- सरोज चौबे
भितिहरवा गांधी आश्रम से चलने के बाद पदयात्रा 12 बजे बेलवां गांव पहुंचे जो अति पिछड़ी जाति का गरीब बहुल गांव था. यहां खाने का भी इंतजाम था. हमारे पहुंचने से पहले ही मंच तैयार था. यह ऑटोमेटिक मंच हमारे साथ ही चल रहा था. ट्रैक्टर में दरी व कुर्सियां लदी थीं. प्रचार गाड़ी के माइक से सभा होती थी. भितिहरवा से साथ चल रहा मंच चार दिनों तक यानि पश्चिम चम्पारण जिले की सीमा तक साथ था.
अतीत में बेलवा में सामंती शक्तियों के साथ लंबा संघर्ष चला था. यहां की सभा में महिलाओं की संख्या करीब तीन चौथाई थी. जन संवाद के बीच में ही वे कुछ कागज देना चाह रही थीं. माइक से घोषित किया गया कि सभा के बाद सबका कागज लिया जाएगा. फिर भी कुछ वृद्ध महिलाएं कम पेंशन मिलने की बात कहकर शिकायत करना चाह रहीं थीं. का. वीरेंद्र गुप्ता ने जमीन सर्वेए आवास योजना, भूमिहीनों को पर्च, स्मार्ट मीटर, आरक्ष, बिहार को विशेष राज्य का दर्जा आदि मुद्दों पर अपनी बात रखी.
जनसंवाद के बाद आवेदन देने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी और देखते ही देखते पूरा बंडल बन गया. देखने पर पता चला कि ज्यादातर आवेदन आय प्रमाण पत्र से संबंधित थे, जो 95 लाख, एक लाख, एक लाख बीस हजार के थे जबकि उस गांव में आज भी ज्यादातर लोग भूमिहीन हैं.
उन्हें समझाया गया कि सरकारी अधिकारी कैसे उनके साथ छल कर रहे हैं. लघु उद्यम के लिए सरकार उन्हीं लोगों को दो लाख रूपये का अनुदान देगी जिनकी आमदनी महीने में छ हजार रूपये से कम है. इस तरह से आय प्रमाणपत्र 70 हजार रूपये सलाना से नीचे का बनना चाहिए. अधिकारी ऐसा न कर ऐसी नीति अपना रहे हैं कि न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी. इसीलिए संगठित होकर बिहार बदलने की लड़ाई तेज करनी होगी.
सभा के बाद भोजन हुआ. साथियों ने बताया कि वे सुबह तीन बजे से ही व्यवस्था में लगे हैं. जब हम लोग प्रस्थान करने लगे तो का. वीरेंद्र गुप्ता यह कहना नहीं भूले कि साथी बढ़िया से सफाई करवा दीजिएगा क्योंकि सब कुछ मंदिर परिसर में हो रहा था.
यात्रा में शुरू से लेकर अंत तक इंसाफ मंच के जिला सदर अख्तर इमामए इंकलाबी नौजवान सभा के अध्यक्ष फरहान रजा व अन्य कई साथी शामिल थे. पहले दिन पोखरिया गांव में रात का ठहराव था. रात्रि 8 बजे जब हम वहां पहुंचे, लोग टेंट, माइक व रोशनी की व्यवस्था कर हमारा इंतजार कर रहे थे. चाय पीते हुए चर्चा हुई और फिर जन संवाद. यहां भाजपा के साम्प्रदायिक अभियान को केन्द्र कर बात रखी गई, खासकर गिरिराज सिंह की सीमांचल यात्रा और उनके जहरीले बयानों कीण. रहने, ठहरने व खाने की सारी व्यवस्था भी एक मुस्लिम साथी के घर पर ही थी. आगे मरजदवा, व वैशखवा में भी ऐसा ही था. मरजदवा में एक मार्केट परिसर में जहां भोजन व्यवस्था थी, हम एक चिकित्सक साथी की क्लीनिक में बैठे जहां कई लोगों ने अपना बीपी चेक करवाया और वजन भी लिया. का. सुनील राव का बीपी लो हो गया था, उनके लिए कुछ दवाइयों की भी व्यवस्था की गई. वैशखवा में भी हम रात्रि 8 बजे पहुंचे लेकिन इसके बावजूद सैकड़ों लोग सड़क के दोनों ओर और पीछे स्कूल के ग्राउंड में खड़े होकर नेताओं को सुनते रहे. रास्ते में लोगों के उल्लसित होकर मिलने जुलने से भी यात्रा के स्वागत का अहसास हो रहा था.
