- डॉ. शहद अबूसलामा
[ डॉ. शहद अबूसलामा, गाजा के जबालिया शरणार्थी शिविर से ताल्लुक रखने वाली एक फिलिस्तीनी विद्वान, कार्यकर्ता और कलाकार हैं. उन्होंने हाल ही में शेफील्ड हल्लम यूनिवर्सिटी के खिलाफ एक ऐतिहासिक मुकदमा जीतकर इतिहास रच दिया है. इस यूनिवर्सिटी ने फिलिस्तीनी आवाज उठाने के लिए डॉ. अबूसलामा को आईएचआरए की विवादास्पद एंटीसेमिटिज्म परिभाषा के आधार पर निलंबित कर दिया था.
डॉ. अबूसलामा पहली फिलिस्तीनी विद्वान हैं जिन्हें इस तरह के अन्याय का सामना करना पड़ा और उन्होंने इसे चुनौती देकर जीत हासिल की. आल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन फोर जस्टिस (आइलाज) ने भी उनके समर्थन में यूनिवर्सिटी को ज्ञापन सौंपा था. यह जीत फिलिस्तीनियों के खिलाफ हो रहे उत्पीड़न और उनकी आवाज को दबाने की कोशिशों के खिलाफ एक बड़ी जीत है. यह विशेषकर ऐसे समय में महत्वपूर्ण है जब दुनिया भर में फिलिस्तीन समर्थकों का दमन हो रहा है.
साथ ही, उन्होंने यूके के शेफील्ड हल्लम विश्वविद्यालय से गाजा और उसके शरणार्थियों पर ऐतिहासिक चित्रण और वृत्तचित्र फिल्मों पर पीएचडी भी पूरी की है. उनका यह शोध जल्द ही ब्लूम्सबरी द्वारा ‘बिट्वीन रियलिटी एंड डॉक्यूमेंट्री’ नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित होने जा रहा है. उन्होंने कला और शोध के माध्यम से लगातार फिलिस्तीनियों के दर्द और संघर्ष को दुनिया के सामने उजागर किया है.
गाजा में जारी एक वर्ष से भी अधिक समय के नरसंहार में उन्होंने अपने सौ से अधिक रिश्तेदारों को खो दिया है. इस समय जब जबालिया शरणार्थी शिविर में उनके बचे हुए परिवार को इजरायल की ओर से ‘जबालिया छोड़ो या मरो’ जैसा क्रूर अल्टीमेटम मिला है, उन्होंने इसे अपने शब्दों में अभिव्यक्त किया है. उनके परिवार के बचे हुए सदस्य और जबालिया के लोग इस भयावह नरसंहार में जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उनकी यह कहानी न केवल एक दस्तावेज है, बल्कि फिलिस्तीनी लोगों के सामूहिक विनाश को रोकने का आह्वान भी है.]
उत्तर गाजा में स्थित जबलिया रिफ्यूजी कैंप, जहां मेरा जन्म और पालन-पोषण हुआ, इजरायल द्वारा लगातार और अंधाधुंध बमबारी का सामना कर रहा है, जिसमें विस्थापित फिलिस्तीनीयों की बड़ी संख्या को निशाना बनाया जा रहा है.
पूरे के पूरे मोहल्लों को जमींदोज कर दिया गया है. सड़कों पर और मलबे के नीचे खून से लथपथ शव पड़े हैं, जबकि पैरामेडिक्स और फायरफाइटर्स को मारे गए और घायलों को निकालने के लिए सुरक्षित रास्ता नहीं दिया जा रहा है.
मेरे परिवार के बचे हुए सदस्य, जो वहां हैं, कई बार विस्थापित हो चुके हैं. उनमें से कुछ अपने घरों के अंदर भारी और निरंतर जारी बमबारी के बीच फंसे हुए हैं. वे बिखरे हुए, अपने घरों से बेदखल और अपने प्रियजनों की मौत का मातम मना रहे हैं. हर पल उन्हें यह डर सताता है कि वे इजरायल की हत्यारी मशीनों के अगले शिकार बन सकते हैं.
