कम्युनिस्ट आंदोलन दुनिया में मानवता के सम्पूर्ण विकास व सम्मान के लिए एक लौंग मार्च साबित हुआ है और आज भी लड़ते-भिड़ते हुए आगे बढ़ रहा है. भाकपा(माले) महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने 16 फरवरी 2025 को बेगूसराय के पन्हास गार्डेन सभागार में ‘कम्युनिस्ट आंदोलन के 100 वर्ष : उपलब्धियां, सीख और चुनौतियां’ विषय पर नागरिक संवाद समिति द्वारा आयोजित परिचर्चा को मुख्य वक्ता के बतौर संबोधित करते हुए यह बात कही.
उन्होंने बेगूसराय की संघर्षशील विरासत को सलाम करते हुए कहा कि कम्युनिस्ट आंदोलन की मौजूदा चुनौतियों पर हमें चर्चा केंद्रित करना होगा. कहा कि 1936 में किसान सभा की स्थापना हुई, देश में मजदूरों के आंदोलन तेज हुए तो उसी वर्ष डॉ. अम्बेडकर ने जाति के उन्मूलन पर अपना चर्चित आलेख भी सामने लाया था और देश भर में मनुस्मृति की प्रतियां जलाने का आंदोलन फूट पड़ा. आज हमें इस बात पर भी विचार करना होगा कि तब ये सारे आंदोलन एक साथ क्यों नहों खड़े हुए और आज जब देश फासीवाद के अभूतपूर्व खतरे से जूझ रहा है, हम इन सबको एक साथ कैसे ले सकते हैं.
उन्होंने कहा कि भारत में जो फासीवाद है वह खास तरह का है, यह भारत में ही पैदा हुआ है और समाज में उसकी गहरी जड़ें है. 1925 से ही उसकी तैयारी चल रही थी और आज वह सत्ता में है. वे सौ सालों से इस प्रतिक्रांति की तैयारी कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि राम मंदिर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बना क्योंकि शायद वह दो समुदायों के बीच का झगड़ा खतम करना चाहता था. अब संघ-भाजपा इसे देश की असली आजादी मिलने का प्रतीक बता रहे हैं. वे हर मस्जिद की खुदाई करने को उतारू हैं और देश को गड्ढों में तब्दील कर देना चाहते हैं.
उन्होंने कहा कि बाबा साहेब ने सारी कमियों के बावजूद हमें एक ऐसा संविधान दिया जिसमें बराबरी, भाईचारा और न्याय पर आधरित राज व समाज की परिकल्पना पर आधारित है. हमें संविधान और लोकतंत्र को बचाने के साथ आजादी की मूल भावना को भी बचने की लड़ाई भी लड़नी है.
भारतीयों के साथ ट्रम्प सरकार द्वारा किये गए अपमान पर मोदी सरकार की शर्मनाक भूमिका का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यह एक शुरुआत है और आनेवाले दिनों में सात लाख से अधिक भारतीयों के साथ ऐसा ही करने की तैयारी है.
उन्होंने कहा कि आज देश पर एक मनुवादी संविधान थोपने की कोशिश चल रही है. ऐसे वक्त में हमने बाबा साहेब के संविधान को जिसके 75 साल पूरे हुए हैं, को बचाने और लोगों के बीच ले जाने का अभियान शुरू किया है. उन्होंने बिहार भूमि सर्वे को एनआरसी का नया रूप बताते हुए कहा कि पहले लोगों से जमीन छीनी जाएगी और आनेवाले दिनों में उनकी नागरिकता पर नजर डाली जाएगी.
उन्होंने कहा कि अडानी-अम्बानी एक खूंखार पूंजीवादी हैं. वे देश की सारी संपत्ति तो लूट ही चुके हैं, अब देश की स्पिरिट को भी हड़प लेना चाहते हैं.
