ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन्स् (ऐक्टू) का 11वां अखिल भारतीय सम्मेलन (24-26 फरवरी 2025) 24 फरवरी, 2025 की सुबह नई दिल्ली में एक खुले सत्र के साथ शुरू हुआ. बेहतरीन ढंग से सजाया गया, दिल्ली का सबसे बड़ा सभागार, तालकटोरा स्टेडियम हजारों मजदूरों से भरा हुआ था. विभिन्न ट्रेड यूनियनों, संगठित और असंगठित मज़दूरों, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के मजदूरों ने खुले सत्र में भाग लिया. देश भर से आए सम्मेलन के प्रतिनिधियों ने भी खुले सत्र में भाग लिया.
खुले सत्र का मुख्य विषय था “श्रमिक अधिकारों को पुनः हासिल करें” और “हम हैं इसके मालिक, हिंदोस्तान हमारा” - “यह जमीन हमारी है, हम भारत के लोग”.
खुले सत्र की अध्यक्षता ऐक्टू के अखिल भारतीय अध्यक्ष कामरेड वी शंकर ने की. महासचिव राजीव डिमरी ने अतिथियों को मंच पर आमंत्रित किया. कामरेड सुचेता डे ने सत्र का केंद्रीय विषय प्रस्तुत किया और देश को मोदी नीत कंपनी राज के चंगुल से मुक्त करने का आह्वान किया. सुचेता डे तथा मैत्रोयी कृष्णन ने सत्र का संचालन किया.
ऐक्टू दिल्ली के अध्यक्ष कामरेड संतोष रॉय ने प्रतिभागियों का स्वागत किया. अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि देश की राजनीतिक सत्ता मजदूरों के हाथ में होनी चाहिए. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कारखाना मजदूरों, खेत मजदूरों तथा शहरी मेहनतकश जनता को अपने अधिकारों के लिए एकजुट होना चाहिए.
खुले सत्र का उद्घाटन करते हुए भाकपा(माले) (लिबरेशन) के महासचिव कामरेड दीपंकर भट्टाचार्य ने 1998 में दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय सम्मेलन को याद किया, जब वे ऐक्टू के महासचिव थे. उन्होंने दुख व्यक्त किया कि तब से हमने कुछ अग्रणी साथियों को खो दिया है. उन्होंने बताया कि आज मजदूरों की स्थिति आजादी से पहले तथा संविधान और मजदूर-पक्षीय कानून लागू होने से पहले की स्थिति के समान है. कठिन संघर्षों से हासिल किए गए अधिकार छीने जा रहे हैं. 8 घंटे के कार्यदिवस का अधिकार छीना जा रहा है. समानता, गरिमा और श्रम के प्रति सम्मान को कमतर किया जा रहा है. श्रमिकों को दिन में 12 घंटे से अधिक काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है. श्रमिकों का भविष्य और देश का भविष्य एक बड़ा प्रश्नचिह्न बन गया है. हमें एक लंबी लड़ाई के लिए तैयार रहना होगा.
उन्होंने आगे कहा कि जब भी मेहनतकश लोग अपने अधिकारों की मांग करते हैं, तो शासक वर्ग भयभीत हो जाता है क्योंकि श्रमिक शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, समानता और सम्मान की मांग करेंगे. इसलिए शासक वर्ग श्रमिकों पर अत्याचार करता है और उनके संघर्षों को दबाता है. लेकिन, श्रमिक इन अन्यायों के खिलाफ उठ खड़े होते हैं और संघर्ष करते हैं. इस दुनिया और इस देश के असली मालिक श्रमिक हैं. यह दुनिया हमारी है. श्रमिकों और राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान का सम्मान करने के बजाय, शासक वर्ग उनके घरों को बुलडोजर से ध्वस्त कर रहा है. भारतीय कामगारों को अमेरिका से निकाला जा रहा है, और दूसरी तरफ भारतीय कामगारों को इजरायल द्वारा फिलिस्तीन के लोगों के खिलाफ छेड़े जा रहे जनसंहारी युद्ध की अग्रिम पंक्ति में भेजा जा रहा है.
