उतराखंड भूस्खलन में करीब 42 मजदूरों की दबने की और अभी तक 16 मजदूरों के मौत की खबर है. मरनेवालों में सबसे अधिक बिहार के प्रवासी मजदूर हैं. अबतक 12 बिहारी मजदूरों के शव मिले हैं. 2 का अभी भी पता नहीं है.
घटना स्थल से प्रवासी मजदूर साहेब यादव ने मोबाइल फोन पर बताया कि भूस्खलन के बाद मलवे से तीन दिन बाद 5 और छह दिन बाद 8 लाशें निकाली गईं हैं और अभी भी कई लाशों को निकालना बाकी है. जिन मजदूरों की लाशें निकाली गई, उन लाशों को जैसे-जैसे पोस्टमार्टम कर खुली सड़कों पर छोड़ दिया गया. मजदूरों द्वारा प्रतिवाद व हंगामे के बाद प्रशासन द्वारा बंद कमरे में लाशों को सड़ने के लिए बंद कर दिया गया. यह हाल है – विश्व गुरु बनने का दावा करने वाली मोदी सरकार व राज्य की भाजपा सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग का.
19 अक्टूबर को उत्तराखंड से पत्रकार व लेखक रामकुमार कृषक के जरिए सिकटा के भाकपा(माले) विधायक का. वीरेंद्र प्रसाद गुप्ता को खबर मिली कि 18 अक्टूबर को नैनीताल जिले जोतिराज गांव (मुक्तेश्वर थाना) में भूस्खलन की एक भयंकर घटना घटित हुई है और वहां सड़क निर्माण के काम में लगे कई बिहारी मजदूर अब भी मलवे की नीचे दबे हुए हैं. इनमें पश्चिम चंपारण जिले के साठी थानांतर्गत बेलवा गांव के भी चार मजदूर हैं.
खबर मिलते ही विधयक का. वीरेन्द्र गुप्ता बेलवा पहुंचे और हादसे का शिकार हुए मजदूरों के परिवारों से मिले. उन्होंने वहीं से मुख्यमंत्री सचिवालय और पश्चिम चंपारण के जिलाधिकारी से बात की और मलवे के नीचे दबे मजदूरों को बाहर निकालवाने, इस हादसे में जान गंवाने वाले मजदूरोंके शवों को सरकारी खर्चे पर घर तक पहुंचाने और पीड़ित परिवारों को उचित मुआवजा देने और घायलों का इलाज कराने की मांग की. जिलाधिकारी ने बहुत आनाकानी के बाद नैनीताल के जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक से संपर्क स्थापित किया. इस तरह मृतकों के शवों और घायलों को मलवे से बाहर निकालने और घर या अस्पताल तक पहुंचाने के प्रयास तेज हुए. तीन दिनों बाद तीन मजदूरों के शव और एक मजदूर काशी राम घायल अवस्था में निकाले गए. ये सभी विगत 28 सितम्बर 2021 को रोटी-रोजगार की तलाश में उत्तराखंड गये थे.
बैरिया थाने के रनहा गांव के रहने वाले प्रवासी मजदूर साहेब यादव जो नैनीताल जिले में भवाली थाने के तला रामगढ़ गांव में भवन निर्माण का काम कर रहे थे, ने 20 अक्टूबर को अपने परिजनों को बताया कि भूस्खलन की यह घटना 17-18 अक्टूबर को घटित हुई. 4 बजे भोर के समय जिस घर में मजदूर सोये हुए थे उसी पर एक पहाड़ गिर गया है. सभी मजदूर उसी घर और पहाड़ के मलवे में दबे हुए हैं. 21 अक्टूबर को 6 और 22 अक्टूबर को 2 शव मलवे से बाहर निकाले गए हैं जबकि दो मजदूर – चुन्नी मांझी और अनिल चौधरी – अब भी मलवे के नीचे दबे पड़े हैं.
का. वीरेन्द्र गुप्ता ने अगले दिन बैरिया थाने के रनहा, सुर्यपुर, सिरसिया, बगम्भरपुर आदि गांवों में जाकर पीड़ितों के परिजनों से मुलाकात की. उन्होंने उतराखंड व बिहार के आपदा प्रबंधन विभाग, बिहार के आपदा प्रबंधन मंत्री व क्षेत्रीय विधायक सह पर्यटन मंत्री नारायण प्रसाद की बेरूखी को आड़े हाथों लिया.