उन्होंने कहा कि बाबा साहेब ने चेतावनी देते हुए कहा था कि देश की जमीन अलोकतांत्रिक है, और संविधान का सहारा लेकर हमें देश का लोकतंत्रकरण करना होगा. हमें यह भी याद रखना होगा कि उन्होंने हिन्दू राष्ट्र को देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य करार दिया था.
उन्होंने कहा कि हम कम्युनिस्टों के भीतर आधुनिक देश के निर्माण की सबसे ज्यादा बेचैनी होनी चाहिए. आज के दौर में भगत सिंह-अम्बेडकर के रास्ते पर चलते हुए इस फासीवाद के खिलाफ हिम्मत, साहस और संजीदगी के साथ लड़ना होगा और उसे परास्त करना होगा.
उन्होंने कहा कि बिहार में भी हमने तमाम आंदोलनकारी ताकतों को एकजुट करने की मुहिम शुरू की है, और 2020 के विधानसभा चुनाव में जो भी कमी रह गई, उसे इस बार पूरा करने का संकल्प लिया है.
उन्होंने देश की आजादी, सम्प्रभुता और लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई को एक बार फिर से लड़ने और बिहार को इस लड़ाई की नेतृत्वकारी भूमिका में खड़ा करने का आह्वान करते हुए अपने वक्तव्य का समापन किया.
परिचर्चा की अध्यक्षता कर रहे प्रो. भगवान प्रसाद सिन्हा ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए आजादी के आंदोलन, किसान आंदोलन और कम्युनिस्ट आंदोलन में बेगूसराय की ऐतिहासिक भूमिका और शहादतों की विस्तार से चर्चा की.
परिचर्चा को संबोधित करते हुए विश्वविद्यालय शिक्षकों के नेता प्रो. अरुण कुमार सिंह ने कहा कि फासीवादी ताकतें आज देश को विखंडित और बर्बाद करने में लगी हुई हैं. ऐसे समय में कम्युनिस्ट आंदोलन ने देश के निर्माण में जो भूमिका निभाई है उसे याद करने, उसकी गलतियों से सीखने और उसकी विरासत को आगे बढाने की बहुत जरूरत है.
‘बिहार हेराल्ड’ के संपादक व साहित्यकार विद्युत पाल ने रूस में 1917 की बोल्शेविक क्रांति और सोवियत संघ के गठन के विश्वव्यापी प्रभाव की चर्चा करते हुए कहा कि हमें कम्युनिस्टों पार्टियों के बीच एकता के आधार पर आगे बढ़ना होगा और एक नए रास्ते की तलाश करनी होगी. उन्होंने कहा कि सभी आंदोलनकारी ताकतों को एक मंच पर आकर मौजूदा फासीवादी ताकतों को परास्त करना होगा.
संस्कृतिकर्मी अनीश अंकुर ने कम्युनिस्ट आंदोलन की स्मृतियों को बचाने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि सोवियत संघ के पतन से फैली हताशा के दौर में भी देश-दुनिया के कम्युनिस्टों ने नई राह खोजी, आगे बढ़े. देश में जो भी जन पक्षधर काम हुए कम्युनिस्टों के दबाव में हुए. कम्युनिस्ट आंदोलन ने साहित्य को भी गहरे प्रभावित किया.
परिचर्चा की अध्यक्षता प्रोफेसर लाल बहादुर सिंह, शिक्षक भगवान प्रसाद सिन्हा मार्क्सवादी विचारक और वरिष्ठ अधिवक्ताओं – मजहर उल हक और वशिष्ठ कुमार अम्बष्ठ की अध्यक्षमंडली ने की. परिचर्चा का संचालन आरवाईए नेता वतन कुमार और ज्ञान-विज्ञान समिति से जुड़े सन्तोष कुमार मेहता ने संयुक्त रूप से किया.
