वर्ष - 34
अंक - 4
15-02-2025

5 फरवरी 2025  को भाकपा(माले) के झारखंड राज्य कार्यालय, महेंद्र सिंह भवन, रांची में पेसा कानून व प्रस्तावित झारखंड नियमावली पर विचार गोष्ठी संपन्न हुई. विचार गोष्ठी की अध्यक्षता नीता बेदिया, अलमा खलखो, कमलेश सिंह चेरो, आरडी मांझी, संतोष मुंडा, बुंदा बास्के और धनेश्वर सिंह खरवार ने किया और संचालन गौतम मुंडा ने किया. इसकी शुरूआत दिवंगत भाकपा(माले) नेता विनोद लहरी को और महिला नेत्री श्रीलता स्वामीनाथन को (8वीं पुण्य तिथि के अवसर पर) याद करते हुए उनकी तस्वीरों पर माल्यार्पण व पुष्पांजलि अर्पित कर एक मिनट की मौन श्रद्धांजलि देने के साथ हुई.

विचार गोष्ठी में रांची, हजारीबाग, रामगढ़, दुमका, जामताड़ा, पलामू, गढ़वा, लातेहार, बोकारो व गुमला समेत अन्य जिलों से करीब 70 आदिवासी नेताओं ने शिरकत की. भाकपा(माले) राज्य सचिव का. मनोज भक्त, रांची जिला सचिव जगमोहन महतो, मोहन दत्ता, गौतम मुंडा, देवकीनंदन बेदिया, जगरनाथ उरांव, सुशीला तिग्गा, सुकदेव मुंडा, नीता बेदिया, सुदामा खलको, अंजला तिग्गा, नागेश्वर मुंडा, मनाराम मांझी, रामचन्द्र उरांव, कृष्ण सिंह चेरो, महावीर मुंडा, दर्शन गंझू, मानवाधिकार कार्यकर्ता सिराज दत्ता, आइती तिर्की , शांति सेन के अलावा अन्य दर्जनों लोगों ने प्रस्तावित पेसा नियमावली के त्रुटियों पर अपने विचार रखे.

प्रस्तावित पेसा नियमावली के प्रति रुख

झारखंड में पेसा नियमावली के ड्राफ्ट (सोशल मीडिया में उपलब्ध 2023 का संशोधित) को लेकर इसके पक्ष-विपक्ष में बहस चल रही है. इस बहस को हम समझना और राज्य के आदिवासी समुदायों के स्वशासन, संस्कृति और जल-जंगल-जमीन पर उनके अधिकारों की रक्षा के उपयुक्त नीति के पक्ष में खड़ा होना बेहद महत्वपूर्ण है. 1992 में संविधान के 73वें संशोधन के बाद देश में पंचायत कानून लागू हुआ. इस कानून को पांचवीं अनुसूची में शामिल क्षेत्रों (अनुसूचित क्षेत्रों) में लागू करने के लिए पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में) विस्तार कानून, 1996 जिसे हम पेसा कहते हैं, भूरिया कमिटी के अनुशंसाओं के आधार तैयार किया गया. पेसा कानून का लक्ष्य परंपरागत स्वशासन एवं अपने जल-जंगल-जमीन पर अधिकार की रक्षा और विभिन्न सरकारी योजनाओं, स्थानीय बाजार एवं संस्थाओं पर नियंत्रण-निगरानी को कायम करना है. सभी जानते हैं कि उत्तर पूर्व के आदिवासी अंचलों में 6ठी अनुसूची लागू है जहां जिला परिषदों को स्वायत्तता के साथ-साथ ठोस प्रशासनिक और वित्तीय अधिकार प्राप्त हैं. 5वीं अनुसूची में आनेवाले देश के तमाम क्षेत्रों में ग्राम सभा और आदिवासी समुदायों को इन अधिकारों से लैस करने के लिए पेसा कानून को लागू करना आवश्यक है.

