नरेंद्र मोदी ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ नारे के साथ 10 साल पहले सत्ता में आए थे. अपने वजूद के इन दस सालों में मोदी सरकार ने हर तरीके अपनाकर सारी शक्तियों का केंद्रीयकरण अपने पास कर लिया है. मोदी निजाम अब ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के नारे से आगे ‘विपक्ष मुक्त लोकतंत्र’ के अपने एजेंडे को आक्रामक रूप से आगे बढ़ा रहा है. गैर-भाजपा सरकारों को गिरा दिया जा रहा है, और इच्छानुसार पार्टियों और गठबंधनों को तोड़कर, दलबदल करा भाजपा के नेतृत्व वाली सरकारों को उनकी जगह बिठा दिया गया है. कर्नाटक, मध्य प्रदेश, गोवा, और अब बिहार में हमने यही देखा है. हमने भाजपा को चुनाव हारने के बाद भी बार-बार सत्ता हथियाते देखा है. भाजपा की उपलब्धियों की फेहरिस्त में अब एक नया मॉडल जुड़ गया है - चुनाव चुराने का चंडीगढ़ मॉडल.
35 सदस्यीय चंडीगढ़ निगम में भाजपा के 15 सदस्य थे, बाकी 20 सदस्य आप और कांग्रेस के थे. महापौर चुनाव में आप और कांग्रेस के बीच समझौता था, और कांग्रेस के समर्थन से आप उम्मीदवार की जीत तय थी. लेकिन, पीठासीन अधिकारी बने शख्स निगम के एक नामित सदस्य और जाने-माने भाजपा नेता हैं, और उनके पास चुनाव को लेकर कुछ दूसरी ही योजना या निर्देश थे. सत्ता का बड़ी ही बेशर्मी से दुरुपयोग कर उन्होंने कांग्रेस/आप पार्षदों के आठ मतपत्रों से छेड़छाड़ कर उन्हें अवैध घोषित कर दिया और 16-12 बहुमत के साथ भाजपा उम्मीदवार को महापौर पद सौंप दिया. सौभाग्य से यह पूरी कवायद कैमरे में कैद हो गई और चंडीगढ़ के महापौर चुनाव में दिनदहाड़े हुई इस बेशर्मी भरी लूट के वीडियो वायरल हो गए.
इस बेशर्मी भरी चुनावी डकैती के खिलाफ अपील पर अब सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई हो रही है और पीठासीन अधिकारी के आचरण के वीडियो देखकर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने इसे लोकतंत्र की हत्या से कम नहीं बताया है. गौरतलब है कि सबसे बड़ी अदालत का इस केस का फैसला मुख्य न्यायाधीश द्वारा इस्तेमाल किये गये कड़ी निंदा के अनुरूप है या नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक चुनाव को अमान्य नहीं किया है और उसने सभी रिकार्ड सुरक्षित रख कर पीठासीन अधिकारी को अदालत के सामने पेश होने के लिए कहा है. यदि भाजपा को चंडीगढ़ के महापौर के चुनाव में कई गयी धांधली से छूट दी गई तो भविष्य में चुनावों के बिलकुल एक मजाक बनने से कोई नही बचा सकता है.
अगर कांग्रेस के समर्थन से चंडीगढ़ में ‘आप’ की जीत होती तो यह ‘इंडिया’ गठबंधन की चुनावी प्रासंगिकता को जाहिर करता और अन्य स्थानों पर भी दूसरी पार्टियों के बीच सीट-बंटवारे की कठिनाइयों को सुलझाने के लिए एक उदाहरण स्थापित किया होता. भाजपा 2024 के महत्वपूर्ण चुनावों से पहले ‘इंडिया’ गठबंधन को उसकी पहली चुनावी जीत से वंचित करने के लिए बेताब थी. इस प्रकरण में जो बात सामने आती है वह है भाजपा का पूर्ण अहंकार और बेखौफ हो चोरी करने की भावना. यदि कोई पार्टी मेयर चुनाव में पीठासीन अधिकारी को इतनी बेशर्मी से मतगणना प्रक्रिया में छेड़छाड़ करने की छूट पा सकती है, तो कल्पना करें कि आका का हुक्म मानने वाली नौकरशाही और पसंदीदा अधिकारियों से भरे चुनाव आयोग के साथ भाजपा लोकसभा चुनाव में क्या कर सकती है?
भाजपा इस बात को भली-भांति जानती है कि भारत की जनता उसके खोखले वादों और झूठे दावों से बहुत थक चुकी है. अयोध्या में राम मंदिर को संघ ब्रिगेड द्वारा मोदी शासन की सबसे बड़ी उपलब्धि के बतौर प्रदर्शित किया जा रहा है, लेकिन यह आर्थिक प्रबंधन और शासन के मामले में सरकार की घोर विफलता की भरपाई नहीं कर सकता है. इसीलिए, हम विपक्ष पर बढ़ते हमलों और विपक्ष को भ्रष्ट बताने के लिए ईडी छापों का अंधाधुंध उपयोग देख रहे हैं. नीतीश कुमार के साथ नए सिरे से गठबंधन के जरिए बिहार में सत्ता हासिल करने के बाद बीजेपी उम्मीद कर रही थी कि वह मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को गिरफ्तार करके झारखंड सरकार को भी डावांडोल कर देगी. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी की भी बड़ी संभावना है.
जहां बिहार में बीजेपी को सफलता मिली, वहीं झारखंड ने उसकी साजिश को नाकाम कर दिया है. बिहार में भी नीतीश कुमार अब सारी विश्वसनीयता खो चुके हैं और भाजपा के लिए सिर्फ बोझ साबित हो सकते हैं. झारखंड में हेमंत सोरेन ने बीजेपी के दबाव में आने के बजाय गिरफ्तार होना पसंद किया है. यह अब सभी के लिए बिलकुल साफ है कि विपक्ष पर ईडी, सीबीआई और आईटी विभाग द्वारा भ्रष्टाचार और छापे उसे डराने के लिए भाजपा द्वारा दबाव की रणनीति का हिस्सा हैं. कभी भाजपा द्वारा भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए हिमंत बिस्वा सरमा और शुभेंदु अधिकारी अब असम और पश्चिम बंगाल में पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं. अजित पवार अब महाराष्ट्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में उप-मुख्यमंत्री हैं, और झारखंड के पूर्व बीजेपी मुख्यमंत्री रघुबर दास को ओडिशा का राज्यपाल बनाकर किसी भी भ्रष्टाचार विरोधी जांच से बचा लिया गया है.
निरंकुश सत्ता पूरी तरह से भ्रष्ट कर देती है. पूरी सत्ता हथियाने और उस पर पूर्ण दंडमुक्ति की मुहर लगाने की भाजपा की योजना को विफल किए बिना भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई सार्थक लड़ाई नहीं हो सकती है. चुनाव संवैधानिक लोकतंत्र की बुनियाद है, पर चुनावों को महज एक तमाशा बनाकर रख दिया गया है. हकीकत में लोकतंत्र अपनी हत्या का सामना कर रहा है. यह चेतावनी अब किसी और ने नहीं बल्कि भारत के मुख्य न्यायाधीश ने दी है. अब यह भारत की जनता की जिम्मेदारी है कि वह इस पर गौर करें और घातक हमले का सामना कर रहे लोकतंत्र को बचाए.