6 सितंबर 2022 को बुंडू (रांची जिला) के सोनाहातु क्षेत्र के राणाडीह गांव में 3 महिलाओं को डायन बताकर के हत्या कर दिए जाने का एक नया मामला सामने आया. भाकपा(माले) और ऐपवा की पांच सदस्यीय जांच टीम पूरे मामले की जांच पड़ताल करने के लिए राणाडीह पहुंची. अभी तक इस मामले में तीनों महिलाओं के शव मिल चुके हैं. पुलिस ने कई गिरफ्तारियां की हैं.
राणाडीह गांव की परिस्थितियों को देखकर के साफ पता चलता है कि वहां पर स्वास्थ्य केंद्र तो है लेकिन उस स्वास्थ्य केंद्र में एक भी स्वास्थ्य कर्मी नहीं है और न ही दवाओं की व्यवस्था है. अशिक्षा यहां की दूसरी सबसे बड़ी समस्या है.
भारत में आजादी के 75 साल बाद आज भी लोग किसी के सांप काटने या बीमार पड़ने पर लोग चिकित्सक के पास जाने या इलाज कराने के बजाय झाड़-फूंक कराते हैं और साथ ही झाड़-फूंक करने वाले ओझा के कहने पर अपनी ही गांव की महिलाओं पर डायन होने का शक कर उनको प्रताड़ना करते हैं.
झारखंड सरकार आदिवासी बहुल क्षेत्रों व गांवों लोगों को इस बारे में जागरूक बनाने की कोई कोशिश न तो आज कर रही है और न ही आगे ऐसा कोई प्रयास दिख रहा है. आदिवासी गांव पूरी तरह अंधविश्वास की चपेट में है गांव का एक हिस्सा जो आदिवासी बहुल इलाका था, उसकी महिलाएं बिल्कुल स्पष्ट तौर पर यह मान रही थीं कि तीनों महिलाएं सच में डायन है और उन्होंने गांव के बच्चों को मार डाला है. पूरे गांव में एक भय का माहौल पसरा हुआ था. उस गांव के एक तबके के लोगों को इन 3 महिलाओं की हत्या का कोई अफसोस नहीं. महिलाओं ने भी इन महिलाओं की हत्या का कोई विरोध नहीं किया.
मृतक महिलाएं डायन थीं, वे बच्चों को खा रही थीं और इसीलिए उनकी हत्या कोई बुरी बात नहीं – यह सोच अपने आप में बहुत खतरनाक है और शायद हमारी सरकारें भी इस सोच को जिंदा रखना चाहती है ताकि वे अज्ञानता से घिरे लोगों के वोट की राजनीति कर सकें.
जहां तक पीड़ित महिलाओं की बात है तो एक के बेटे ने ही उसकी हत्या की है. जो इस पूरी घटना का मुख्य आरोपी है उसका पूरा परिवार ही अभी गांव से चला गया है हालांकि उस लड़के की गिरफ्तारी हो चुकी है. एक महिला जिसकी हत्या कर दी गई वह दूसरे टोले में रहती थी. उसके परिवार में उसके अलावा कोई और नहीं था. तुम्हारी नाम की महिला सबसे बुजुर्ग महिला थी और उसकी उम्र 80 साल से भी अधिक थी. उनके रिश्तेदारों से हमारी मुलाकात हुई. उनकी नतिनी से जब हमने बातचीत तो पता चला कि अत्यंत वृद्ध होने की वजह से वह ठीक से चल-फिर भी नहीं पाती थीं. उस महिला का परिवार अत्यंत ही गरीब है और जिस वक्त हम उनके घर पहुंचे तब उनके पास खाने के लिए चावल तक नहीं था. उनके घर के पुरुष भी बीमार थे. वे गांव के माहौल से इतना डरे हुए थे कि वे गांव वालों के साथ हां में हां मिलाने में ही अपनी भलाई समझ रहे थे.
क्या यह उम्मीद की जानी चाहिए कि वे सारे लोग जो इस अपराध में शामिल थे, सरकार जल्द से जल्द उनको पकड़ेगी और कड़ी से कड़ी सजा देगी और मुख्यमंत्री अपने चुनावी भाषणों में जो वादे करते हैं उनको पूरा करने की कोशिश करेंगे और झारखंड के जितने भी आदिवासी बहुल इलाके हें और दूर-दराज के गांव है, वहां स्वास्थ्य व्यवस्था की गारंटी करेंगे, वहां के लोगों के भोजन और उनके बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था करेंगे ताकि शिक्षा के जरिये इन कुरीतियों को दूर किया जा सके.
इन उम्मीदों के बावजूद सबसे दुखद बात यह है कि ऐसी किसी एक बड़ी घटना के हो जाने के बाद ही प्रशासन की नींद क्यों टूटती है और प्रशासन प्रथम आवेदन/सूचना पर पहल क्यों नहीं करता? पहली सूचना पर ही पुलिस या जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारी घटना स्थल का दौरा क्यों नहीं करते? बुंडू इलाके के ही हुमटा पंचायत के हैसदा गांव का मामला, जहां पिछले10 अगस्त को थाने में एक आवेदन पहुंचाया गया था कि वहां की कुछ महिलाओं को डायन कहकर प्रताड़ित किया जा रहा है फिर भी प्रशासन ने तब तक वहां जाने की जहमत नहीं उठाई, जब तक कि रानाडीह जैसी यह बड़ी घटना नहीं घटी.
-- नंदिता भट्टाचार्य