजुट होना होगा, नई टेक्नॉलजी और संवाद की नयी शैली का प्रयोग करना होगा और अपने घेरे से बाहर निकलना होगा.
सांगठनिक सत्र में जसम के महासचिव साथी मनोज सिंह द्वारा पेश कामकाज की रिपोर्ट पर व्यापक चर्चा हुई. इसके बाद बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड के राज्य सचिवों, पुस्तकालय अभियान और समकालीन जनमत पोर्टल के प्रभारियों और कोष प्रभारी ने भी अपनी रिपोर्ट रखी. प्रगतिशील लेखक संघ और दलित लेखक संघ के शुभकामना संदेश को भी पढ़ा गया. संभावना कला मंच, गाजीपुर ने बिहार के दिवंगत चित्रकार राकेश दिवाकर को समर्पित कला दीर्घा भी बनाई गई थी. सम्मेलन मंच से कई पुस्तकों का लोकार्पण हुआ. सम्मेलन कक्ष के बाहर बुक स्टाल भी लगा था.
सम्मेलन के दूसरे दिन ‘फासीवाद के खिलाफ प्रतिरोध के रूप’ विषय पर केंद्रित विचार सत्र का आयोजन किया गया. प्रसिद्ध कवि और चिंतक देवी प्रसाद मिश्र ने इस अवसर के लिए लिखित पर्चे का पाठ करते हुए कहा कि भले ही भारत घोषित तौर पर हिन्दू राष्ट्र नहीं है लेकिन अब यह कहा जा सकता है कि वह एक हिन्दू राष्ट्र है. फासीवाद अन्यकरण को रेखांकित करता है. भारत में आर्य भी उन्हीं स्थानों से आये जहां से मुसलमान आये लेकिन इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया जाता है. फासीवादी सत्ता शत्र का तलाश इसलिए कर रही है ताकि हिंदुओं का सैन्यीकरण किया जा सके. हिंदूवाद में वर्ण संरचना को तोड़ना लक्ष्य नहीं है. हिन्दू महिलाओं के सबलीकरण का भी कोई प्रमाण नहीं मिलता है. आत्म गरिमा में पुनर्वापसी की भी कोई योजना नहीं है. रूढ़िवाद को और प्रगाढ़ बनाया जा रहा है. राष्ट्रीय संसाधनों पर कुछ खास लोगों की कब्जेदारी ही उनका लक्ष्य है. इसको हिन्दू नवजागरण भी नहीं कह सकता. यह हिन्दू राष्ट्र हिंदुओं का दुर्जनीकरण कर रहा है. हिंसा और असमानता की इस परियोजना से लड़ने के लिए आदिवासी प्रतिरोध को राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार करना चाहिए. एक सामाजिक संघ बनाना चाहिए जो समग्र विरोध संस्कृति की ओर लक्षित हो.
कवि और वैज्ञानिक लाल्टू ने कहा कि जब से मैं मध्यप्रदेश मेंआया तभी से सांप्रदायिक माहौल बना हुआ था. अलग-अलग संगठनों की वजह से हम ठीक से सांप्रदायिक माहौल से लड़ नहीं पाए. पफौज तत्व पर आधारित राष्ट्रवाद के खिलाफ हमें बोलना चाहिए. हम लोगों में कहीं ना कहीं राष्ट्रवाद रह गया है. विभाजन की त्रासदी का प्रभाव पंजाब जैसे राज्यों में ज्यादा रहा. हिंदी इलाकों में विभाजन को लेकर उस तरह की समझ नहीं है जैसी पंजाब के लोगों में है. लेखक संगठन के रूप में हमें उन रचनाकारों के साथ राब्ता बनाना चाहिए जिनके पास विभाजन की त्रासदी से जुड़े हुए तमाम अनुभव हैं.
चर्चित कथाकार रणेन्द्र ने कहा कि यह समय भारी सेंसरशिप वाला है. उन्होंने कहा कि फासीवाद में व्यक्ति की महत्ता को राष्ट्र के सामने कुछ भी महत्व नहीं दिया जाता, अहिंसा को एक यूटोपिया की तरह बताया जाता है और विवेक वाद को महत्व नहीं दिया जाता. यह सब हमारे यहां भी हो रहा है. नस्ल को केंद्र में लाया जाता है. उन्होंने कहा कि फासीवाद के खिलाफ लड़ने के लिए आदिवासी प्रतिरोध और प्रतिकार से सीखने की जरूरत है.
