बजट 2022-23 अमीरों की अमीरी और गरीबों की लूट बढ़ाने वाला
इसे अमृत काल बता सरकार बेरोजगारी, मंहगाई और महामारी से त्रस्त जनता के घावों पर नमक छिड़कने का काम कर रही है
गांव के गरीब और शहर के प्रवासी मजदूरों, किसानों और बेरोजगारों के लिए इसमें कुछ नहीं
देश की सम्पत्तियां बेचने वाला निजीकरण का बजट
नई दिल्ली, 1 फरवरी.
मोदी सरकार के बार बार दुहराये जाने वायदों के अनुसार वर्ष 2022 के आने तक किसानों की इनकम को दुगना हो जाना था. दुख की बात है कि बजट 2022-23 इस पर बिल्कुल चुप है. इस बजट में कृषि पर निवेश में कोई इजाफा नहीं दिखा, ऊपर से किसानों की न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्रमुख मांग के बारे में यह कोई संकेत नहीं दे रहा है.
इस बजट के कुछ ही पहले ऑक्सफैम इनीक्वलिटी रिपोर्ट प्रकाशित हुई है जिसके अनुसार भारत में आर्थिक विषमता भयानक स्तर पर पहुंच चुकी है. वर्ष 2022 में देश में 84 प्रतिशत परिवारों की आय घट चुकी है, जिसके साथ ही भारत में अरबपतियों की संख्या 102 से बढ़ कर 142 हो गई है. इस बजट ने कॉरपोरेट टैक्स में और कमी का प्रस्ताव लाकर एवं गरीबों को किसी प्रकार की राहत न देकर इसी आर्थिेक विषमता और बढ़ाने का काम किया है.
घटती विकास दर के साथ भारत भयानक बेरोजगारी के संकट से गुजर रहा है. दिसम्बर 2021 को 5.1 करोड़ नौजवान बेरोजगार थे. इस बजट ने नये रोजगार सृजन और आम आदमी की इनकम गारंटी जैसे महत्वपूर्ण प्रश्न पर आपराधिक चुप्पी साध ली है.
वित्तमंत्री ने अपने बजट भाषण में कहने को भी मनरेगा जैसी जीवन रक्षक योजनाओं का जिक्र नहीं किया है. जबकि मांग तो शहरी मनरेगा लाने की भी हो रही थी जिसकी अनुसंशा एक संसदीय समिति ने भी की थी.
निर्मला सीतारमन अपने बजट भाषण में वर्तमान दौर को अमृत काल कह रही हैं. ऐसी हैडलाइन्स गोदी मीडिया बनाता ही रहता है, लेकिन बजट भाषण में यह हो तो इसे क्या कहा जाय? जब करोड़ों नागरिक न्यूनतम सुविधाओं और आजीविका के संघर्ष में दर-दर भटक रहे हैं तब उनकी भावनाओं को अनदेखा करते हुए यह कह देना कि यह बजट अगले 25 सालों की दूरदृष्टि वाला है, आम जनता का मजाक नहीं तो और क्या है.
इस बजट को 2022 तक किसानों की आय दुगना होना, सभी को पक्का घर, और सभी को बिजली की आपूर्ति जैसे मोदी के पिछले वायदों का गायब रहने के लिए याद रखा जायेगा. यह मोदी-2 सरकार का चौथा बजट है, जिसने वर्ष 2024 तक भारत की अर्थव्यवस्था को '5 ट्रिलियन इकनॉमी' बनाने को कहा था! अब एक ही साल बचा है और बजट इस पर पूरी तरह चुप है. सरकार लगातार ग्रामीण गरीब, कृषि मजदूरों, किसानों और प्रवासी मजदूरों को राहत देने के वायदे करती रहती है, लेकिन बजट इन पर भी चर्चा नहीं है.
कल प्रकाशित हुए आर्थिक सर्वे में बताया है कि पिछले साल अर्थव्यवस्था की विकास दर 9.2 प्रतिशत रही और टैक्स संग्रह में 67 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. यह टैक्स किनसे लिया गया? सच्चाई यह है कि लॉकडाउन व महामारी की त्रासदी के बीच भी आम जनता की जेबों से पैसा निकाल कर टैक्स रिवेन्यू बढ़ाया गया है. पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमतों से सरकार ने करीब 4 लाख करोड़ कमाये, जब कि महामारी से पहले के साल में पेट्रोल-डीजल से सरकार के 2.39 लाख करोड़ ही आये थे, जबकि तब भी पेट्रोल काफी मंहगा हो चुका था. सरकार की 'इनकम' का एक और बड़ा श्रोत अपनी ही रिजर्व बैंक से पैसा निकालना रहा, एक साल में 1,47,353 करोड़ रुपये निकाले गये जोकि कमाई के नाम पर घर का ही सोना बेचने के बराबर है. बजट 22-23 में फिर से आरबीआई से 1,13,948 करोड़ रुपये निकालने का प्रावधान किया गया है!
