[ बिहार विधान सभा अध्यक्ष को माले विधायक दल का स्मारपत्र (29.05.2021)]
महाशय,
कोविड महामारी की अप्रत्याशित कठिन स्थितियों में विधायकों से बातचीत की पहल के लिए हम आपका आभार प्रकट करते हैं. विधान सभा के विगत सत्र में चरम अपमान झेलने के बावजूद कोविड महामारी के दौर में जनहित में आपके बुलावे पर बैठक में शामिल होना हमलोगों ने जरूरी समझा.
महोदय, महामारी की दूसरी लहर का आना तय था और विशेषज्ञों ने इसकी चेतावनी भी दी थी, लेकिन केंद्र और राज्य सरकार ने जिस तरह का गैरजिम्मेदाराना रवैया अख्तियार किया, उसकी देश ही नहीं विदेश तक में चौतरफा आलोचना हुई. स्वास्थ्य व्यवस्था की घोर असफलता के लिए बिहार और देश के अन्य राज्यों के हाई कोर्ट ने सरकार को क्या कुछ नहीं कहा – अदूरदर्शी, असंवेदनशील, अगंभीर, आपराधिक लापरवाही, अलोकतांत्रिक आदि, आदि! हमारी स्वास्थ्य सेवा की कलई महामारी ने खोल दी! हमें उम्मीद है कि केंद्र और हमारी राज्य सरकार इससे जरूर शिक्षा लेंगी और तमाम कमियों को ठीक करेंगी, क्योंकि तीसरी लहर आने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
महाशय, हम एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में रहते हैं जहां जनता सीधे जन-प्रतिनिधियों को अपना दुख-दर्द सुनाती है. जन प्रतिनिधि होने के नाते यह उनकी जिम्मेवारी भी है कि वे उनकी समस्या को जानें, उनके हल के लिए उचित कदम भी उठाएं और शासन-प्रशासन पर इसके लिए दबाव भी डालें. लेकिन काफी दुख और क्षोभ के साथ कहना पड़ रहा है कि जिस तरह विगत विधान सभा सत्रा के दौरान विधायकों को सरेआम लात-जूतों से मारा गया और अपमानित किया गया, वह बिहार के माथे पर कलंक का टीका बन चुका है. नतीजा यह है कि इस भीषण त्रासदी के दौर में भी, जब सब को मिलजुलकर मुकाबला करना है, न सिर्फ नौकरशाही का, बल्कि जन प्रतिनिधियों के प्रति भाजपा-जदयू सरकार का भी उपेक्षापूर्ण व अलोकतांत्रिक रवैया दिखता है. जन प्रतिनिधियों की कोई नहीं सुनता!
एक उदाहरण सुनिए. महीना भर से ज्यादा समय से पटना में हमारी पार्टी द्वारा कोविड हेल्प सेंटर चलाया जा रहा है. जब ऑक्सीजन और बेड के लिए हाहाकार मचा था, उस समय चौबीसों घंटे सूचना देकर इसने जीवन रक्षक भूमिका निभाई, बीमार पड़े लोगों के घरों तक दवाई व भोजन पहुंचाया और लाॅकडाउन से बेरोजगार-लाचार लोगों के बीच राशन व भोजन बांटने का काम आज भी जारी है. हेल्प सेंटर के स्वयंसेवकों के लिए लाॅकडाउन के दौरान सहज गतिविधि की खातिर अदना-सा पास निर्गत करने के लिए एसडीओ, जिलाधिकारी महोदय से लेकर मुख्य मंत्री कार्यालय तक अपील की गई, लेकिन आज तक पास निर्गत नहीं किया गया. यह महज एक घटना है.
महोदय, तमाम शर्मनाक घटनाएं विधान सभा सत्र के दौरान हुईं. स्वाभाविक रूप से आप पर और राज्य का मुखिया होने के नाते मुख्य मंत्री महोदय पर सारी जिम्मेवारी जाती है. लेकिन उक्त शर्मसार करने वाली घटना के लिए आज तक न तो विधायकों से माफी मांगी गई, न खेद या दुख व्यक्त किया गया और न ही दोषी पुलिस-प्रशासन को दंडित किया गया! इसे कैसे उचित ठहराया जा सकता है?