जिन राज्यों में पेसा कानून लागू है, उन राज्यों में इसके क्रियान्वयन का एक अध्ययन बताता है कि पेसा कानून को प्रशासन और कारपोरेट प्रबंधन मिलीभगत कर कागजी सजावट में बदल देता है. जमीन अधिग्रहण से लेकर निर्दिष्ट वनोपज पर आदिवासी और ग्राम समुदायों के अधिकार को धूर्तता अथवा बलपूर्वक हड़प लिया जाता है. इसका मतलब है कि पेसा कानून का लागू हो जाना ही काफी नहीं है, बल्कि इसके सही क्रियान्वयन के लिए सचेत और सघर्षशील जनसमुदाय को तैयार करना भी जरूरी है. झारखंड में पेसा लागू होने से पहले ही ग्राम सभाओं के मौजूदा अधिकारों को तोड़ना-मरोड़ना और समुदाय को परस्पर टकराते ग्रुपों में बदल देने के अनुभवों को भी हमें भूलना नहीं होगा.

पेसा के अंतर्गत बुनियादी केंद्र ग्राम सभा है और यह पंचायत की सीढ़ी का सबसे निचला पायदान भर नहीं है. पंचायत और जिला परिषद इसके अधिकारों को निरस्त नहीं कर सकता है. मसौदा नियमावली में ग्राम सभा को कमोबेश झारखंड पंचायत अधिनियम 2001 के ग्राम सभा में आदिवासी पारंपरिक स्वरूपों के साथ जोड़ने की बात कही गयी है. लेकिन यह पंचायत अधिनियम 2001 के ग्राम सभा के ही समतुल्य है. राज्य में झारखंड भूमि अधिग्रहण संशोधन कानून 2017 या लैंड बैंक नीति रघुवर सरकार के कार्यकाल में बनी है. कई मामलों में यह सीएनटी-एसपीटी-विलकिंसन रुल्स को भी कमजोर करते हैं. इन्हें निरस्त किए बगैर या अधिसूचित क्षेत्रों में निष्प्रभावी बनाए बगैर ग्राम सभा या अनुसूचित क्षेत्रों के जनसमुदायों के भूमि-अधिकार और अधिग्रहण की अनुमति देने या इंकार करने के उनके अधिकार को कार्यकारी नहीं बनाया जा सकता है. सीएनटी-एसपीटी एक्ट और विलकिंसन रुल्स ने उपायुक्त को इन कानूनों के अधीन जमीन के हस्तांतरण के मामले में निर्णय के लिए अधिकृत किया है. ग्राम सभा के अधिकार और उपायुक्त के उक्त अधिकार के बीच स्वाभाविक टकराहट दिखती है. इसका कोई हल वर्तमान मसौदा में नहीं है. इससे पेसा के वास्तविक उद्देश्य उपेक्षित होते हैं.

झारखंड में औद्योगिक क्षेत्रों, नगरों और उपनगरों के विकास के साथ परांपरागत गांवों का विलोपन या नगरीकरण तेजी से हुआ है. इन क्षेत्रों में गैर आदिवासी समुदाय की आबादी भी तेजी से बढ़ी है. ऐसे में ग्राम समुदायों को बचाना और वहां के संसाधनों पर आदिवासियों के नियंत्रण को कायम रख पाना हवाई बात होगी. इन स्थितियों पर ड्राफ्ट कोई प्रावधान नहीं पेश करता है. इन क्षेत्रों में जल-स्रोतों को बचाना या बाजार पर नियंत्रण के लिए विशेष प्रावधानों को तैयार करना जरूरी है. मद्य उत्पादन या बिक्री पर अधिनियमन या नियंत्रण के अधिकार को ठोस करना और महिलाओं को इसकी निगरानी में भागीदारी को शर्त बनाना जरूरी है.

