- कुमार परवेज
सुबह के 9 बजे होंगे, धूप अभी से ही बेहद कड़ी थी. उसी धूप में खुले आसमान के नीचे एक दूध पीता बच्चा तप रहा था. महिला-पुरुष सभी किसी छांव की उम्मीद में इधर-उधर भटक रहे थे. मूलतः कचड़ा बीन कर अपना जीवन चलाने वाले राजधानी पटना के मलाही पकड़ी में रह रहे गरीबों की झोंपड़ियों को प्रशासन ने विगत 5 अक्टूबर को बर्बरता से रौंद दिया. सारी झोपड़ियां जमींदोज कर दी गईं. यहां तक कि आग लगाकर सभी सामान भी नष्ट कर दिए गए. लगभग 25 वर्षों से उस स्थान पर रह रहे इन गरीब परिवारों का अपराध बस इतना है कि वे उस स्थान से अपनी बेदखली का विरोध कर रहे थे और उसके एवज में किसी और स्थान पर अपनी झोपड़ियों को बसाए जाने की मांग कर रहे थे. विदित हो कि पटना में चल रहे मेट्रो प्रोजेक्ट के तहत उसी स्थान पर एक बड़े स्टेशन का निर्माण होना है, जहां पर इन गरीबों की झोपड़ियां थीं.
‘बाबू, मारा सो तो मारा ही, सब चौका-बर्तन चूर दिया. 5 अक्टूबर की सुबह 9 बजे प्रशासन की ओर से सभी झोपड़ियों को खाली करने का आदेश दिया गया. हमलोग खाली कर ही रहे थे कि कुछ ही देर बाद सैंकड़ों की संख्या में चितकबरा पुलिस आ पहुंची और लोगों को मारना-पीटना शुरू कर दिया. गंदी-गंदी गालियां देते हुए हमलोगों का बाल खींच-खींच कर मारा. राजेश ठाकुर के माथा पर मार दिया. उसी रात वे मर गए. सबकी हालत खराब हो गई है.’ - अपनी बांह, चेहरे और शरीर के अन्य हिस्सों पर पुलिसिया मार से स्याह पड़ चुके निशानों को दिखाते हुए अनीता देवी ने कहा.
अनीता ने आगे बताया कि उनके बड़े बेटे रोहित को पुलिस ने बिजली के तार से बेरहमी से पीटा. वह जब भागकर इलाज कराने बगल के एक अस्पताल में पहुंचा तो पुलिस वहां भी पहुंच गई और अस्पताल में ही बर्बरता से पीटने लगी. एक तरफ पुलिस की मार पड़ रही थी, दूसरी परफ उनके बर्तनों व सामानों को तोड़ा जा रहा था. पुलिस ने चूल्हे पर पका भोजन तक उठाकर पफेंक दिया और बचे-खुचे सामान लूट लिए. अनीता देवी कहती हैं - ‘चौका-बर्तन का काम करते थे. महीना में 2200 रु. मिलता था. सब छूट गया है. घर में अनाज का एक भी दाना नहीं है. बच्चों के भरोसे जीवन चल रहा है. वही लोग जहां-तहां से चुन-बीन करके कुछ लाता है तो हम कुछ खा पाते हैं. जब खाएला ही ना है, त इलाज कहां से करायेंगे? दिन-रात हम सब लोग डर में जी रहे हैं कि कब पुलिस आएगी और यहां से भगा देगी!’
ईंट जोड़ कर बने चूल्हे पर भात पका रहीं करमनी देवी कहती हैं - “यहीं हमलोग पैदा हुए, यहीं जवान हुए, यहीं शादी भी हुई, 2 गो बच्चा भी हुआ, लेकिन आज सबकुछ तहस-नहस हो गया, हमलोग कहां जाएं?” मंजू देवी कहती हैं - “दूसरा से बर्तन लेकर बच्चों के लिए खाना बना रहे हैं. सब सामान चूर दिया. एक चम्मच तक नहीं बचा है. कबाड़ी की दूकान थी, उसे भी जला दिया” - सब परिवारों की कहानी एक सी है. ये लोग सबसे पहले खाने-पीने के सामान की व्यवस्था चाहते हैं.
5 अक्टूबर 2021 को एएसपी संदीप सिंह के नेतृत्व में पुलिस ने मलाही पकड़ी में बर्बरता की सारी हदों को पार कर दिया और मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ा दी. पुलिस की वहशियाना कार्रवाई ने लोगों के बीच भय पैदा कर दिया है. चालीस वर्षीय राजेश ठाकुर की मौत के बाद तो और भी लोग डरे-सहमे हैं. दर्द, अपमान और आर्थिक विपन्नता से जूझते इन परिवारों को उम्मीद है कि आंदोलन का नेतृत्व दे रहे नेता जरूर कोई न कोई रास्ता निकाल लेंगे.
मेट्रो स्टेशन निर्माण के कारण हो रहे इस विस्थापन के मद्देनजर इन गरीबों के लिए वैकल्पिक आवास मुहैया कराने सवाल पर 5-6 अगस्त 2021 को मलाही पकड़ी चौक पर भाकपा(माले) और अन्य वाम संगठनों ने एकताबद्ध होकर दो-दिवसीय धरना दिया था. इसमें भाकपा(माले) विधायक दल के नेता का. महबूब आलम, शहरी गरीब मोर्चा के संयोजक अशोक कुमार व ऐक्टू नेता रणविजय कुमार सहित अन्य नेता भी शामिल हुए थे. प्रशासन ने विस्थापितों को दूसरी जगह बसाने का आश्वासन दिया था. इस सहमति के बाद ही धरना खत्म हुआ था. उसके बाद विस्थापित होने वाले परिवारों की सूची बननी आरंभ हुई और करीब 250 परिवारों की सूची बन भी गई, लेकिन, इसी बीच 5 अक्टूबर को पुलिस प्रशासन ने इस बर्बर घटना को अंजाम दे दिया.
