भाजपा सरकारों और मीडिया, खासकर हिन्दी के अखबार और टीवी चैनलों, ने 22 जनवरी को अयोध्या में राम मन्दिर के प्रतिष्ठापन समारोह से पहले अभूतपूर्व प्रचार अभियान चलाया हुआ है. संघ ब्रिगेड ने भी देशव्यापी उन्माद पैदा करने के लिए गहन जनसंपर्क अभियान की घोषणा की है. बहुसंख्यक समुदाय की धार्मिक भावनाओं का इस प्रकार से सुविचारित और सुनियोजित राजनीतिक दोहन, वह भी चुनाव से ठीक पहले, किसी गैरधार्मिक राज्य में शायद ही कभी देखा गया हो. इकत्तीस साल पहले संघ ब्रिगेड ने जिस राज्य की अवहेलना करके दिनदहाड़े बाबरी मस्जिद का विध्वंस किया था, आज वह उसी राज्य का सम्पूर्ण इस्तेमाल कर राम मन्दिर का उद्धाटन करने जा रहा है.
आगामी लोकसभा चुनावों में राम मन्दिर उद्घाटन बेशक संघ ब्रिगेड के लिए सबसे बड़ा चर्चा का बिन्दु होगा. संघ-भाजपा प्रतिष्ठान के लिए इसके निहितार्थ बहुत गहरे हैं. उनके लिए यह हिन्दू राष्ट्र और भारत की 'हिन्दू पहचान' का सबसे बड़ा प्रतीक चिन्ह है. संघ के सिद्धांतकार भारत की आजादी से भी बड़े व महत्वपूर्ण क्षण के रूप में इसे देखते रहे हैं. उनके लिये 1947 केवल राजनैतिक आजादी लाया था जबकि अयोध्या में राम मन्दिर 'सांस्कृतिक आजादी' का प्रतीक है. इसीलिए पांच सौ सालों के इंतजार के प्रतीक स्वरूप पांच दीपक जलाने और 'सब के राम' अभियान चलाने का सभी से आह्वान किया जा रहा है.
यह विमर्श दरअसल हिन्दुत्व विचारधारा को स्थापित करने की मंशा से गढ़ा गया है जिसका इतिहास से कोई लेनादेना नहीं है. रामायण निस्संदेह सदियों से भारत में एक लोकप्रिय ग्रंथ रहा है जिसकी विभिन्न संस्कृतियों और क्षेत्रों में अलग अलग व्याख्यायें होती रही हैं. आधुनिक भारत के लिए चले दीर्घकालीन और बहुस्तरीय व बहुआयामी उपनिवेशवाद विरोधी सामाजिक और राजनीतिक आन्दोलन को सामान्यत: स्वतंत्रता आन्दोलन के रूप में जाना जाता है, इसमें अयोध्या में राम मन्दिर कभी भी मुद्दा नहीं बना था. बल्कि अयोध्या तो 1857 विद्रोह के उन कुछ प्रमुख केन्द्रों में से एक था जहां हिन्दू-मुस्लिम एकता और सौहार्द की उच्चतम अभिव्यक्तियां देखी गईं थीं. आजादी के बाद शासन के कुछ लोगों की मिलीभगत से चोरी छिपे बाबरी मस्जिद में राम की मूर्ति रखने के बाद यह विवाद बनाया गया. मन्दिर को तोड़ कर उसकी जगह बाबरी मस्जिद बनाने का दावा भी किसी पुरातात्विक खुदाई अथवा शोध से साबित नहीं हुआ.
अयोध्या में मन्दिर निर्माण को 2019 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से 'वैधता' मिली है. सर्वोच्च न्यायालय ने मस्जिद विध्वंस की कार्यवाही को भारत के संविधान का भारी उल्लंघन बताया था, लेकिन उस भूमि पर मालिकाने का अधिकार भी मन्दिर ट्रस्ट को यह उम्मीद जताते हुए दे दिया कि इससे पूजा स्थलों पर चल रहे सभी विवादों का हमेशा के लिए अंत हो जायेगा. इस 'असाधारण' फैसले ने बाबरी मस्जिद को कानूनी रूप से विवादित ढांचा मानते हुए 1991 के उस कानून की भी याद दिलाई थी जिसमें अयोध्या को अपवाद मानते हुये अन्य सभी पूजा स्थलों की 15 अगस्त 1947 की यथास्थिति बनाये रखने की गारंटी की गई है. लेकिन इस असाधारण छूट से संघ ब्रिगेड और उद्दंड बन गया. अब वह 1991 के कानून को ही खत्म करने की बात कर रहा है ताकि वह जहां चाहे वहीं पूजा स्थल का दावा कर सके.
संघ ब्रिगेड को हमेशा ही धर्मनिरपेक्ष शब्द से ऐलर्जी रही है. जब से संविधान की भूमिका में आपातकाल के दौरान इस शब्द को स्पष्ट रूप में जोड़ा गया था, तभी से संघ ब्रिगेड को लगा कि आपातकाल या आपातकाल की विरासत के विरोध के नाम पर धर्मनिरपेक्ष पहचान के विरोध को भी वैधता या स्वीकार्यता मिल जाएगी. धर्म को राजनीति से अलग रखने, धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप से राज्य को अलग रखने और धार्मिक मठाधीशों को राज्य के मामलों में हस्तक्षेप से दूर रखने का विचार आधुनिक गणतंत्र का केन्द्रीय तत्व है. यह भारत जैसे बहुधार्मिक बहुसांस्कृतिक देश में लोकतंत्र के लिए और भी जरूरी हो जाता है. मोदी सरकार भारत की धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक व्यवस्था को कमजोर करने के लिए हर सम्भव तरीकों का इस्तेमाल कर रही है. धर्म को राजनीति से अलग करने के विपरीत हम देख रहे हैं कि धर्म का राजनीति के साथ घालमेल किया जा रहा है.
