वर्ष - 30
अंक - 43
26-10-2021


2 अक्टूबर 2021 के बाद से छह दिनों में सात नागरिक कश्मीर घाटी में मारे गये जिनमें से चार हिंदू या सिख अल्पसंख्यक समुदायों के तथा तीन कश्मीरी मुसलमान थे. इन हत्याओं की जिम्मेदारी खुद को ‘रेसिस्टेंस फ्रंट’ कहने वाले एक नए आतंकवादी संगठन ने ली है. 2021 में 28 नागरिकों की दहशतगर्दों ने हत्या कर डाली. इनमें से पांच कश्मीरी पंडित या स्थानीय सिख समुदायों के और 2 बिहार के हिन्दू प्रवासी मजदूर थे.  घाटी में नागरिकों और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने वाली आतंकवादी गतिविधियों की यह बढ़ोतरी काफी परेशान करने वाली है. अगस्त 2019 में धारा 370 को निरस्त कर कश्मीर घाटी को नियंत्रित करने वाली मोदी सरकार नागरिकों और अल्पसंख्यकों को आतंकवादियों से बचाने में असमर्थ क्यों है?

मोदी सरकार ने सभी मुनासिब सलाहों को खारिज करते हुए जबरन धारा 370 को निरस्त करने के पीछे जोर देकर यह तर्क दिया था कि इससे घाटी में आतंकवाद का खात्मा हो जाएगा, पर इसके बजाय हम आम नागरिकों को निशाना बनाने वाली दहशतगर्दी की एक नई लहर झेल रहे हैं. लेकिन अब प्रधानमंत्री दूसरों पर आरोप मढ़ अपनी सरकार की जिम्मेदारी से भागने का कोई बहाना नही बना सकते. केवल उन्हें व उनके प्रशासन को ही इस बात का जवाब देना होगा कि आज कश्मीर में अल्पसंख्यकों और आम नागरिकों को दहशतगर्दों के सामने असुरक्षित और बेआसरा क्यों छोड़ दिया गया है.

अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने वाली सांप्रदायिक हिंसा और आतंकवाद पूरे भारत में आखिरी हद तक फैल गयी है. हिंदू-वर्चस्ववादियों द्वारा नवरात्रि उत्सव के दौरान मुस्लिम विक्रेताओं को निशाना बनाया गया. मध्यप्रदेश में मुस्लिम छात्रों को उनके कॉलेज में आयोजित ‘गरबा’ समारोह से जबरन बाहर निकाला गया और हिंदू-वर्चस्ववादी संगठनों द्वारा ईसाइयों को पीटा गया. एक वीडीयो में यति नरसिंहानंद को गाजियाबाद के डासना स्थित अपने मंदिर परिसर में मुस्लिम बच्चों को परेशान करते देखा गया. इंदौर के पास पेवड़ा गांव में हिंदू वर्चस्ववादियों की भीड़ ने हमला कर अकेले मुस्लिम परिवार को बेदखल करने का प्रयास किया और कर्नाटक के बेलगावी जिला में एक मुस्लिम युवा अरबाज का कत्ल हिंदुत्व का चोला ओढ़े श्री राम सेना नाम के आतंकवादी संगठन द्वारा बेरहमी से सिर कलम कर किया गया. छत्तीसगढ़ के कवर्धा में दंगा भड़का कर मुसलमानों पर हमला किया गया व उत्तरप्रदेश के शामली में एक मुस्लिम युवक की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. इस फेहरिस्त  में हर दिन ऐसी नई घटनाएं जुड़ रही हैं.

लखीमपुर खीरी में देश के गृह राज्यमंत्री के बेटे द्वारा शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर लौट रहे किसानों पर अपनी एसयूवी गाड़ी चढ़ा कुचल कर कत्लेआम करना भी किसी आतंकी घटना से कम नहीं है. जब इस नरसंहार में आरोपित मंत्री को बर्खास्त करने की मांग को लेकर गृह मंत्री अमित शाह के आवास पर छात्र- छात्राएं प्रदर्शन कर रहे थे तो दिल्ली पुलिस के जवानों ने छात्राओं को यौन हिंसा का शिकार बनाया. इस तरह के बर्बर अत्याचारों के लिए देश के गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी के अलावा और  कौन जिम्मेदार हो सकता है?