गुजरात के सांस्कृतिक चिंतक भरत मेहता ने कहा कि हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि फासीवाद का प्रतिरोध कैसे करें. हमें फासीवाद से लड़ने के लिए संस्कृति के विभिन्न मोर्चों पर सचेत होकर काम करना चाहिए.
राधाकांत सेठी ने कहा कि गैर हिंदी भाषी राज्यों में चलने वाले सांस्कृतिक आंदोलन से विचार साझा कर हमें अपने सांस्कृतिक आंदोलन को मजबूत करना चाहिए.
आदिवासी प्रतिरोध की पर्याय बन चुकीं सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी ने अपनी आपबीती के हवाले से फासीवाद के स्वरूप को सामने रखा. उन्होंने कहा कि हम आदिवासियों को आप लेखकों-कलाकारों से बड़ी उम्मीद है. आपके लेखन से हमारी लड़ाई को मजबूती मिलती है. पूरे भारत के आदिवासियों के साथ हिंसक उत्पीड़न होता है. हमें हिंदू राष्ट्रवाद के बदले मानव राष्ट्र की जरूरत है. दरअसल हिंदू राष्ट्र के बहाने हमें बांटा जा रहा है. बस्तर के उदाहरणों से उन्होंने कहा कि चाहे भाजपा हो या कांग्रेस, आदिवासियों की जिंदगी पर उसी तरह से शोषण-उत्पीड़न जारी रहता है. संघर्षों से ही हमें ताकत मिलती है. जितना ही ज्यादा हमारा उत्पीड़न होता है हमारे संघर्ष की ताकत भी उतनी ही बढ़ जाती है. आदिवासियों के साथ होने वाला बर्बर उत्पीड़न क्या फासीवाद के एक दूसरे संस्करण को सामने नहीं रखता. इस सत्र की अध्यक्षता समकालीन जनमत के प्रधान सम्पादक रामजी राय और संचालन युवा आलोचक अवधेश त्रिपाठी ने की.
सम्मेलन में एक जोर जहां आंध्र प्रदेश की नाट्य-गायन टीम का जोशीले नृत्य, पटना की कोरस व बेगूसराय की रंगनायक टीम के नाटकों, शशिकला और उनके साथियों द्वारा छत्तीसगढ़ी प्रतिनिधि गीतों और निवेदिता शंकर द्वारा सितारवादन, बिहार, झारखंड और प. बंगाल के कलाकारों के गायन तथा वसु गंधर्व और अजुल्का द्वारा मूर्धन्य कवि मुक्तिबोध, त्रिलोचन शास्त्री, शमशेर बहादुर की हिन्दी कविताओं की सांगीतिक प्रस्तुति और रायपुर इंडियन रोलर बैंड द्वारा जन सरोकार से जुड़े बेहतरीन गीतों की प्रस्तुति ने सम्मेलन को रोचक बनाया. कवि गोष्ठी में देवी प्रसाद मिश्र, लाल्टू, पंकज चतुर्वेदी, जहूर आलम, देव शुक्ल, आनंद बहादुर, घनश्याम त्रिपाठी, कमलेश्वर साहू, राजेश कमल, अनुपम सिंह, प्रियदर्शन मालवीय, शंभू बादल, वासुकी प्रसाद उन्मत, बलभद्र, मुकुल सरल आदि ने कविता पाठ किया.
सम्मेलन के आखिरी दिन प्रतिनिधियों ने 141 सदस्यीय राष्ट्रीय परिषद और 37 सदस्यीय कार्यकारिणी का चुनाव किया. चर्चित हिन्दी आलोचक रविभूषण जन संस्कृति मंच के नए अध्यक्ष चुने गए. पत्राकार और संस्कृतिकर्मी मनोज कुमार सिंह दुबारा तसम के महासचिव चुने गए. राष्ट्रय परिषद ने जाने माने कवि लाल्टू, मदन कश्यप, वरिष्ठ कथाकार शिवमूर्ति, गुजरात के साहित्यकार भरत मेहता, प्रसिद्ध चित्रकार अशोक भौमिक, चर्चित रंगकर्मी जहूर आलम और रामजी राय को उपाध्यक्ष चुना.