वर्ष - 31
अंक - 39
24-09-2022

विगत 14 सितंबर 2022 की शाम उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में दलित परिवार की दो सगी बहनों (17 व 15 वर्ष) के शव पास के गन्ने के खेत में पेड़ से लटकते मिले थे. घटना के तथ्यों का पता करने और पीड़ित परिवार से मिलने के लिए भाकपा(माले) और ऐपवा के संयुक्त जांच दल ने 17 सितंबर को  निघासन कोतवाली क्षेत्र के तमोलीन पुरवां नाम के इस गांव का दौरा किया. दस सदस्यीय जांच दल का नेतृत्व भाकपा(माले) की केंद्रीय समिति सदस्य व ऐपवा प्रदेश अध्यक्ष कृष्णा अधिकारी ने किया. दल ने घटनास्थल का दौरा कर पीड़ित परिवार से मुलाकात की, संवेदना जताई और घटना से जुड़े तथ्य जुटाए.

सोमवार 19 सितंबर को को लखनऊ में जारी जांच रिपोर्ट के अनुसार मां माया देवी का बयान कि मेरी लड़कियों को लड़के जबरस्ती मोटरसाइकिल पर उठा ले गए, एफआईआर के कथनों को झुठलाता है. लड़कियों के भाई ने पुलिस की कहानी पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर उसकी बहनें अपनी मर्जी से गईं थीं, तो अभियुक्तगण उनकी हत्या क्यों करते. हत्या के मामले को पुलिस ने पहले आत्महत्या का मामला क्यों बताया? अभियुक्तों के पुलिस के सामने दिए बयान (जिसकी कानूनी वैधता नहीं होती) के आधार पर कार्यवाही करने के बजाय पुलिस घटना की गहन विवेचना क्यों नहीं करना चाहती?

जांच दल को लड़कियों की मां ने बताया कि जब गांव के लोगों ने मेरी बेटियों की तलाश शुरू की, तो इसी बीच वह थाने  सूचना देने पहुंचीं. वहां उन्हें थप्पड़ मारा गया और चुप करा दिया गया.

जांच रिपोर्ट में लड़कियों के रेप-हत्या के दोषियों को जहां सख्त सजा देने की मांग की गई है, वहीं फरियादी के साथ थाने में इस तरह के व्यवहार पर सवाल उठाते हुए पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग भी की गई है.

जांच रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल में भी महिलाओं खासकर नाबालिग लड़कियों की हत्या बदस्तूर जारी है. महिलाओं की सुरक्षा में पूरी तरह विफल सरकार हत्या और बलात्कार की जघन्यतम घटनाओं की बारीकी से जांच करने के बजाय जल्दबाजी में अपनी राजनीतिक दिशा के मुताबिक घटना को पेश कर इंसाफ कर देने की घोषणा कर देती है. छह अभियुक्तगणों को दो दिनों में गिरफ्तार कर सरकार भले ही अपनी पीठ थपथपा रही हो, लेकिन पुलिस द्वारा बताई जा रही कहानी घटना की प्रत्यक्षदर्शी मृतक की मां के बयान के विपरीत है. इससे पुलिस की विवेचना पर सवाल खड़े होते हैं. इससे साफ पता चलता है कि दलित बहनों के रेप-हत्या के लखीमपुर खीरी मामले में बारीकी से जांच करने के बजाय जल्दबाजी दिखाई गई है. लिहाजा पूरे मामले की स्वतंत्र उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए.

जांच दल में कृष्णा अधिकारी के अलावा ऐपवा राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य सरोजिनी बिष्ट, तपेश्वरी, सावित्री, भाकपा(माले) नेता रामजीवन, मैनेजर, राम प्रसाद, गुलाब, राकेश व रामकेवल शामिल थे.

Two real sisters raped and murdered


शर्मनाक हैं रेप-हत्या व हिरासती मौत की घटनाएं – भाकपा(माले)