लिहाजा, विधायकों का सम्मान लौटाना न सिर्फ लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना के लिए जरूरी है, बल्कि आपदा से निपटने के लिए भी उनकी अथाॅरिटी और विशेषाधिकार को स्थापित करना जरूरी है.
महोदय, हमारी पार्टी के सारे विधायक पहले ही दिन से कोविड पीड़ितों की सेवा में जी-जान से जुटे हुए हैं. हमने कोविड की हाहाकारी स्थितियों से उबरने के लिए सरकार को बार-बार पत्र लिखा है, लेकिन सरकार ने शायद ही उस पर कोई जवाब दिया हो. हम आज आपको स्मारपत्र सौंप रहे हैं, ताकि सरकार को तत्काल सकारात्मक कदम उठाने के लिए बाध्य किया जा सके. हमें उम्मीद है कि दलीय भावना से ऊपर उठकर आम लोगों की जिंदगी व जीविका का ख्याल किया जाएगा और सुझावों पर गौर कर उचित कदम उठाए जाएंगे. हमारे सुझाव इस प्रकार हैं:
1. महामारी के दौर के तमाम मृतकों की सूची बनाएं और आश्रितों को 10 लाख की अनुग्रह राशि दें:
महामारी से एक-एक गांव में 45 लोगों तक की मौत की खबरें आ रही हैं. हमारी पार्टी पूरे राज्य में मृतकों की जांच कर रही है. इसकी रिपोर्ट हम राज्य सरकार को सौंपेंगे. जांच का कुछ उदाहरण हम यहां पेश करना जरूरी समझते हैं. भोजपुर के कुछ गांवों में प्राथमिक जांच के दौरान मृतकों का आंकड़ा इस तरह मिला है: कुलहड़िया (कोइलवर) – 46, एकवारी (सहार) – 14, धनगावां (तरारी) – 20, डुमरिया (तरारी) – 14, बागर (तरारी) – 21, बंधवां (तरारी) – 14 आदि. लेकिन सरकारी आंकड़ों में उक्त आंकड़ा शायद ही कहीं दर्ज होगा. भरा पूरा परिवार उजड़ गया है और बच्चे अनाथ हो गए हैं.
अनेक मौतें ऐसी हैं जिनमें कोविड के तमाम लक्षण पाए गए, लेकिन न तो एंटीजन टेस्ट और न ही आरटीपीसीआर जांच पाॅजिटिव आया. सर्दी-खांसी की शिकायत वाले बड़ी संख्या में ऐसे मृतक भी हैं जो अस्पताल गए ही नहीं. गांव के ही डाक्टर से इलाज कराते रहे और काल कवलित हो गए. अस्पतालों में आम बीमारियों का इलाज बंद होने और आवागमन की कठिनाइयों के कारण भी अनेक लोग समुचित इलाज के अभाव में मारे गए हैं. सरकार को चाहिए कि पूरे राज्य में, खासकर ग्रामीण इलाके में हुई मौतों का पता लगाने की समुचित व्यवस्था करे.
हमारी मांग है कि सरकार ऐसे तमाम लोगों को 10 लाख रुपये की अनुग्रह राशि प्रदान करे और साथ ही, अनाथ हुए बच्चों के भरण-पोषण की जिम्मेवारी ले. सरकार की आपराधिक लापरवाही के कारण ही इतने सारे लोग मारे गए हैं. लेकिन मौत के बाद भी पीड़ित परिवार की सहायता नहीं करना एक अक्षम्य अपराध होगा.
2. न्यूनतम समय में सबों के टीकाकरण की गारंटी करें
सबों का टीकाकरण ही हमें कोविड से निजात दिला सकता है. लेकिन यह बेहद शर्मनाक है कि पड़ोसी उत्तर प्रदेश और हमारा राज्य इस मामले में पूरे देश में सबसे निचले पायदान पर हैं. हम अभी तक 1 प्रतिशत आबादी का ही टीकाकरण कर सके हैं. 18 वर्ष से ऊपर के लोगों के लिए टीका दुर्लभ बना हुआ है. ऑनलाइन पंजीकरण, स्लाॅट अलाॅटमेंट आदि ने भी इसमें काफी बाधा डाली है. 45 से 60 आयु समूह के टीकाकरण की गति भी काफी धीमी है. कोरोना के लगातार रूप बदलते रहने के कारण न्यूनतम नियत समय में ही टीकाकरण का कोई मतलब रहेगा. विशेषज्ञों का मानना है कि अभी ही कोविशील्ड टीका का असर वर्तमान स्ट्रेन पर काफी घट गया है. इसलिए टीकाकरण में देरी घातक होगी.