सातवें दिन, हमेन चकिया में पेट्रोल पम्प के पास स्थित एक होटल में खाना खाया. पेट्रोल पंप के मालिक और उनके साथी एक आरजेडी नेता ने नेताओं का गर्मजोशी से स्वागत किया और उनको कार्यालय में बैठाकर लगभग दो घंटे बातें करते रह – देश व राज्य के मौजूदा हालात, पुराने दिन, इंसाफ मंच बनने की पृष्ठभूमि और पूर्वी चम्पारण में भी इंसाफ मंच के निर्माण की योजना पर. का. शबनम खातून पुर्वी चम्पारण जिले से मुजफ्फरपुर तक पैदल चलीं. उनका बेटा जीशान भी साथ चला फिर बुखार आने की वजह से लौट गया और मुजफ्फरपुर में पुनः शामिल हुआ.
मुजफ्फरपुर में पार्टी नेता व आरवाईए के राष्ट्रीय अध्यक्ष का. आफताब आलम ने, जो अपने जिले में यात्रा का नेतृत्व कर रहे थे, सीमा पर जिले के सभी साथियों के साथ हमारा स्वागत किया. वे आगे भी हमारे साथ चलते रहे. 9वें दिन हम तीन महिलाएं एक मुस्लिम साथी के घर ठहरीं. उनके घर की महिलाएं कहीं बाहर गई थीं. वे पहले सीपीआई में थे. उनकी मेहमानवाजी के हम कायल हो गए.
चौथे दिन रात्रि आठ बजे यात्रा छपवा पहुंची. यह मोतिहारी जिले के सुगौली प्रखंड में है. यहां का. प्रभुदेव यादव के नेतृत्व में बुके व गमछा देकर यात्रियों को सम्मानित किया गया. यहां विद्यालय रसोइया संघ के सचिव का. दिनेश प्रसाद कुशवाहा व नेता भोला साह भी उपस्थित थे. यहीं से यात्रा में रसोइया संघ की भूमिका व भागीदारी शुरू हुई. अगले पड़ाव झखिया मध्य विद्यालय में दोपहर के भोजन की व्यवस्था थी. वहां लगभग बीस रसोइया उपस्थित हुईं और उनमें से दस आगे की यात्रा में भी शामिल हुईं और उनमें से तीन तो मातिहारी तक साथ रहीं. संघ की जिला अध्यक्ष कुमान्ती देवी भी एक दिन हमारे साथ रहीं. छविलाल महतो, गजेंद्र साहनी, शंभु शरण व कुछ अन्य रसोइया साथी यात्रा के आयोजन में लगे. मोतिहारी के बाद कांटी तक रसोइया संघ के अपेक्षाकृत अधिक प्रभाव वाले इलाके में जगह जगह रसोइयों का जत्था यात्रा में शामिल भी होता रहा. एक महिला रसोइया साथी ने बताया कि उनको 22 महीनों में दो बार ही मानदेय मिला है. अब तो बिहार सरकार का रोना है कि केन्द्र अपने हिस्से की धनराशि नहीं दे रही है तो वह मानदेय कहां से दे? दशहरा, दिवाली, छठ जैसे पर्व के समय पर भी रसोइयों के मानदेय का भुगतान नहीं किया गया. रसोइयों ने कई जगहों पर का. विरेंद्र गुप्ता को अपनी समस्याओं से सम्बन्धित मांगपत्र भी सौंपा. पांच दिन विद्यालयों में यात्रा का ठहराव हुआ जहां न सिर्फ विद्यालय रसोइयों बल्कि रात्रि प्रहरियों ने भी यात्रा को यथासंभव सहयोग किया. उनके बीच योजनाबद्ध तरीके से काम करके इन इलाकों में पार्टी विस्तार का काम कर सकती है.
