वर्ष - 33
अंक - 30
20-07-2024

लोकसभा चुनाव के कुछ सप्ताह बाद ही तेरह विधानसभा सीटों के लिए उप-चुनाव हुए और भाजपा इनमें से केवल दो सीटों पर काफी कम मतों के अंतर से जीत पाई. उप-चुनाव के ये नतीजे यकीनन 2024 के जनादेश की ही संपुष्टि करते हैं. इन नतीजों का महत्व इस दृष्टिकोण से भी बढ़ जाता है कि मोदी शासन इस जनादेश की भावना को उद्दंडतापूर्वक खारिज कर रहा है जैसा कि सरकार के रवैये और घोषणाओं तथा जनता को डराने-धमकाने के लिए हो रहे माॅब लिंचिंग और बुलडोजर विध्वंस की ताजातरीन घटनाओं से परिलक्षित हो रहा है.

इन तेरह विधानसभा सीटों में से छह सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला था और गौरतलब है कि कांग्रेस को सीधे मुकाबले की इन सीटों में चार पर सफलता मिली है. पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा उप-चुनावों पर भी भाजपा का दांव लगा हुआ था जहां उसने सभी चार सीटें शासक टीएमसी के हाथों गंवा दी. इनमें से तीन सीटों पर 2021 के चुनाव में भाजपा को जीत मिली थी, और 2024 के संसदीय चुनाव में भी भाजपा को संबंधित लोकसभा सीटों पर कामयाबी मिली थी.

उप-चुनाव के सबसे अहम नतीजे तो उत्तराखंड से आए हैं. एक प्रमुख हिंदू तीर्थस्थल और काॅरपेरेटों द्वारा हिमालयी पर्यावरण के खतरनाक विनाश की सबसे ठोस मिसाल बद्रीनाथ में एक स्थानीय कांग्रेसी विधायक के भाजपा में शामिल होने के चलते वहां उप-चुनाव कराना पड़ा था. भाजपा के ही टिकट पर लड़ते हुए उस दलबदलू को मतदाताओं ने करारा जवाब दिया. हरिद्वार के एक दूसरे विधानसभा क्षेत्र में बिल्कुल पक्षपाती प्रशासन द्वारा मुस्लिम वोटरों को खुलेआम हैरान-परेशान किये जाने के बावजूद वहां से कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवार की जीत काफी उत्साहजनक है.

‘इंडिया’ के पक्ष में बढ़ता चुनावी जन-समर्थन वास्तव में बदलाव की मजबूत जनाकांक्षा को ही प्रतिबिंबित करता है. दस वर्षों के मोदी निजाम ने अभूतपूर्व काॅरपोरेट लूट, सांप्रदायिक नफरत और क्रूर दमनकारी शासन को जन्म दिया है – यह ऐसा आर्थिक व सामाजिक विनाश है जिसने जीवन के हर क्षेत्र में भारी नुकसान पहुंचाया है. मणिपुर विगत एक साल से जल रहा है; शिक्षा-परीक्षा प्रणाली में भ्रष्टाचार इस कदर व्याप्त हो गया है कि आज हर परीक्षा पर रद्द हो जाने अथवा आगे टल जाने का खतरा मंडराता रहता है; भाड़े में लगातार वृद्धि के बावजूद आम मुसाफिरों के लिए रेल यात्रा निरंतर असुरक्षित होती जा रही है; और बिहार जैसे ‘डबल इंजन चालित’ राज्य में भी पुलों का धंसना आम बात हो गई है. अफरातफरी ही आज की व्यवस्था बनती जा रही है.

अपनी पहली दो पारियों में जिस तरह से मोदी इस अफरातफरी को ‘स्व-घोषित’ विश्वनेता के बतौर अपनी विदेश यात्राओं के जरिये ढंकने की कोशिश कर रहे थे, अपनी तीसरी पारी भी उन्होंने जून में इटली यात्रा और जुलाई में रूस व ऑस्ट्रेलिया दौरे के साथ शुरू की है. रूस में मोदी के पहुंचने के कुछ घंटे पहले ही युक्रेन पर रूस ने भारी बमबारी की थी जिसमें कीव के शिशु अस्पताल में कई बच्चों समेत कम-से-कम 41 लोगों की मौत हो गई थी. मोदी का प्रचार तंत्र युक्रेन पर रूसी युद्ध को ‘रोकने’ के लिए जोर-शोर से मोदी की वाहवाही कर रहा है, लेकिन सच तो यह है कि भारत रूस से कच्चे तेल का आयात कर इस युद्ध को वित्तीय सहायता ही दे रहा है. और जहां रियायती तेल आयात का कोई फायदा आम भारतीय उपभोक्ताओं को नहीं मिल पा रहा है, वहीं मुकेश अंबानी की रिलायंस कंपनी परिशोधित पेट्रोलियम उत्पादों को वापस युरोप में निर्यात करके भारी मुनाफा बटोर रही है.