यह बड़ा ही विडंबनापूर्ण है कि हाल में ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के 28वें स्थापना दिवस पर बोलते हुए  प्रधानमंत्री मोदी ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर ‘चुनिंदा नाराजगी’ व्यक्त करने का आरोप मढ़ते हुए उन पर हमला  किया. जबकि सच्चाई यह है कि उनके गृह मंत्री अमित शाह जब मुसलमानों को चुनींदा ढंग से ‘दीमक’ कहकर  संबोधित करते हैं, तो वह उन्हें ‘मानव’ की श्रेणी से बाहर कर देते हैं. और फिर चाहे कश्मीरी पंडित हों और कश्मीर के हिंदू/सिख अल्पसंख्यक हों या पूरे भारत के मुस्लिम अल्पसंख्यक हों, आज मोदी सरकार और भाजपा द्वारा उन पर दमन और उनके ‘अधिकारों’ का हनन किया जा रहा है. भारत की पुलिस और सशस्त्र बल हिरासत में यातना और हत्याओं, मानवाधिकारों व नागरिक स्वतंत्रता के उल्लंघन और दमन का पर्याय बन गए हैं.

इस अवसर पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा द्वारा प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करना और यह कहना कि उनकी वजह से  अब जम्मू-कश्मीर में एक नए युग की शुरुआत हुई है; इतिहास में एनएचआरसी के लिए एक श्रद्धांजलि के बतौर याद किया जाएगा. यदि राजनीतिक संस्थाओं पर निगरानी रखने वाले भारत के मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष  इस तरह की बात कर रहे हैं तो यह समझ लेना चाहिए कि  एनएचआरसी को सरकार की कठपुतली में तब्दील कर दिया गया है. मोदी सरकार द्वारा भारत में मानवाधिकारों के हनन पर काम करने वाले एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थान को देश से निष्कासित कर दिया गया है. इसी हुकूमत ने सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा जैसे भारत के प्रमुख मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को भी कठोर यूएपीए कानून के तहत कैद कर रखा है.

अतः इस समय जरूरत है कि लोग एकजुट होकर सांप्रदायिक और विभाजनकारी ताकतों को खदेड़ कर शिकस्त दें  तथा मोदी सरकार को आतंकवाद और अधिकारों के हनन के लिए जवाबदेह ठहराएं. भाजपा द्वारा घाटी में हो रही हत्याओं का इस्तेमाल मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने या घाटी में नागरिक अधिकारों के दमन के लिए हो, यह हमें कत्तई मंजूर नहीं है.

Modi government incapable

बिहार में राज्यव्यापी प्रतिवाद

जम्मू-कश्मीर में प्रवासी मजदूरों की लगातार हो रही हत्या तथा उत्तराखंड में हुए हादसे में चार बिहारी मजदूरों की मौत के खिलाफ विबत 20 अक्टूबर 2021को भाकपा(माले), खेग्रामस और ऐक्टू के बैनर तले बिहार में राज्यव्यापी विरोध दिवस मनाया गया. ‘प्रवासी बिहारी मजदूरों की हत्या क्यों, मोदी-नीतीश जवाब दो’, ‘प्रवासी मजदूरों की जिंदगी व रोजगार की गारंटी करो’, ‘जम्मू-कश्मीर व नैनीताल के मृतक मजदूरों के परिजनों को 20-20 लाख रुपए का मुआवजा दो’, ‘मृतक मजदूरों के बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था करो’, ‘मृतक के परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दो’ तथा ‘प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा की गारंटी के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कानून बनाओ’ की मांग व नारों के तहत राज्य के कई जिला मुख्यालयों व शहरों में प्रतिवाद मार्च निकाले गए.

