वर्ष - 31
अंक - 39
24-09-2022

16 सितंबर को नरेंद्र मोदी की 72 वीं सालगिरह से एक दिन पहले उनके सबसे नजदीकी पूंजीपति दोस्त गौतम अडानी थोड़े समय के लिए फोर्ब्स की रियल टाइम बिलियनेयर्स सूची के अनुसार दुनिया के दूसरे सबसे अमीर व्यक्ति बन गए थे, जो फिर  तीसरे स्थान पर पीछे आ गए. अडानी समूह 152.2 बिलियन डॉलर की कुल संपत्ति के साथ इसके निकटतम वैश्विक प्रतिद्वंद्वी फ्रांसीसी दिग्गज कारोबारी बर्नार्ड अरनॉल्ट और अमेरिकी उद्यमी और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म अमेज़ॅन के संस्थापक जेफ बेजोस हैं, जबकि अमेरिकी उद्यमी और इलेक्ट्रिक कार निर्माता टेस्ला के सीईओ एलन मस्क 273.2 बिलियन डॉलर की कुल संपत्ति के साथ सूची में चोटी पर बने हुए हैं. अडानी अब सबसे अमीर एशियाई हैं और भारत के दूसरे स्थान पर मुकेश अंबानी को 50 अरब डॉलर से अधिक पीछे छोड़े हुए हैं.

1988 में एक कमोडिटी ट्रेडिंग फर्म से शुरुआत करते हुए अडानी समूह आज बंदरगाहों, स्पेशल इकनोमिक जोन, सड़कों और हवाई अड्डों से लेकर ऊर्जा, गैस, कृषि व्यवसाय, वेयरहाउसिंग से जुड़े व्यवसायिक हितों के साथ भारत के अर्थव्यवस्था की बुनियाद माने जाने वाले कोर सेक्टर का सबसे बड़ा  समूह बन गया है, जिससे कोई भी क्षेत्र नही बचा है. अडानी के तिजारती किस्मत की इस हैरतअंगेज उड़ान की तुलना सिर्फ नरेंद्र मोदी के सियासी तकदीर के इजाफे से की जा सकती है, और यकीनन ये दोनों एक ही दौर में और कभी एक-दूसरे के नजदीकी मदतगार बनकर उभरे हैं. 2001 के भूकंप के बाद मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने और गुजरात के भूकंप के बाद के पुनर्निर्माण के दौर में अडानी ने संपत्ति और संसाधनों को हथियाना शुरू कर दिया. जब 2002 के गुजरात नरसंहार के बाद भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के नेतृत्व द्वारा मोदी की आलोचना की गई और अमेरिका और इंग्लैंड में प्रवेश करने पर पाबंदी लगा दी गयी, तो अडानी ने 2003 के वाइब्रेंट गुजरात शिखर सम्मेलन में बड़े पैमाने पर निवेश किया. इस सम्मेलन में कॉरपोरेट लॉबी के जरिये मोदी को संभावित 'भारत के सीईओ' के बतौर तारीफ कर पुनर्वास किया गया. यह अडानी के लिए भी एक महत्वपूर्ण मोड़ के बतौर बयान किया गया है , क्योंकि इसके बाद समूह को गुजरात सरकार से भारी-भरकम खास रियायतें मिलनी शुरू हुईं. मुंद्रा बंदरगाह के आसपास अडानी की सल्तनत तेजी से फैलने लगी जो अब भारत का सबसे बड़ा वाणिज्यिक बंदरगाह है.

2014 में मोदी ने अपने चुनाव अभियान के लिए अडानी के जेट और हेलीकॉप्टरों के बेड़े का इस्तेमाल किया और एक प्रधानमंत्री के बतौर शपथ लेने अहमदाबाद से दिल्ली अडानी के जेट से सफर पूरी दुनिया के लिए एलान था कि भारत में क्रोनी पूंजीवाद अब पूरी तरह से नयी ऊंचाईयों को छू रहा है. तब से बैंकों ने अडानी के आक्रामक विस्तार के लिए अपना पैसा निवेश किया है, जबकि भारत सरकार ने न केवल देश के अंदर बल्कि विदेशों में भी अडानी के विस्तार को बढ़ावा देने के लिए हर संभव कोशिश की है. अडानी अब भारतीय बैंकों से कर्ज ले ऑस्ट्रेलिया में कोयले का खनन कर वापस भारत को बेचता है. अब हम यह भी जानते हैं कि किस तरह से अडानी समूह को श्रीलंका में पवन ऊर्जा परियोजनाओं का ठीका दिया गया. मोदी युग के आगमन से पहले 30 मार्च, 2014 को अडानी की संपत्ति 4.5 बिलियन डॉलर थी, जो जनवरी 2020 में दोगुने से अधिक 11 बिलियन डॉलर हो गई और जून 2021 में महामारी के दौरान तेजी से बढ़कर 76.7 बिलियन डॉलर और अब सितंबर 2022 में 150 बिलियन डॉलर से अधिक हो गई.