एक ओर जहां मोदी की विदेश नीति शांति की वैश्विक आकांक्षा का मखौल उड़ाते हुए किसी भी चीज से ज्यादा वर्तमान में दुनिया के सबसे अधिक जंगखोर शासनों – इजरायल और रूस – के साथ दोस्ती को तरजीह दे रही है, वहीं मोदी की घरेलू नीतियां जनता की आजीविका और पर्यावरणीय संरक्षा की कीमत पर क्रोनी पूंजीवाद के हितों को लगातार बढ़ावा देती जा रही हैं. भारत में काॅरपोरेट शक्ति का सर्वाधिक भोंड़ा प्रदर्शन अंबानी वंश के सबसे छोटे वारिस के विस्तारित वैवाहिक समारोह के रूप में सामने आया. इस वर्ष की शुरूआत में सरकार ने विवाह-पूर्व आयोजनों को सहज बनाने के लिए जामनगर को अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बना दिया, और अब जुलाई माह में महाराष्ट्र सरकार ने इस विवाह समारोह के लिए मुंबई की कुछ सड़कों पर आवागमन ही ठप्प कर दिया था.

2024 के अपने एक चुनावी भाषण के दौरान नरेंद्र मोदी ने चर्चा की थी कि काले धन की बोरियां टेंपों पर लादकर अंबानी मुख्यालय से कांग्रेस दफ्तर में पहुंचाई गई थीं. बहरहाल, वामपंथ के अलावा यह केवल कांग्रेस नेतृत्व – अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे और गांधी-नेहरू परिवार – ही था जिसने शाहखर्ची के इस भोंड़े समारोह से अलग रहने का सम्मान अर्जित किया. यह बहुत दुखद है कि जब भारत के किसान कृषि के काॅरपोरेट अधिग्रहण के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं और समूचा देश ऐतिहासिक स्तरों की आर्थिक विषमता से कराह रहा है, ऐसी स्थिति में भारत के सबसे धनी परिवार का विवाहोत्सव जनता पर इस तरह लाद दिया गया, मानो कि वह सर्वोच्च राष्ट्रीय महत्व की कोई घटना हो, और विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन की अनेक पार्टियों के नेताओं ने भी अपनी उपस्थिति जताकर काॅरपोरेट शक्ति कि इस भोंड़े प्रदर्शन पर अपनी मुहर लगा दी.

अंबेडकर ने आर्थिक व सामाजिक विषमता को हमारे संसदीय लोकतंत्र का सबसे बड़ा वैरी बताया है. आज भारत में आर्थिक विषमता का स्तर औपनिवेशिक युग से भी बदतर है. संपत्ति और आय के वितरण के लिहाज से आज के सबसे धनी 1% लोग 40.1% संपत्ति और 22.6% आमदनी के स्वामी बने बैठे हैं. प्रतिगामी कर प्रणाली इस चरम असमानता को और मजबूत ही बनाती है. कुल जीएसटी का लगभग तिहाई हिस्सा सबसे निचले पायदान की आधी आबादी से और एक तिहाई हिस्सा बीच की 40% आबादी से आता है, जबकि सबसे धनी 10% लोग महज 3-4% जीएसटी ही भुगतान करते हैं. फिर भी, संपत्ति और उत्तराधिकार कर के मुद्दे को 2024 के चुनावों के दौरान स्वयं नरेंद्र मोदी ने तोड़-मरोड़ कर विकृत बना दिया, ताकि यह झूठा डर पैदा किया जा सके कि इस तरह का कोई भी विचार गरीबों के खिलाफ साजिश होगा.

अब हम महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में विधानसभा चुनाव के आगामी दौर की तैयारी कर रहे हैं, तो यह जरूरी है कि हम सामाजिक समानता व न्याय के लिए लड़ाई तथा आर्थिक समानता व न्याय के लिए चिंता व संघर्ष को एकल समग्र के बतौर समझने का प्रयास करें. अंबेडकर अपनी खुद की राजनीतिक विकास-यात्रा के दौरान अपने विचारों व संघर्षों में समानता और न्याय के इन दोनों पहलुओं को समन्वित करते रहे थे. और, यह समन्वय भारत के संविधान की प्रस्तावना में परिलक्षित होती है. हम आशा करते हैं कि ‘इंडिया’ गठबंधन की चुनावी सफलता समानता व न्याय की सामग्रिक राजनीति को बुलंद करने और सभी मोर्चों पर फासीवादी अतिक्रमण के त्रिशूल – काॅरपोरेट लूट व जनता की आजीविका तथा कल्याण पर हमले, सांप्रदायिक नफरत तथा भारत की विविधता व गंगा-यमुनी संस्कृति पर आक्रमण, और राजनीतिक स्वतंत्रता के क्षरण तथा संविधान की बुनियादी भावना व मूल्यों पर हमले – का प्रतिरोध करने में अधिकाधिक शक्तियों को प्रेरित करेगी.