अपने सांप्रदायिक विद्वेषी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उत्तराखंड सरकार उच्च न्यायालय को भी गुमराह करने से नहीं चूक रही है. उच्च न्यायालय में यह कहने के बाद कि उत्तरकाशी में महापंचायत की अनुमति नहीं दी गयी है, अगले दिन महापंचायत की अनुमति दे दी गई, यह स्पष्ट तौर पर उच्च न्यायालय को गुमराह करके भाजपा सरकार द्वारा अपना सांप्रदायिक एजेंडा पूरा करने की कोशिश है.
उत्तरकाशी के जिला प्रशासन का यह कहना कि महापंचायत की अनुमति शर्तों के साथ दी गई है, हास्यास्पद है. उत्तरकाशी का जिला प्रशासन या तो स्मृति लोप का शिकार हो गया है या सांप्रदायिक उन्मादियों की पक्षधर सरकार के दबाव में वह यह भी भूल गया है कि 24 अक्टूबर को भी इसी तरह शर्तों के साथ अनुमति दी गयी थी. उन अनुमति की शर्तों की जमकर धज्जियां उड़ाई गयी और उत्तरकाशी का जिला प्रशासन पूरे बवाल को रोकने में नाकाम रहा था. इस अनुभव के बावजूद महापंचायत को अनुमति देना, सांप्रदायिक बवाल को आमंत्रित करना ही है. यह क्षोभ का विषय है कि सांप्रदायिक एजेंडे वाली सत्ता को प्रसन्न करने के लिए उत्तरकाशी जिला प्रशासन के आला अधिकारी, उच्च न्यायालय की आंख में धूल झोंकने के काम में शामिल हो रहे हैं.
हम इसकी तीव्र निंदा करते हैं और मांग करते हैं कि उत्तरकाशी में सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने वाली सभी घटनाओं पर कठोरता पूर्वक रोक लगाई जाए और सांप्रदायिक उन्माद फैलाने के लिए कानून से खिलवाड़ करने वाले तत्वों के खिलाफ कड़ी दंडात्मक और निरोधात्मक कार्रवाई की जाए.
इन्द्रेश मैखुरी
राज्य सचिव, भाकपा(माले)
उत्तराखंड