बिहार में सत्ता सेे भाजपाइयों की बेदखली के बाद महागठबंधन सरकार में विगत 13 से 19 दिसंबर तक बिहार विधानसभा का पहला विधिवत शीतकालीन सत्र था. विदित हो कि इस सत्ता परिवर्तन का स्वागत करते हुए भाकपा(माले) नीतीश सरकार को बाहर से समर्थन दे रही है. नीतीश कुमार की ओर से भाकपा(माले) को मंत्रिमंडल में शामिल होने का भी आमंत्रण था लेकिन उसने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि वह सत्ता में भागीदार बनने की बजाए जनता के आंदोलनों व मुद्दों को सरकार तक पहुंचाने और उनके बीच एक सार्थक संवाद बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने का काम करेगी. भाकपा(माले) ने यह भी कहा था कि बिहार के जनपक्षीय विकास के लिए एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम बनाया जाए और उसके सुचारू संचालन के लिए महागठबंधन के सभी दलों को लेकर एक समन्वय समिति का भी गठन किया जाए.
भाजपा बिहार को उत्तर प्रदेश बना देने की जबरदस्त कोशिश चला रही है. उसे सत्ता से बाहर करना काफी नहीं है बल्कि उसे समाज से भी बेदखल करना होगा. इसलिए महागठबंधन सरकार के मुखिया नीतीश कुमार को भाकपा(माले) महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य के नेतृत्व में पार्टी ने अपना एक दृष्टिपत्र सौंपा था, जिसमें उम्मीद की गई थी कि नई सरकार भाजपा द्वारा बिहार को उन्माद-उत्पात की प्रयोगशाला बनाने की साजिशों व कार्रवाइयों पर प्रभावी नियंत्रण हेतु आवश्यक प्रशासनिक व विधायी कदम उठाएगी. पिछली सरकार के दौरान स्मार्ट सिटी अथवा जल-जीवन हरियाली सरीखी सरकारी योजनाओं के नाम पर भारी पैमाने पर जमीन से गरीबों की बेदखली पर रोक लगाते हुए मुकम्मल सर्वे करा कर एक समय सीमा के भीतर तदनुकूल नया वास-आवास कानून बनाने, राज्य में तमाम रिक्त पदों पर अविलंब स्थायी बहाली, एपीएमसी ऐक्ट की पुनर्बहाली, भूमि सुधार व शिक्षा आयोग की सिफारिशों को लागू करने, भूमिहीन गरीबों के बीच जमीन के आवंटन, बटाईदार किसानों के पंजीकरण सहित कृषि विकास के सारे साधन उपलब्ध कराने, कदवन जलाशय के निर्माण तथा सोन व अन्य नहर-पईन प्रणालियों को ठीक करने की दिशा में तत्काल ठोस कदम उठाने, शराबबंदी कानून के तहत जेल में बन्द गरीबों को तत्काल रिहा कर उनके पुनर्वास करने व शराब माफियाओं पर कार्रवाई करने, ठेका आधाारित स्कीम वर्करों को सम्मानजनक मासिक मानदेय देने और अल्पसंख्यक, महिला, एससी-एसटी, मानवाधिकार व अन्य आयोगों को तत्काल पुनर्गठित करने आदि मांगें उठाई थीं. लेकिन चार महीना से अधिाक समय गुजर जाने के बाद भी इस दिशा में कोई ठोस प्रयास दिखता नजर नहीं आता. इस बीच भाकपा(माले) जनता की मांगों को लगातार सरकार तक पहुंचाती रही और सड़क पर भी उतरी, लेकिन दलितों-गरीबों की झोपड़ियों पर बुलडोजर चलाने की गति कहीं से कम नहीं हुई. पिछले दिनों दरभंगा, पश्चिम चंपारण, नवादा, पटना, बक्सर आदि तमाम जगहों पर बर्बर तरीके से बुलडोजर चले हैं. पटना में फुटपाथी दुकानदारों को उजाड़ दिया गया है.
विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भाकपा(माले) विधायक दल ने तय किया कि इन मुद्दों को मजबूती से सदन के भीतर उठाया जाएगा. महागठबंधन की बैठक में भी विधायक दल के नेता महबूब आलम ने इन सवालों को मजबूती से रखा.