ग्रामीण इलाके में अभी भी टीका के प्रति अनेक प्रकार के भ्रम और हिचक मौजूद हैं. सरकार द्वारा दूसरे डोज की समयावधि के बारे में लगातार बदलाव से भी भ्रम को बल मिल रहा है. अनेक घटनाएं ऐसी भी हैं जिसमें टीका लेने के 2-4 दिन के भीतर लोगों की मौत हो गई. मृत्यु के कारणों की जांच नहीं होने से भी भय और भ्रम बना हुआ है. और, ऊपर से बाबा रामदेव सरीखे लोग बेधड़क जनता के बीच मूर्खता और अंधविश्वास फैलाने में लगे हुए हैं.
विगत विधानसभा चुनाव के समय प्रधान मंत्री महोदय ने मुफ्त टीका का वादा किया था. लेकिन अब वे इससे भाग रहे हैं. सरकार को उनसे वादा पूरा करने की मांग करनी चाहिए. इसी तरह, टीकाकरण के लिए केन्द्र सरकार के बजट में आवंटित 35,000 करोड़ रुपये की राशि में अपने हिस्से के लिए भी केंद्र सरकार पर दबाव बनाना चाहिए.
हमारी मांग है कि न्यूनतम समय में – बेहतर होगा तीन महीने के अंदर – हर आयु समूह के लोगों के टीकाकरण की गारंटी की जाए और इसके लिए जो भी आवश्यक कदम जरूरी हों, उसे तत्काल उठाया जाए. जरूरत के हिसाब से विदेशों से भी टीका आयात किया जाए. टीकाकरण प्रक्रिया का पंचायत स्तर तक विस्तार किया जाए और स्कूल, वार्ड, आंगनबाड़ी केंद्रों व चलंत टीका केन्द्रों के जरिए इसे हर हाल में पूरा किया जाए.
साथ ही, सरकार को जनता के बीच जागरूकता पैदा करने का भी गंभीर प्रयास करना चाहिए. जनता में गाय, गोबर, गोमूत्र से कोरोना के उपचार जैसे अंधविश्वासों का प्रचार करनेवालों तथा भ्रम, अंधविश्वास और अवैज्ञानिक सोच फैलाने वालों के खिलाफ कड़े कदम उठाए जाएं.
3. गांवों में मोबाइल जांच टीम भेजें और 24 घंटे में आरटीपीसीआर रिपोर्ट की गारंटी करें
यह निर्विवाद सत्य है कि बीमारी की रोकथाम के लिए व्यापक जांच में की गई कोताही के कारण ही बीमारी का प्रसार गांव तक हुआ है. गांवों में शायद ही ऐसा कोई घर बचा होगा जहां कोई कोविड का शिकार न हुआ हो. आज भी बीमारी वहां व्यापक पैमाने पर है और पोस्ट कोविड कंप्लेन भी बड़े पैमाने पर आना तय है. विशेषज्ञों का मानना है कि कोविड के शिकार लोगों की जान पर आगामी 6 महीने तक खतरा रहता है. इसलिए जरूरी है कि अस्पतालों में बीमार लोगों की संख्या घटने पर सरकार अपनी पीठ खुद न थपथपाए, बल्कि ग्रामीणों की सुध ले.
हमारी मांग है कि बड़ी संख्या में चिकित्सा कर्मियों की मोबाइल टीम बनाकर गांवों में भेजा जाए. वर्तमान में बीमार तथा स्वस्थ हो गए लोगों की जांच की जाए और उन्हें चिकित्सकीय सलाह व सुविधा प्रदान की जाए. इस काम में विशेष ट्रेनिंग देकर ग्रामीण डाक्टरों को भी लगाया जा सकता है.
