वर्ष - 33
अंक - 4
24-01-2024
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महात्मा गांधी के जीवन के अंतिम दो वर्ष उनके जीवन के सबसे अर्थपूर्ण समय साबित हुए. वे 1947 में विभाजन की दिशा में बढ़ते दबाव और उससे जुड़ी सांप्रदायिक हिंसा से वे स्तब्ध और हतप्रभ थे. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. बंगाल और बिहार के गांव-गांव का दौरा किया. यही वजह रही कि इन इलाकों में सांप्रदायिक हिंसा उस पैमाने पर नहीं फैल सकी जैसा कि पंजाब में हुआ. सितंबर 1947 तक उनके दिल्ली पहुंचते-पहुंचते पंजाब की परिस्थिति बहुत विकराल हो चुकी थी. देश के विभाजन और उससे जुड़ी सांप्रदायिक हिंसा के पीछे मूल रूप से अंग्रेजों की फूटपरस्ती की वह नीति ही थी जिसे वे हिंदुस्तान में 1857 की पहली क्रांति के बाद से ही आजमाते आ रहे थे. बावजूद, 26 अगस्त 1947 को भारत के अंतिम अंग्रेज शासक यह कहने को बाध्य हुए कि 55000 सैनिकों के बावजूद पंजाब में सांप्रदायिक उन्माद व हिंसा को फैलने से हम रोक पाने में असफल रहे, लेकिन बंगाल में एक अकेले व्यक्ति ने ऐसा कर दिखाया. माउंटबेटन ने तब गांधी जी को ‘वन मैन बाउन्ड्री फोर्स’ कहा था.

सांप्रदायिक हिंसा व विभाजन की भारी कीमत हमें चुकानी पड़ी है. गांधी जी की अंततः हत्या कर दी गई. उस गहरी पीड़ा से उबरते हुए हमने एक नए लोकतांत्रिक व धर्मनिरपेक्ष भारत के निर्माण की शुरूआत की थी. लेकिन आजादी के 75-76 वर्षों के बाद गांधी के हत्यारे - संघ ब्रिगेड के लोग आज देश की सत्ता पर कब्जा कर लेने के बाद ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ पर ही हमला कर रहे हैं और इतिहास के चक्र को ही उलट देना चाहते हैं. भारत में संघ ब्रिगेड सांप्रदायिक विभाजन की ही राजनीति पर फला-फूला है. यह अकारण नहीं था कि आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर मोदी सरकार ने 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका दिवस’ घोषित करके सांप्रदायिक हिंसा के उन पुराने जख्मों को उभारने की कोशिश की, जिसे यह देश कब का भुला चुका था. इस साल जब हमारे देश का गणतंत्र अपने 75वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है उसे अब तक की सबसे बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. 22 जनवरी को राममंदिर उद्घाटन की आड़ में संघ ब्रिगेड न केवल देश में नए सिरे से सांप्रदायिक उन्माद फैलाने की कोशिश कर रहा है बल्कि धर्मनिरपेक्ष भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ में बदल देने के उत्सव दिवस के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रहा है. संघ ब्रिगेड द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को राम की मर्यादा के प्रतीक रूप में स्थापित करने और यहां तक कि दैविक उत्तराधिकारी बताने का प्रयास किया जा रहा है, जिनकी पार्टी बिलकीस बानो के बलात्कारियों व उनके परिजनों के हत्यारों को सम्मानित करती है और प्रधानमंत्री उस पर चुप्‍पी की चादर ओढ़ लेते हैं.