आठ वर्षों में यह तीस गुना वृद्धि  सबसे बेहया किस्म के क्रोनी पूंजीवाद का परिणाम है, जहां राज्य की सार्वजनिक संपत्ति और संसाधनों को बेईमानी से अडानी समूह की संपत्तियों में तब्दील किया जा रहा है, जिसकी वजह से यह समूह कोर सेक्टर पर एक बड़ा एकाधिकार हासिल करने में सक्षम है और भारत के विदेशी व्यापार से जोंक की तरह चिपट गया है. बंदरगाहों, हवाई अड्डों, सड़कों और रेल संचार पर अडानी समूह के बढ़ते नियंत्रण के लिए हमें भारत सरकार का शुक्रगुजार होना चाहिए. संघ-भाजपा खेमा अडानी को एक महान धन निर्माता और रोजगार सृजनकर्ता के रूप में पेश करके इस सच पर पर्दा डालना चाहते हैं, ताकि अडानी के विकास को मोदी निजाम द्वारा भारत के विकास गाथा के रूप में पेश किया जा सके. लेकिन भारत की गिरती सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) दर से लेकर बढ़ती बेरोजगारी और गरीबी, भूख और कुपोषण के सूचकांकों में खतरनाक वृद्धि तथा सभी किस्मों के आर्थिक संकेतक इस प्रचार के खुले झूठ और भारत के लोगों के इस क्रूर अपमान का पर्दाफाश करते है.

यह कॉरपोरेटी विकास है जिसकी बड़ी सामाजिक और पर्यावरणीय कीमत चुकानी पड़ी हैै.और इसलिए दुनिया भर में हम अब अडानी समूह द्वारा लूट की परियोजनाओं और देशज लोगों की भूमि हड़पने और खुद को अक्षय ऊर्जा और देशज लोगों की कला और संस्कृति का प्रमोटर बता अपनी लूट को छिपाने के पाखण्डी प्रयासों के खिलाफ जगह-जगह #स्टॉपअडानी जैसे  प्रोटेस्ट को बढ़ते देख रहे हैं. तेजी से यह भी स्पष्ट होता जा रहा है कि अडानी की चमत्कारी वृद्धि एक ऋण-वित्त पोषित बुलबुला है और जब यह बुलबुला फूटेगा तो अमेरिका के वितीय दिग्गजों के पतन की तरह भारत में बड़े पैमाने पर वित्तीय संकट खड़ा कर सकता है. अडानी समूह की कुल संपत्ति में वृद्धि मुख्य रूप से विविध क्षेत्रों में अपने आक्रामक ऋण-संचालित  अधिग्रहण और समूह के शेयर की कीमतों में वृद्धि के कारण है, जिसका समूह की राजस्व आय के साथ बहुत सीधा संबंध नहीं है. उदाहरण के लिए अमेज़ॅन और अदानी समूह के बीच तुलना करने से पता चलता है कि दोनों की कुल संपत्ति लगभग $150 बिलियन डॉलर के समान स्तर पर है, पर दोनों के राजस्व $486 बिलियन और $29.2 बिलियन में काफी बड़ा अंतर है.

मोदी हुकूमत आज सत्ता के बेलगाम केंद्रीकरण का प्रतिनिधित्व करता है जबकि अदानी साम्राज्य धन के अभूतपूर्व संकेन्द्रण का प्रतीक है. आम जनता के लिए क्रोनी कैपिटलिज्म का मतलब अडानी-अंबानी कंपनी राज के रूप में है जो बड़े धनवानों का, बड़े धनवानों के जरिये, बड़े धनवालों के लिए सरकार के रूप में मोदी सरकार के वास्तविक चरित्र को सार रूप में प्रस्तुत करता है. जम्हूरियत को बरकरार रखने के लिए भारत को मोदी शासन को उखाड़ फेंकना होगा और भारतीय अर्थव्यवस्था और राजनीति पर बढ़ती इस कॉरपोरेट गिरफ्त को तोड़ना होगा.