यह फिर से याद कर लेना जरूरी है कि 2014 में मोदी सरकार के आने के पहले केन्द्र सरकार पर 58.66 लाख करोड़ का कर्ज था, जो अब बढ़ कर 117.04 लाख करोड़ रुपये हो चुका है. इसके पीछे मुख्य कारण मोदी सरकार द्वारा कॉरपोरेटों और अति-धनाड्यों से कम टैक्स लेना रहा है, क्योंकि यही लोग भाजपा को चुनाव जीतने के लिए अनाप-शनाप फण्ड देते हैं. इसी वजह से आम लोगों के विकास, समाज कल्याण और मानव संसाधन विकास की मदों में भाजपा सरकारी खर्च घटा रही है.
एक ओर सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर टैक्स बढ़ा कर, रिजर्व बैंक खाली करके, पब्लिक सेक्टर एण्टरप्राइजेज को बेचकर जनता की जेबों पर डाका डाल दिया है, अब आगामी साल के लिए सब्सिडी में और कटौती की गई है, और कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य व ग्रामीण विकास की मदों में कोई बढ़ोतरी नहीं की. सरकार ने इस बजट में खाद्य सब्सिडी को पिछले साल की तुलना में 80,000 करोड़ रुपये घटा दिया है, वहीं फर्टिलाइजर पर सब्सिडी में 35,000 करोड़ से ज्यादा की कमी की गई है.
कृषि और ग्रामीण विकास में आवंटन और कोविड के बावजूद स्वास्थ्य क्षेत्र में आवंटन लगभग पिछले साल के बराबर है, अगर मुद्रास्फीति/मंहगाई के प्रभाव को इसमें जोड़ दें तो वास्तविकता में इन मदों में पिछले साल की तुलना में कमी आई है. शिक्षा क्षेत्र में आवंटन में केवल 18 प्रतिशत की बढ़त है, जोकि महामारी के दौर में दो सालों में बच्चों के नुकसान की भरपाई करने लायक नहीं है.
मध्यम वर्ग को उम्मीद थी कि महामारी के दौर में हुए नुकसान की कुछ तो भरपाई होगी, लेकिन इनकम टैक्स स्लैब्स में कोई बदलाव इस साल भी नहीं किया गया है. जबकि पूरी दुनियां में भारत में पूंजीपतियों के लिए कॉरपोेरेट टैक्स की दरें आज भी सबसे कम हैं. सरकार इनडाइरेक्ट टैक्स बढ़ा कर जनता से पैसा वसूल कर खजाना भर रही है.
एयर इण्डिया को बेचा जा चुका है, अब निजीकरण की नीति के तहत केन्द्रीय पब्लिक सेक्टर की कम्पनियों में नीलांचल इस्पात निगम, एल.आई.सी. व अन्य संस्थानों बेचने की बारी है. यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद खतरनाक कदम है.
बजट 2022-23 की इन घोषणाओं के बीच वित्तमंत्री ने बगैर कोई ठोस योजना बताये 60 लाख नौकरियां सृजन की बात भी कर दी है, जो एक और जुमला से ज्यादा कुछ नहीं लग रहा.
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो कच्चे तेल की कीमतें फिलहाल बढ़ रही हैं, ऐसी हालत में सम्भावना है कि जिस विदेशी निवेश पर प्रधानमंत्री भरोसा कर रहे हैं वह भी कम हो सकता है. भारत में थोक मूल्य सूचकांक आजकल डबल-डिजिट में चल रहा है जिससे स्पष्ट हो गया है कि अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा बहुप्रचारित 20 लाख करोड़ का राहत पैकेज कोई खास काम नहीं कर पाया. लेकिन फिर भी मोदी सरकार जनता को तत्काल राहत देने के लिए पर्याप्त पूंजी निवेश नहीं करना चाहती. आर्थिक सर्वे में तो आगामी साल अर्थव्यवस्था की विकास दर 8 से 8.5 प्रतिशत बढ़ने की घोषणा कर दी गई है, लेकिन कर्ज का बोझ बढ़ा कर भी क्या सरकार यह हासिल कर पायेगी? कौन नहीं जानता की कोविड से पहले के वर्ष 2019-20 में मोदी सरकार की विकास दर मात्र 5 प्रतिशत से भी नीचे रही थी!
कुल मिला कर भारत के अरबपतियों की जेबें भरने वाला बजट-2022 देश के युवाओं, किसानों, मजदूरों व आम जनता के साथ विश्वासघात है
— भाकपा माले केन्द्रीय कमेटी द्वारा जारी.