वर्ष - 32
अंक - 31
30-07-2023

मणिपुर में मेती लोगों की भीड़ द्वारा दो कुकी महिलाओं को निर्वस्त्र का घुमाए जाने और उनपर यौन हमले करने का जो वीडियो वायरल हुआ है, उसने मणिपुर में कानून का राज के पूर्ण विध्वंस की तस्वीर पूरी दुनिया के सामने ला दी है. वह घटना उस राज्य में हिंसा भड़कने के दूसरे ही दिन 4 मई को स्थानीय पुलिस की उपस्थिति में हुई थी. इस वारदात की एफआईआर 18 मई को दर्ज की गई थी, और दो महिला कार्यकर्ताओं तथा ‘नाॅर्थ अमेरिकन मणिपुर ट्राइबल एसोसिएशन’ द्वारा 12 जून को राष्ट्रीय महिला आयोग के पास ई-मेल से एक शिकायत भी भेजी गई थी. लेकिन जब यह वीडियो वायरल हुआ और सर्वोच्च न्यायालय ने इस अपराध पर स्वतः संज्ञान लिया, तब जाकर भाजपा-नीत डबल इंजन की सरकार हरकत में आई और कुछ गिरफ्तारियों की खबर मिल रही है.

वीडियों के वायरल होने और सर्वोच्च न्यायालय की चेतावनी के बाद ही नरेंद्र मोदी की जुबान पहली बार मणिपुर में लगातार हिंसा के 79 दिनों बाद खुली, जब उस हिंसा में 150 से ज्यादा लोग मारे जा चुके थे और 50 हजार से ज्यादा लोगों का विस्थापन हो चुका था, 200 से अधिक चर्चों में अगलगी और विध्वंस तथा पुलिस थानों से बड़े पैमने पर हथियारों की लूटपाट हो चुकी थी. बहरहाल, मणिपुर वीडियो पर मोदी द्वारा दर्द व आक्रोश की अभिव्यक्ति महिलाओं की सुरक्षा व मर्यादा के लिए उनके सामान्य-से आह्वान का ही एक हिस्सा थी, क्योंकि उन्होंने बड़ी चालाकी से मणिपुर की घटना को आसन्न चुनाव वाले दो कांग्रेस शासित राज्यों, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में महिलाओं पर हमले की घटनाओं के साथ जोड़ दिया. स्पष्ट है कि यह पूरा प्रयास मणिपुर की घटना को महत्वहीन बना देने और इसे उस संदर्भ से अलग कर देने का है जिसमें ईसाई कुकी-बहुल पहाड़ी जनजाति नस्ली सफाया की राज्य-प्रायोजित मुहिम का दंश झेल रही है.

मणिपुर के मुख्यमंत्री ने घुमा-फिराकर जो तथ्य स्वीकार किए हैं, वे मोदी द्वारा सोच-समझकर बहाए गए घड़ियाली आंसू की पूरी असलियत बता देते हैं. मुख्यमंत्री एन. बीरेंद्र सिंह ने माना है कि महिलाओं पर एक सौ से ज्यादा हमले हुए हैं; जबकि उन्होंने यह भी कहा कि ऐसी वारदातों को प्रकाश में आने से रोकने के लिए ही इंटरनेट को बंद कर दिया गया है! मणिपुर के राज्यपाल ने कहा कि उन्होंने इस किस्म की और इतने बड़े पैमाने पर हिंसा कभी नहीं देखी है, और कि वे केंद्र सरकार को इसकी सूचना देती रही हैं. 4 मई से 28 जून के बीच, हिंसा के आठ सप्ताह के अंदर, 6000 एफआईआर दर्ज कराए गए हैं. अब यह विदित है कि एक घंटे की भयावह वारदात का जो वीडियो क्लिप वायरल हुआ है उसमें मेती-बहुल कोनुंग मानंग इलाके में 21 और 24 वर्ष की दो कुकी बहनों का गैंग रेप और उनकी हत्या करते देखा जा सकता है. पीड़िताओं के पिता, एक ग्रामीण गड़ेरिये, ने 16 मई को एफआईआर दर्ज कराया था, लेकिन अभी तक अपराधियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है.

मणिपुर में शासन के पूर्ण विध्वंस की जिम्मेदारी लेने और वहां शांति बहाल करने के लिए कोई कदम उठाने, यहां तक कि कोई अपील भी जारी करने के बजाय सरकार ट्विटर को धमका रही है कि वह वीडियो क्लिप पोस्ट न करे. भाजपा नेतागण संसद के मानसून सत्र के ठीक पहले उस वायरल वीडियो के जारी किए जाने के समय को लेकर सवाल उठा रहे हैं. कुछ शरारती न्यूज एजेंसियों ने तो मणिपुर में एक दूसरे मामले में किसी मुस्लिम पुरुष की गिरफ्तारी को निर्वस्त्र घुमाने और यौन हमले वाले वायरल वीडियो मामले में मुख्य आरोपी की गिरफ्तारी के बतौर पेश करके समूचे प्रकरण पर मुस्लिम-विरोधी रंग चढ़ाने की भी कोशिश की है. खबरों के मुताबिक, दिल्ली में हुए बलात्कार के एक मामले को सोशल मीडिया पर मणिपुर में मेती महिला पर हमला के बतौर प्रचारित कर झूठी खबर फैलाई गई थी, और ऐसा माना जाता है कि इसी झूठी खबर ने 4 मई के दिन कुकी महिलाओं पर उस भयावह हमले को अंजाम दिया था. कोई भी यह आसानी से देख सकता है कि कुकी महिलाओं पर हमले के आरोपी के बतौर मुस्लिम अपराधी को खड़ा कर देने वाली उस झूठी खबर के पीछे कैसी नापाक मंशा छिपी हुई थी.