आजादी के 75 साल बाद भी हमें अपने अधिकारों, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और आजादी के लिए एक बार फिर से लड़ने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. यह देश हमारा है, यह मेहनतकश लोगों का है और हमें इसे सही मायने में अपना बनाने के लिए फिर से एक सतत लड़ाई लड़नी होगी.
हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ना होगा. हमें महिला श्रमिकों के अधिकारों, सुरक्षा और कार्यस्थलों पर अधिकारों के लिए लड़ना होगा. हमें अन्याय के खिलाफ, हिंदू-मुस्लिम विभाजन के खिलाफ, सांप्रदायिक घृणा के खिलाफ और नफरत व हिंसा की राजनीति के खिलाफ लड़ना होगा. हमें लोगों की एकता की रक्षा के लिए लड़ना होगा. देश के विभिन्न हिस्सों से साथी यहां एकत्र हुए हैं.ये, जनता और जनता के संघर्ष ही हमारी एकमात्र उम्मीद है. हमें अपने अधिकारों के लिए, लोगों की एकता के लिए अपनी आवाज उठानी होगी. हम एकजुट होंगे, हम लड़ेंगे. संघर्ष जारी रहना चाहिए. ऐक्टू को संघर्ष का झंडा बुलंद करना होगा!
कामरेड दीपंकर ने यह कहते हुए समापन किया कि हमें सांप्रदायिक घृणा, जातिगत भेदभाव और शोषण के खिलाफ उठ खड़ा होना और लड़ना होगा. उन्होंने सम्मेलन की बड़ी सफलता के लिए अभिनंदन करते हुए इसकी शुरूआत की घोषणा की.
वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन्स् (डब्ल्यूएफटीयू) के सम्मानित अध्यक्ष और इंटरनेशनल वर्कर्स इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष जॉर्ज मावरिकोस को सम्मेलन में भाग लेना था. लेकिन, मोदी सरकार ने उन्हें वीजा जारी नहीं किया. उनके शुभकामना संदेश को जोरदार ढंग से पढ़ा गया. अपने शुभकामना संदेश में उन्होंने फिलिस्तीनियों पर इजरायल के जनसंहारी युद्ध की, जिसे यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका का समर्थन प्राप्त है, निंदा की. उन्होंने पूंजीवादी शोषण के खिलाफ लड़ने की आवश्यकता पर जोर दिया.
कन्फेडरेशन ऑफ नेपाली प्रोफेशनल्स (कोनेप) के वरिष्ठ उपाध्यक्ष कामरेड कृष्णमन श्रेष्ठ और कोषाध्यक्ष ध्रुब प्रसाद पौडेल, जनरल फेडरेशन ऑफ नेपाली ट्रेड यूनियनस् (जेफोन्ट) के केंद्रीय समिति सदस्य पूर्णा के.सी. और प्रांत समिति सदस्य पदम रिजाल, बांग्लादेश ट्रेड यूनियन सेंटर (बीटीयूसी) के विदेश मामलों के सचिव महबूबुर रहमान मोजनू और ढाका सिटी कमेटी के महासचिव इदरीस अली भी इस अवसर पर शामिल हुए और सम्मेलन की सफलता के लिए अपनी एकजुटता की शुभकामनाएं दीं.
फ्रांस सहित कई यूरोपीय ट्रेड यूनियन नेताओं ने एकजुटता के अपने संदेश भेजे. साथ ही, असम, रक्षा क्षेत्र की यूनियनों और अन्य ट्रेड यूनियनों ने भी अपने शुभकामना संदेश भेजे.
सम्मेलन के खुले सत्र को इंटक, एटक, सीटू, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी और यूटीयूसी जैसी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के नेताओं ने संबोधित किया.
इंटक के उपाध्यक्ष अशोक सिंह ने मजदूरों के साथ हो रहे अन्याय के लिए मोदी सरकार की आलोचना की. उन्होंने कहा कि मजदूर विरोधी कानून बिना किसी बहस के पारित किए जा रहे हैं. महंगाई के कारण वास्तविक मजदूरी में भारी गिरावट आई है. उन्होंने मजदूरों से संघर्ष के दूसरे दौर के लिए तैयार रहने की अपील की.