मेरे परिजनों को ऐसा महसूस हो रहा है कि वे ‘नरसंहार के सबसे भयावह दौर’ का सामना कर रहे हैं. यह उस भ्रामक खबर के विपरीत है जिसमें इजरायल ने गाजा को ‘कम महत्वपूर्ण युद्ध क्षेत्र’ घोषित किया है और अपने अधिकांश सैन्य संसाधनों को लेबनान के उत्तरी मोर्चे पर हिज्बुल्लाह से लड़ने के लिए स्थानांतरित कर दिया है.
ऐसा प्रतीत होता है कि नरसंहार एक बार फिर दोहराया जा रहा है, लेकिन इस बार बड़े पैमाने पर और तीव्र गति से, बिना किसी रुकावट या सीमा के.
लगभग आधा मिलियन शरणार्थी गाजा पट्टी के उत्तर में ही रह गए हैं, वे इजरायल के आपराधिक ‘निकासी’ आदेशों का विरोध कर रहे हैं – फिलिस्तीनीयों का जबरन विस्थापन और अधिकारों से वंचित करनाए जो 7 अक्टूबर 2023 के बाद फिर से तेज हो गया.
उन शरणार्थियों में मुख्य रूप से मेरे चाचा, चाची, चचेरे भाई, उनके बच्चे, प्यारे पड़ोसी, शिक्षक और बचपन के दोस्त शामिल हैं. उन्होंने ‘दक्षिण की ओर बढ़ने’ के इजरायल के निर्देश का पालन नहीं करने का फैसला किया क्योंकि 1948 के ‘नकबा’ (विनाशकारी आपदा) और उसके बाद से उनके जीवन और उसके बाद से लगातार हिंसा ने उनके जीवन को इस तरह आकार दिया कि वे समझते हैं कि अस्थायी विस्थापन स्थायी वास्तविकता बन सकता है.
जबरन विस्थापन का प्रतिरोध करने के लिए उन्हें जो सामूहिक दंड भुगतना पड़ रहा है, उसे देखकर मैं अवाक हूंए ऐसे शब्द खोजने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है जो इसकी भयावहता और प्रलयकारी तबाही को पर्याप्त रूप से व्यक्त कर सकें.
इस महीने की शुरुआत मेंए 5 अक्टूबर कोए गाजा में नरसंहार शुरू होने के बाद से तीसरी बार, इजरायली सेनाओं ने उत्तरी गाजा जिसमें बेइत हनून, बेइत लाहिया, जबालिया शरणार्थी शिविर और जबालिया शहर के इलाके शामिल हैं, पर घेरा डाल दिया, और इसे पूरी तरह से दक्षिण से अलग कर दिया.
1 अक्टूबर से, उन्होंने उत्तरी गाजा में सभी मानवीय आपूर्ति को भी रोक दिया है, जिससे लोगों को बमबारी से नहीं तो भूख से मरने के लिए मजबूर कर दिया गया है.
यह बर्बर घेराबंदी ‘जनरलों की योजना’ का हिस्सा हैए जो अगर सफल हुआ तो गाजा में ‘जमीनी हकीकत’ को बदल देगा, जैसा कि सेवानिवृत्त इज़रायली जनरल गियोरा ईलैंड ने कथित रूप से वर्णन किया है. उनका मानना है कि उत्तरी गाजा को नागरिकों से खाली कराना और जो भी वहां रुकेगा उसे भूख से मारना या एक वैध ‘लक्ष्य’ मानकर मार देना ही इसका उद्देश्य है.