विधानसभा सत्र के पहले ही दिन सारण में जहरीली शराब से हुई मौतों की दुखद सूचना मिली. इसमें सत्तर से अधिक लोगों के मारे जाने की आशंका है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधानसभा में जो वक्तव्य दिया, वह कहीं से भी जायज नहीं कहा जा सकता. वे न केवल मृतक परिजनों को मुआवजा देने से मुकर गए बल्कि यहां तक कह दिया कि जो पीएगा, सो मरेगा. मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद भाजपा काफी आक्रामक हो गई. इस बारं भाकपा(माले) के लिए बिलकुल अलग राजनीतिक परिस्थिति थी. सरकार का समर्थन करते हुए उसकी जनविरोधी नीतियों का प्रतिकार भी करना था. पार्टी ने साफ कहा कि सरकार कुछ भी बोले, उसकी प्रतिबद्धता जनता के प्रति है.
भाकपा(माले) विधाायकों का एक दल 16 दिसंबर को सारण पहुंचा. इस टीम में विधायक वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता, मनोज मंजिल, पूर्व विधायक अमरनाथ यादव, सारण जिला सचिव सभा राय सहित स्थानीय पार्टी नेता-कार्यकर्ता शामिल थे. सिवान और अन्य दूसरे जिलों से मौतों की खबरें मिलने लगीं. घर के घर उजड़ गए हैं. मरने वाले तो इस दुनिया से चले गए लेकिन अपने पीछेे परिवार को बेसहारा छोड़ गए हैं. उनके बाल-बच्चों का भविष्य अंधाकारमय हो चुका है. अभी तक टोलों में सन्नाटा पसरा हुआ है. मरने वाले अधिकांश लोग गरीब व मजदूर पृष्ठभूमि से हैं. वे विभिन्न जाति समूहों के हैं. इसे सारण में मिड डे मील कांड के बाद दूसरा जनसंहार बताया जा रहा है. जांच टीम ने हादसे की चपेट में आए चंद्रमा राम, ब्रजेश यादव, नूर अंसारी आदि मृतकों के परिजनों से मुलाकात की. खुशी साह टोले का भी दौरा किया.
ऐसी स्थिति में जनता द्वारा चुनी गई किसी सरकार का दायित्व अपने नागरिकों के प्रति पहले से कहीं अधिक बढ़ जाता है, लेकिन नीतीश कुमार अड़ियल रवैया अपना रहे थे. भाकपा(माले) ने नीतीश कुमार को इस आशय का ज्ञापन सौंपा. उसने कहा कि शराबबंदी कानून का समर्थन करते हुए हम बारंबार कहते आए हैं कि शराब पीने वालों की बजाय अवैध तरीके से शराब के उत्पादन व वितरण में लगे माफिया गिरोहों को केंद्र करना चाहिए, जिन्हें राजनीतिक व प्रशासनिक संरक्षण भी हासिल है. ऐसे गिरोहों ने शराब का एक पूरा अवैध तंत्र खड़ा कर रखा है, जिसमें वे गरीबों को भी शामिल कर लेते हैं. जबतक ऐसे गिरोहों पर कार्रवाई नहीं होती, मौतों का सिलसिला रूकने वाला नहीं और न ही शराबबंदी कानून अपने मकसद में कामयाब हो पाएगी.
सारण कांड के बहाने भाजपा महागठबंधन सरकार पर हमलावर होने की कोशिश में थी. पार्टी ने भाजपा के घड़ियाली आंसू का भी पर्दाफाश करने का निर्णय लिया. हर कोई जानता है कि जहरीली शराब से मौतों के मामलों में सबसे आगे भाजपा शासित प्रदेश ही हैं. मध्यप्रदेश एक नंबर पर है तो उसके बाद गुजरात. बिहार में भी भाजपा के कई बड़े नेताओं के नाम शराब के कारोबार में सामने आते रहे हैं. पूर्व मंत्री व भाजपा नेता रामसूरत राय संचालित स्कूल से शराब भरी ट्रक की बरामदगी के ठोस प्रमाण हैं. विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता विजय सिन्हा के एक रिश्तेदार के यहां से भी बड़े पैमाने पर शराब की बोतलें पाये जाने की चर्चा है. सारण में भी लोगों ने बताया कि उत्तर प्रदेश से शराब से आई थी. भाजपा जिस प्रकार की पार्टी है, उसमें उसकी ऐसी किसी साजिश से कत्तई इंकार नहीं किया जा सकता. सारण कांड के पीछे भी ऐसे लोगों के नाम आ रहे हैं जो राजनीतिक व सामाजिक रूप से दबंग हैं. इसलिए भाकपा(माले) ने सारण कांड की उच्चस्तरीय जांच की मांग की ताकि भाजपा का और पर्दाफाश हो सके.