एटक की महासचिव अमरजीत कौर ने बहुलवाद की रक्षा के महत्व पर प्रकाश डाला और कहा कि मौजूदा हालात में जब मजदूरों के अधिकार छीने जा रहे हैं, तो “यह जमीन हमारी है, हम भारत के लोग” का नारा पहले से कहीं ज्यादा प्रासंगिक है. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर मोदी सरकार ने मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं को लागू किया तो देश के मजदूर बड़ी हड़ताल करेंगे. उन्होंने यह भी कहा कि मजदूर ही संपत्ति के निर्माता हैं और अगर उन्हें इससे वंचित किया गया तो वे संघर्ष तेज करेंगे.
सीआईटीयू के अखिल भारतीय सचिव के.एन. उमेश ने कहा कि पूंजीपतियों ने अपने संकट से बचने के लिए नव उदारवादी नीतियां लागू कीं और इसतरह मजदूरों पर अपने संकट का बोझ डाल दिया है. उन्होंने यह भी कहा कि पूंजीपतियों के हमलों का प्रतिरोध करने के लिए मजदूरों और किसानों को एकजुट होना चाहिए.
एआईयूटीयूसी के अखिल भारतीय सचिव रमेश पराशर ने लोकतंत्र पर बढ़ते साम्राज्यवादी हमलों के बारे में कहा और फासीवाद को शिकस्त देने की जरूरत को सामने रखा. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मौजूदा वस्तुगत परिस्थिति में सिर्फ आर्थिक संघर्ष ही काफी नहीं है, हमें राजनीतिक संघर्ष भी करने होंगे.
टीयूसीसी के अध्यक्ष इंदु प्रकाश मेनन ने कहा कि केंद्र में मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के हमलों का मुकाबला करने के लिए एकजुट संघर्ष को तेज किया जाना चाहिए.
यूटीयूसी के महासचिव अशोक घोष ने उम्मीद जताई कि यह सम्मेलन मजदूरों के संघर्षों के लिए एक नई राह की शुरुआत करेगा. जीवन का अधिकार बिना शर्त होना चाहिए और हमें इसके लिए लाल झंडे के साथ मार्च करना चाहिए.
अर्थशास्त्री अतुल सूद ने कहा कि नव उदारवादी नीतियां, बेरोजगारी, अनौपचारिकीकरण, शोषण, सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र का खात्मा आज मजदूर आंदोलन के सामने चुनौतियां हैं.
सफाई कर्मचारी आंदोलन के बेजवाड़ा विल्सन ने सम्मेलन को ऐतिहासिक बताया. शोषण और सांप्रदायिकता का मुकाबला एकजुट संघर्ष से ही किया जा सकता है. देश की संपदा को कॉरपोरेट लूट रहे हैं. सफाई कर्मचारियों के बच्चों को उसी परिवार की नौकरी नहीं करने दी जाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि मजदूर आंदोलन ही आज की एकमात्र उम्मीद है.
अखिल भारतीय किसान महासभा के महासचिव और भाकपा-माले के सांसद कामरेड राजाराम सिंह ने इजरायल द्वारा फिलिस्तीनियों पर किए गए जनसंहार में मारे गए लोगों को याद किया. उन्होंने मोदी सरकार द्वारा युद्धग्रस्त इजरायल में भारतीय श्रमिकों के निर्यात का विरोध किया. उन्होंने कहा कि भाजपा संविधान बदलने के लिए संसद में भारी बहुमत हासिल करने पर तुली हुई है. सभी क्षेत्रों को निजी कॉरपोरेट घरानों को थाली में परोस कर सौंपा जा रहा है. उन्होंने मजदूरों और किसानों की एकता को मजबूत करने पर जोर देते हुए कहा कि शोषण को समाप्त करने के लिए मजदूरों के संघर्षों की ताकत बढ़ानी चाहिए.
भाकपा-माले सांसद कामरेड सुदामा प्रसाद ने कहा कि नई श्रम संहिताओं से श्रमिकों का ठेकाकरण और बड़े पैमाने पर अनौपचारिकीकरण हो रहा है, जिसे रोका जाना चाहिए. इससे मजदूरों का जीवन और भविष्य अनिश्चित हो जाता है, लेकिन मजदूरों और उनके आंदोलन में इसे हराने की अपार क्षमता और शक्ति है.