17 अप्रैल की सर्वदलीय बैठक में ही आरटीपीसीआर जांच बढ़ाने और 24 घंटे के भीतर जांच की रिपोर्ट मिलने की गारंटी करने की सर्वसम्मत मांग उठी थी. लेकिन आज भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है और रिपोर्ट आने में 10-10 दिन लग जा रहे हैं. इसे ठीक किया जाए और कम से कम जिला स्तर पर आरटीपीसीआर जांच की व्यवस्था की जाए.
4. प्राथमिक चिकित्सा सेवा में सुधार के उठाए जानेवाले कदमों का श्वेत पत्र जारी करें
राहत की बात है कि बारदृबार ध्यान आकृष्ट कराने के बाद राज्य सरकार की नजर महामारी से निपटने के लिए प्राथमिक चिकित्सा सेवा को मजबूत करने पर गई है. लेकिन हमें डर है कि यह कहीं काम से ज्यादा बड़ी-बड़ी बातें करने की संस्कृति की भेंट न चढ़ जाए. सरकार की भाषा हमेशा ‘फील गुड’ वाली होती है, लेकिन काम जहां का तहां रहता है.
बड़ी संख्या में उपस्वास्थ्य केंद्र के अपने भवन नहीं हैं या वे जीर्णशीर्ण हैं या बंद हैं. अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र ही नहीं, अनेक जगहों पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक के भवन जर्जर हो चुके हैं. सिवान के जिरादेई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के लिए जब हमारी पार्टी के विधायक ने क्षेत्र विकास राशि से ऑक्सीजन सिलिंडर आदि स्वास्थ्य उपकरण देना चाहा, तो वहां के चिकित्सा प्रभारी ने उसे लेने से इंकार कर दिया क्योंकि उसे सुरक्षित रखने के लिए भवन नहीं है. वहां की छत की छड़ें दिखती हैं, छत से पानी टपकता है.
हम सरकार से मांग करते हैं कि वह श्वेत पत्र जारी कर बताए कि राज्य के उपस्वास्थ्य केंद्र, अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, रेफरल, अनुमंडल व जिला अस्पतालों तक की स्थिति क्या है और इसे ठीक करने और कोविड के इलाज की बेहतर व्यवस्था के लिए सरकार कौन से कदम उठा रही है, क्या इंतजाम कर रही है और यह कब तक पूरा होगा? अन्यथा बड़ी-बड़ी बातें होती रहेंगी और जमीनी हकीकत के बारे में लोग अंधेरे में रहेंगे. इसलिए निचली स्वास्थ्य व्यवस्था की सर्वांगीण समीक्षा और उसपर आधारित श्वेत पत्र बहुत जरूरी है.
हमारी मांग है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र और अनुमंडल अस्पतालों में ऑक्सीजन-युक्त बेड की व्यवस्था की जाए और बेड की संख्या बढ़ाई जाए और हरेक सदर अस्पताल में वेंटिलेटर-युक्त आइसीयू की व्यवस्था की जाए. जिला अस्पतालों में सीटी स्कैन की भी जरूर व्यवस्था की जाए. एंटीजन और आरटीपीसीआर टेस्ट अनेक मामले में बीमारी को नहीं पकड़ पाते. ऐसी हालत में सीटी स्कैन का भारी महत्व हो जाता है. सदर अस्पताल में सुविधा बढ़ने से मेडिकल काॅलेजों पर भी दवाब घटेगा और क्रिटिकल पेशेंट को बेहतर इलाज मिल सकेगा.
अस्पतालों में ऑक्सीजन सिलिंडर, फ्लोमीटर, एंबुलेंस आदि उपकरणों, जांच और जरूरी दवाइयों की पर्याप्त मात्रा की गारंटी की जाए. हाल ही में तरारी, भोजपुर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की जांच में पाया गया है कि वहां सिर्फ विटामिन-सी के अलावा कोई दवा नहीं है. पैरासिटामोल तक उपलब्ध नहीं है. सवाल उठता है कि राज्य के चिकित्सा बजट का 17,564 करोड़ रुपया आखिर कहां खर्च किया जा रहा है?