जबकि इजरायली मीडिया सार्वजनिक रूप से उत्तरी गाजा को खाली करने और इसे इजरायल में मिलाने की महत्वाकांक्षाओं के बारे में बात कर रहा है, पश्चिमी मीडिया इसकी आधिकारिक बातों को दोहराता रहता है, और इस तीसरे बड़े आक्रमण को ‘आत्मरक्षा’ के रूप में पेश कर रहा है ताकि फिर से संगठित फिलिस्तीनी प्रतिरोध को खत्म किया जा सके.
पिछले महीने, इजरायली संसद की विदेश मामलों और रक्षा समिति के सदस्यों के साथ एक बंद बैठक मेंए ईलैंड ने इस घेराबंदी योजना को ‘हमास को नष्ट करने के लिए एक प्रभावी सैन्य रणनीति’ के रूप में प्रस्तावित किया था. उसके मुताबिक हाल ही में शहीद हो गए हामास नेता याहिया सिनवार कहते थे कि फिलिस्तीनीयों के लिए जमीन और स्वाभिमान ही जीवन है, और इस चाल से हम दोनों को छीन लेंगे.
यह ‘जनरलों की योजना’ को अब उत्तरी गाजा के लोगों पर अंजाम दिया जा रहा है, जिसका शिकार मेरे परिवार के बचे हुए सदस्य भी हो रहे हैं.
अपने पिछले लेख मेंए मैंने 1 नवंबर 2023 को अपने चचेरे भाई यूसुफ की हत्या की रिपोर्ट की थी, जिसके लिए हम अभी भी शोक मना रहे हैं, क्योंकि हमारा परिवार लगातार छोटा होता जा रहा है.
हालांकि, अप्रत्याशित घटनाओं मेंए यूसुफ के छोटे भाई वसीम और उसकी पत्नी मोना ने 7 अक्टूबर 2024 को उत्तरी गाजा की घेराबंदी के दौरान अपने पहले बच्चे का स्वागत किया. उन्होंने अपने नवजात बेटे का नाम यूसुफ रखा, यह याद दिलाने के लिए कि हमारे लोग जीने की इच्छा रखते हैं और भविष्य की पीढ़ियों के लिए न्याय, स्वतंत्रता और गरिमा सुनिश्चित करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं.
बच्चे यूसुफ का जन्म अकल्पनीय समय में हुआ, जब एक ही हफ्ते में उसका परिवार दो बार विस्थापित हुआ. वह 22 रिश्तेदारों में से एक है, जो अब गाजा शहर के एक आंशिक रूप से नष्ट घर में ठहरे हुए हैं, जिसे उसके असली मालिकों ने छोड़ दिया था.
साफ पानी, भोजन और अन्य आवश्यक चीजों की कमी के कारण मोना के यूसुफ के जन्म के घाव ठीक नहीं हो रहे हैं, जिससे संक्रमण, अत्यधिक दर्द और दूध पिलाने में कठिनाई हो रही है. जन्म के बाद के टांके भी कुपोषण, साफ-सफाई और चिकित्सा देखभाल की कमी के कारण बार-बार खुल रहे हैं.
मोना और नवजात शिशु के जीवन की चिंता के बीच, उनके आठ साल का चचेरा भाई इलियास गंभीर रूप से जख्मी हो गया, जब वह गाजा के उत्तर में स्थित भूमध्य सागर के तट पर बसे बीच कैंप में थे.
जब उन्होंने जबालिया रिफ्यूजी कैंप से भागकर एक सुरक्षित जगह की उम्मीद की थी, तभी इजरायली ड्रोन ने इलियास को निशाना बनाया, जब वह अन्य बच्चों के साथ बीच कैंप में कंचे खेल रहा था. इस हमले में पांच लोग मारे गए, जिनमें अधिकांश बच्चे और बुजुर्ग थे.
इलियास की गंभीर शारीरिक और मानसिक स्थिति के बावजूद, उसे चार दिन बाद गाजा के अल-अहली बैपटिस्ट अस्पताल से छुट्टी दे दी गई, क्योंकि अस्पताल पर घायलों की लगातार बढ़ती संख्या का दबाव बढ़ता जा रहा है, जबकि इजरायल की बढ़ती क्रूरताएं जारी हैं.