एक तरफ जहरीली शराब से मौतें हो रही हैं, तो दूसरी ओर पुलिस-प्रशासन ने इसे दलितों-गरीबों के उत्पीड़न का हथियार बना रखा है. यह अत्यंत दुखद व असंवेदशील रवैया है. पटना जिले के मसौढ़ी प्रखंड के हांसाडीह गांव में मुसहर, नट, डोम व अन्य पिछड़ी जातियों के टोले पर विगत 9 दिसंबर को पुलिस ने बर्बर दमन ढाया. महिलाओं को नंगा करके पीटा. इसके कारण 55 वर्षीय सोनवां देवी की मौत हो गई. इससे आम लोगों में काफी गुस्सा है.
भाकपा(माले) ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने निम्नलिखित मांगें उठाई:
1. मृतकों के परिजन व बाल-बच्चे अनाथ हो गए हैं. वे जहरीली शराब से उत्पन्न आपदा से पीड़ित हैं. प्रत्येक मृतक परिजन को 10 लाख रु. का मुआवजा और उनके बच्चों की पढ़ाई-लिखाई व भविष्य की जिम्मेवारी सरकार खुद ले. अतीत में खजूरबनी जहरीली शराब हत्याकांड (गोपालगंज) के पीड़ितों को मुआवजा दिए जाने का उदाहरण भी रखा.
2. शराबबंदी के तहत दलितों-गरीबों पर दमन पर रोक लगाई जाए. मसौढ़ी के हांसाडीह कांड के दोषियों पर धाारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर उनपर कार्रवाई की जाए. मृतक परिजन को 10 लाख रूपये का मुआवजा दिया जाए. अतीत में भी शराबबंदी में गिरफ्तार गरीबों की पिटाई से पुलिस हाजत में कई मौतें हुई हैं.
3. शराब के उत्पादन व वितरण में लगे शराब माफिया गिरोहों व उन्हें मिल रहे राजनीतिक-प्रशासनिक संरक्षण की उच्चस्तरीय जांच कराकर दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए. सारण कांड के मामले में सरकार अपने स्तर से तत्काल एक जांच टीम गठित करें!
4. शराब को एक सामाजिक बुराई मानते हुए इसके खिलाफ सामाजिक स्तर पर अभियान चलाया जाए. इसमें विभिन्न राजनीतिक व सामाजिक संगठनों की मदद ली जा सकती है और उनके बीच किसी प्रकार की समन्वय समिति बनाई जा सकती है!
5. प्रत्येक प्रखंड पर कारगर नशामुक्ति केंद्र की स्थापना की जाए!
विधानसभा के भीतर इस मसले को उठाने और मुख्यमंत्री से मिलने के साथ-साथ भाकपा(माले)ने 19 दिसंबर को सड़कों पर प्रतिवाद भी किया. इसके बाद मुख्यमंत्री ने पीड़ित परिजनों को मुआवजा देने का आश्वासन दिया
दलितों-गरीबों को उजाड़ने पर रोक के लिए अध्यादेश लाये सरकार.
सारण शराब कांड के बाद भाकपा(माले) ने राज्य में दलितों-गरीबों को उजाड़ने के मसले को भी सदन के बाहर और भीतर मजबूती से उठाया. भाकपा(माले) विधायकों ने इस सवाल पर सदन के अंदर ध्यानाकर्षण प्रस्ताव भी लाया. बिहार में बिना वैकल्पिक व्यवस्था किए दलितों-गरीबों और दुकानदारों को उजाड़ने की प्रक्रिया काफी गंभीर स्थिति में पहुंच चुकी है. बातें तो थीं हर भूमिहीन को आवास देने की, लेकिन आज बरसों बरस से बसे गरीबों को पलक झपकते बेदखल कर दिया जा रहा है. बिहार में आज लाखों परिवार पर बेदखली का खतरा मंडरा रहा है. भाकपा(माले) विधायकों ने इन मामलों में भी तथ्यों के साथ एक ज्ञापन मुख्यमंत्री को सौंपा.