यह घालमेल भारत को अयोध्या के उस बहुप्रतीक्षित 'रामराज्य' की ओर नहीं ले जा रहा जिसमें राम को सच्चाई और जनता के प्रति समर्पण के लिए जाना जाता है, बल्कि इससे भारत को मनुस्मृति के उस शासन की ओर धकेला जा रहा है जहां नागरिकों के अधिकार छीन कर उन्हें शक्तिहीन प्रजा में बदल कर राज्य व समाज के उत्पीड़न को धर्म के सहारे न्यायसंगत ठहराया जायेगा. संसद और जनता के प्रति जवाबदेह चुने हुए प्रधानमंत्री को राम मन्दिर प्रतिष्ठापना के प्रधान यजमान के रूप में पेश किया जा रहा है ताकि यथास्थिति या मौजूदा स्थितियों को दैवीय आदेश मान कर स्वीकार करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिले और जनता सदियों पुरानी धर्मांध व अन्यायी ब्राह्मणवादी समाज व्यवस्था के आगे नतमस्तक बनी रहे. यह धर्मनिरपेक्षता ही नहीं बल्कि एक आधुनिक गणतंत्र जिसकी मुख्य चालक शक्ति जनता होती है उसके मूल विचार का भी निषेध है.
मोदी सरकार खुद को जनता के लिए एक दैवीय वरदान के रूप में थोपना चाहता है, वहीं बाहरी दुनियां में वह दावा कर रहा है कि भारत ऐसे छोर पर आ गया है जहां से एक नई उड़ान भरी जा सकती है. यह बात मोदी ने मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनावों के बाद हाल ही में फाइनेन्शियल टाइम्स से कही है. उसी इंटरव्यू में मोदी ने भारत में लोकतंत्र के हालात पर जताई जा रही चिंताओं को बकवास कहते हुए इसे भारतीय जनता की समझदारी का अपमान बताया है. उन्होंने भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति का उदाहरण देने के लिए टाटा समूह जिस पारसी समुदाय से आता है उस समुदाय का उल्लेख किया है. भारत से लगातार हो रहे मेधा पलायन (ब्रेन ड्रेन) के बारे में पूछने पर उन्होंने गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी ग्लेाबल कम्पनियों के भारतीय मूल के सी.ई.ओ. को सजावटी शो-केस के रूप में पेश किया है. जब भारत में नागरिक अधिकारों पर हो रहे हमलों के बारे में सवाल पूछा गया तो उसे अपमानजनक लहजे में 'भारत में उपलब्ध आजादी का इस्तेमाल' कर विपक्षियों द्वारा लगाये 'झूठे आरोप' बता कर खारिज कर दिया.
बीबीसी द्वारा बनाई गई डॉक्यूमेण्ट्री 'इण्डिया: द मोदी क्युश्चन' में मोदी को खेद के साथ यह कहते हुए सुना जा सकता है कि 2002 के गुजरात नरसंहार के समय वह मीडिया को अच्छी तरह से हैण्डल नहीं कर पाये थे. अगर 2002 में उनके पास आज जैसा मीडिया कण्ट्रोल होता तो गुजरात का सच कभी सामने नहीं आ पाता. उसी तरह के अफसोस का भाव उनके उस जवाब में है जब वे अपने आलोचकों और विरोधियों के लिए 'भारत में उपलब्ध आजादी' का जिक्र करते हैं. दिसम्बर 2023 में एक देशी दण्ड संहिता, साक्ष्य कानून और वेबसाइटों व डिजीटल प्लेटफॉर्म को शामिल करते हुए लाये गये नये मीडिया रेगुलेशन के साथ बनाया गया नया कानूनी ढांचा इस बात का प्रमाण है कि आने वाले दिनों में जो थोड़ी बहुत आजादी बची है वह भी नहीं रहने वाली. औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून का इस्तेमाल मोदी सरकार 2022 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रोक लगाये जाने तक खुल कर करती रही, अब उसे खत्म करने के नाम में विरोध की किसी भी संभावित अभिव्यक्ति को आतंकवाद की परिभाषा के तहत लाकर पहले से भी ज्यादा कठोर कानून बनाया गया है.
संघ ब्रिगेड के लिए 22 जनवरी बेशक एक नया गणतंत्र दिवस है जिसमें 26 जनवरी 1950 से लागू भारत के संविधान में निहित मूल्यों और उद्देश्यों की खुलेआम अवहेलना का राज्य द्वारा उत्सव मनाया जायेगा. भारत के गणतंत्र दिवस को तो पहले से ही भारत के संसदीय लोकतंत्र की संवैधानिक बुनियाद की मजबूती के प्रदर्शन की जगह भारत की सैन्य शक्ति के प्रदर्शन के मंच में तब्दील कर दिया गया है. आगामी गणतंत्र दिवस 2024 पर आधुनिक भारत के संविधान को पुर्नस्थापित करने की चुनौती हमारे लिए सबसे बड़ी है. गणतांत्रिक भारत केवल और केवल एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के रूप में जिन्दा रह सकता है. हमारे पूर्वज 26 जनवरी 1950 को एक स्वतंत्र गणराज्य की स्थापना के अग्रदूत बने थे, आइए हम भारत के लोग उसी सपने को पूरी शक्ति, साहस और दृढ़निश्चय के साथ आगे बढ़ाने का आज संकल्प लें.
[ एम. एल. अपडेट, 2 जनवरी 2024 के संपादकीय का हिन्दी अनुवाद ]