यात्रा के दौरान होने वाले जन संवाद को आमतौर पर राजद, सीपीआइ व कांग्रेस के नेता भी शामिल हुए. कई सीपीआइ नेताओं ने न केवल यात्रा का स्वागत किया बल्कि सभायें भी आयोजित करवाईं. एक जगह तो सीपीआइ के आधार के नौजवानों ने पटाखे छोड़े. छठे दिन महुंआवां में जहां एक रसोइया नेता की रिश्तेदारी थी और जो आरजेडी का आधार था, ठहराव हुआ. वहां भूमि संघर्ष, जमीन व बटाईदारी सम्बंधी कानूना व अन्य मुद्दों पर सारगर्भित विचार-विमर्श हुआ. सभी लोग का. लंबी थकान के बाद इतनी रात को पहुंचे लोग भी का. वीरेन्द्र गुप्ता को मंत्र-मुग्ध होकर सुन रहे थे. राजद के कई नेता हमें पेट्रोल पंप तक छोड़ने भी आए और कई लोग कुछ दूर तक चलते भी थे. पूरी यात्रा के दौरान राह चलते लोग फोटो खींचते और उनमें से कई सेल्फी भी लेते.
11 दिन चली इस पदयात्रा में तय हुआ था कि कम से कम 30 लोगों का स्थाई जत्था हो जिनमें दस महिलाएं और दस युवा अवश्य हों. हमारे एक सौ के जत्थे में 16 अक्टूबर को 13 महिलाएं चलीं थीं. का. ललिता अपनी बहू की बीमारी की वजह से पहले ही दिन लौट गईं. बगहा की तीन महिलाएं जो चार साल पहले पाटी से जुड़ी थीं और जिनमें से एक पहले एक एनजीओ में काम करती थीं, वैशाखवा से लौट गईं. बेहरा के पार्टी कार्यालय से जुड़ीं का. शांति देवी छपवा से लौट गईं. शबनम जी मोतिहारी के बाद हमारे साथ जुडीं. तीन महिलाएं हीं हमारे साथ रहीं जुड़ते-बिछड़ते इन महिला साथियों से बात कर अनुभव हुआ कि वर्गीय आधार पर पार्टी से जुड़ी इन महिला साथियों को हमारे महिला आंदोलन के मुद्दों से समग्र रूप से परिचित कराने के लिए कठिन-कठोर मेहनत की जरूरत है.
पहले दिन की यात्रा 27 किलोमीटर की थी. बिना विश्राम किए चलते रहने के बाद लोगों के पैरों में छाले उग आए. रात्रि पड़ाव पर वे गर्म पानी से पैर सेंकते, अपनी मरहम-पट्टी करते, खाते-सोते और कुछ लोग गाना भी गाते और अगली सुबह नाश्ता-पानी कर अगले पड़ाव के लिए चल पड़ते-यात्रा के दौरान प्रचार वाहन पर बजने वाले ‘बदलो बिहार, बदलो बिहार’ और अन्य गाने न केवल पदयात्रा साथियों में जोश पैदा करते थे, बल्कि अगल-बगल से चल व गुजर रहे लोगों में भी हलचल पैदा करते थे. युवा व कई बुजुर्ग साथी भी इन गानों पर झूमते-थिरकते और सबका उत्साह बढा़ते.
“चले चलो दिलो में घाव ले के भी चले चलोए चलो लहूलुहान पांव ले के भी चले चलो” – यात्रा के दौरान जनगीतकार ब्रजमोहन की इन पंक्तियों ने जहां अपनी सार्थकता ग्रहण की, वहीं बिहार को बदल डालने, एक न्यायपूर्ण समाज और राज बनाने का संकल्प भी आकर ग्रहण करता रहा. इस यात्रा के समापन के मौके पर पटना के मिलर स्कूल मैदान में आयोजित न्याय सम्मेलन ने इस संकल्य को और पुख्ता बनाते हुए यह ऐलान ही कर दिया कि – ‘चलते भी चलो कि अब डेरे मंजिल पे ही डाले जायेंगे.’