(क) पंजियरवा, सुगौली प्रखंड, पूर्वी चंपारण में 100 वर्षो से बसे 203 परिवारों को बुलडोज कर दिया गया जिसमें अल्पसंख्यक-175 परिवार, पासवान-15 और ब्राह्मण-15 परिवार है. छठ व्रत की दिक्कत दूर करने के नाम पर कोर्ट के आदेश से यह कार्रवाई की गई. नोटिस 115 परिवारों के नाम से था, लेकिन 203 घरों को मनमाने तरीके से तोड़ दिया गया.
(ख) रजवाड़ा, मनीगाछी प्रखंड, दरभंगा में सड़क किनारे दशकों से बसे 55 गरीब दलित परिवारों को बेवजह उजाड़ दिया गया. भाजपा समर्थक भूस्वामी की खेती की जमीन के सामने से गरीबों को हटाया गया है. ताकि सामने की पूरी गैरमजरुआ जमीन का वे उपभोग कर सकें. दुर्भाग्य से यहां रोड़ेबाजी में एक पुलिसकर्मी को जान गंवानी पड़ी, लेकिन मौके पर अनुपस्थित भाकपा(माले) नेता अशोक पासवान और पप्पू खान को मुकदमे में फंसा दिया गया. दरभंगा में ही ग्राम कटैया (प्रखंड बिरौल) में मुसहर जाति के 150 परिवारों को उजाड़ दिया गया है.
(ग) ग्राम हरदिया, प्रखंड रजौली, जिला नवादा के 125 घरों को तोड़ने के कोर्ट के आदेश से विगत 14 अक्टूबर को 23 घरों को जमींदोज कर दिया गया. 1985 में मुख्यमंत्री दिवंगत कर्पूरी ठाकुर जी के कार्यकाल में धानारजेय नदी पर बने फुलवरिया जलाशय के निर्माण के समय उन्हें बसाया गया था.
(घ) बक्सर के नया भोजपुर में 43, पुराना भोजुपर में 145 और नेनुआ में पोखर की जमीन पर बसे 37 परिवार को न्यायालय के आदेश के आलोक में उजाड़ने की नोटिस थमा थी गई है. नया भोजपुर में 1982 में 26 और 2011 में 120 परिवारों को जमीन का पर्चा मिला था. सरकारी योजना के तहत 60 लोगों का इंदिरा आवास भी बनाया गया है.
एक कल्याणकारी राज्य अपनी जनता को इस तरह बेदखल कैसे कर सकता है, लेकिन जल-जीवन-हरियाली योजना आज बेदखली का लाइसेंस बनी हुई है. न्यायालय बेधड़क बेदखली का आदेश दे रहा है. इसलिए पार्टी ने सरकार से इस मामले में तत्काल एक अध्यादेश लाकर बेदखली पर रोक लगाने की मांग की. बिना अध्यादेश लाये न्यायालय कुछ भी नहीं सुनने वाला और लाखों परिवारों पर बेदखली का खतरा मंडराता रहेगा.
बिहार में पीपी ऐक्ट 1948 के द्वारा भूमिहीनों को बासगीत का पर्चा देने का प्रावधान है. हकीकत यह है कि कहीं जमीन मिला तो पर्चा नहीं और कहीं पर्चा तो जमीन नहीं. बहुत सारे ऐसे गरीब परिवार हैं जिन्हें पर्चा मिलने के बावजूद आज तक दखल नहीं मिल सका है. और जिनके पास पर्चा नहीं है, उन्हें उजाड़ा जा रहा है. जल-जीवन-हरियाली योजना के कारण नहरों के चांट, पोखर, नहर आदि सार्वजनिक जगहों पर बसे परिवारों को उजाड़ा जा रहा है. होल्डिंग हाउस का अधिकार हर एक नागरिक का अधिकार है. इसलिए सरकार को नया सर्वे कराना चाहिए और तदनुरूप दलितों-गरीबों के लिए एक नया वास-आवास कानून बनाना चाहिए. बिना किसी वैकल्पिक व्यवस्था के उन्हें उजाड़ना कहीं से जायज नहीं है. बेदखली वाले मामलों में पर्चाधारी को भी पक्षकार बनाया जाए.
नीतीश कुमार ने बद्योपाध्याय आयोग का गठन किया था. सरकार में भाजपा के दबाव के कारण यह रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर नहीं आ सकी. भाकपा(माले) हमेशा उस रिपोर्ट की ओर सरकार का धयान आकृष्ट कराती आई है. रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में आज भी सीलिंग से अतिरिक्त 21 लाख एकड़ जमीन है. यदि इसका भूमिहीनों में बंटवारा किया जाए तो हरेक भूमिहीन परिवार को न्यूनतम 10 डिसमिल आवास की जमीन मिल सकती है. आवास की समस्या पल भर में हल हो सकती है. सरकार को इस मामले में अब मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखलानी होगी.
