- मनोज भक्त
भाजपा झारखंड में विधानसभा चुनाव के लिए अपने चाल-चरित्र-चेहरे के साथ कूद पड़ी है. चाल है दूसरी पार्टियों के नेताओं की खरीद-फरोख्त. चरित्र है सांप्रदायिक उन्माद तैयार करना और उसका चेहरा है हिमंत बिस्वशर्मा. मीडिया भाजपा के चाल-चरित्र-चेहरे पर फिदा है. बांगलादेशी घुसपैठियों का मुद्दा और पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन एवं लोबिन हेम्ब्रम के भाजपा में शामिल होने के शोरगुल में झारखंड का हर सवाल दब-सा गया है. हेमंत सोरेन की महागठबंधन सरकार अपनी कल्याणकारी योजनाओं मइयां सम्मान और आबुआ आवास के जरिए भाजपा को जवाब देना चाहती है. इन योजनाओं की ओर बड़ी संख्या में लाभुक आकर्षित हैं और इनमें शामिल हो रहे हैं. लेकिन क्या यह भाजपा के सुनियोजित हथकंडों का कारगर जवाब होगा? झारखंड में सक्रिय अधिकार संगठनों की संयुक्त पहल ‘लोकतंत्र बचाओ मोर्चा’ ने आगामी विधनसभा चुनाव में भाजपा के डबल बुलडोजर सरकार बनाने की कोशिश को नाकाम करने के जन आह्वान के साथ-साथ हेमंत सरकार से लंबित वादों को पूरा करने की अपील की है. मोर्चा ने भाजपा से सवाल किया है कि खतियान आधारित स्थानीयता और पिछड़ों के लिए 27% आरक्षण पर उसकी चुप्पी क्यों है?
मीडिया कर्मी व पत्रकार सुरेंद्र सोरेन का कहना है कि भाजपा-आजसू गठबंधन और झामुमो महागठबंधन प्रत्येक की 25-30 सीटें तयशुदा हैं और 5 से 10 सीटों को हथियाने की लड़ाई है. भाजपा आदिवासी सुरक्षित सीटों को हासिल करने के लिए हर कोशिश कर रही है. चंपाई और लोबिन के भाजपा में चले जाने से कम से कम इन दो सीटों पर भाजपा का पलड़ा भारी हुआ है. गत लोकसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो राज्य के सभी आदिवासी सुरक्षित सीटों से भाजपा को हाथ धोना पड़ा था और अन्य सीटों पर उसके वोटों के प्रतिशत में गिरावट दिखाई पड़ी थी. वरिष्ठ पत्रकार फैसल अनुराग मानते हैं कि हेमंत सरकार के सामने एंटी इंकम्बेंसी का मसला है. मइयां सम्मान या आबुआ आवास योजना से 1 से 2 प्रतिशत वोट तो हेमंत अपने पक्ष में कर सकते हैं लेकिन जरूरत 6 से 7 प्रतिशत वोटों को अपनी ओर करने की है. हेमंत झारखंड के सवालों से मोदी सरकार को घेर कर ही यह कर सकते हैं.
भाजपा आदिवासियों के लिए सरना कोड बनाने का विरोध करती है. भाजपा जाति जनगणना का विरोध करती है. मोदी सरकार ने देश की जनगणना को भी रोक दिया है. अब भाजपा संताल परगना में बंगलादेशी घुसपैठियों के जरिये डेमोग्राफी चेंज होने का दावा कर रही है. झारखंड उच्च न्यायालय ने घुसपैठ की सुनवाई के दौरान शपथ पत्र प्रस्तुत नहीं करने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना भी की. इस संवेदनशील मसले पर व्यस्थित निगरानी और अध्ययन करने की जरूरत है. मोदी सरकार इन जिम्मेवारियों से भागती रही है. घुसपैठ के सवाल को उठा कर महज सांप्रदायिक उन्माद तैयार करने और चुनावी हित साधने के अतिरिक्त भाजपा का और क्या मकसद हो सकता है?