हमारी मांग है कि मेडिकल काॅलेजों में वेंटिलेटर-युक्त आइसीयू बेड की संख्या में बढ़ोत्तरी की जाए. उपरोक्त कार्यों के लिए अगर जरूरी हो तो सरकार स्वास्थ्य बजट को पर्याप्त मात्रा में बढ़ाए या अन्य विभाग की राशि डायवर्ट करे.
अस्पतालों के प्रबंधन, दवाइयों व उपकरणों की खरीद आदि में नौकरशाही के गैरजरूरी हस्तक्षेप और वर्चस्व को खत्म किया जाना चाहिए. डाॅक्टरों की टीम को इस कार्य के लिए अधिकृत किया जाए.
5. एंबुलेंस को एनजीओ की चंगुल से मुक्त कर सरकार उसका संचालन अपने हाथों में ले
सरकार ने एंबुलेंस सेवा की जिम्मेवारी से पल्ला झाड़ लिया है और उसे एनजीओ के हवाले कर दिया है. नतीजतन मरीजों के लिए एंबुलेंस दुर्लभ हो गया है, लेकिन विडंबना देखिए कि सरकार पर इसका वित्तीय बोझ दुगुना हो गया है. लोग बताते हैं कि जहां 70 हजार खर्च आता था, वहां अब 1 लाख 70 हजार खर्च आ रहा है. यह सरकारी खजाने की लूटखसोट का जरिया बन गया है. इसलिए हमारी मांग है कि एंबुलेंस को एनजीओ के चंगुल से मुक्त कर सरकार उसका संचालन अपने हाथों में ले. निजी एम्बुलेंस वालों की लूट भी जारी है. सरकार द्वारा जारी दर कहीं भी लागू नहीं हो रही है. महज 8 किलो मीटर दूरी के लिए 25 हजार रुपए तक वसूले जा रहे हैं. ऐसे लोगों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए.
विगत 15 वर्षों में राज्य में एमपी-एमएलए-एमएलसी व अन्य कोटे की राशि से खरीदे गए एंबुलेंस की वास्तविक स्थिति का हमें कोई अंदाजा नहीं है. सारण में भाजपा नेता श्री राजीव प्रताप रूडी के यहां से बरामद कई दर्जन एंबुलेंस इसका उदाहरण है. मामूली सी खराबी के कारण ढेरों एंबुलेंस बेकार पड़े हैं. इसी प्रकार पीएम केयर फंड की राशि से आए अधिकांश वेंटिलेटर्स बेकार साबित हो रहे हैं. दरअसल सप्लाई ही रद्दी वेंटिलेटर की हुई है जो चालू होने से पहले ही बेकार हो गए. इसकी खरीद में भारी घपला से इंकार नहीं किया जा सकता. केन्द्र सरकार से पूछा जाना चाहिए कि जनता के जीवन से खिलवाड़ करते हुए खराब जीवन रक्षक उपकरण क्यों भेजे गए? हमारी मांग है कि एंबुलेंस व वेंटिलेटर, दोनों मुद्दों पर सरकार तत्काल एक श्वेत पत्र जारी करे और जनता को अद्यतन स्थिति से अवगत कराए.
6. निजी अस्पतालों के बारे में आई शिकायतों की जांच के लिए विशेष कमिटी गठित करें
स्पेन जैसे देश की सरकार ने तो कोविड महामारी से निपटने के लिए तमाम निजी अस्पतालों का राष्ट्रीयकरण ही कर दिया है. लेकिन यहां सरकार निजी अस्पतालों में इलाज की दर से संबंधित अपने फैसलों को भी लागू करवाने में बेबस, लाचार व असफल है. इलाज में मनमाना राशि लेने की अनेक रिपोर्टें मिल रही हैं. बीमार और उनके परिजन की इज्जत से खिलवाड़ की भी रिपोर्टें मिली हैं. शुरू से हमारी मांग रही है कि कम से कम निजी अस्पतालों में मरीज के इलाज पर हो रहा खर्च सरकार वहन करे. हमारी मांग है कि निजी अस्पतालों के बारे में आई शिकायतों की जांच के लिए विशेष कमिटी गठित की जाए, शिकायत के लिए फोन नंबर, मेल आदि जारी किए जाएं और दोषी अस्पताल व व्यक्ति के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए.
