(इजराइल के जनसंहार ने मेरे कई रिश्तेदारों की जान ले ली, लेकिन जो जिंदा बचे, वे मलबे से फिलीस्तीन का पुनर्निर्माण करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं.)
– शहद अबूसलामा
15 महीनों तक बाइडेन प्रशासन ने इजराइल के गाजा में जनसंहारक युद्ध को हथियारों से समर्थन दिया. अब, ट्रंप के शपथ ग्रहण से एक दिन पहले, उन्हें जो चाहिए था, वह मिल गया – युद्धविराम.
इजराइली सरकार, जिसे जनता के बड़े हिस्से का समर्थन हासिल था, युद्धविराम को रोकने के लिए हर संभव प्रयास करती रही.
कट्टर दक्षिणपंथियों ने कब्जे वाले वेस्ट बैंक में हिंसा बढ़ा दी, जबकि इजराइली सेना ने गाजा के लोगों को अमानवीय बनाने के नए-नए तरीके अपनाए – यहां तक कि अपने बंधकों की जिंदगी को भी खतरे में डाल दिया.
फिर भी, लंबे इंतज़ार के बाद वही यु़द्धविराम हुआ, जो मई 2024 में पहले ही प्रस्तावित था.
युद्धविराम की घोषणा 19 जनवरी से तीन दिन पहले हुई. जनसंहारक युद्ध, जिसने गाजा को मलबे में बदल दिया, आखिरकार समाप्त हुआ. हमारी आबादी का 10% या तो मारे गए, अपंग हुए या लापता हैं.
लैंसेट मेडिकल जर्नल का अनुमान है कि गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दर्ज़ 47,000 मौतों से वास्तविक संख्या 40% अधिक हो सकती है, क्योंकि इजराइल ने लगातार स्वास्थ्य और संचार ढांचे को नष्ट किया.
रविवार को इजराइल ने युद्धविराम में तीन घंटे की देरी की, और इसी दौरान इजराइली सेना ने गाजा में कम से कम 19 लोगों की हत्या कर दी जबकि युद्धविराम की घोषणा के बाद से कुल 123 फिलस्तीनियों की हत्या की. अंतिम क्षण तक इजराइल ने आतंक मचाना जारी रखा.
अगर फिलीस्तीनियों की जनसंहार रोकने की पुकार सुनी जाती, तो हजारों फिलीस्तीनी और अरब जिंदगियां बच सकती थीं.
उनमें मेरे चाचा मारवान, चाची हनिया, उनका बेटा वसीम और भतीजा इस्माईल भी शामिल हैं, जिन्हें युद्धविराम से दो हफ्ते पहले, 2 जनवरी 2025 को मार दिया गया. मेरा परिवार नए साल का स्वागत एक जनाजे के साथ करने को मजबूर हुआ.
इजराइली सेना के घेराव वाले इलाकों से हटने के बाद अब तक सौ से ज्यादा क्षत-विक्षत शव बरामद हो चुके हैं, जबकि बचाव दल 10,000 से अधिक लापता लोगों की तलाश कर रहे हैं.
मेरी फूफी सौद दुआ कर रही थीं कि उनका बेटा मोहम्मद अता अबुसलामा, जो दो हफ्तों से लापता था, मारे गए लोगों में न हो. लेकिन रविवार को जब वे लौटीं, तो मलबे में उन्हें बस उसकी हड्डियां मिली.
मोहम्मद के शहीद होने का दिन ही युद्धविराम का दिन था, लेकिन राहत है कि अब हमें हर रोज अपनों के जिंदा बचने या मरने का अंदाजा लगाने की तकलीफ नहीं सहनी पड़ेगी. मुझे अपने बचे हुए परिवार पर गर्व है, जो मलबे में तब्दील हो चुके अपने घरों में वापस लौटा – पुनर्निर्माण करने के दृढ़ संकल्प के साथ. उन्होंने उस ‘जनरल्स प्लान’ को नाकाम कर दिया, जो उत्तरी ग़ज़ा को खाली कराकर हड़पने का सपना देख रहा था.
यह जनसंहारक हमला इजराइल के इतिहास का सबसे लंबा युद्ध रहा, जिसे जायोनिस्ट 1947-48 में फिलीस्तीन के जातीय सफाया और इजराइल की स्थापना के बाद ‘दूसरा स्वतंत्रता युद्ध’ बताते हैं.
यही गाजा को एक विशाल ‘कंसंट्रेशन कैंप’ में बदलने का कारण बना, जहां 70% से अधिक आबादी बेदखल किए गए शरणार्थियों की है.
