भाकपा(माले) ने सांसद सुदामा प्रसाद के नेतृत्व में पार्टी के पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल को 1 नवंबर (रविवार) को संभल जाने से मुरादाबाद में पुलिस द्वारा रोकने और घर में नजरबंद करने की कड़ी निंदा की. वहीं पार्टी ने प्रदेश के गृह सचिव को पत्र भेज कर कड़ा प्रतिवाद किया है.
प्रतिनिधिमंडल में भाकपा(माले) के लोकसभा सदस्य सुदामा प्रसाद (बिहार के आरा से सांसद) के अलावा, ऐपवा की प्रदेश अध्यक्ष व पार्टी की केंद्रीय समिति सदस्य कृष्णा अधिकारी, भाकपा(माले) के पश्चिमी यूपी प्रभारी अफरोज आलम, मुरादाबाद प्रभारी रोहतास राजपूत, जवाहरलाल नेहरु विवि छात्रसंघ (जेएनयूएसयू) के पूर्व अध्यक्ष व आइसा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एन साई बालाजी शामिल थे. जब टीम मुरादाबाद से संभल की ओर बढ़ रही थी, तो यूपी पुलिस ने टीम को मुरादाबाद में एक स्थानीय निवासी के घर से निकलने से रोक दिया.
टीम के संभल जाने पर जोर देने के बाद, मुरादाबाद के पुलिस उपाधीक्षक के नेतृत्व में पुलिस ने बताया कि टीम के सदस्यों को नजरबंद किया जा रहा है. नजरबंदी का कारण पूछे जाने पर पुलिसकर्मियों ने संभल के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश का हवाला दिया, जिसमें 10 दिसंबर तक बाहरी लोगों के जिले में प्रवेश पर रोक लगाई गई है.
टीम ने पुलिस अधिकारियों से कहा कि अगर प्रशासन हमें पीड़ितों के परिवारों से मिलने की अनुमति नहीं देता है, तो पुलिस आयुक्त से मिलने दे. अधिकारियों ने साफ तौर पर इनकार करते हुए कि वे टीम सदस्यों को आवास के बाहर जाने की अनुमति नहीं दे सकते क्योंकि टीम को नजरबंद किया गया है.
भाकपा(माले) के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने कहा कि योगी सरकार का यह अलोकतांत्रिक कृत्य है. डबल इंजन सरकार की तानाशाही है. सरकार जन प्रतिनिधिमण्डल से क्यों डरती है? माले प्रतिनिधिमंडल संभल में उन मुस्लिम परिवारों से मिलने जा रहा था, जिनके पांच युवा सदस्य 24 नवंबर को यूपी पुलिस की हिंसा में मारे गए थे.
राज्य सचिव ने कहा कि राज्य सचिव ने कहा कि संभल पर संसद में कोई चर्चा नहीं होने दी जा रही है और जनप्रतिनिधियों को संभल में पीड़ितों से मिलने नहीं दिया जा रहा है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि केंद्र और राज्य की डबल इंजन सरकार संभल में मुसलमानों की हत्याओं पर कोई चर्चा और विरोध प्रदर्शन नहीं होने देने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल कर रही है.
राज्य सचिव ने निर्दाष लोगों की हत्याओं में संलिप्तता के लिए संभल के डीएम और एसपी को बर्खास्त करने की मांग की. कहा कि मुसलमानों और कमजोरों के खिलाफ पक्षपात करने के लिए योगी सरकार और यूपी पुलिस की भूमिका को उजागर करने और दोषियों को दंडित करने की जरूरत है.
भाकपा(माले) सांसदों का. राजाराम सिंह और का. सुदामा प्रसाद ने इंडिया गठबंधन के अन्य सांसदों के साथ मिलकर मोदी-अडाणी गठजोड़ और राज्य प्रायोजित संभल हिंसा, जिसने पांच मुस्लिम युवकों की जान ले ली, के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया.
भाकपा(माले) की उत्तर प्रदेश इकाई ने 30 नवंबर 2024 को उत्तर प्रदेश के संभल में राज्य प्रायोजित हिंसा और मौतों के सवाल पर जिलाधिकारियों के माध्यम से देश की राष्ट्रपति को यह पत्रभेजा.
महोदया,
यूपी के संभल में हुई हिंसा भारत के धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताने-बाने को नष्ट करने का एक प्रयास है. ज्ञानवापी और अन्य स्थलों पर देखे गए पैटर्न के बाद, संभल में यह दावा करके विवाद पैदा किया गया कि 16वीं शताब्दी की जामा मस्जिद पहले एक मंदिर थी. पांच दिन पूर्व एक सर्वेक्षण होने के बावजूद, 24 नवंबर 2024 रविवार को सुबह दूसरा सर्वेक्षण शुरू किया गया. यह पूजा स्थल अधिनियम, 1991 का स्पष्ट उल्लंघन है जो प्रत्येक धार्मिक पूजा स्थल की 15 अगस्त 1947 की स्थिति की गारंटी देता है.
रिपोर्टों के अनुसार, संभल में मनमाने और भड़काऊ सर्वेक्षण के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों पर योगी शासन की क्रूर कार्रवाई के दौरान पुलिस ने पांच मुस्लिम युवकों की गोली मार कर हत्या कर दी. पूरी घटना सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने और प्रदेश भर में मुस्लिम समुदाय के सदस्यों को डराने-धमकाने के लिए हालिया उपचुनाव जीत से उत्साहित संघ-भाजपा की एक सुनियोजित साजिश की ओर इशारा करती है. संभल की घटना ऐसे समय में हुई है जब कुछ ही दिन पहले राज्य में हाल के उपचुनावों के दौरान मुस्लिम मतदाताओं को डराने और मताधिकार से वंचित करने के उद्देश्य से भाजपा-पुलिस गठजोड़ द्वारा हिंसक कार्रवाइयों की एक श्रृंखला देखी गई थी.
संभल हिंसा राज्य प्रायोजित है. इसके खिलाफ जिले समेत राज्य भर में भाकपा(माले) द्वारा किये गए प्रतिवाद के माध्यम से हम निम्नलिखित मांग करते हैं :
संभल हिंसा की जिम्मेदार योगी आदित्य नाथ सरकार को दंडित करें.
मृतकों को न्याय मिले, पांच निर्दाष मुस्लिम युवाओं की मौत के जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज हो.
साम्प्रदायिक हिंसा भड़काने के लिए विष्णु शंकर जैन और भड़काऊ नारे लगाने वाले उकसावेबाजों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो.
मुस्लिमों के खिलाफ दर्ज फर्जी मुकदमे वापस लिये जाएं, गिरफ्तार लोगों की रिहाई हो.
संभल के बाद अजमेर के सुप्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में मंदिर होने का दावा कर सिविल कोर्ट में याचिका लगा दी गई है. हम मांग करते हैं कि अल्पसंख्यकों और उनके उपासना स्थलों को सांप्रदायिक निशाना बनाने पर प्रभावी रोक लगे.
संभल में मजिस्ट्रेटी जांच दिखावा है. संभल के डीएम, एसपी सहित मंडलायुक्त को भी जांच की जद में लाया जाए.
सर्वाच्च न्यायालय इस सुनियोजित हमले को रोकने, जिम्मेदारों को सजा देने और पूजा स्थल अधिनियम, 1991 का कड़ाई से अनुपालन कराने के लिए तत्काल हस्तक्षेप करे.