ग्राम-सभाओं को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने के लिए पुलिस बल या निजी गुंडावाहिनी का इस्तेमाल प्रस्तावित अधिग्रहण क्षेत्रों में सामान्य बात है. अधिकारियों के साथ बड़ी संख्या में पुलिस की उपस्थिति असल में ग्राम-सभाओं को डराने की कोशिश है. मसौदा में ग्राम सभा को किसी भी तरह के दबाव में लाने के खिलाफ निरोधात्मक प्रावधानों को सम्मिलित करना चाहिए. ठीक इस तरह का ही प्रावधान वन क्षेत्रों में भी होना चाहिए जहां अनुसूचित क्षेत्रों और वनक्षेत्रों में निगरानी और प्राथमिक रिपोर्ट तैयार करने का अधिकार संबंधित ग्राम-समुदायों के हाथ में हो.

पथरगड़ी आंदोलन के मद्देनजर भी प्रस्तावित नियमावली को समृद्ध करने की जरूरत है. पांचवीं अनुसूची प्रदत्त स्वायत्ता का अधिकारियों द्वारा उल्लंघन के खिलाफ दंडनीय कानून के निर्माण की जरूरत है. पेसा अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत कानून का विस्तार है, इसलिए नीचे तक अधिकारों का विकेंद्रीकरण के साथ-साथ इसमें लोकतांत्रिकरण की प्रक्रिया भी समाविष्ट है. इसके अंदर के लोकतांत्रिक मूल्यों को खारिज करने का मतलब जनसमुदायों के अधिकारों पर चोट करना है. झारखंड पंचायत कानून 2001 पर अनुसूचित क्षेत्रों के लिए तैयार मुहावरों का मुलम्मा चढ़ाने भर से आदिवासियों और ग्राम समुदायों के अधिकारों की रक्षा नहीं हो सकती है. कुछ बहसों में इसे मूलवासी बनाम आदिवासी की ओर लक्षित करने की कोशिश हो रही है. मूलवासियों के हितों की रक्षा अनुसूचित क्षेत्रों में पेसा के इतर ढूंढने का मकसद कभी भी सही नहीं हो सकता. इस भटकाव में पड़ने के बजाय पेसा के मुख्य लक्ष्यों पर केंद्रित रहना होगा.

पेसा लागू करने में पहले ही काफी देर हो चुकी है और इस बीच धड़ल्ले से भूमि अधिग्रहण एवं एमओयू का काम रफ्तार पर है. गांव विस्थापन में विलीन हो रहे हैं. अनुसूचित क्षेत्रों में पुलिस दमन, कारपोरेट गुंडागर्दी एवं केस-मुकदमों के बाद ग्रामीण अंततः बेदखली के शिकार हो रहे हैं. इसलिए देर ठीक नहीं है. लेकिन कोई ढीला-ढाला कानून 85 स्थानीयता नीति जैसा ही विषफल देगा. हमें  सरकार से एकजूट होकर संगतपूर्ण पेसा के साथ-साथ संबंधित कानूनों में सुधार की मांग के लिए जनदबाव तैयार करना होगा. झारखंड सरकार को अनुसूचित क्षेत्रों के जनप्रतिनिधियों, वहां सक्रिय अधिकार संगठनों, आदिवासी आंदोलनों के प्रतिनिधियों, इन मामलों के विशेषज्ञों और सक्षम प्रशासनिक अधिकारियों के साथ बैठक कर मसविदा को समृद्ध करना चाहिए. हेमंत सरकार छः माह के समय सीमा के अंदर झारखंड के लिए सुसंगत पेसा नियमावली को लागू करे.

विचार गोष्ठी ने सरकार को जन-भावनाओं से अवगत कराने और 1996 आधारित नियमावली को सख्ती से लागू करने के लिए 8 फरवरी से 20 फरवरी तक जन-अभियान चलाने, ग्राम सभा के माध्यम से हस्ताक्षर अभियान चलाने और 21 फरवरी को धरना प्रदर्शन के माध्यम से मुख्यमंत्री के नाम मांगपत्र सोंपने का निर्णय लिया.

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