वर्ष - 34
अंक - 2
04-01-2025

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्वेस ने मौजूदा दौर में न्यायपालिका में फासिस्ट घुसपैठ और लोकतंत्र पर हमले के बारे में बेहद विचारोत्तेजक और आंखें खोलने वाला वक्तव्य दिया.

फासीवाद पर हैदराबाद में 29 दिसंबर 2024 से 2 जनवरी 2025 तक चलने वाली संगोष्ठी के दूसरे दिन अपने लगभग डेढ़ घंटे के वक्तव्य में कॉलिन ने अनेक तथ्यों और घटनाओं के जरिये पुरजोर ढंग से इस बात को रखा कि मोदी सरकार ने न्यायपालिका को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है और लोकतंत्र को अंदर से खत्म कर दिया है. तमाम लोकतांत्रिक संस्थाओं का बस ढांचा बचा रह गया है.

फासीवाद का उभार और कानून तथा न्यायपालिका का सवाल’ विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि इमरजेंसी के दौरान हमने देखा था कि चंद एक को छोड़कर अधिकांश जजों ने किस तरह से सत्ता के आगे समर्पण कर दिया था. लेकिन पिछले 10 वर्षों के दौरान हम जो देख रहे हैं वह अभूतपूर्व है. मोदी सरकार ने न्यायपालिका को एक तरह से खत्म ही कर दिया है.

जिन जजों ने रीढ़ का परिचय दिया और सरकार या पार्टी के गलत कामों को गलत कहने का स्टैंड लिया उन्हें तत्काल दंडित किया गया. दूसरी तरफ बहुत से जज ऐसे भी हैं जो सत्ताधीशों की मेज से गिरे टुकड़ों को बटोरकर ही खुश हैं. उन्होंने जस्टिस होस्बेट सुरेश, जस्टिस दाऊद और जस्टिस मुरलीधर का हवाला दिया जिन्होंने हिम्मत के साथ स्टैंड लेने की कीमत चुकाई.

न्यायपालिका में संघी घुसपैठ की चर्चा करते हुए कॉलिन ने हाल ही में गुजरात हाई कोर्ट के एक मौजूदा जज द्वारा किसी कार्यक्रम में दिए भाषण का जिक्र किया जिसमें जज ने कहा कि हमें समाज में नैतिकता और व्यवस्था बनाए रखने के लिए ‘सिविलियन पोशाक में रहने वाले सैन्य तत्वों’ की जरूरत है. उनका सीधा इशारा आरएसएस कैडर की ओर था.

इलाहाबाद में जस्टिस शेखर यादव द्वारा विश्व हिन्दू परिषद के कार्यक्रम में दिये गये घोर साम्प्रदायिक बयान के बाद कॉलेजियम ने उन्हें बस दिल्ली बुलाकर बातचीत की और कोई कार्रवाई नहीं की, जबकि तत्काल हेट स्पीच के लिए उनके ऊपर एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए थी. हेट स्पीच पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जोसेफ के निर्णय में साफ कहा गया था कि ऐसे मामलों में कोई पक्ष एफ़आईआर न दर्ज कराए तो भी सुओ मोटो एफआईआर दर्ज करके फौरन कार्रवाई की जानी चाहिए.

घोर साम्प्रदायिक बातें करने वाली एक महिला को मद्रास हाई कोर्ट में जज बनाने की संस्तुति पूर्व मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने की.

कॉलिन ने कहा कि पूंजीवादी व्यवस्था के भीतर न्यायपालिका लोगों के लिए अंतिम रक्षा पंक्ति के समान मानी जाती थी लेकिन पिछले 10 वर्षों के दौरान न्यायपालिका की निष्ठा और अखंडता पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है.

उन्होंने कहा कि जीएन साईंबाबा और फादर स्टैन स्वामी के मामले में हमने न्यायपालिका के बेहद क्रूर चेहरे को देखा. अल्जाइमर से पीड़ित 85 वर्ष के स्टैन स्वामी को जिस तरह से बीमारी में बेहद बुनियादी सुविधाओं तक से वंचित रखा गया, वह कल्पना से परे है. साईंबाबा को बॉम्बे हाई कोर्ट के दो साहसिक जजों द्वारा सभी आरोपों से बरी किए जाने के बाद जस्टिस एम आर शाह ने रातोंरात सुनवाई करके वापस जेल भिजवा दिया, मानो वह बाहर आकर कोई बड़ा अपराध कर देते.

जस्टिस शाह वैसे तो एक अच्छे जज माने जाते थे जिन्होंने भूमि अधिग्रहण के मसले पर अच्छा फैसला भी दिया था, मगर पिछले कुछ सालों में उनमें ऐसा बदलाव आया कि जज रहते हुए उन्होंने मोदी को अपना भगवान घोषित कर दिया!

कॉलिन ने कहा कि अब यह बात बिल्कुल साफ है कि मोदी सरकार ही न्यायपालिका को संचालित कर रही है और न्यायपालिका की स्वतंत्रता और लोकतंत्र के तीसरे खंभे जैसी बातें फिज़ूल साबित हो चुकी हैं.