भोजपुर में भाकपा(माले) जिला कार्यालय, आरा से विरोध मार्च निकाल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पुतला दहन किया गया. बक्सर जिले के डुमरांव में भी प्रतिवाद जुलूस निकाला गया जो राष्ट्रीय राजमार्ग, नगर परिषद भवन और बाजार होते हुए नया थाना तक पहुंचा. सासाराम में रेलवे स्टेशन परिसर से धर्मशाला होते हुए पोस्ट ऑफिस मोड़ तक प्रतिवाद मार्च निकाल कर प्रतिवाद सभा हुई जिसे रविशंकर राम, जयेंद्र चौधरी, मदन सिंह कुशवाहा, नरेन्द्र राम, जैगम तथा शम्शुल अंसारी के साथ ही भाकपा(माले) जिला सचिव नंदकिशोर पासवान ने भी संबोधित किया. नवादा में जुलूस निकालकर मजदूरों को सुरक्षा देने में नाकाम प्रधानमंत्री मोदी का पुतला फूंका गया. कार्यक्रम में  भाकपा(माले) जिला कमिटी सदस्य सदस्य व इनौस नेता भोला राम, खेग्रामस के अर्जुन पासवान, आइसा के सुमन कुमार तथा दर्जनों महिला-पुरूषों ने भाग लिया.

अरवल में विधायक महानन्द सिंह, विजय यादव, सुएब आलम, मनोज यादव, अशोक कुमार, बीरवल सिंह, शाह फराज आदि भाकपा(माले) नेताओं की अगुआई में प्रतिवाद मार्च निकाला गया. सुएब आलम की अध्यक्षता में हुई प्रतिवाद सभा को संबोधित करते हुए कामरेड महानंद सिंह ने कहा कि मोदी सरकार बिहारी मजदूरों को सुरक्षा प्रदान करने में असफल रही है.

बेगूसराय में भाकपा(माले), खेग्रामस और ऐक्टू की ओर से भाकपा(माले) जिला कार्यालय, कमलेश्वरी भवन से मार्च निकाला गया और समाहरणालय के उत्तरी गेट पर सभा आयोजित की गई. सभा को भाकपा(माले) जिला सचिव दिवाकर कुमार व खेग्रामस के जिला सचिव सह ऐक्टू जिला प्रभारी चन्द्रदेव वर्मा ने भी संबोधित किया. कार्यक्रम में भाकपा(माले) नगर सचिव राजेश श्रीवास्तव, रंगकर्मी दीपक सिन्हा, किसान महासभा के जिला सचिव बैजू सिंह, आइसा नेता वतन कुमार, इंसाफ मंच के संयोजक नूरूल इस्लाम जिम्मी आदि भी मौजूद थे.

बिहारशरीफ (नालंदा) में भाकपा(माले) जिला कार्यालय, कमरूद्दीनगंज से आलमगंज, पोस्ट आफिस और गांधी पार्क होते हुए विरोध मार्च निकाला गया. भाकपा(माले) जिला कार्यालय के समक्ष आयोजित सभा को संबोधित करते हुए कामरेड पालबिहारी लाल ने कहा कि भाजपा की मोदी सरकार जोर शोर से प्रचार कर रही थी कि नोटबंदी और धारा-370 हटाने से कश्मीर से आतंकवाद का सफाया हो गया, लेकिन सच्चाई यही है कि मोदी सरकार पूरी तरह से फेल साबित हो रही है. कार्यक्रम में सुनील, मकसूदन शर्मा, किशोर साव, नसीरुद्दीन, पिंटू कुमार, आदि शामिल थे.

राजधानी पटना के कारगिल चौक पर भाकपा(माले) व ऐक्टू की ओर से प्रतिवाद सभा आयोजित की गई. सभा को ऐक्टू के राज्य महासचिव आरएन ठाकुर व राज्य सचिव रणविजय कुमार सहित कई नेताओं ने संबोधित किया.