- पुरुषोत्तम शर्मा
मोदी सरकार के बहु-प्रचारित जन-धन खाते, उज्जवला गैस, 5 किलो फ्री अनाज, आवास, शौचालय और हर घर मुफ्त बिजली-पानी कनेक्शन जैसी योजनाओं से देश के गरीबों को जोड़ने की असलियत से भारत के नीति आयोग ने पर्दा हटा दिया है. इन योजनाओं से जोड़े गए देश के 13.5 करोड़ लोगों को मोदी सरकार ने गरीबी की सीमा से बाहर कर दिया है. भारत के नीति आयोग ने 17 जुलाई 2023 को जारी आंकड़ों में बताया है कि वर्ष 2019 से 2021 के बीच देश में बहुआयामी गरीबी अब मात्र 14.96 प्रतिशत रह गई है. जबकि 2015-16 के बीच जब ये योजनाएं लागू नहीं थीं और कोविड संकट भी नहीं आया था, भारत में बहुआयामी गरीबी 24.85 प्रतिशत थी. राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआइ) लोगों के स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर में अभावों के लिए तय 12 क्षेत्रों को मापता है. इसमें उपरोक्त योजनाओं के लाभार्थी शामिल हो जाते हैं.
गौर करने लायक बात तो यह है कि भारत में गरीबी कम होने के ये आंकड़े उसी समय-काल के हैं जब भूख से बचाने के लिए इसी मोदी सरकार ने देश के 80 करोड़ लोगों को 5 किलो मुफ्त अनाज देने की योजना शुरू की थी. देश के गरीबों को भूख से बचाने के लिए 2020 अप्रैल से शुरू हुई यह योजना अभी नवम्बर 2023 तक के लिए जारी है, क्योंकि सरकार के अनुसार कोविड संकट का असर जनता के इन हिस्सों पर अभी भी बाकी है. यही नहीं, मोदी सरकार द्वारा बताए जा रहे आंकड़ों के अनुसार इन तीन वर्षों में देश में भूख से बचने के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 5 किलो मुफ्त अनाज पाने वालों की संख्या 80 करोड़ से बढ़ कर 81.35 करोड़ पहुंच चुकी है.
नीति आयोग का दावा है कि इस बीच उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा व राजस्थान जैसे राज्यों में गरीबों की संख्या में कमी आई है. जबकि सरकार के ही दावों के अनुसार प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत उत्तर प्रदेश की करीब 20 करोड़ आबादी में से 15.21 करोड़ यानी करीब 76% आबादी 5 किलो मुफ्त अनाज योजना का फायदा उठा रही है. यूपी के बाद इस योजना के दायरे में आने वालों में सबसे ज्यादा विकसित बताया जाने वाला राज्य गुजरात है जिसकी 3.82 करोड़ यानी लगभग दो तिहाई आबादी 5 किलो मुफ्त अनाज लेती है. इसके बाद पंजाब (1.41 करोड़), उत्तराखंड (61.94 लाख), हिमाचल प्रदेश (28.64 लाख), मणिपुर (24.67 लाख) और गोवा (5.32 लाख) का स्थान है जिनकी उपरोक्त आबादी इस योजना का फायदा उठा रही है.
भारत के नीति आयोग की इस हास्यास्पद रिपोर्ट से पूर्व संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और ऑक्सफोेर्ड पाॅवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनीशिएटिव (ओपीएचआई) द्वारा ग्लोबल गरीबी इंडेक्स 2021 जारी किया गया था. ग्लोबल पीएचआई 2021 के अनुसार इस सर्वे में दुनिया के 109 देशों में भारत की रैंक 66वीं है. खुद को दुनिया की उभरती पांचवीं अर्थव्यवस्था और भारत को विश्व गुरु बनाने का ढोल पीटने वाली मोदी सरकार के लिए यह वैश्विक रिपोर्ट उसकी छवि बिगाड़ने वाली थी. ऐसे में इसकी काट करने और वैश्विक रैंकिंग में अपनी स्थिति को कृत्रिम आंकड़ों के जरिये सुधारने के लिए नीति आयोग के जरिये एक ऐसी रिपोर्ट जारी कर दी गयी, जो कहीं से भी विश्वसनीय नहीं है.
जिस रिपोर्ट को आधार बनाकर नीति आयोग ने देश में गरीबों की संख्या में अचानक इतनी बड़ी कमी दिखाई है, वह रिपोर्ट राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (एनएफएचएस-4) पर आधारित है, जिसे वर्ष 2015-16 में किया गया था. एनएफएचएस-4 का उद्देश्य, आवास, स्वच्छता, बिजली, खाना पकाने के प्रावधान, वित्तीय समावेशन, स्कूल में नामांकन, पोषण, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य आदि में सुधार के उपाय करना है. जबकि उसके बाद जारी एनएफएचएस -5 के आंकड़ों के तथ्यात्मक नमूने से प्राप्त प्रारंभिक शोध में स्वच्छ जल, खाना पकाने के साधन, स्वच्छता और बिजली तक लोगों की पहुंच में सुधार के सुझाव दिए गए हैं, जो कि इन क्षेत्रों में अभी भी अभाव का संकेत देते हैं.