सत्ता के दमन का शिकार बने लोगों लोगों के अनेक चर्चित मुकदमों की पैरवी कर चुके कॉलिन ने कहा कि भारतीय राज्य आज बेहद ताकतवर और एक विशालकाय दमन तंत्र का मालिक आतंकवादी राज्य बन चुका है. इसे लोगों से किसी बात का डर नहीं होना चाहिए. लेकिन मोदी सिर्फ एक चीज से डरते हैं और और वह यह है कि लोग अपने हक के लिए बोलने लगेंगे.

लोगों के खुलकर अपनी बात कहने से फासिस्ट सबसे ज्यादा डरते हैं और यही बात हमारे हाथों में सबसे बड़ा हथियार भी है. लोगों के सच बोलने से वे कितना डरते हैं इसका पता इस बात से चलता है कि सिर्फ सच बोलने की वजह से न जाने कितने लोगों पर यूएपीए और राजद्रोह के केस लगाकर उन्हें जेल भेज दिया गया है.

उन्होंने कहा कि हम सुनते रहे हैं कि ‘बेल शुड बी दी रूल, नॉट जेल’ लेकिन मोदी के जज किशोर चन्द्र ने इसे पलटते हुए कहा कि आतंकवाद करने वालों के लिए जेल ही नियम होगा, बेल नहीं. कहने की जरूरत नहीं कि आतंकवादी कौन है यह इस बात से तय होगा कि कि वह मोदी सरकार के पक्ष में है या विरोध में.

कितने ही बेहतरीन नौजवान सिर्फ एक भाषण देने की वजह से साल दर साल जेल में कैद हैं और उन्हें बार-बार जमानत देने से इनकार किया जाता है, जबकि ‘गोली मारो सालों को’ जैसा भयानक नारा देने वाले मोदी के मंत्री पर कोई कार्रवाई नहीं होती है और कई सालों तक हमारी याचिका सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के बीच गेंद की तरह उछाली जाती रहती है. जजों में इतना डर व्याप्त है कि कोई जज इस मामले को हाथ लगाने तक के लिए तैयार नहीं है.

जस्टिस मुरलीधर ने इस मसले पर स्टैंड लिया तो सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट में कहा कि कल सुबह सरकार इस मसले पर जवाब देगी मगर उसी रात जस्टिस मुरलीधर का तबादला मद्रास हाई कोर्ट में कर दिया गया और उनके सुप्रीम कोर्ट जाने का रास्ता बन्द कर दिया गया.

देश की अनेक ट्रेड यूनियनों की ओर से मजदूर अधिकारों से जुड़े कई अहम मुकदमों की पैरवी कर चुके कॉलिन गोंजाल्वेस ने बताया कि श्रम न्यायालयों की पूरी व्यवस्था पहले से ही बेहद लचर और भ्रष्टाचार से भरी हुई थी पर अब उसे और भी चौपट कर दिया गया है. श्रम कानूनों को लगातार कमजोर किया गया है. इसने देश की मेहनतकश आबादी पर पूंजीवादी हमले को व्यापक और जोरदार बनाने में भूमिका निभाई है.

यही हाल पर्यावरण कानूनों का है. पिछले 10 वर्षों में प्राकृतिक संसाधनों की लूट को कॉरपोरेट घरानों के लिए आसान बनाया गया है. देश में विशाल भूभाग जंगलों का है लेकिन कानून सिर्फ नोटिफाइड फॉरेस्ट पर लागू होते हैं और नोटिफाइड जंगल बहुत कम हैं और उनका क्षेत्रफल लगातार सिकुड़ रहा है. बाकी तो काटे और उजाड़े जाने के लिए उपलब्ध ही हैं.

कुदरती संसाधनों के लिए जनता के खिलाफ जारी इस जंग में जमीनों, जंगलों, जलस्रोतों और खदानों पर कब्जे के लिए पूंजीपतियों ने हमला तेज कर दिया है और उनके हितों की रक्षा के लिए मोदी सरकार किसी कानून, ट्रिब्यूनल या अदालत को बीच में नहीं आने दे रही. भले ही वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि अगले 30 सालों में पर्यावरणीय विनाश के सबसे भयानक नतीजे भारत को झेलने पड़ेंगे.

अपनी बात का समापन करते हुए कॉलिन ने कहा कि आज हालात बहुत निराशाजनक भले ही लग रहे हों लेकिन मैं निराश नहीं हूं. पूरी दुनिया में और अपने देश में लोग निरन्तर संघर्ष कर रहे हैं. बहुत से नौजवान सिर्फ सतही बदलाव के लिए नहीं बल्कि आमूल परिवर्तन के लिए लड़ रहे हैं. सिर्फ फासीवाद नहीं बल्कि उसे जन्म देने वाली पूंजीवादी व्यवस्था को खत्म करने के लिए जूझ रहे हैं. मुझे विश्वास है कि हमारी पीढ़ी तो नहीं मगर यहां मौजूद नौजवानों की पीढ़ी जरूर फासीवाद और पूंजीवाद को ख़त्म होता हुआ देखेगी.

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