बिहार से एमएलसी और ऑल इंडिया स्कीम वर्कर्स फेडरेशन की महासचिव कामरेड शशि यादव ने आशा समेत स्कीम वर्कर्स और आंगनबाड़ी और मिड-डे मील स्कीमों में लगे कर्मचारियों की सेवाओं को नियमित करने की मांग की. उन्होंने अपनी मांगों और लाभों को सुरक्षित करने के लिए देश भर में स्कीम वर्कर्स के संघर्षों के बारे में बताया. उन्होंने इस बात की सराहना की कि महिलाएं ऐसे संघर्षों में नेतृत्व की कमान संभाल रही हैं और जोर दिया कि ऐसे संघर्ष निरंतर जारी रहेंगे.
सिल्कयारा टनल में फंसे खनिकों को बचाने वाले एक मजदूर वकील हसन ने सम्मेलन में देश में असमानता और मजदूरों को एकजुट होकर इसके खिलाफ लड़ने की जरूरत के बारे में बात की.
ऑल इंडिया म्युनिसिपल एंड सेनिटेशन वर्कर्स फेडरेशन (अखिल भारतीय नगर निगम एवं सफाई कर्मचारी महासंघ) की नेता कामरेड निर्मला ने बताया कि सफाई कर्मचारियों को जाति, लिंग और वर्ग के आधार पर तीन गुना उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. उन्होंने इस उत्पीड़न को जारी रखने वाली संरचनाओं को खत्म करने का आह्वान किया.
इंडियन रेलवे इंप्लाइज फेडरेशन (आईआरईएफ) के महासचिव कामरेड सर्वजीत सिंह ने भारतीय रेलवे में चल रहे निजीकरण और ठेकेदारी प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई. उन्होंने एनपीएस के खिलाफ और ओपीएस की बहाली के लिए आईआरईएफ के संघर्षों के बारे में भी विस्तार से बताया. उन्होंने ऐक्टू से संबद्ध आईआरईएफ को रेलवे में वामपंथी और लोकतांत्रिक ताकतों का केंद्र बनाने के दृढ़ संकल्प को रेखांकित किया. उन्होंने हाल ही में संपन्न रेलवे यूनियन चुनावों में बीआरएमएस को चौथे स्थान पर धकेलते हुए एआईआरएफ और एनएफआईआर के बाद तीसरी ताकत के रूप में आईआरईएफ के उभरने और जीत के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि रेलवे कर्मचारियों ने बीआरएमएस को खारिज करके भाजपा और आरएसएस की विभाजनकारी राजनीति को खारिज कर दिया है, जो रेलवे में एक भी जोनल यूनियन चुनाव जीतने में विफल रही.
फिलिस्तीनी बीडीएस (बहिष्कार, भंडाफोड़ और प्रतिबंध) आंदोलन की क्षेत्रीय प्रतिनिधि अपूर्वा गौतम ने इजरायल द्वारा छेड़े जा रहे जनसंहारी युद्ध में फिलिस्तीन के लोगों के सामने आ रही समस्याओं के बारे में बताया.
इस सत्र में ऐक्टू नेताओं द्वारा अतिथियों को सम्मानित किया गया.
इस सत्र में “भारत में आशा आंदोलनः स्कीम वर्कर्स की दावेदारी रचता नया अधयाय” नामक पुस्तिका का विमोचन किया गया.
सम्मेलन ने ऐक्टू के 11वें अखिल भारतीय सम्मेलन में भाग लेने के लिए दिल्ली आने वाले डब्ल्यूएफटीयू के सम्मानित अध्यक्ष कामरेड जॉर्ज मावरिकोस को वीजा देने से इनकार करने के लिए भाजपा सरकार की निंदा की.
सम्मेलन ने फिलिस्तीन के पीड़ित लोगों के साथ एकजुटता व्यक्त करने वाले सम्मेलन स्थल में लगे पोस्टर को बिना किसी तर्क या कारण के फाड़ने की दिल्ली पुलिस की कार्रवाई की निंदा की.
