साल 2023 के अंतिम दिन देश भर में खबर फैली कि दो माह पूर्व बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के आइआइटी की एक 20-वर्षीय बी.टेक. छात्रा का बंदूक की नोंक पर गैंगरैप करने वाले तीन आरोपी नौजवानों को अंततः गिरफ्तार कर लिया गया. ये तीनों नौजवान - कुणाल पांडे, सक्षम पटेल और आनंद चौहान - भाजपा की बनारस आईटी सेल से जुड़े हुए हैं. इनमें से पहले वाले दो नौजवान तो उस आईटी सेल के संयोजक और सह-संयोजक ही थे. इन गिरफ्तार नौजवानों के सोशल मीडिया अकाउंट, जिसे गिरफ्तारी के फ़ौरन बाद मिटा दिया गया, में पर्याप्त साक्ष्य था कि पीएम नरेंद्र मोदी, सीएम योगी आदित्यनाथ, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्ढा और महिला तथा बाल कल्याण मंत्री स्मृति इरानी जैसे भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं के साथ उनके करीबी संबंध थे. मध्य प्रदेश, छत्तीगढ़ और राजस्थान में चुनावों के मद्देनजर ही शायद उन्हें पहले गिरफ्तार नहीं किया गया था. वस्तुतः ये तीनों बनारस से निकल जाने में सफल हो गए और उन्होंने मध्य प्रदेश में जाकर भाजपा के लिए चुनावी अभियान भी चलाया था.
इसके पहले नवंबर माह में आइआइटी-बीएचयू में बड़े प्रतिवाद हुए थे, जिससे बाध्य होकर पुलिस को इनके खिलाफ एफआइआर दर्ज करना पड़ा था. शुरूआती एफआइआर में उनके अपराध को कम करके दिखाने की कोशिश की गई थी, और जब पीड़िता ने खुद से मजिस्ट्रेट के समक्ष अपना बयान दिया, तब जाकर गैंगरेप का आरोप दर्ज किया गया. स्पष्टतः विश्वविद्यालय अधिकारियों और पुलिस प्रशासन की कोशिश तो यही थी कि मामले को रफा-दफा कर दिया जाए. बनारस में सक्रिय आइसा और भगत सिंह छात्र मोर्चा समेत कई छात्र संगठनों, महिला संगठनों और अनेक विपक्षी पार्टियों की स्थानीय इकाइयों ने बारंबार संघ ब्रिगेड द्वारा चलाई जा रही नारी-विरोधी व धूर्ततापूर्ण हिंसा के विरुद्ध प्रतिवाद किए थे, किंतु सत्ता इन प्रतिवादों का दमन करने में ही मशगूल रही. सच तो यह है कि इस मामले में एबीवीपी ने विश्वविद्यालय और पुलिस प्रशासन के साथ मिलीभगत करके इन प्रतिवादों को भटकाने और आइसा तथा छात्र मोर्चा के कार्यकर्ताओं को ही फंसाने का प्रयास किया था. लेकिन आखिरकार सच को दबाया नहीं जा सका और संघ ब्रिगेड की ‘संस्कारी संस्कृति’ का असली रंग पूरी दुनिया के सामने खुलकर सामने आ गया.
बनारस प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है. बीएचयू इस शहर का एक प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान है, और ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ सरकार का एक प्रमुख नारा है. ‘स्वच्छ भारत’ से लेकर ‘उज्वला योजना’ तक, मोदी सरकार की अनेक प्रमुख योजनाओं को महिला सशक्तीकरण की ओर बढ़ते कदम के बतौर पेश किया गया है. कुछ दिन पूर्व ही सरकार ने संसद का एक विशेष सत्र आहूत किया था जो नए भवन का पहला सत्र था, और उस सत्र के दौरान ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ के नाम से महिला आरक्षण बिल पारित किया गया. जब आइआइटी-बीएचयू में एक छात्रा की सुरक्षा को इस तरह से तार-तार किया गया और इसके अपराधी भाजपा के अपने आइटी सेल के मुख्य पदाधिकारी निकले, तो यह मोदी सरकार के लिए सबसे शर्मनाक बात के बतौर देखा जाना चाहिए. लेकिन सरकार को स्पष्टतः इसकी कोई चिंता ही नहीं है.
