‘पार्टी की केंद्रीय कमेटी के आह्वान एकजुट हो-प्रतिरोध करो’ के साथ गांडेय विधानसभा क्षेत्र में लगातार जनसंवाद कार्यक्रम चलाया जा रहा है. इस दौरान गांव-गांव में स्थानीय लोगों के साथ बैठकर उनके सवालों पर चर्चा तथा पार्टी की ओर से मौजूदा राजनीतिक परिस्थिति पर भी बात की जा रही है. विगत लोकसभा चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन, वोटों में आई अप्रत्याशित गिरावट के कारणों को ढूंढने का प्रयास तथा इसके साथ ही आगामी विधाानसभा चुनाव को लेकर कैसे चीजों को ठीक किया जाए इसे लेकर भी बातें हो रही हैं.
भाकपा(माले) का संगठित व योजनाबद्ध कामकाज वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव से इस विधानसभा में शुरू हुआ है. तब से लेकर वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव तक इस विधानसभा में 5 लोकसभा और 3 विधानसभा चुनाव लड़े गये हैं. इसमें से सबसे अधिक वोट 2014 के लोकसभा चुनाव में 39,450 वोट प्राप्त हुआ था. विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक वोट वर्ष 2009 के विधानसभा चुनाव में 18,500 वोट मिले थे . वर्ष 2004 के पहले लोकसभा चुनाव में भी गांडेय विधानसभा से शुरूआत के लिहाज से अच्छा वोट 9200 वोट मिले थे. लेकिन वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सबसे कम वोट 3900 वोट प्राप्त हुआ था. ये भाजपाई उभार का दौर था. इसके अलावे संगठनात्मक कमजोरियां भी थी. फलस्वरूप वोटों में ये गिरावट देखी गई थी.
इस विधाानसभा क्षेत्र में कुल 66 पंचायत आते हैं, जिसमें से सदर प्रखंड गिरिडीह के 15, बेंगाबाद के 25 तथा गांडेय प्रखंड के 26 पंचायत हैं. इस विधाानसभा में कुल 650 गांव और इन गावों के अंतर्गत छोटा टोला को इसके साथ जोड़ा जाय तो गावों की संख्या 1000 हो जा सकती है.
बहरहाल, पुनः शुरू किए गए जन अभियान के क्रम में गिरिडीह प्रखंड के 16 गांवों में, गांडेय प्रखंड के 25 गावों में और इसी तरह बेंगाबाद प्रखंड के 19 गावों में कुल करीब 70 गांवों में अभियान चलाए गए हैं तथा इसी दौरान जनता के बीच से आए विभिन्न तत्कालिक सवालों को लेकर निम्नलिखित महत्वपूर्ण आंदोलन भी हुए.
ग्रामीण क्षेत्रों में जहां बड़ी तादाद में गरीबों का नाम अभी भी बीपीएल से बाहर रहने की समस्या है, आमतौर पर प्रत्येक तीन-चार महीने में उनके 1 महीने का राशन पूरी तरह गोल कर दिए जाने का मामला है, आनलाइन जमीन के कागजातों की इंट्री के नाम पर लोगों से भारी भरकम रिश्वत वसूलने का मामला है, गरीब होने के बावजूद बहुत से लोगों के आवास से वंचित रहने की समस्या है. जाति, आय व आवासीय प्रमाणपत्र से लेकर आधार कार्ड तक बनाने के नाम पर उनकी फजीहत हो रही है. ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी चिकित्सा सुविधा नदारद है. बिजली आपूर्ति न के बराबर है लेकिन भारी भरकम बिल आता है. पंचायत सचिवालयों के कारगर नहीं रहने से सभी तरह के कार्यों के लिए प्रखंड व अंचल का चक्कर लगाना पड़ता है. अधिाकांश गांवों में पेयजल की समस्या है. कुछ गांव अभी भी यातायात के साधनों से कटे हुए हैं. लोगों को अभी भी राशन खरीदने के लिए 7-8 किलोमीटर की दूरी तय करने की विवशता हैं. ग्रामीण गरीबों की बड़ी आबादी के पास जमीन नहीं है. अधिकांश गांवों में स्थित सरकारी विद्यालयों की स्थिति लचर है. अस्पतालों को तो कोई पूछने वाला ही नहीं है.
गांडेय प्रखंड के आदिवासी बहुल इलाके के लोग बड़ी तादाद में मिट्टी काटने के काम में बाहर जाते हैं. मुस्लिम बहुल इलाके के काफी मजदूर टेंट बनाने तथा लकड़ी चीरने का काम करने जाते हैं. गिरिडीह प्रखंड के सीसीएल इलाके के लोग ज्यादातर कोयले के कारोबार व बेंगाबाद प्रखंड के लोग खेती-बारी और मजदूरी पर निर्भर हैं. तीनों ही प्रखंडों से हजारों लोग अपने रोजगार के लिए पश्चिमी भारत के शहरों में पलायन कर चुके हैं.
