वर्ष - 30
अंक - 22
29-05-2021

 

“क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी पानी और बयार – मिट्टी पानी और बयार, जिंदा रहने के आधर”

सुन्दर लाल बहुगुणा बहु आयामी सामाजिक आन्दोलनों में रचते बसते थे. वो मूलतः गांधीवादी-सर्वाेदयी विचारधारा के पथ प्रदर्शक थे. किंतु उनके चाहने वाले राजनीति की हर धारा में मौजूद थे. क्योंकि जिस बात ने उन्हें वैश्विक स्तर पर एक जीनियस आंदोलनकारी की ख्याति अर्जित कराई, वह पर्यावरण जैसा महत्वपूर्ण विषय था. 1970-दशक में चले बहुचर्चित ‘चिपको आन्दोलन’ से उनकी ख्याति पफैली और फिर ‘टिहरी बचाओ आन्दोलन’ ने उन्हें वैश्विक स्तर पर लोकप्रियता दिलाई. उन्हें पर्यावरण चेतना का पावर हाउस भी कहा जाता था.

पावर हाउस तो अब नहीं रहा, लेकिन वो मानव सभ्यता को अपना संदेश दे गए हैं. यह संदेश साफ है कि दुनिया विनाशकारी विकास की रणनीति से सबक सीखे व जनोन्मुखी विकास का रास्ता अपनाए. 9 जनवरी 1927 में जन्मे सुदर लाल ने 21 मई 2021 को अंतिम सांस ली, वे कोविड से पीड़ित थे.

उनको ‘पर्यावरण गांधी’ समेत कई नामों से पुकारा जाता था. उन्हें 1981 में ‘वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था. देश में भी उन्हें अनेक सम्मान व पुरस्कार मिले1981 में ही उन्हें ‘पद्मश्री’ पुरस्कार दिया गया जिसे उन्होंने यह कहकर स्वीकार नहीं किया कि जबतक पेड़ों की कटाई जारी है, मैं अपने को इस सम्मान के योग्य नहीं समझता.

यदि टिहरी बांध का निर्माण टल गया होता तो हम समझते कि देश के नीति नियंताओं ने सुंदर लाल बहुगुणा के जीवन संघर्ष से सबक सीखा है. लेकिन टिहरी बांध तो बिना किसी रोकटोक के बन गया. अभी भी नीति नियंताओं में थोड़ी शर्म बची है तो उन्हें पंचेश्वर बांध के निर्माण पर रोक लगानी चाहिए. उन्हें दिए गए पुरस्कारों व तोपों की सलामी का तभी कोई औचित्य है, वरना सब कोरा पाखंड है!