1948 के वे शरणार्थी – जैसे जबालिया शरणार्थी शिविर में मेरे परिवार के लोग – पिछले 15 महीनों के अत्याचार और विनाश को फिलीस्तीन की जारी नकबा (तबाही) का एक और अध्याय ही मानते हैं.
इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अपने राष्ट्र को संबोधित करते हुए इस युद्धविराम को ‘अस्थायी’ बताया.
उन्होंने जनता को भरोसा दिलाया कि बाइडेन और ट्रंप इजराइल के तथाकथित ‘युद्ध में वापस लौटने के अधिकार’ का समर्थन करते हैं, जो युद्धविराम के पहले चरण के बाद होगा. इस चरण में 33 इजराइली बंधकों की रिहाई होगी.
471 दिनों तक इजराइल ने फिलीस्तीनी मीडिया कर्मियों और उनके परिवारों को निशाना बनाया, जिससे मैं अपने चचेरे भाइयों, अबूद और महमूद अबुसलामा की चिंता में हमेशा डूबी रही.
वे उत्तरी गाजा में फ्रंटलाइन पत्रकार हैं, जिन्होंने कई बार मौत को करीब से देखा, फिर भी उन्होंने ऐसे अपराध दर्ज किए जो जवाबदेही और न्याय की पुकार कर रहे हैं.
मैं हर दिन उन्हें तबाही के मंजर के बीच इजराइल के जनसंहार और बेघर किए गए फिलीस्तीनियों के संघर्ष को बेबाकी से दर्ज करते देखती रही. तस्वीरों में मैंने उन्हें अक्सर अपने कैमरे एक तरफ रखकर नरसंहार में घायल हुए या मलबे में दबे लोगों को बचाते हुए देखा.
महमूद और अबूद ने यह सब खुद बेघर, भूखे और अपनों को खोने की पीड़ा के बावजूद किया – और अब भी युद्धविराम की बदलती हकीकत को दर्ज कर रहे हैं.
मैं महमूद को राहत के आंसू बहाते देखी, जब उन्होंने तीन महीने की बेदखली, विस्थापन और घेराबंदी के बाद पहली बार ‘जबालिया शरणार्थी शिविर के बीच से’ रिपोर्टिंग की, जहां इतिहास ने विनाश और सामूहिक नरसंहार के सबसे भयावह दृश्य देखे.
जब उन्होंने उन 200 से अधिक मीडिया साथियों को याद किया, जिन्हें इजराइल ने गाजा जनसंहार की सच्चाई दबाने के लिए मार डाला, तब मैं उन्हें हमारे अब उजड़े कैंप के मलबे पर खड़ा देखी. वह कैमरे के सामने अपनी प्रेस जैकेट उतार रहे थे – इस अविश्वास में कि वे जिंदा बचे हैं और वापस लौट आए हैं.
ताजा जख्मों के बीच, अबूद ने एक वीडियो साझा किया, जिसमें महमूद मलबे पर चढ़ते हुए पूछ रहे थे, ‘हमारा घर कहां है?’ महमूद ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, ‘कोई काम से गया है, अभी लौट आएगा.’
मैं समझ नहीं पा रही थी कि हंसूं या रोऊं, लेकिन गाजा के लोगों का यही जज्बा है, जिन्होंने अपने घर, परिवार, दोस्त, पड़ोसी और साथियों को खो दिया, फिर भी हार मानने से इनकार कर दिया और राख से उठकर अपनी इंसानियत थामे रखने पर अडिग हैं.
तथाकथित ‘आजाद दुनिया’ ने फिलीस्तीन की इस छोटी सी जमीन पर पीढ़ी दर पीढ़ी जुल्म किए, फिर भी गाजा में दुनिया के सबसे आजाद लोग हैं, जो अपनी तबाही को चुपचाप देखती इंसानियत को शर्मिंदा कर देते हैं.
जिस गाजा को मैं जानती थी, वह अब मलबे में तब्दील हो चुका है, मेरा घर, स्कूल, विश्वविद्यालय, स्वास्थ्य केंद्र और सांस्कृतिक संस्थान, जहां मैं जाती थी, सबकुछ.
फिर भी, बचे हुए लोग हिम्मत और प्रतिरोध की बेमिसाल मिसाल हैं.
यह पूरी दुनिया की जिम्मेदारी है कि इंसानियत के लिए गाजा की कुर्बानी को व्यर्थ न जाने दे और इसे इजराइल के 76 साल पुराने उपनिवेशवादी और रंगभेदी शासन के खात्मे का रास्ता बनाने में मदद करे, जिसने दुनिया का पहला ‘लाइव-स्ट्रीम किया गया जनसंहार’ बेरोकटोक अंजाम दिया.
(अनुवाद : मनमोहन कुमार)