इलियास के परिवार का बोझ यहीं खत्म नहीं होता इलियास, अबूद अबुसलामा का सबसे छोटा भाई है, जो मेरे सबसे करीबी चचेरे भाइयों में से एक है. वह उत्तरी गाजा से एक फ्रंटलाइन रिपोर्टर के रूप में लगातार काम कर रहा है कई बार, जब इजरायल ने दूरसंचार सेवाओं को काट दिया, तो वह मेरे परिवार के बचे हुए लोगों के साथ संवाद का एकमात्र जरिया रहा है.
अबूद उन अत्याचारों का दस्तावेजीकरण करने में व्यस्त रह रहा है, जिनमें उसके अपने परिवार या उनके सहकर्मियों के बच्चों को भी नहीं बख्शा गया.
जबालिया में चलाए गए इस ताजा जातीय सफाया अभियान के साथ-साथ उत्तरी गाजा में पत्रकारों को जान-बूझकर निशाना बनाए जाने की घटनाओं में तेजी आई है, जिससे यह साबित होता है कि इजरायल वहां हो रही सच्चाई को दबाना चाहता है.
एक ही दिनए 9 अक्टूबर कोए अबूद ने अल-अक्सा टीवी के कैमरामैन मोहम्मद अल-तनानी की हत्या और उनके सहयोगी तामेर लुब्बाद और अल जजीरा अरबी के कैमरामैन फादी अल-वहिदी को अपाहिज किए जाने की घटनाओं का दस्तावेजीकरण किया.
लगातार ख़तरों के बावजूदए अबूद अपने लोगों के लिए अपनी जिम्मेदारी को निभाने में लगे हुए हैं, जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, खासकर पश्चिमी मुख्यधारा की मीडिया द्वारा लगभग छोड़ दिया गया है, जो इजरायल के बढ़ते अपराधों पर सिर्फ दिखावटी बातें कर रहे हैं.
गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा सितंबर में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक अक्टूबर 2023 से 31 अगस्त के बीच इजरायली हमले में 34,344 फिलिस्तीनी मारे गए थे, और मौतें लगातार बढ़ती जा रही है, जो अब 42,500 को पार कर चुकी है.
यह पहले कभी इतना स्पष्ट नहीं था कि इजरायल हमास को खत्म करने के नाम पर फिलिस्तीनीयों को उनकी भूमि से सुनियोजित तरीके से खात्मा कर रहा है.
जबकि इजरायल ने रफा के दक्षिणी इलाके में हमास नेता याहया सिनवार को मारने का दावा करते हुए ‘जीत’ का ऐलान किया, और अमेरिका से लेकर ब्रिटेन और जर्मनी तक के सहयोगियों ने उन्हें बधाई दी, वहीं उत्तरी गाजा से अनगिनत नरसंहारों की खबरें लगातार आती रहीं.
जैसे-जैसे नरसंहार तेजी से बढ़ता जा रहा है और हर गुजरते दिन के साथ अधिक निर्दाष लोगों की जान ले रहा है, ऐसा लगता है कि इजरायल ने यह तय कर लिया है कि एक उपनिवेशवादी और रंगभेदी राज्य के रूप में बने रहने का एकमात्र तरीका फिलिस्तीनी लोगों और किसी भी अरब प्रतिरोध का लगातार सामूहिक विनाश और तबाही है.
इजरायल यह उम्मीद नहीं कर सकता कि वह एक पूरी कौम का नरसंहार कर बच निकलेगा, जिन्हें उसके द्वारा जातीय सफाए के बाद से बार-बार बेदखल, कब्जा और अपमानित किया है, बिना किसी नतीजे के.