स्थानीय लोगों से बातचीत के क्रम में उपरोक्त बातों पर चर्चा होती है तो अच्छी गोलवंदी भी होती है. लोग संगठन बनाकर संघर्ष में उतरने तथा चुनाव में भाकपा(माले) को मजबूत करने पर सहमत होते हैं. बैठकों के बाद उनके साथ संपर्क की निरंतरता बरकरार रखने के लिए भी पहलकदमी ली जाती है. कार्यकर्ताओं के अंदर भी नया उत्साह पैदा हो ता है और अपने व्यक्तिगत व पारिवारिक हितों के साथ उनका टकराव बढ़ जाता है. इसतरह यह व्यापक व बड़ी जन गोलबन्दी कार्यकर्ताओं के लिए भी प्रेरणादायक साबित हो रही है. यह उनकी पेशेवर मानसिकता को उन्नत करने का कारक बन जाती है. हालात में हुआ यह बदलाव बदले में जन गोलबंदी को और भी ज्यादा उन्नत व व्यापक करता जाता है.
व्यापक रूप से लोगों के बैठने में मुख्य समस्या यह आ रही है कि गरीब तबके के अधिकांश लोग दिन में गांव-घर से बाहर रहते हैं. बचे-खुचे लोग ही बैठ पाते हैं. जन संवाद में महिलाओं को भी शामिल करने की कोशिश की जा रही है. लेकिन महिला ग्रुप या संगठन के सक्रिय न रहने तथा महिलाओं के बीच भाजपा-मोदी के गहरे प्रभाव के कारण खासी कठिनाई हो रही है. फिर भी जहां महिलाएं बैठती हैं वहां उनके साथ बुनियादी सवालों पर बातचीत की जाती है. इससे उनकी समझदारी में भी परिवर्तन दिखाई पड़ता है. इस प्रक्रिया को जारी रखकर ही जनगोलबंदी का विस्तार किया जा सकता है.
इस बार के अभियान के दौरान जनसहयोग पर विशेष जोर दिया जा रहा है. ग्राम सभा तथा सक्रिय सदस्यों की टीम का बनाकर आगामी चुनाव के मद्देनजर लोगों से संघर्ष कोष जुटाने की अपील की जाती है. नतीजतन, बैठक में उपस्थित हो रहे लगभग सारे लोग सभी कामों के साथ-साथ इसमें भी सहयोग दे रहे हैं. वे स्वेच्छा से कोष जमा करते हैं जो कि जनता के साथ पार्टी के जुड़ाव का भी एक मानक है. अभी तक करीब 70 गांवों में यह अभियान चलाया गया है और 350 गांवों में इसे चलाने का लक्ष्य है.
विधानसभा क्षेत्र की सभी 66 पंचायतों को लेकर कुल 20 व्हाट्सएप ग्रुप बनाए गए हैं. इनमें लगातार पार्टी गतिविधियों से संबंधित पोस्ट किया जाता है, वहीं क्षेत्र की समस्याओं को भी उस ग्रुप के जरिए पोस्ट करने को कहा जाता है. हर ग्रुप के लिए कुछ दिन बाद लोगों को एडमिन बनाया गया है. इसके सकारात्मक परिणाम दिख रहे हैं.
अभियान चलाने के दौरान देखा गया कि कई गांवों में शत-प्रतिशत वोट भाजपा को मिले और भाकपा(माले) को नाममात्र के वोट ही मिले. वैसी जगहों पर भी लोग बड़ी तादाद में भाकपा(माले) के साथ खड़े हो रहे हैं. कुछ खास पाॅकेटों में आदिवासी तथा मुस्लिम समुदाय के किसी भी परिस्थिति में भाकपा(माले) के साथ खड़ा रहने की स्थिति दिख रही है. ऐसी स्थिति में पार्टी कार्यकर्ताओं की पेशेवर मानसिकता को उन्नत करते हुए पार्टी ढांचों को बैचारिक-राजनीतिक रूप से मजबूत करने और अपनी जनगोलबंदी बढ़ाने हेतु आवश्यक पहलकदमी लेने की जरूरत है. विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने से पहले ही, अक्टूबर के पहले सप्ताह में, उपरोक्त जनसमस्याओं पर विधानसभा के अंतर्गत आनेवाले गांडेय, बेंगाबाद और गिरीडीह प्रखंडों में बड़ी जनगोलबंदी के साथ प्रखंड मुख्यालयों पर प्रभावकारी जनप्रदर्शन किया जाएगा. इस तरह यहां 45-50 हजार के बीच वोट पाने के लक्ष्य के अनुकूल स्थिति बन सकती है.
– राजेश यादव