वास्तव में, अगर हम भारतीय महिलाओं की जमीनी हकीकत देखें, तो वर्तमान शासन को बढ़ती असुरक्षा का शासन कहा जा सकता है जिसमें महिला-विरोधी हिंसा के अपराधियों को सत्ताधारी पार्टी की तरफ से प्रायः संरक्षा और बढ़ावा मिला करता है. भारत की आजादी की 75वीं सालगिरह के मौके पर यह संदेश बिल्कुल साफ-साफ सुनाई पड़ा जब 2002 में गुजरात जनसंहार के दौरान बिलकिस बानो का बलात्कार करने वाले अभियुक्तों को स्वतंत्रता दिवस का विशेष तोहफा देते हुए जेल से समय रहते ही रिहा कर दिया गया और गुजरात चुनावों के ठीक पहले उन्हें वीरों की भंति सम्मान प्रदान किया गया. सर्वोच्च न्यायालय को धन्यवाद कि उसने सजामाफी की इस मनपसंद कार्रवाई को खारिज कर दिया और गुजरात सरकार पर तथ्यों को दबाने और सत्ता का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया.
मणिपुर में महिलाओं पर भयावह पैमाने की हिंसा ने समूची दुनिया को दहला दिया था, किंतु मोदी सरकार ने उस राज्य में स्थिति को फिर से सामान्य बनाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया. और मोदी-योगी की डबल इंजन सरकार के अंतर्गत भारत की सर्वाधिक आबादी वाला राज्य उत्तर प्रदेश नारी-विरोधी हिंसा और उत्पीड़न की प्रमुख प्रयोगशाला बन गया. एनसीआरबी आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश वर्ष 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के दर्ज 65,743 एफआइआर के साथ इस सूची में पहले स्थान पर चला आया था. इनमें 62 मामले तो ‘बलात्कार अथवा सामूहिक बलात्कार के साथ हत्या’ के रूप में दर्ज किए गए थे. कुछ सर्वाधिक भयावह अत्याचार के मामले में खास तौर पर दलित महिलाओं को निशाना बनाया गया था.
भाजपा में आज वैसे सांसदों अथवा विधायकों की तादाद सबसे ज्यादा है जिनके खिलाफ महिलाओं पर अपराध के मामले दर्ज हैं - एडीआर की नेशनल इलेक्शन वाच रिपोर्ट 2023 के अनुसार यह संख्या 44 है जिसमें 7 लोगों पर तो बलात्कार के मामले दर्ज हैं. और हम जानते हैं कि भाजपा किस कदर उनका भरपूर बचाव करती है. कुलदीप सिंह सेंगर (उन्नाव के पूर्व विधायक) और रामदुलार गोंड (दुद्घी, सोनभद्र से भाजपा विधायक जिन्हें एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार के मामले में 25 वर्ष की सजा हुई है) जैसे लोगों का अंत-अंत तक बचाव किया गया था. बृज भूषण शरण आज भी गोंडा के भाजपा सांसद के बतौर छुट्टा घूम रहे हैं, जबकि भारत की पदक विजेता महिला पहलवानों ने उनपर यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए हैं और जिसकी संपुष्टि दिल्ली पुलिस ने भी अपनी प्राथमिक जांच में की है. और यह बात सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है : ऑस्ट्रेलिया में ‘भाजपा के विदेशी मित्र’ के संस्थापक अध्यक्ष बालेश धनखड़ पर अभी ऑस्ट्रेलिया में महिलाओं के साथ बलात्कार और हमलों के अनेक आरोपों में मुकदमा चल रहा है.
महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तीकरण का नारा अपना पूरा अर्थ खो चुका है, क्योंकि महिलाओं के प्रति नफरत और हिंसा के बदतरीन अपराधी संघ-भाजपा प्रतिष्ठान में सबसे उच्च स्तर पर संरक्षण पा रहे हैं. मनुस्मृति में जड़ जमाई विचारधारा हर तरह से समाज में असमानता और दासता को ही लादे रहना चाहेगी, और जब उसे राजनीतिक सत्ता का भी सहारा मिल जाए जब तो वह और भी बड़ी हद तक खतरनाक हो जाती है. 3 जनवरी को जब भारत के लोग महिलाओं की शिक्षा और जाति-विरोधी सामाजिक न्याय की अग्रदूत सावित्री बाई फुले की विरासत का स्मरण कर रहे थे, तो यह पहले से भी ज्यादा स्पष्ट हो गया कि भारत में महिलाओं की शिक्षा और सशक्तीकरण के लिए लड़ाई मनुस्मृति की नारी-विरोधी ब्राह्मणवादी विचारधारा को जोरदार तरीके से खारिज करने की मांग करती है. आज इसके लिए उस शासन की निर्णायक राजनीतिक पराजय की भी जरूरत है जो सत्ता के गढ़ से इस हिंसात्मक नुस्खे को लागू कर रहा है.