सम्मेलन ने फर्जी मामलों में सजा के तहत लगभग 10 वर्षों से तमिलनाडु की जेलों में बंद प्रिकोल के मजदूर नेताओं कामरेड मणिवन्नन और राममूर्ति की बिना शर्त रिहाई के लिए एक प्रस्ताव पारित किया. सम्मेलन ने उनकी रिहाई के लिए एक अभियान शुरू करने का संकल्प लिया.
सम्मेलन ने 18 मार्च को दिल्ली में देश भर की ट्रेड यूनियनों के मजदूरों के अखिल भारतीय कन्वेंशन को सफल बनाने और मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार द्वारा मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं के कार्यान्वयन के खतरे के खिलाफ अखिल भारतीय मजदूर हड़ताल (जिसकी तारीख की घाषणा कन्वेंशन से की जाएगी) को सफल बनाने का संकल्प लिया.
24 तारीख को खुले सत्र के समापन के बाद शाम को प्रतिनिधि सत्र की शुरुआत सम्मेलन का संचालन करने के लिए अध्यक्षमंडल के चुनाव के साथ हुई. सम्मेलन के लिए 15 सदस्यीय अध्यक्ष मंडल के अध्यक्ष के रूप में कामरेड शंकर वी को चुना गया, जिसमें कामरेड श्यामलाल प्रसाद, शशि यादव, सरोज चौबे (बिहार), गीता मंडल, बैजनाथ मिस्त्रा (झारखंड), अतुल दिघे (महाराष्ट्र), विजय विद्रोही (यूपी), अरुणा (आंध्र प्रदेश), निर्मला (कर्नाटक), एस. बालासुब्रमण्यन (पुडुचेरी), टी. शंकरपांडियन (तमिलनाडु), राधा कांत सेठी (ओडिशा), एनएन बनर्जी (पश्चिम बंगाल) और सुचेता डे शामिल थे.
एक तकनीकी टीम का गठन किया गया, जिसमें बृजेंद्र तिवारी, सौरभ नरुका, रणविजय कुमार, अवनी चोकसी, उदय किरण, नेहा तिवारी और के.के. बोरा शामिल थे.
महाकुंभ मेले के कारण उत्पन्न बाधाओं के बावजूद 600 से अधिक साथियों (पर्यवेक्षकों सहित) ने सम्मेलन में भाग लिया. उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे प्रमुख राज्यों से कई प्रतिनिधि सम्मेलन में शामिल नहीं हो सके, क्योंकि या तो ट्रेनें रद्द थीं या वे उनमें सवार नहीं हो पाए या दिल्ली तक अपनी यात्रा जारी नहीं रख पाए.
अखिल भारतीय उपाध्यक्ष एस. बालासुब्रमण्यन ने पिछले सम्मेलन के बाद से दिवंगत हुए साथियों को श्रद्धांजलि देते हुए शोक प्रस्ताव पढ़ा.
ऐक्टू के अखिल भारतीय महासचिव कामरेड राजीव डिमरी ने सम्मेलन की मसौदा रिपोर्ट प्रस्तुत की.
दूसरे दिन, 25 फरवरी की सुबह ऐक्टू के वरिष्ठतम नेता कामरेड श्यामलाल प्रसाद द्वारा ध्वजारोहण और शहीदों को श्रद्धांजलि देने के बाद सत्र फिर से शुरू हुआ. नगर का नाम कामरेड स्वपन मुखर्जी के नाम पर, हॉल का नाम कामरेड एन. के. नटराजन-रामकिशन के नाम पर और मंच का नाम कामरेड मुन्ना यादव-ओम प्रकाश शर्मा के नाम पर रखा गया.
मसौदा दस्तावेज को समृद्ध बनाने के लिए प्रतिनिधियों ने अपनी राय और सुझाव सामने रखे. पूरा दिन प्रतिनिधियों के विचार-विमर्श में बीता.
इस सत्र में आईआरईएफ से संबद्ध ईसीआर इंप्लाइज यूनियन के महासचिव मृत्युंजय व अध्यक्ष संतोष पासवान को सम्मानित किया गया. इस यूनियन ने रेलवे में हाल में हुए यूनियन मान्यता के चुनाव में ईसीआर जोन में मान्यता हासिल की. साथ ही, आईरला के सम्मानित अध्यक्ष श्रीराम चौधरी को सम्मानित किया गया. इन्होंने इस सत्र को संबोधित भी किया.