7. डाॅक्टर सहित चिकित्सा सेवा से जुड़े तमाम रिक्त पदों पर अतिशीघ्र बहाली करें
निचले अस्पताल इस दौरान कोई काम के इसलिए नहीं रह गए थे क्योंकि एक तो पहले से ही वहां कम स्टाफ थे और जो थे भी उनको राजधानी आदि जगह के अस्पतालों में बुला लिया गया था. महामारी से निपटने में एक बहुत बड़ी समस्या यह है कि डाक्टरों, विशेषज्ञों, नर्सों, तकनीशियनों आदि स्वास्थ्य कर्मियों के हजारोंझार पद वर्षों से रिक्त हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर एक हजार की आबादी पर एक डाॅक्टर होना चाहिए. देश का औसत जहां करीब डेढ़ हजार की आबादी पर एक डाॅक्टर का है, वहीं हमारे राज्य में यह करीब 29 हजार की आबादी पर एक डाॅक्टर का है. यह हमारे लिए काफी चिंता और शर्म की बात है. इस वजह से अस्पताल रहते हुए भी उसका इस्तेमाल संभव नहीं हो पा रहा है. कोविड से बड़ी संख्या में डाक्टर व अन्य स्वास्थ्यकर्मी न सिर्फ बीमार पड़े हैं बल्कि देश में सर्वाधिक डाॅक्टर बिहार में ही मारे गए हैं. कई बार तकनीशियन के संक्रमित होने से जांच बंद तक करनी पड़ी है.
हमारी मांग है कि ऐसे तमाम रिक्त पदों पर शीघ्रातिशीघ्र बहाली की जाए. डाॅक्टरों, नर्सों और तकनीशियनों का एक पूल (चववस) भी बनाना जरूरी है, ताकि स्वास्थ्यकर्मियों के बीमार पड़ने, निधन या आपात स्थितियों में अस्थाई अस्पताल बनाते समय बुनियादी स्वास्थ्य सेवा बाधित न हो.
विगत वर्ष देहाती डाक्टरों को भी ट्रेनिंग दी गई है. उनका भी महामारी में इस्तेमाल किया जा रहा है. यह एक सराहनीय कार्य है. यह एक सच्चाई है कि सरकारी स्वास्थ्य सेवा की बदहाल स्थिति और गरीबी के कारण देहाती डाक्टर ही ग्रामीणों की स्वास्थ्य सेवा का बोझ उठाए हुए हैं. इसलिए व्यापकतम देहाती डाक्टरों को विशेष ट्रेनिंग देकर उनका उपयोग किया जाना चाहिए.
8. विधायक मद की राशि विधायकों की राय से और पारदर्शी तरीका से खर्च करें
विधायकों से बिना किसी राय-मशविरे के बहुत ही अलोकतांत्रिक तरीके से उनके क्षेत्रीय विकास मद से 2-2 करोड़ रुपये की राशि राज्य सरकार द्वारा हथिया ली गई है. इसके खर्च में भी पारदर्शिता का सर्वथा अभाव है. इसे कहां और किस मद में खर्च किया जा रहा है, सब कुछ अंधेरे में है. विगत वर्ष भी कोरोना के समय इसी प्रकार 50-50 लाख रुपया ले लिया गया था, लेकिन आज तक नहीं बताया गया कि उसे कहां खर्च किया गया?
हम सरकार के इस रवैए की तीखे शब्दों में निंदा करते हैं और मांग करते हैं कि संबंधित जनप्रतिनिधि के क्षेत्र में ही स्वास्थ्य सेवाओं को उन्नत करने में उक्त राशि का न्यूनतम 50 प्रतिशत खर्च किया जाए. क्षेत्र विशेष की स्वास्थ्य सेवा की जरूरत के अनुसार राशि आवंटन में विधायकों की सलाह को सर्वाेपरि माना जाए.