जिन बहु-प्रचारित योजनाओं को मोदी सरकार ने गरीबी से बाहर होने का आधार बताया है, उनके आंकड़े भी कम चौंकाने वाले नहीं हैं. 1 मई 2016 को शुरू हुई उज्जवला योजना में 2 मई 2023 तक लाभार्थियों की संख्या 9.59 करोड़ के पार हो गई थी. 2021 से 2022 वित्तीय वर्ष के बीच आइओसीएल, एचपीसीएल और बीपीसीएल ने एक आरटीआई के जवाब में बताया कि इस एक वर्ष की अवधि में 90 लाख उज्जवला कनेक्शन धारकों ने गैस भराई ही नहीं. वहीं एक करोड़ से ज्यादा उज्जवला कनेक्शन धारकों ने साल में सिर्फ एक सिलेंडर भराया. एक अनुमान के अनुसार लगभग दो तिहाई उज्जवला कनेक्शन धारक साल में औसतन 2 सिलेंडर भी भरवाने की स्थिति में नहीं रहते हैं. इसके बाद केंद्र सरकार ने इन लाभार्थियों को 2 सिलेंडर गैस मुफ्त देने की योजना भी शुरू की.
इसी तरह 2015 में शुरू की गई प्रधान मंत्री जन-धन खाता योजना में अगस्त 2022 तक 46.25 करोड़ बैंक खाते खुल चुके थे. इन खातों में से 18.8 प्रतिशत खातों में तब तक भी कोई जमा-निकासी नहीं हो रही थी. जनसत्ता में छपी एक रिपोर्ट में भारत के वित्त मंत्रालय के हवाले से बताया गया कि 28 जुलाई 2021 तक 5.82 करोड़ जन-धन खाते बिना लेन-देन किये ही पड़े थे. एक अध्ययन के अनुसार ऊपर से पड़ रहे दबाव के बाद 34 बेंकों के 1.05 करोड़ शून्य बकाया जन-धन खातों को चालू रखने के लिए 1 रूपया प्रति खाता स्वयं बेंकों ने उनमें जमा किया. जो जन-धन खाते थोड़ा चल भी रहे हैं, उनमें बड़ी संख्या मनरेगा योजना में काम कर रहे मजदूरों की ही है. अगर सरकार के दावे के अनुसार इन खातों में जमा 1.5 लाख करोड़ रूपये के आंकड़े पर भरोसा करें, तो यह औसतन 3000 रुपया प्रति खाता ही बैठता है, जो इन खाता धारक परिवारों में व्याप्त घोर गरीबी को ही दर्शाता है.
भारत का नीति आयोग उस अवधि में देश के ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों की संख्या 32.59 प्रतिशत से घट कर 19.28 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में गरीबों की संख्या 8.65 प्रतिशत से घट कर 5.2 प्रतिशत रह जाने के दावे कर रहा है, जिस अवधि में देश की अर्थव्यवस्था धरासाई होकर माइनस ग्रोथ की और बढ़ चली थी और फिर बड़ी आबादी कोविड महामारी में भूख, अभाव, लाॅकडाउन, बेरोजगारी आदि की वजह से जीवन व मौत से जूझ रही थी. सेंटर फाॅर मानिटरिंग इंडियन इकोनाॅमी के सीईओ महेश व्यास के अनुसार कोविड की दूसरी लहर में 1 करोड़ लोगों ने अपनी नौकरी गंवाई. जबकि पहली लहर (2020) में ही 12.6 करोड़ लोगों की नौकरी जा चुकी थी. इनमें 9 करोड़ दिहाड़ी मजदूर थे.
6 मई 21 के बिजनेस पोडोकास्ट के अनुसार अप्रैल 2021 तक देश के सबसे गरीब 20 प्रतिशत परिवारों ने अपनी सम्पूर्ण आय खो दी थी. जबकि उसी अवधि में भारत के अमीर परिवारों की अपनी आय में 25 प्रतिशत से भी कम की गिरावट हुई. अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय का एक शोध बताता है कि कोविड की पहली लहर ने 23 करोड़ नए लोगों को गरीबी की स्थिति में धकेल दिया था. इस शोध में पाया गया कि कोविड के पहले दौर में गरीबों की संख्या में गावों में 15 प्रतिशत व शहरों में 20 प्रतिशत की बृद्धि हुई थी. ऐसे में मोदी सरकार के नीति आयोग द्वारा जारी फर्जी आंकड़ों की यह बाजीगिरी मोदी सरकार और उसके नीति आयोग का पूरी तरह से पर्दाफाश कर देती है.