ट्रंप और मोदी के बीच उनकी चुनावी जीत के बाद पहली मुलाकात हो चुकी है. मोदी सरकार और गोदी मीडिया दो “महान दोस्तों” की दोस्ती का ढिंढोरा पीट रहे हैं, लेकिन बाकी दुनिया असल बात समझ रही है – जो ट्रंप प्रशासन के अलग-अलग ऐलानों, संयुक्त प्रेस कान्फ्रेंस और बैठक के बाद जारी बयान से मिल रहे हैं.
ट्रंप ने मोदी को सख्त वार्ताकार बताया और यह कहकर उनकी तारीफ की कि दोनों के बीच कोई मुकाबला नहीं है, लेकिन सच्चाई यह है कि भारत के राष्ट्रीय स्वाभिमान और हितों को कुर्बान कर दिया गया. यह मुलाकात साझेदारी से ज्यादा, अमेरिका के दबाव में भारत के आत्मसमर्पण की कहानी है. ट्रंप ने मोदी को ‘सख्त वार्ताकार’ बताकर दरअसल उनके आत्मसमर्पण को छिपाने की कोशिश की.
ट्रंप-मोदी मुलाकात से ठीक एक हफ्ते पहले, एक अमेरिकी सैन्य विमान अमृतसर में उतरा, जिसमें 104 भारतीय नागरिकों को हथकड़ियों में जकड़कर वापस भेजा गया था. मोदी की अमेरिका यात्रा खत्म होते ही 119 और भारतीयों को लेकर एक दूसरा विमान भी उड़ान भर चुका था.
आने वाले दिनों में 18,000 और भारतीयों को देश निकाला देने की तैयारी है, जिसकी सूची अमेरिका ने ट्रंप के शपथ ग्रहण के बाद भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर को सौंप दी थी.
ट्रंप-मोदी की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह मुद्दा उठा, लेकिन मोदी भारतीय नागरिकों की सम्मानजनक वापसी की मांग तक करने की हिम्मत नहीं जुटा सके. इसके बजाय, उन्होंने अमेरिकी कार्रवाई का समर्थन किया और ट्रंप से ‘मानव तस्करी के नेटवर्क’ को खत्म करने में सहयोग मांगा. विडंबना यह है कि मोदी का अपना राज्य गुजरात, जहां उनकी पार्टी बीते तीन दशकों से सत्ता में है, इसी ‘मानव तस्करी नेटवर्क’ के सबसे बड़े केंद्रों में से एक माना जाता है.
मोदी से यह भी पूछा गया कि क्या उन्होंने ट्रंप के साथ अडानी मामले पर चर्चा की. इस सवाल को सुनते ही उनकी असहजता साफ झलकने लगी, जब उन्होंने इसे निजी मामला बताते हुए टाल दिया और कहा कि दो राष्ट्र प्रमुखों का इस पर समय बर्बाद करना व्यर्थ है.
पूरी दुनिया जानती है कि मोदी ने अडानी को बांग्लादेश, श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया और केन्या तक में मुनाफे वाले ठेके दिलवाए थे, जो अब कई देशों में दोबारा जांचे जा रहे हैं और रद्द किए जा रहे हैं. अब केवल मोदी ही बता सकते हैं कि अमेरिका में भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तारी वारंट वाला एक ऐसा भ्रष्ट भारतीय पूंजीपति, जिसे दुनिया ने नकार दिया है, उसका सवाल ‘निजी मामला’ कैसे बन जाता है! और यह ‘निजी मामला’ किसका है – अडानी का या मोदी का?
इस सवाल के जवाब में मोदी ने लंबा-चौड़ा घुमावदार बयान दिया और भारतीय लोकतंत्र तथा ‘वसुधैव कुटुंबकम’ (संपूर्ण विश्व एक परिवार) का जिक्र करने लगे. यह दुनिया को मोदी की जून 2023 में बाइडेन के साथ हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस की याद दिलाता है, जब पत्रकार सबरीना सिद्दीकी के सवाल – मोदी के शासन में अल्पसंख्यक अधिकारों और प्रेस की आजादी की खराब हालत – के जवाब में उन्होंने भारतीय संविधान का हवाला देकर कहा था कि यहां किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होता. इसके बाद सबरीना सिद्दीकी को बुरी तरह ट्रोल किया गया.
संभावना है कि इस बार भी विदेशी पत्रकारों को ट्रोल किया जाएगा, क्योंकि वे सवाल पूछ रहे हैं जो भारतीय पत्रकार अब पूछना बंद कर चुके हैं या जिनके पूछने पर रोक लगा दी गई है. मोदी की असहजता यह साफ दिखाती है कि वह असुविधाजनक सवालों का सामना क्यों नहीं करते, भारत में प्रेस कॉन्फ्रेंस क्यों नहीं करते, और केवल उन्हीं लोगों को इंटरव्यू देते हैं जो पहले से तयशुदा, सुविधाजनक सवाल पूछते हैं.