हमारी पार्टी के विधायकों ने शेष बची 1 करोड़ रुपये की राशि भी क्षेत्र के अस्पतालों में खर्च करने की अनुशंसा की है. यह अनुशंसा अस्पताल की जरूरत और वहां कार्यरत डाॅक्टरों की राय के आधार पर की गई है. लेकिन सरकार द्वारा तय मदों की सूची में कुछ मद का नाम नहीं रहने के कारण जिला योजना पदाधिकारी के लिए आगे की कार्रवाई करना संभव नहीं हो पा रहा है. उदाहरण के लिए, फुलवारी शरीफ के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के लिए ऑक्सीजन प्लांट की अनुशंसा अधर में अटकी पड़ी है. मुख्य मंत्री महोदय के टेबल पर अनुशंसा धूल पफांक रही है. इस तरह की बाधा दूर की जानी चाहिए और अस्पताल की वास्तविक जरूरत के आधार पर खरीद की इजाजत दी जानी चाहिए. लगता है मदों की सूची भी वास्तविक जरूरत से हटकर मनमाना तरीके से तैयार की गई है.
9. रोज कमाने-खाने वाले लोगों के लिए काम, राशन और गुजारा भत्ता दें
रोज कमाने-खाने वाले ग्रामीण और शहरी गरीबों, छोटे दुकानदारों, माइग्रेंट वर्कर्स और बेरोजगारों पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा है. सरकार को इनकी सहायता में आगे आना चाहिए. भोजपुर में 39 दिनों में मनरेगा मद में 39 करोड़ रुपये की निकासी हुई, लेकिन काम कहीं नजर नहीं आता! आखिर यह राशि जा कहां रही है?
हमारी मांग है कि ग्रामीण श्रमिक वर्ग के लिए मनरेगा में काम की गारंटी की जाए और शहरी गरीबों के लिए भी इसी तर्ज पर काम की गारंटी हो. राशन कार्डधारियों समेत तमाम गरीबों, बेरोजगारों को आगामी 6 महीने तक सरकार प्रति परिवार 10 किलो सूखा अनाज के साथ एकमुश्त 10 हजार रुपये का गुजारा भत्ता दे. स्वयं सहायता समूह व माइक्रो फाइनेंस कम्पनियों के सभी कर्ज माफ किए जाएं. लाॅकडाउन के कारण सब्जी और फल (तरबूज, ककड़ी, लालमी, फूट आदि) उत्पादक किसानों की फसलें खेतों में सड़ गई हैं या किसानों को उसे कौड़ी के मोल बेचना पड़ा है. यास तूफान ने सब्जी उत्पादक किसानों की रही-सही कसर भी पूरी कर दी है. सरकार से हमारी मांग है कि तमाम प्रभावित किसानों को अविलम्ब फसल क्षति मुआवजा दिया जाए. जिन किसानों ने कर्ज लेकर खेती की थी, उनका कर्ज भी माफ होना चाहिए.
10. आशा कार्यकर्ता, आंगनबाड़ी सेविका और सहायिका, जीविका और सफाई मजदूरों को विशेष कोरोना भत्ता व स्वास्थ्य बीमा का लाभ दें.
सरकारी कर्मचारियों के लिए सरकार ने विशेष महामारी भत्ता और स्वास्थ्य बीमा की घोषणा की है. लेकिन आशा कार्यकर्ता, आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका, जीविका और सफाई मजदूरों के लिए ऐसी कोई घोषणा नहीं की गई है, जबकि महामारी से निपटने में उनका भी योगदान है. वे भी कोरोना वारियर ही हैं. हम सरकार से इन्हें भी उक्त सुविधा देने की मांग करते हैं.
11). 94 हजार शिक्षकों की अविलम्ब बहाली करें
94 हजार ‘एसटेट’ उतीर्ण शिक्षक लम्बे समय से अपनी बहाली की बाट जोह रहे हैं. सरकार ने कहा था कि 5 अप्रैल के बाद इनकी बहाली प्रक्रिया आरम्भ हो जाएगी, जो अभी भी सम्भव न हो सकी है. दूसरी तरफ लाॅकडाउन ने बेरोजगारी को और बढ़ा दिया है. अन्य दूसरे तबके भी बहालियों को लेकर सोशल मीडिया पर लगातार मांग उठा रहे हैं. हमारी मांग है कि तमाम अटकी बहालियों को अविलम्ब आरम्भ किया जाए ताकि महामारी के इस दौर में उन्हें राहत मिल सके.