भाकपा(माले) विधायक ने जब सवाल उठाना शुरू किया तब बिहार सरकार की आंखें खुलीं और उप मुख्यमंत्री रेणु देवी का बयान यह बयान आया कि पीड़ित परिवारों को मुख्यमंत्री आपदा कोष से दो लाख रुपये का मुआवजा दिया जाएगा. आगे-पीछे उतराखंड की सरकार ने मुख्यमंत्री आपदा कोष से चार लाख रुपये और बिहार सरकार के श्रम विभाग ने एक लाख रुपये व समाज कल्याण विभाग ने 20 हजार रुपये की मुआवजा राशि घोषित की. मगर अभी तक पीड़ितों के परिजनों तक कोई मुआवजा राशि नहीं पहुंची है. बिहार में ऐसी घटनाओं में मृतकों के परिजनों को मुख्यमंत्री आपदा व दुर्घटना कोष से 5 लाख रु. देने का प्रावधान है. गौरतलब है कि सरकार बिहार में रोजगार तो नहीं ही दे रही, बाहर जाकर जान गंवाने वालों को दी जानेवाली राशि में कटौती कर उनकी सामाजिक सुरक्षा से भी हाथ खींच रही है.
19 वर्षीय शहनाज खातून (पति का नाम-जुमेराती मियां) की शादी 6 माह पहले ही हुई थी. चार साल पहले शहनाज की एक बहन और भाई की बाढ़ में डूबने से मृत्यु हो गई. जब से शौहर की मौत की खबर मिली है वह भारी सदमे में है, जार-बेजार रो रही है और रोते-रोते बेहोश हो जा रही हैं.
65 वर्षीय मुस्मात मुनिया कुंवर के बुढ़ापे का सहारा उनका 22 वर्षीय पुत्र श्रीकांत माझी नहीं रहा. बुढ़ी मां को कमाकर खिलाने वाले अब परिवार में कोई नहीं बचा है.
धीरज कुमार और इम्तेयाज राजमिस्त्री थे. वे दोनों अपने तीन भाइयों में सबसे छोटे और अविवाहित थे. वे विगत 28 सितम्बर को ही नैनीताल गये थे. दोनों के माता-पिता अपने लाड़लों को खोकर भारी दुःख में डूबे हुए हैं.
संतोष के घर में पत्नी व चार बच्चे हैं. एक बच्चा कुछ दिन पहले बाढ़ के पानी में डूबने से मर गया. ढोंढ़ा यादव के परिवार में पत्नी, 4 बच्चियों व 2 बच्चों समेत सात लोग हैं. चुन्नी मांझी के परिवार में पत्नी शारदा देवी, छह बच्चियां व एक बच्चा है. वे अपने परिवार का एकमात्र सहारा थे.
गृहमंत्री अमित शाह द्वारा उत्तराखंड भूस्खलन रेस्क्यू ऑपरेशन बंद करने की घोषणा के बाद अनिल चौधरी, श्रीकांत मांझी और चुन्नी मांझी के शवों को मलवे से निकालने के अभियान पर रोक लग गयी है. रेस्क्यू ऑपरेशन चालू करने और सभी मृतकों के शवों को घर पहुंचाने की मांग पर भाकपा(माले) और खेग्रामस ने सुनील राव, जवाहर प्रसाद कुशवाहा व सुरेन्द्र चौधरी के नेतृत्व में 25 अक्टूबर को जिलाधिकारी के समक्ष विरोध प्रदर्शन किया. प्रदर्शन में चुन्नी मांझी की पत्नी शारदा देवी, उनकी बेटियों निर्मला, ललिता, किरण, बुन्ती व 5 वर्षीय बेटे कुलदीप तथा भाई रामचंद्र मांझी ने भी हिस्सा लिया.
बिहार से लाखों लोग देश के कोने-कोने में रोजी-रोजगार के लिए जाते हैं. इन प्रवासी मजदूरों की मजदूरी मारी जाने, अमानवीय स्थिति में काम करने, सामाजिक प्रताड़ना व उत्पीड़न झेलने तथा बीमारी या दुर्घटना में असहायता जैसी कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इन तमाम मामलों में राज्य सरकारें और प्रशासनिक ढांचा उनकी कोई मदद नहीं करता है. कोरोना काल में पैदल घर वापसी के दौरान भूख सेे लेकर सड़क व रेल हादसों में उनके मौत की घटनाएं सामने आयीं. कश्मीर में हिंसा और उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा में उन्हें जान गंवानी पड़ी है. जरूरी है कि प्रवासी मजदूरों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कानून बने और बिहार सरकार देश के सभी हिस्सों में प्रवासी मजदूर कल्याण कार्यालय स्थापित करे.
– सुनील यादव
हादसे में मृत प. चंपारण जिले के मजदूर