लेकिन सरकार ने इसी बीच बिहार नगरपालिका (संशोधन) कानून पास कर दिया है, इसके जरिए शहरी गरीबों को उजाड़ देने का लाइसेंस दे दिया गया है. कानून के तहत अब नगरपालिका पदाधिकारी या प्राधिकृत पदाधिकारी को 15 दिनों के नोटिस पर अतिक्रमण हटाने का अधिाकार दे दिया गया है. जुर्माना भी वसूलने का अधिकार है. अस्थायी किस्म के अतिक्रमण या अवरोध को तो महज 24 घण्टे के अंदर हटा देने का अधिकार दे दिया गया है. नए बने नगर पारिषद अथवा पंचायतों में बड़ी संख्या में गांवों को जोड़ दिया गया है. इसका मतलब है कि ऐसे गांवों के गरीबों के हाउसिंग अधिकारों को खत्म कर दिया गया है. भाकपा(माले) ने इस कानून की तीखी आलोचना की है और उसे वापस लेने की मांग की है.
का. मंजू प्रकाश, भाकपा(माले) राज्य कमेटी सदस्य, पूर्व विधाायक और बिहार महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष, के साथ उजियारपुर थाना अध्यक्ष श्री अनिल कुमार व अपराधियों द्वारा विगत 9 अक्टूबर 2022 को धक्का-मुक्की व आपत्तिजनक व्यवहार किया गया. सातनपुर, उजियारपुर थाना में एक दलित लड़की के साथ हुए बलात्कार व हत्या के खिलाफ आरोपितों की गिरफ्तारी की मांग पर वे थाने पर प्रदर्शन का नेतृत्व कर रही थीं. थानाध्यक्ष ने प्रदर्शनकारियों पर हमला और खून-खराबा के उद्देश्य से थाना परिसर में बड़ी संख्या में अपराधियों को जमा कर रखा था जिसे वीडियो में साफ देखा जा सकता है, लेकिन अभी तक न तो हत्या व बलात्कार के आरोपितों, जो भाजपाई हैं, को गिरफ्तार किया गया और न ही थाना परिसर में अपराधियों को जमा करने के गैरकानूनी कृत्य व महिला जनप्रतिनिधि से दुव्र्यवहार के आरोपी थाना प्रभारी पर कोई कार्रवाई की गई है.
बक्सर के डुमरांव से पार्टी के विधायक का. अजीत कुशवाहा सहित 18 लोगों पर पुलिस हिरासत में एक वृद्ध की मौत के मामले में मुकदमा दायर कर दिया गया है. मामला यह है कि कोरानसराय थाना क्षेत्र के कोपवां गांव में 16 अक्टूबर 2022 को बच्चों के विवाद में दो पक्षों के बीच हिंसक झड़प हुई थी. इस मामले में दोनों पक्ष की ओर से मुकदमा हुआ. पहले पक्ष के बयान पर पुलिस ने कोरानसराय कांड संख्या 124/22 के तहत मुकदमा दर्ज किया. एससी/एसटी ऐक्ट के तहत पुलिस ने यमुना सिंह सहित कुल 22 लोगों को अभियुक्त बनाया. कहा जाता है कि गिरफ्तारी से यमुना सिंह को ठेस लगी ओर उन्होंने पफंदे से लटककर आत्महत्या कर ली. मृतक के पुत्र ने पुलिस को आवेदन दिया कि डुमरांव विधाायक के दबाव के कारण यमुना सिंह की गिरफ्तारी हुई थी. एसपी के निर्देश पर भाकपा(माले) विधाायक अजीत कुशवाहा के खिलाफ कोरान सराय थाना कांड संख्या 138/22 दर्ज किया,गया है. भाकपा(माले) विधाायक दल ने इन मसलों को भी उठाया.
कुल मिलाकर महागठबंधन सरकार अभी तक अपना रंग-ढंग बदलने को तैयार नहीं है. इसलिए जनता के आंदोलनों को और तेज करना ही एक मात्र उपाय है. भाजपाइयों को बिहार की सत्ता व समाज से बेदखल करने के लिए इस सरकार को समर्थन करते हुए भी चौतरफा पहलकदमियां लगातार बनाए रखनी होगी.