परिचर्चा के मंच पर आरवाईए के राष्ट्रीय महासचिव नीरज कुमार, समकालीन लोकयुद्ध के संपादक सन्तोष सहर, अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवसागर शर्मा, भाकपा(माले) के जिला सचिव दिवाकर प्रसाद, आशा कार्यरत संघ की नेता मंजू देवी आदि समेत जिले के कई वरिष्ठ नागरिक मौजूद थे. परिचर्चा में शहर व जिले भर से आये सैकड़ों लीग – बुद्धिजीवी, पत्रकार, साहित्यकार, आधिवक्ता, सामाजिक व राजनीतिक कार्यकर्ता व छात्र-युवा, किसान-मजदूर व महिलाएं की मौजूदगी रही.
कार्यक्रम के अंतिम सत्र में का. दीपंकर भट्टाचार्य ने जिले में कम्युनिस्ट आंदोलन के नेताओं व उनके परिजनों को प्रतीक चिन्ह व लाल गमछा देकर सम्मानित किया. सम्मानित होने वाले परिजनों में बेगूसराय के पूर्व सांसद व वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता दिवंगत सूर्य नारायण सिंह की पोती अनुपमा सिंह, पोता आलोक सिंह और उन दोनों की पूत्रवधू रागनी कुमारी और मंझौल कॉलेज के पूर्व प्राचार्य दिवंगत बोढ़न प्रसाद सिंह के पुत्र प्रभात रंजन एवं भाई सोहरन प्रसाद सिंह; भाकपा नेता विशेश्वर महता के पुत्र संतोष महतो; माकपा नेता शमीम अहमद के पुत्र जफर इमाम हसन इमाम और भाकपा(माले) नेता रजनीकांत झा के पुत्र मनोज झा, संजय झा और रंजन झा शामिल थे.
इनके अलावे रंजना सिन्हा (भाकपा-माले नेता ललन राय की पत्नी), मो. सनोवर (भाकपा-माले नेता का. नूर आलम के पूत्र), मंजू देवी (शहीद भाकपा नेता महेश पासवान, प्रखंड प्रमुख) तथा शहीद भाकपा(माले) नेताओं रामप्रवेश राम व महेश राम की माताओं को भी का. दीपंकर भट्टाचार्य ने सम्मानित किया. साथ ही शहीद प्रमोद कुमार (शहीद भासो कुंवर के पुत्र), लालो महतो (कमली महतो के नाती), विमल देवी (शहीद इनोद महतो की पत्नी), कृष्ण कुमार वर्मा (शहीद खुशीलाल वर्मा के पुत्र), मलखान सिंह (राजबली सिंह के पोता), डॉक्टर प्रमोद कुमार (शहीद गुणेश्वर महतो के भाई), अविनाश यादव (रमापति यादव के पुत्र), शोभा देवी (शहीद लक्ष्मी पासवान की पत्नी), रोग विशेषज्ञ डॉक्टर शशिप्रभा (प्रसिद्ध चिकित्सक डॉक्टर एस पंडित की पत्नी) भी सम्मानित हुए. शाहीद शिवचंद्र सिंह के नाती ने सम्मान ग्रहण किया.
शिष्या अनुपमा सिंह ने का. आशा मिश्रा, कवि उमेश कुमार ने शहीद गंगानन्द राय, पत्रकार अरुण कुमार सिंह ने शहीद ब्रजेश कुमार ठाकुर और रंजीत कुमार सिंह ने शिक्षक सत्यदेव सिंह के परिजनों के लिए सम्मान ग्रहण किए.
का. दीपंकर भट्टाचार्य ने वरिष्ठ कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं – का. राजेंद्र राय (माकपा), का. उचित यादव (माकपा), यतींद्रनाथ सिंह (माकपा), जन कवि दीनानाथ सुमित्र, गंगाधर झा (भाकपा), दिनेश सिंह (माकपा), नंदलाल पंडित (भाकपा-माओवादी), आचार्य सुदामा गोस्वामी (वरिष्ठ शास्त्रीय संगीतकार), मदानेश्वर नाथ दत्त (भाकपा) व का. उस्मान (माकपा) – को भी सम्मानित किया.
कार्यकम की शुरुआत जसम और इप्टा के कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ हुई.