अपनी चालाकी भरी बयानबाजी के अनुरूप, मोदी ने अब भारत के हितों से विश्वासघात को छुपाने के लिए एक नया जुमला गढ़ा है – अब वह इसे ‘समृद्ध के लिए मेगा साझेदारी’ कह रहे हैं!
ट्रंप के साम्राज्यवादी नारे ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ की नकल करते हुए, जिसका मतलब अमेरिका के लिए नस्लवादी और जेनोफोबिक तानाशाही तथा दुनिया के लिए आक्रामक विस्तारवाद और दबदबा कायम करना है, मोदी ने ‘मेक इंडिया ग्रेट अगेन’ का नारा गढ़ लिया. ठीक वैसे ही जैसे उन्होंने पहले भारत को कनाडा के साथ जोड़कर एक काल्पनिक ‘टू एबी’ का जुमला पेश किया था, अब उन्होंने ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ और ‘मेक इंडिया ग्रेट अगेन’ को मिलाकर अमेरिका-भारत के बीच एक काल्पनिक ‘मेगा साझेदारी’ का झूठा नजारा पेश किया.
और यह तब हो रहा है जब 7 लाख भारतीयों पर अमेरिका से निष्कासन (डिपोर्टेशन) का खतरा मंडरा रहा है और ट्रंप प्रशासन भारतीय निर्यातों पर नए टैरिफ बढ़ाने की घोषणाओं में व्यस्त है.
मोदी सरकार के अपने ही नारे – ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ – अब लगभग ठंडे पड़ चुके हैं. अमेरिका के साथ जिस रक्षा साझेदारी का खूब प्रचार किया गया था, वह असल में भारत की सैन्य निर्भरता को बढ़ाने के लिए बनाई गई है.
एक तरफ अमेरिका भारतीय निर्यात और प्रवासियों पर प्रतिबंध लगा रहा है, तो दूसरी तरफ वह भारत के हर अहम क्षेत्र, खासकर तेल, गैस और ऊर्जा के क्षेत्र में प्रमुख व्यापारिक भागीदार बनने के लिए दबाव बना रहा है.
रुपये का मूल्य गिरकर अब तक के सबसे निचले स्तर – 87 रूपये प्रति डॉलर – पर पहुंच चुका है. इस गिरावट को रोकने के लिए आरबीआई अपने विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर खर्च कर रुपये खरीद रहा है. इससे भारत के डॉलर कर्ज चुकाने की क्षमता और अंतरराष्ट्रीय व्यापार घाटे (ट्रेड डेफिसिट) को संभालना और भी मुश्किल हो रहा है.
ब्रिक्स देश अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए नए विकल्प तलाश रहे थे, लेकिन ट्रंप ने मोदी पर दबाव डाला कि वे इस ब्रिक्स योजना और रूस से तेल-गैस खरीदने से दूर रहें.
पिछले कुछ सालों में, खासकर मोदी सरकार के दौरान, भारत की विदेश नीति क्षेत्रीय सहयोग के मंचों जैसे सार्क (SAARC) या गुटनिरपेक्ष आंदोलन जैसे तीसरी दुनिया की एकजुटता के मंचों से दूर हो गई है.
ब्रिक्स (BRICS) ही एकमात्र ऐसा मंच है जो अमेरिकी दबदबे का मुकाबला करने की संभावनाएं रखता है. लेकिन मोदी से मुलाकात से ठीक पहले, ट्रंप ने ब्रिक्स के खिलाफ तीखा हमला बोल दिया.
चीन के पास अमेरिकी दबाव का सामना करने के लिए पर्याप्त आर्थिक ताकत और वैश्विक राजनीतिक दबदबा है, लेकिन भारत की अमेरिका पर निर्भरता और मजबूत विकल्पों की कमी देश के विकास की संभावनाओं पर गंभीर रूप से बुरा असर डालेगी.
अमेरिका पर बढ़ती आर्थिक और सैन्य निर्भरता और अमेरिका-इजरायल गठबंधन के साथ पूर्ण रणनीतिक तालमेल – भले ही यह अधीनता न हो – भारत की स्वायत्तता और संप्रभुता को सीमित ही करेगा.
भारत के उपनिवेश-पूर्व इतिहास में कभी भी भारत इतना बेबस और आत्मसम्मानहीन नहीं लगा, जितना आज मोदी सरकार के शासनकाल में दिखाई दे रहा है भारत के स्वतंत्रता संग्राम की महान औपनिवेशिक विरोधी विरासत को एक ऐसा प्रधानमंत्री लगातार कलंकित कर रहा है, जो झूठा दावा करता है कि उसने भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा बढ़ाई है.
जब देश की अर्थव्यवस्था संकट में है, संविधान को तहस-नहस किया जा रहा है, और राष्ट्रीय स्वाभिमान व हित अमेरिका के हाथों गिरवी रखे जा रहे हैं, तब अपनी 75वीं सालगिरह पर गणतंत्र के लिए मोदी सरकार पूरी तरह एक बोझ बन चुकी है.