झारखंड निर्माण के बाद संताल परगना में केप्टिव खदान के तौर पर बड़े-बड़े कॉरपोरेटों को नीलामी में कोल ब्लॉक मिला है. रघुवर दास की डबल इंजन सरकार के जरिये संताल परगना काश्तकारी अधिनियम को ताक पर रख कर अडानी को पूरा एक इलाका ही सौंप दिया गया, जहां पानी, कोयला और जमीन पर उसका एकछत्र अधिकार है. संताल परगना में निजी पूंजी और खनन के लिए बड़े पैमाने पर अधिग्रहण और विस्थापन जारी है. इसने सचमुच ही संताल परगना में आदिवासियों के अस्तित्व के लिए संकट बढ़ा दिया है. यह एक बड़ा मुद्दा है. बड़े पैमाने पर निजी कोयला खनन से संताल परगना के आदिवासियों-मुलवासियों के लिए पैदा हो रहे संकट पर भाजपा पर्दा डाल रही है.
चुनाव के लिए किसी एक मुद्दे की बात की जाए, तो राज्य का सबसे बड़ा मुद्दा रोजगार का है. भाकपा(माले) विधायक विनोद सिंह कहते हैं, ‘अभी हाल में उत्पाद विभाग में भर्ती के दौरान प्रतिस्पर्धा दौड़ के बाद 11 अभ्यर्थियों की मौत हो चुकी है. लगभग छः सौ से अधिक अभ्यर्थी अस्पताल में हैं. बेरोजगारी की स्थिति का अंदाजा राज्य में हो रहे पलायन के जरिए भी लगाया जा सकता है. हजारीबाग, गिरिडीह, बोकारो और ऐसे अनेक जिले हैं जहां बाहर काम करते हुए झारखंड युवा दुर्घटना ग्रस्त होते हैं और कई की मौत हो जाती है. हर सप्ताह इस तरह के मामले आते रहते हैं. रोजगार का मुद्दा चुनाव पर असर डालेगा. झामुमो के 5 लाख प्रति वर्ष रोजगार के वादे को भाजपा कभी-कभार उछालती है लेकिन मोदी सरकार के 2 करोड़ प्रति वर्ष रोजगार के वादे का हश्र युवा देख रहे हैं. सवाल यह है कि औद्योगीकरण, खनन, बढ़ता निजी निवेश और झारखंड के प्राकृतिक संसाधनों के अभूतपूर्व दोहन के बावजूद रोजगार के अवसर क्यों नहीं बढ़ रहे हैं. मोदी सरकार का सबसे बड़ा झूठ है – रोजगार. यह मुद्दा क्यों नहीं बन पा रहा है?
पत्रकार सुरेंद्र लाल सोरेन मुद्दों को लेकर हेमंत सोरेन के रूख से निराश हैं. हेमंत सोरेन 2019 के पहले स्थानीयता, बेरोजगारी, विस्थापन और झारखंडियत के सवाल उठाते थे. हेमंत केंद्र से झारखंड के आर्थिक हिस्से और केंद्र के बकाये की मांग कर रहे हैं. लेकिन दूसरे सवालों पर वे चुप हैं. भाषा, खतियान और रोजगार के सवाल को लेकर उभरे जयराम महतो और उनकी पार्टी के बारे में सभी बात कर रहे हैं. वे आनेवाले विधानसभा चुनाव को प्रभावित करेंगे. इसका सर्वाधिक असर उत्तरी छोटानागपुर में दिखाई पड़ेगा.