यह जनसंहार, जिसे अक्सर इतिहास का सबसे अधिक प्रसारित जनसंहार कहा जा रहा है, आने वाली पीढ़ियों के मन में हमेशा के लिए अंकित रहेगा. यह केवल फिलिस्तीनीयों तक सीमित नहीं है, बल्कि हर वो इंसान जो अपने विवेक के प्रति सचेत है. दमन प्रतिरोध को जन्म देता है, और इस तरह का अभूतपूर्व आतंक का सामना केवल एक अधिक दृढ़ प्रतिरोध जरिए ही किया जा सकता है.
(अनुवाद : मनमोहन)
एक साल से अधिक समय से चल रहे इजरायली नरसंहार ने गाजा को विनाशकारी मानवीय और बुनियादी ढांचे का नुकसान पहुंचाया है, जिससे गाजा पट्टी जीवन के लिए अयोग्य होती जा रही है. इजरायल के इन हमलों ने अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करते हुए मानवता के सामने एक गंभीर संकट उत्पन्न कर दिया है. गाजा की लगभग 10% आबादी मर चुकी है, घायल हो चुकी है, अवैध इजरायली हिरासत में है या मलबे के नीचे दब चुकी है, और इनमें से 90% मौतें आम नागरिकों की हुई हैं. मृतकों में 17,012 बच्चे और 10,670 महिलाएं शामिल हैं. पत्रकारों और स्वास्थ्य सेवा कर्मियों को भी भारी नुकसान झेलना पड़ा है, जिसमें 190 पत्रकारों की मौत हो चुकी है और 2,313 स्वास्थ्य कर्मी मारे गए या घायल हुए हैं. इस नरसंहार में 1,08,320 से अधिक लोग घायल हुए हैं, जिनमें कई लोग अंग-भंग और स्थायी विकलांगता के शिकार हुए हैं. 10,000 से अधिक बच्चों को कम से कम एक अंग का नुकसान हुआ है. 4,150 फिलिस्तीनियों की हिरासत और जबरन अपहरण किए जाने के मामले इस भयावहता को और भी बढ़ाते हैं, जिनमें पूर्व बंदियों ने यौन शोषण, बिजली के झटके और जबरन कपड़े उतरवाकर तलाशी सहित कम से कम 42 तरह की यातनाओं की रिपोर्ट की है.
गाजा का बुनियादी ढांचा पूरी तरह से नष्ट हो चुका है, 90% अस्पताल इजरायल द्वारा नष्ट कर दिए गए हैं, जिससे आवश्यक जीवनदायिनी सेवाएं बुरी तरह बाधित हैं. जल आपूर्ति को व्यापक क्षति के कारण पानी की उपलब्धता 97% तक गिर चुकी है, और गाजा की 96% आबादी अब गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रही है. स्कूल भी बर्बाद हो गए हैं, जिनमें से 85% तबाह हो गए हैं, और लोगों के घर नष्ट कर दिए गए हैं, जिनमें से 74% इमारतें अब रहने योग्य नहीं हैं. मानवीय संगठनों को भी गंभीर बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, जहां उत्तरी गाजा में 60% अंतर्राष्ट्रीय मिशनों को रोका गया या बाधित किया गया है, जिससे नागरिकों के जिंदा रहने की चुनौती और अधिक कठिन हो गई है.
गाजा में इजरायली नरसंहार ने ‘इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस’ के फैसलों का पालन न करने के गंभीर सवाल उठाया है, विशेषकर छह प्रमुख क्षेत्रों में : सामूहिक हत्याएं, गंभीर शारीरिक और मानसिक नुकसान, अमानवीय जीवन स्थितियों को लागू करना, भूख को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना, जन्म दर में बाधा डालने की स्थितियां बनाना और नरसंहार को बढ़ावा देना. ये संकेतक एक संगठित और जानबूझकर किए गए जातीय सफाए और नरसंहार की ओर इशारा करते हैं, जिससे गाजा को तेजी से निर्जन बनाया जा रहा है.
आंकड़े: @euromedhr