“आजादी के अमृत महोत्सव में अमृत शब्द समुद्र मंथन के मिथक से लाया गया है. 14 अगस्त को विभाजन की विभीषिका से जोड़ने का मतलब पाकिस्तान और धर्म विशेष के लोगों से जोड़ने की कोशिश है. यह सब राजनीति के साथ धर्म और सांप्रदायिकता का घालमेल करना है, जो पहले से अधिक तेजी से हो रहा है.” छज्जूबाग में हिरावल की ओर से आयोजित छठे गोरख स्मृति आयोजन का उद्घाटन करते हुए हिन्दी-भोजपुरी के कवि-कथाकार, निबंधकार और आलोचक तैयब हुसैन से ये विचार व्यक्त किये.
छठे गोरख स्मृति आयोजन के उद्घाटन वक्तव्य में तैयब हुसैन ने स्वतंत्रता आंदोलन की उन कमजोरियों को चिन्हित किया जिसके कारण धर्म और राजनीति का घालमेल हुआ. उन्होंने मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन, मुस्लिम लीग और पंजाब हिन्दू महासभा और फिर कुंभ में अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के निर्माण की चर्चा करते हुए ध्यान दिलाया कि उस समय शीर्ष नेताओं ने इस खतरे को नहीं समझा. कांग्रेस में दोनों तरह के सांप्रदायिक तत्व शामिल थे. आज यह खतरा बहुत बढ़ चुका है. आज इस देश की साझी संस्कृति तथा सामाजिक-आर्थिक समानता और जनतंत्र के विचारों पर हमले पहले से ज्यादा तेजी से हो रहे हैं. लेकिन अब भी इनका मुकाबला किसान-मजदूरों की ताकत के बल पर किया जा सकता है. गोरख ने अपने समय में इस बात को समझा था. वे पहले नवगीत और प्रयोगवाद से प्रभावित थे, पर उन्हें लगा कि जिस तरह के समाजवादी देश की वे कल्पना करते हैं, उसके लिए जन भाषा में कविता लिखनी होगी और कविता को जनता से जोड़ना होगा. तैयब हुसैन ने कहा कि यही काम कबीर ने अपने समय में किया. गोरख कबीर की ही परंपरा को आधुनिक संदर्भों में आगे बढ़ाते हैं. उन्होंने कहा कि सिर्फ जनभाषा ही नहीं, बल्कि जनता के बीच प्रचलित काव्य रूप जैसे बारहमासा की शैली में उन्होंने गीत लिखा जिसका कथ्य पहले आध्यात्मिक हुआ करता था. जायसी ने उसे आम स्त्रियों के विरह के रूप में प्रस्तुत किया, महेंद्र शास्त्री ने उसमें किसानों के जीवन की समस्याओं का चित्र प्रस्तुत किया. उसी बारहमासा को गोरख मजदूर से जोड़ देते हैं.
उद्घाटन वक्तव्य के बाद हिरावल के सचिव संतोष झा ने गोरख पांडेय के एक बेहद मौजूं गजल ‘हम कैसे गुनहगार हैं उनसे न पूछिए’ को गाकर सुनाया. इस गजल में ये पंक्तियां आती हैं – गम इश्क के जियादा है या रोजगार के/ ये दिल के सरोकार हैं उनसे न पूछिए/ कटती है तो जुबान है बन जाएगी तलवार, सच कितने धारदार हैं उनसे न पूछिए.’ इस मौके पर प्रीति प्रभा, पलक, पीहू और भारती नारायण जी ने गोरख के प्रसिद्ध जनगीत ‘गुलमिया अब नाहिं बजइबो, अजदिया हमरा के भावेले’ को सुनाया. राजन कुमार ने गोरख की गजल ‘रफ्ता रफ्ता नजरबंदी का जादू हटता जाए है’ को गाया. विशाल ने गोरख के एक भोजपुरी गीत ‘सूतल रहनीं सपन एक देखलीं’ को गाकर सुनाया.
गोरख स्मृति आयोजन में हर बार की तरह युवा कवियों ने अपनी कविताओं का पाठ किया. इसकी शुरुआत शाकिर असीर ने रैप और बेला चाओ की धुनों पर आधारित सामयिक मुद्दों से संबंधित रचनाएं सुनाकर की जिसे श्रोताओं ने काफी पसंद किया. इस सिलसिले को प्रियंका प्रियदर्शनी, नरेंद्र कुमार, रिचा, प्रत्युषचंद्र मिश्रा, अंचित, सुनील श्रीवास्तव, सिद्धार्थ वल्लभ, प्रशांत विप्लवी, राजभूमि, सलमान, आदित्य ने आगे बढ़ाया. संजय कुमार कुंदन ने अपनी दो नज्में सुनाई.
संचालन करते हुए कवि-आलोचक सुधीर सुमन ने गोरख की कविताओं के अंशों के जरिए उनकी खासियत की चर्चा करते हुए कहा कि गोरख की रचनाएं आज हर तरह के जनतांत्रिक आंदोलनों के दौरान नजर आ रही हैं. उनकी कविता में जो गरीब और निहत्थे लोग हैं, वर्ग के स्तर पर उनका और भी अर्थ विस्तार हुआ है. किसान, मजदूरों, दलित-आदिवासी समुदायों और स्त्रियों सबकी मुक्ति का स्वप्न और उसके लिए संघर्ष के चित्र उनकी कविताओं में मिलते हैं. फासिस्ट तानाशाही के खिलाफ संघर्ष की जो लड़ाई चल रही है, गोरख की रचनाएं उसमें सहयोगी हैं.
इस मौके पर भाकपा(माले) के वरिष्ठ नेता पवन शर्मा और केडी यादव, समकालीन लोकयुद्ध के संपादक संतोष सहर, पालीगंज के विधायक संदीप सौरभ, अगिआंव के विधायक मनोज मंजिल, आखिल भारतीय किसान महासभा के महासचिव राजाराम सिंह, युवा कवि व हिरावल के अध्यक्ष राजेश कमल, साहित्यकार व वैज्ञानिक यादवेंद्र, सुशील कुमार, भाकपा(माले) के नगर सचिव अभ्युदय, संजय किशोर प्रसाद, रूपेश रूप, संतोष आर्या, विकास यादव, रंगकर्मी राम कुमार, फिल्मकार कुमुद रंजन, प्रकाश, आदि भी मौजूद थे.
सरकार के अमृत महोत्सव और स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी भूमिका के फर्जी इतिहास गढ़ने का प्रयास कर रही साम्राज्यवाद परस्त व सांप्रदायिक-प्रतिक्रियावादी आरएसएस की कोशिशों के विरुद्ध बिहार में ‘आजादी के 75 साल : जनअभियान’ का सिलसिला जारी है. इस बार के गोरख स्मृति आयोजन को इस अभियान से जोड़ा गया था. हिरावल इस अभियान के तहत पूरे साल कई कार्यक्रम करेगी. अगला कार्यक्रम इंकलाबी शायर फैज अहमद फैज की स्मृति में उनके जन्मदिन पर 13 फरवरी को आयोजित होगा.