मोदी सरकार ने पिछले तीन महीने से मणिपुर को जलने क्यों छोड़ दिया? कुछ विश्लेषक मानते हैं कि सरकार उस राज्य में जनसांख्यिकीय बदलाव लाना चाहती है ताकि कुकी समुदाय को मणिपुर के पहाड़ी जंगली इलाकों में जमीन के उनके अधिकार से वंचित किया जा सके, और उसके नीचे के दुर्लभ खनिजों को खनन कंपनियों के हाथों सौंपा जा सके तथा मणिपुर को काॅरपोरेट लूट की प्रयोगस्थली बना दिया जाए. ऐसा लगता है कि मणिपुर सरकार लगातार कुकी लोगों को म्यांमार से आए घुसपैठिया बताकर वहां स्थायी किस्म की नस्ली दरार और ध्रुवीकरण पैदा करना चाहती है, ताकि मणिपुर को असम की ही तरह आक्रामक बहुसंख्यावाद की दूसरी प्रयोगशाला बना दिया जाए. बांटो और राज करो की संघ-भाजपा राजनीति और अल्पसंख्यक-विरोधी नफरती मुहिम तथा भीड़ हिंसा की संस्कृति को बढ़ावा – जिसने भारत को नफरत व आतंक का गणतंत्रा बना दिया है – मणिपुर को अपनी ऐतिहासिक सामाजिक दरारों व जटिलताओं के साथ विस्फोटक स्थिति की ओर धकेल रही है. 2017 में मणिपुर में भाजपा के सत्ता में आने के पहले नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर यही आरोप लगाया था कि वह मणिपुर में शांति बहाल करने में असफल हो जाने की वजह से ही शासन करने का अधिकार खो बैठी है. आज समय आ गया है कि मोदी उसी उसूल को अपनी डबल इंजन वाली सरकारों पर लागू करें और मणिपुर के मुख्यमंत्री तथा केंद्रीय गृह मंत्री से इस्तीफा मांग लें.

2002 में गुजरात से लेकर 2006 में खैरलांजी, 2008 में कंधमाल और अब 2023 में मणिपुर तक महिलाओं की देह लक्षित बहुसंख्यावादी हिंसा की जगह बनी रही है – सावरकर ने इसका औचित्य बताते हुए अपनी किताब ‘द सिक्स ग्लोरियस इपाॅक्स ऑफ इंडियन हिस्ट्री’ में बलात्कार को एक वैध राजनीतिक औजार कहा है. बिलकिस बानो के मामले में भी देखा जा सकता है कि ऐसे मामलों में न्याय की लड़ाई कितनी कठिन और दीर्घकालिक बन जाती है. जहां लंबे और साहसपूर्ण संघर्ष के जरिये बिलकिस बानो ने बलात्कार और हत्या के अपराधियों को सजा दिलाने में सफलता पाई, वहीं मोदी सरकार ने भारत की आजादी की 75वीं सालगिरह के मौके पर उन्हें रिहा करके और संघ ब्रिगेड ने उनका हीरो की तरह स्वागत-सत्कार करके इस पूरे प्रकरण को ही उलट कर रख दिया. इस तथ्य को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि जिस दिन यह वीडियो वायरल हुआ, उसी दिन महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न मामले में बृज भूषण को जमानत दे दी गई, और दुहरे बलात्कार व हत्या के अभियुक्त राम रहीम को सातवीं बार पैरोल पर रिहा किया गया.

ये मणिपुर की महिलाएं ही थीं जिन्होंने थंगजम मनोरमा के बर्बर बलात्कार और हत्या का साहसपूर्ण प्रतिवाद किया था और समूची दुनिया का ध्यान मणिपुर में राज्य दमन की हकीकत की ओर आकृष्ट किया था. कुकी महिलाओं के खिलाफ हिंसा की भयावह सच्चाई को व्यापक जनाक्रोश में तब्दील कर देना होगा ताकि मणिपुर में संसथागत असुरक्षा के मौजूदा राज को खत्म किया जा सके और वहां सच्चाई व समझौता, न्याय और कानून का राज के आधार पर शांति बहाल करने का रास्ता प्रशस्त हो सके. मोदी शासन मणिपुर में राज्य-प्रायोजित हिंसा राज को हल्का बनाने की चाहे जितनी भी कोशिश क्यों न करे, वह राज्य मोदी के भारत में शासन के संपूर्ण विध्वंस और मानवता के बढ़ते संकट को आईना दिखा रहा है. गुजरात 2002 वाजपेई शासन को 2004 में विदा करने की ओर ले गया था; उम्मीद है कि मणिपुर 2023 भारत को जागृत करेगा और 2024 में मोदी के विनाशकारी शासन को खत्म कर देगा.