पुलिस बर्बरता में घायल होने के बाद इलाज के दौरान राजेश ठाकुर की मौत के खिलाफ आक्रोशित हजारों शहरी गरीबों ने 6 अक्टूबर को मलाही पकड़ी चौराहे को घेर कर जाम लगा दिया. वे नीतीश-भाजपा सरकार की गरीब विरोधी नीतियों को इस घटना के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए मृतक राजेश ठाकुर के परिजन के लिए 10 लाख रु. मुआवजा व सरकारी नौकरी, पुलिस अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज करने, बगैर वैकल्पिक व्यवस्था के झुग्गियों को उजाड़ने पर तुरन्त रोक लगाने तथा पहले के आंदोलन के बाद पाटलिपुत्र खेल परिसर के उत्तर में पटना डीएम द्वारा चयनित स्थल पर गरीबों को बसाने के सवाल पर बनी सहमति को लागू करने की मांग करते हुए मृतक राजेश ठाकुर के शव को चौक पर रख कर प्रदर्शन करने लगे.
शहरी गरीब मोर्चा व भाकपा(माले) नेता अशोक कुमार, पन्नालाल सिंह, उमेश शर्मा, छात्र नेता पुनीत व भाकपा समेत अन्य दलों-संगठनों के नेताओं के नेतृत्व में आंदोलनकारियों ने मलाही पकड़ी चौक को चौतरफा जाम कर दिया. झुग्गी-झोपड़ी वासी शहरी गरीबों के आंदोलन की खबर पाते ही भाकपा(माले) विधायक दल के नेता महबूब आलम व ऐक्टू के राज्य सचिव रणविजय कुमार भी मलाही पकड़ी चौक पर पहुंच गए और वहीं पर धरना पर बैठ गए.
भाकपा(माले) विधायक दल नेता का. महबूब आलम के पहुंचते ही आंदोनकरियों का जोश दुगुना हो गया. वहां मौजूद एसडीओ (पटना सदर) व पुलिस अधिकारियों से हुई वार्ता में मृतक राजेश ठाकुर के परिजनों को 5 लाख रु. मुआवजा देने (जिसमें 4 लाख रु. जिला प्रशासन व 1 लाख रु. श्रम विभाग की असंगठित कामगार योजना के तहत देने), तत्काल 20 हजार रु. व कबीर अंत्येष्टि योजना के तहत 3 हजार रु. नकद देने, दोषी अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज करने, मृतक राजेश के एक परिजन को नगर निगम में नौकरी देने आदि मांगों पर बनी सहमति के बाद आंदोलन समाप्त हुआ.
इन्हीं सवालों पर आंदोलन तेज करने के उद्देश्य से 9 अक्टूबर को भाकपा(माले) व अन्य वाम दलों ने ‘मलाही पकड़ी झुग्गी झोपड़ी बसाओ संघर्ष समिति’ का गठन किया. बैठक में मुख्य रूप से भाकपा(माले) के पटना स्थाई समिति सदस्य अशोक कुमार, भाकपा(माले) के पटना महानगर सचिव अभ्युदय, भाकपा के देवरत्न प्रसाद, माकपा के मनोज चंद्रवंशी व ऐक्टू नेता रणविजय कुमार उपस्थित हुए. अगले दिन राजेश ठाकुर की श्रद्धांजलि सभा आयोजित हुई.
पटना मेट्रो के उक्त स्थल पर बन रहे स्टेशन निर्माण के कार्य में झुग्गी-झोपड़ी के 12 युवकों को मजदूरी का काम मिला है. मजदूर रामकिशुन पासवान कहते हैं कि उन लोगों से साफ-सफाई करवाने समेत अन्य काम लिए जाते हैं, लेकिन मजदूरी महज 260 रु. दी जाती है. वे बताते हैं कि मजबूरी में हमें यह काम करना पड़ रहा है. मेट्रो वाला बोलता है कि काम करना है तो करो, नहीं तो छोड़ दो. मजदूरी नहीं बढ़ेगी.
रामकिशुन पासवान ने अपने मोबाइल में एक तस्वीर दिखलाई. यह सूचना पट्ट है जिसमें अकुशल, अर्द्धकुशल, कुशल व अतिकुशल मजदूरों की मजदूरी का निर्धारण किया गया है. नार्गाजुन कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड उनका नियोक्ता है, जबकि मुख्य नियोक्ता दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन है.
अकुशल मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी 534 रु., अर्द्धकुशल मजदूरों के लिए 603 रु., कुशल मजदूरों के लिए 767 रु. और अतिकुशल मजदूरों के लिए 777 रु. प्रतिदिन दर्ज है. लेकिन इन 12 मजदूरों को महज 260 रु. प्रतिदिन मिल रहा है. इन मजदूरों ने अपनी मजदूरी कम से कम 400 रु. करने की मांग उठाई. उन्होंने तीन-चार बार हड़ताल भी की, लेकिन मेट्रो प्रशासन अपने ही नियमों को लागू नहीं कर रहा है. बेराजगारी और बेबसी ऐसी है कि लोग कम मजदूरी पर भी काम करने को मजबूर हैं.
‘मेट्रो रेल परियोजना’ गरीबों के लिए ‘आपदा’ बन गई है. कई गरीब बस्तियां परियोजना के निशाने पर हैं. सरकार ने गरीबों के पुनर्वास की कोई योजना नहीं बनाई है.