तीसरे दिन की सुबह महासचिव राजीव डिमरी ने प्रतिनिधियों के सुझावों और बहस का सारांश प्रस्तुत किया तथा स्वीकृत और अस्वीकृत किए जाने वाले संशोधनों के कारणों की व्याख्या की. सम्मेलन ने स्वीकृत संशोधनों के साथ मसौदा रिपोर्ट को सर्वसम्मति से स्वीकार किया. नवनिर्वाचित अध्यक्ष का. वी शंकर ने समापन भाषण दिया.
एक चुनाव आयोग का गठन किया गया, जिसके अध्यक्ष पर्यवेक्षक कामरेड शंकर लाल चौधरी थे, जिसमें नीरज कुमार, अभिज्ञान, चंदा और डोलन शामिल थे.
सम्मेलन द्वारा जनवादी तरीके से 229 सदस्यों की एक राष्ट्रीय परिषद का चुनाव किया गया. इनमें से 78 सदस्यों ने केंद्रीय कार्यसमिति का गठन किया, तथा 37 सदस्यों को पदाधिकारियों की समिति के रूप में चुना गया. कामरेड वी शंकर को अखिल भारतीय अध्यक्ष के रूप में पुनः निर्वाचित किया गया, तथा कामरेड राजीव डिमरी को अखिल भारतीय महासचिव के रूप में पुनः निर्वाचित किया गया.
सम्मेलन ने वरिष्ठ कामरेडों – श्यामलाल प्रसाद, एनएन बनर्जी तथा दिबाकर भट्टाचार्य की एक केंद्रीय सलाहकार समिति का गठन किया. समिति का बाद में और विस्तार किया जा सकता है.
सम्मेलन में उन स्वयंसेवकों को सम्मानित किया गया, जिन्होंने सम्मेलन की सफलता के लिए दिन-रात अथक परिश्रम किया. तीन दिवसीय सम्मेलन में विभिन्न राज्यों से आए कामरेडों द्वारा क्रांतिकारी गीतों से उत्साहवर्द्धन किया गया.
सम्मेलन ने जातीय वर्चस्व और सांप्रदायिक घृणा के खिलाफ लड़ने, संविधान और लोकतंत्र की रक्षा करने तथा कॉरपोरेट, सांप्रदायिक, मनुवादी मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को उखाड़ फेंकने के अपने दृढ़ संकल्प की पुष्टि की.
इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के संघर्ष में, सम्मेलन ने देश भर में एक जुझारू, इंकलाबी मजदूर आंदोलन खड़ा करने का संकल्प लिया. इसने किसानों और खेत मजदूरों के साथ एकजुट होने का भी संकल्प लिया. सम्मेलन ने मजदूरों के संघर्षों को तेज करने के लिए अपनी जोरदार प्रतिबद्धता व्यक्त की.
अध्यक्षः कामरेड शंकर वी महासचिवः कामरेड राजीव डिमरी कोषाध्यक्षः कामरेड संतोष रॉय उपाध्यक्षः कामरेड एस. बालसुब्रमण्यम, टी. शंकरपांडियन, सी. ईरानिअप्पन, एंथनी मुथु, एस.के. शर्मा, रामबली प्रसाद, सरोज चौबे, कृष्ण सिंह, गीता मंडल, भुवनेश्वर केवट, हलधर महतो, बिरेन कलिता, उदय भट्ट, राधाकांत सेठी, विजय विद्रोही, भीमराव बागड़े, क्लिफ्टन डी’रोजारियो, सुचेता डे, जयश्री दास, राष्ट्रीय सचिवः कामरेड शुभेंदु सेन, आरएन ठाकुर, शशि यादव, रणविजय कुमार, बासुदेव बोस, अतनु चक्रवर्ती, के. जी. देसिकन, बृजेन्द्र तिवारी, अनिल वर्मा, महिन्द्रा परिदा, मैत्रोयी कृष्णन, अभिषेक कुमार, जीवन सुरुडे केके बोरा, सर्वजीत सिंह.