कुर्मी जाति पर जेबीकेएसएस (अब जेएलकेएम) का खासा प्रभाव है. विधानसभा चुनाव में वे भाजपा गठबंधन को ज्यादा नुकसान पहुंचाएंगे या सत्तासीन महागठबंधन को – यह कोई निश्चित नहीं है. लेकिन जिन मुद्दों को लेकर वे उभरे, उन पर वे लंबे समय से चुप हैं. इन मुद्दों का इस्तेमाल अब तक वे हेमंत सरकार के खिलाफ करते रहे हैं. मोदी सरकार के प्रति उनकी चुप्पी झारखंडियत के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को ही संदिग्ध करती है. झारखंड में तीन टाइगर मशहूर हैं – भाजपा विधायक ढुल्लू महतो जो कोल माफिया और कोयलांचल में अपराध के लिए जाने जाते हैं. दूसरे टाइगर चंपाई सोरेन हैं जिन्होंने पल्टी मारते ही सहजता से संघ की भाषा सीख ली है. तीसरे टाइगर जयराम महतो हैं जिनके बारे में राजनीतिक हलकों में कयास लगाया जा रहा है कि समय पर वे भी भाजपा के सर्कस में नजर आएंगे.
मीडिया भाजपा को चुनावी मैदान में एक के बाद दूसरा गोल करता पेश कर रहा है. फैसल अनुराग कहते हैं कि चुनाव को झारखंड के सवाल अपनी दखल में लेंगे. वे खत्म नहीं हो गए हैं. भाजपा के खिलाफ झारखंड की राजनीतिक-सामाजिक ताकतें असरदार साबित होंगी. उत्तरी छोटानागपुर की दो प्रभावी वाम शक्तियों – मासस और भाकपा(माले) का विलय इस लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है. इन दोनों ही पार्टियों की आज के समय में चुनाव पर भी मजबूत पकड़ है और पांच से छः सीटों पर इनकी दमदार उपस्थिति है और लगभग आधा दर्जन सीटों को ये निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकती हैं. फैसल अनुराग कहते हैं कि राय बाबू (का. एके राय) ने एक अलग दौर में झारखंड आंदोलन के साथ मूलवासी और मजदूर आंदोलन की एकता का सफल प्रयोग किया. आज की भिन्न स्थितियों में उस प्रयोग को विकसित करने की जरूरत है और यह विलय इस लिहाज से महत्वपूर्ण है. मासस के केंद्रीय अध्यक्ष और पूर्व विधायक का. आनंद महतो कहते हैं कि मासस-माले के विलय से कॉ. एके राय के विचार और उनकी विरासत को मजबूती मिलेगी और यह आज की परिस्थिति की जरूरत है. भाकपा(माले) विधायक विनोद सिंह कहते हैं कि विलय उत्तरी छोटानागपुर पर गहरा असर डालेगा और इस विलय के अंदर भाजपा को झारखंड में अपनी पराजय दिख रही है.
भाकपा(माले) महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य मासस-माले विलय का झारखंड की राजनीति पर व्यापक असर की संभावना देखते हैं. विलय के जरिए घटित हो रही मेहनतकश समुदाय की एकता झारखंड को संघी कॉरपोरेट फासीवाद की प्रयोगशाला बनाने की साजिश के खिलाफ झारखंडियों के संघर्ष को मजबूत करेगी. कोयला के राष्ट्रीयकरण की लड़ाई में का. एके राय द्वारा मजदूरों के ऐतिहासिक नेतृत्व की चर्चा करते हुए का. दीपंकर कहते हैं कि आज राष्ट्रीयकरण की नीति को मोदी पलट रहे हैं और खनिज, सेवा, उद्योग और तमाम राष्ट्रीय प्राकृतिक संपदाएं क्रोनी कॉरपोरेट के हवाले कर रहे हैं. राय बाबू की विरासत समृद्ध करने का मतलब है आज की स्थितियों में निजीकरण के खिलाफ मजबूत और व्यापक मजदूर आंदोलन खड़ा करना.