भाकपा(माले) के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने कहा कि नाबालिग लड़कियों की रेप-हत्या, दलित उत्पीड़न और हिरासती मौत की घटनाएं प्रदेश में रुकने का नाम ही नहीं ले रही हैं. लखीमपुर खीरी की जघन्य घटना ने तो हाथरस कांड की याद ताजा कर दी. महिला सुरक्षा और कानून-व्यवस्था के मुख्यमंत्री के दावे धारे रह गए. बदमाशों ने दो-दो नाबालिग लड़कियों की रेप के बाद हत्या कर शव दिन-दहाड़े गन्ने के खेत में पेड़ से लटका दिया.
भाकपा(माले) राज्य सचिव ने कहा कि शुरु में पुलिस बिना जांच के ही रेप न होने और आत्महत्या की घटना बताती रही. अब वह 24 घंटे के अंदर घटना को सुलझा लिए जाने का दावा कर रही है और रेप-हत्या में छह आरोपियों की संलिप्तता बता रही है, जिसमें पांच अल्पसंख्यक व एक बहुसंख्यक समुदाय का है.
उन्होंने कहा कि घटना की गंभीरता को देखते हुए पूरे मामले की उच्च स्तरीय, त्वरित व निष्पक्ष जांच हो और दोषियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए. महिला सुरक्षा में नाकाम अधिकारियों की जवाबदेही भी तय हो.
कामरेड सुधाकर ने कहा कि 14 सितंबर को ही एक अन्य घटना में, गोंडा में एक युवक की नवाबगंज थाने में मौत हो गई. परिजन के अनुसार युवक के थाने पहुंचने के कुछ ही घंटों के भीतर उसकी मौत पुलिस की पिटाई से हुई. मृतक लाइनमैन का काम करता था और किसी मामले में पूछताछ के लिए पुलिस ने बुलाया था. थाने से उसकी लाश अस्पताल पहुंच गई.
माले राज्य सचिव ने कहा कि मुख्यमंत्री योगी शासित उत्तर प्रदेश पहले ही कमजोर वर्गों पर अपराध के मामलों में देश में अव्वल है, जिसका गवाह राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के हाल के आंकड़े हैं. ताजा घटनाएं बताती हैं कि स्थिति में सुधार होने की जगह गिरावट जारी है.

पंजाब विवि में छात्राओं का कथित वायरल एमएमएस मामला

अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) ने पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में छात्राओं के तथाकथित वायरल एमएमएस वीडियो मामले में विश्वविद्यालय प्रशासन और चंडीगढ़ पुलिस के रवैये पर गंभीर आपत्ति जताते हुए कहा है कि इस कांड को तात्कालिक तौर पर दबाने या टालने की नीति नहीं अख्तियार की जानी चाहिए. ऐपवा की राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी और अध्यक्ष इ. रति राव ने कहा कि इस मामले में वरीय पुलिस अधीक्षक का बयान कई सवाल खड़े कर रहा है और  विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा छात्राओं के अभिभावकों पर दबाव बना कर और विश्वविद्यालय बंद कर हॉस्टल खाली करवा कर मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की गई है. जबकि, जरूरत थी कि छात्राओं को न्याय मिले और वीडियो वायरल होने की वजह से व्याप्त भय और असुरक्षा बोध से उन्हें मुक्त करने के लिए गंभीर प्रयास किया जाएं.
विगत 19 सितंबर, 2022 को जारी इस बयान में ऐपवा नेताओं ने कहा कि पंजाब विश्वविद्यालय की यह घटना इस बात की पुष्टि करती है कि छात्राओं के लिए पितृसत्तात्मक मूल्यों पर आधारित नियमों को लागू करना और हॉस्टल को कैदखाना बना देना छात्राओं की सुरक्षा की गारंटी नहीं है.
उन्होंने कहा कि किसी भी कार्यस्थल की तरह विश्वविद्यालय में भी एक स्वस्थ, खुला और लोकतांत्रिक माहौल  होना चाहिए ताकि लड़कियां निर्भीक और अपने अधिकारों के प्रति सजग बन सकें. इस विश्वविद्यालय में छात्रा यूनियनें नहीं हैं और लड़कियों को शाम 6.00 बजे के बाद हॉस्टल से बाहर आने-जाने की इजाजत नहीं है. हमारे लिए आश्चर्यजनक यह भी है कि इस विश्वविद्यालय में अब तक यौन उत्पीड़न विरोधी कमेटी (CASH) का गठन नहीं हुआ है. हम पंजाब महिला आयोग से उम्मीद करते हैं कि आयोग इस बाबत विश्वविद्यालय प्रशासन से जवाब तलब करेगा.
चंडीगढ़ विश्वविद्यालय की छात्राओं द्वारा उठाए गए मांगों का समर्थन करते हुए उन्होंने मांग की – (1). विश्वविद्यालय में एक स्वस्थ लोकतांत्रिक माहौल के लिए जरूरी है कि छात्र यूनियनों का निर्माण हो ताकि उस मंच से छात्राएं अपनी समस्याएं उठा सकें. (2). हॉस्टल में आने-जाने के समय का निर्धारण छात्र और छात्राओं के लिए एक समान हो. (3). यौन उत्पीड़न विरोधी कमेटी (CASH) का तत्काल गठन किया जाए.