12. पंचायतों के कार्यकाल को 6 महीना के लिए बढ़ाया जाए, कोविड से निपटने में उनकी भूमिका बढ़ाई जाए
पंचायतों के जनप्रतिनिधि जनता से सीधे तौर पर जुड़े होते हैं. इसलिए महामारी से मुकाबला के कार्य में जनता को संगठित और जागरूक करने में उनकी अहम भूमिका है. कोविड से निपटने की योजना को गांव-गांव और घर-घर तक पहुंचाने में भी उनकी बड़ी भूमिका है. जरूरत तो इस चीज की है कि कोविड से मुकाबला में उनकी भूमिका बढ़ाई जाए. लेकिन इसके उलट, पंचायतों के कार्यकाल के समाप्त होने का बहाना बनाकर सरकार पंचायतों के अधिकार नौकरशाही के हवाले करने पर तुली हुई है. सरकार का यह फैसला पूरी तरह से गलत व अलोकतांत्रिक है. इससे महामारी से निपटने की एक संपूर्ण लोकतांत्रिक व्यवस्था ही खत्म हो जाएगी. महामारी के काल में यह एक बहुत बड़ी गलती होगी.
हमारी मांग है कि पंचायतों का चुनाव स्थगित किया जाए और उसका कार्यकाल आगामी 6 माह के लिए बढ़ा दिया जाए. अगर इसमें कोई वैधानिक बाध्यता हो तो उसके लिए उचित कदम उठाया जाए. अतीत में भी कतिपय कारणों से लंबी अवधि तक पंचायतें कार्यरत रही हैं.
13. हरेक जिला में विद्युत शव दाह गृह की स्थापना की जाए
यह काफी दुखद है कि इस बार मृत्यु के बाद भी शवों को सम्मान नहीं मिल सका है. गंगा किनारे बड़ी संख्या में मिले शव इसे ही बयान करते हैं. विभिन्न जिलों से शव जलाने के लिए लकड़ी के अभाव की भी सूचना मिली है. यही नहीं, सबसे शर्मनाक बात यह है कि संकट के इस समय में पटना नगर निगम ने शव दाह गृहों को भी निजी हाथों में सौंपने का फैसला लिया है. पता नहीं, निजीकरण की प्रक्रिया कहां तक पहुंची है? लगता है, सरकार का काम जन सेवा नहीं, बल्कि निजी कम्पनियों को मुनाफा कमाने के लिए आपदा में अवसर मुहैया कराना भर रह गया है.
बिहार में करीब-करीब हरेक जिले से कोई-न-कोई बड़ी नदी गुजरती है. हम सरकार से हरेक जिला में विद्युत शव दाह गृह और जगह-जगह श्मशान निर्माण करने की मांग करते हैं. साथ ही, हम पटना के शव दाह गृहों को निजी हाथों में सौंपने के फैसले को वापस लेने की भी मांग करते हैं.
14. नियमित संवाद की व्यवस्था करें, संभावित तीसरी लहर से मुकाबले की तैयारी शुरू करें
हम एक बार फिर आपसे मांग करते हैं कि प्रखंड से लेकर अनुमंडल, जिला और राज्य स्तर पर विपक्षी पार्टियों और अन्य संगठनों के साथ राज्य में कोरोना प्रबंधन के लिए नियमित संवाद की व्यवस्था की जाए, ताकि मिलजुलकर इस महामारी का मुकाबला किया जा सके. प्रधान मंत्री के चीफ वैज्ञानिक सलाहकार समेत कई विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना महामारी की तीसरी लहर आने की प्रबल संभावना है. सरकार को इसके मद्देनजर विशेष तैयारी करनी चाहिए ताकि बिहार को फिर से बेबस और लाचार न होना पड़े.
सरकार द्वारा सुझावों पर ध्यान देने और उचित कदम उठाने की प्रतीक्षा में
– महबूब आलम नेता, विधायक दल, भाकपा(माले)