2019 के विधनसभा चुनावों में आदिवासी-मूलवासी समुदायों, स्कीम वर्कर्रों और युवाओं के आंदोलनों ने भाजपा के खिलाफ स्पष्ट लकीर खींच दी थी. भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा. इसके बावजूद उसने भुखमरी, कॉरपोरेट अधिग्रहण, पांचवीं अनुसूची का उल्लंघन, सीएनटी-एसपीटी के साथ छेड़छाड़ और भ्रष्टाचार के पक्ष में डबल इंजन सरकार की करतूतों के लिए माफी नहीं मांगी. क्या लकीर धुंधली हो चुकी है?
भाकपा(माले) महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य कहते हैं कि झारखंड विस चुनाव कुछ सीटों के संतुलन बदलने भर का संघर्ष नहीं है. झारखंड खनिज संपन्न एक प्रमुख राज्य है. छत्तीसगढ़ और ओडिशा में विधानसभा चुनावों में अपनी जीत के बाद भाजपा अब झारखंड जीतकर अपना ‘अडानी त्रिकोण’ पूरा करने के लिए बेताब है. इसके लिए वह झामुमो के नेताओं तोड़ रही है. मोदी सरकार ने पहले ही बांग्लादेश को बिजली निर्यात करने के लिए अडानी को मुक्त विशेष आर्थिक क्षेत्र के रूप में गोड्डा पावर प्लांट उपहार में दिया है. यह डबल इंजन सरकार के दौर में हुआ है. डबल इंजन सरकार का सीधा मतलब है राज्यों के संवैधानिक संघीय अधिकारों का दमन. कॉरपोरेट बुलडोजर के जरिए भाजपा झारखंड में इसके विशिष्ट अधिकारों और कानूनों को ध्वस्त करना चाहती है. भाजपा झारखंड में अब डबल बुलडोजर सरकार बिठाना चाहती है. लिहाजा भाजपा के खिलाफ हर सीट पर संघर्ष है.
का. दीपंकर भट्टाचार्य कहते हैं कि पिछली दफा यदि आंदोलनों ने चुनाव के नतीजे लिखे थे तो इसबार चुनाव को फासीवाद के खिलाफ आंदोलन में बदलना होगा. हाल में सर्वाच्च न्यायालय ने खनिज-उत्खनन और खनिज पर राज्यों की रॉयल्टी के अधिकार को स्वीकार किया है. झारखंड जैसे राज्य को यह अधिकार मिलना चाहिए ताकि यहां के नौजवानों के लिए रोजगार के बेहतर अवसर का निर्माण किया जा सके. चुनाव को झारखंडियत और मेहनतकश अवाम के अधिकारों को कमजोर करने की भाजपाई मुहिम के खिलाफ प्रतिरोध आंदोलन में बदलना होगा. इंडिया गठबंधन के लिए यह सड़क से लेकर हर सीट पर लड़ी जाने वाली साझी लड़ाई है.
लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव भी असमान धरातल पर लड़ा जाएगा. धनबल और चुनाव आयोग की मेहरबानी से समृद्ध भाजपा केवल चंपाई सोरेन और लोबिन हेम्ब्रम जैसे कुछ जाने-माने नेताओं को तोड़ कर ही नहीं संतुष्ट बैठेगी. वह हर स्तर पर राजनीतिक भ्रष्टाचार फैलाती है. लेकिन जनता के ठोस सवाल भाजपा की कमजोरी है. इन सवालों को लेकर जनता की सक्रिय गोलबंदी हुई तो हिमंता और शिवराज के सारे सांप्रदायिक दावपेंच और नेताओं की पशुमंडी में खरीद-बिक्री के पैंतरे ढीले पड़ जाएंगे. जनता की आक्रामक लामबंदी और अपनी अंदरूनी एकता के लिए इंडिया गठबंधन को तैयार होना होगा. भाजपा की चाल है कि वह चुनाव को मुद्दा विहीन कर दे और विपक्ष को उलझाए रखे. दस वर्षों से मोदी सरकार द्वारा झारखंड के साथ जारी अन्याय के लिए इंडिया गठबंधन भाजपा को जनता के कठघरे के अंदर कर पाता या नहीं, यह भविष्य की बात है.