गांधी जी हत्या के बाद ये ताकतें इतिहास के कूड़ेदान में धकेल दी गई थीं. एक बार फिर उन्हें वहीं धकेलना होगा. हालांकि इतिहास अपने आप को पुराने रूप में कभी नहीं दुहराता, लेकिन गांधी संघ ब्रिगेड के खिलाफ बलिदान और संघर्ष के सबसे बड़े प्रतीक अब भी बने हुए हैं. देश में फासीवादी उभार के इस दौर में महात्मा गांधी हमारे लिए नई राह दिखा सकते हैं. भाकपा(माले) ने इस दौर की चुनौती को स्वीकार करते हुए बिहार में ‘संविधान बचाओ-लोकतंत्र बचाओ जनअभियान’ चलाने का निर्णय किया है. 24 जनवरी बिहार के लोकप्रिय पूर्व मुख्यमंत्री जननायक कर्पूरी ठाकुर का जन्म दिन है तो 30 जनवरी गांधी शहादत का दिवस. इस एक सप्ताह के दौरान पूरे बिहार में गांव-गांव पदयात्राओं का आयोजन किया गया है. जहानाबाद में पदयात्रा का कार्यक्रम उन गांवों को लेकर बनाया गया है जहां गांधी जी ने 1947 के मार्च महीने में दौरा किया था. लिहाजन, उस इतिहास को यहां एक बार याद कर लेना उचित होगा.

सांप्रदायिक उन्माद और गांधी जी का बिहार दौरा

1946-47 में बिहार भी मुस्लिम विरोधी दंगों की चपेट में आ गया था और तब महात्मा गांधी ने उन इलाकों का सघन दौरा किया था जहां सांप्रदायिक उन्माद की घटनाएं हो रही थीं. उन दंगों का सबसे ज्यादा असर तत्कालीन मुजफ्फरपुर, सारण, मुंगेर, भागलपुर, संथाल परगना, पटना और गया जिले में था. हालांकि कई जगहों पर ऐसे उदाहरण मिले हैं जहां हिंदू परिवारों ने अपने मुसलमान पड़ोसियों को दंगाइयों से बचाया.

बंगाल के नोआखाली में रहते हुए महात्मा गांधी को बिहार के दंगों की खबरें लगातार मिल रही थीं. सैयद महमूद, राजेन्द्र प्रसाद और जयप्रकाश नारायण के वे लगातार संपर्क में थे और सांप्रदायिक हिंसा रोक पाने में प्रशासन की विफलताओं से बेहद चिंतित थे. वे 5 मार्च 1947 को बिहार पहुंचे. सुरक्षा कारणों से उन्हें पटना की बजाए फतुहा स्टेशन पर उतारा गया. लगभग 29 दिनों तक उन्होंने बिहार में कैंप किया. इस दौरान पचास से अधिक सभाओं को संबोधित किया और जगह-जगह लोगों से संवाद किया. सांप्रदायिक माहौल को खत्म करने के लिए उन्होंने पटना व जहानाबाद जिलों का दौरा किया, जहां सर्वाधिक सांप्रदायिक हिंसा हुई थी.

5 मार्च से लेकर 16 मार्च तक उन्होंने पटना जिले के कुम्हरार, अब्दुल्लाचक, सफीपुर और खसरूपुर जाकर वहां की तबाही और बर्बादी खुद अपनी आंखों से देखा. उन्होंने 21 मार्च को मसौढ़ी का दौरा किया. 26 मार्च से वे जहानाबाद के दौरे पर पहुंचे. शाम में काको राहत शिविर और शाइस्ताबाद गांव का दौरा किया. गांधी जी को देखते ही वहां के पुरुष व स्त्रियां रो पड़े. उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि ‘रामायण’ के भक्तों के लिए शर्म की बात है कि वे अपने बीच में रहने वाले 14 या 15 प्रतिशत मुसलमानों को दबाने की कोशिश करें. जो लोग आजाद होने की इच्छा रखते हैं, वे दूसरों को अपना गुलाम बनाने की कभी सोच भी नहीं सकते. अगर वे ऐसा करेंगे तो वे सिर्फ अपनी ही गुलामी की जंजीरों को और अधिक मजबूत करेंगे. आपका फर्ज है कि आप लोग मुसलमानों के पास जाकर उनसे माफी मांगें और अपने सच्चे पछतावे के जरिए यह कोशिश करें कि वे लोग अपने-अपने घरों को लौट जाएं. आपको उनके घर फिर से बनवा देना चाहिए और उनके दुख को अपना दुख समझना चाहिए.

27 मार्च को ओकरी की जनसभा में गांधी जी ने यह चेतावनी दी थी कि अपने पागलपन के कारण लोग कहीं अपनी आजादी के उस स्वर्णिम अवसर को खो न दें जो करीब-करीब उनके हाथ में आ गया है. उसके बाद उन्होंने अब्दुल्लाचक, जुल्फीपुर, और अब्दुलापुर गांवों का दौरा किया. घोसी में विश्राम किया. 28 मार्च को आसपास के गांवों के प्रतिनिधियों और हड़ताली पुलिसकर्मियों से बातचीत की. अल्लागंज में प्रार्थना सभा में भाषण देते समय ही उन्हें पता चला कि कांग्रेसी नेता अब्दुल बारी की गोली मारकर हत्या कर दी गई. वे उसी रात पटना वापस लौट आए.

गांधी जी ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि बिहार से यह उम्मीद नहीं थी. उन्होंने लिखा है - बिहार ने ही मुझे सारे हिन्दुस्तान में जाहिर किया. उससे पहले तो मुझे कोई जानता भी नहीं था. लेकिन आज बहुत बुरा काम हुआ है. आगे कहते हैं - बिहार में तो रामायण के दोहे लोगों की जबान पर रहते हैं. मैं यहां बहुत घूमा हूं और यहां के लोगों को खूब जानता हूं. यहां के लोगों का खाना-पीना बहुत सादा है, लेकिन वे रामायण का पाठ खूब करते हैं. उन्होंने इस बार बहुत बुराई की है, लेकिन भलाई करने का माद्दा भी उनमें बहुत है. मैं इस बात का गवाह हूं. फिर क्यों न वे मन से प्रायश्चित करें?

वे आगे कहते हैं - अगर मुसलमानों के दिलों में विश्वास पैदा करने में बिहार को कामयाबी हासिल हुई, तो उसका असर पूरी दुनिया में पड़ेगा.....अगर यहां के सब हिन्दू मुसलमानों के दोस्त हो जाएं, तो जो आज आग जल रही है, वह बुझ जाएगी. इस आग को जल्दी से जल्दी बुझाना ही चाहिए नहीं तो जहां आग लगती है, वहां बुझाने की कोशिश न की जाए, तो सबकुछ जलकर राख हो जाता है. बिहार बड़ा इलाका है, अगर यहां सब कुछ ठीक हो जाए तो कलकत्ता वगैरह में जो आग जल रही है, वह सब भी बुझ जाएगी.

गांधी जी ने बिहार के लोगों से बिहार के जरिए समस्त भारत की जनता से अनुरोध किया कि इस देश में नवयुग का अरूणोदय होने वाला है और इस समय लोगों को चाहिए कि वे देश को उथल-पुथल में न धकेलें. जिस प्रकार लोग सूर्योदय से पूर्व नींद से जागकर ईश्वर का स्मरण करते हैं, उसी प्रकार इस देश के लोगों को चाहिए कि स्वतंत्रता का जो सूरज निकलने वाला है, उससे पूर्व में वे जाग जायें.

स्वतंत्रता का वह सूरज जिसे इस बार संघ ब्रिगेड तथाकथित ‘हिंदू राष्ट्र’ के नाम पर डुबो देना चाहता है और मनुस्मृति के शोषणकारी विधान को सामने ले आना चाहता है, उसके पहले हम सबको जाग जाना होगा. हम शोषणमुक्त समाज के निर्माण की दिशा को तभी जारी रख सकते हैं जब हमारा संविधान व लोकतंत्र बचेगा. आइए, हम सब इस चुनौती को स्वीकार करें.