वर्ष - 29
अंक - 50
12-12-2020


[‘इंडियन एक्सप्रेस’ और ‘द हिंदू’ को का. दीपंकर द्वारा दिए गए साक्षात्कार के अंश]

– बिहार चुनावों के नतीजे अगले दौर के चुनावों के नतीजे, खासकर पश्चिम बंगाल में होने वाले विधान सभा चुनाव में वामपंथ को क्या सबक दे रहे हैं ?

पश्चिम बंगाल और असम में भाजपा को रोकना वामपंथ की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. … मैं सोचता हूं कि बंगाल में वामपंथ को मिलकर काम करना चाहिए. इसीलिए, तृणमूल का विरोध करने में भाजपा से होड़ लेने की बजाय … इसका उल्टा होना चाहिए. बेशक, जहां कहीं भी जरूरी हुआ हम तृणमूल का विरोध करेंगे, लेकिन भाजपा के खिलाफ हम इसके साथ होड़ करेंगे. भाजपा को ही पूरे देश में और पश्चिम बंगाल में भी लोकतंत्र का नंबर एक खतरा समझना होगा.

– क्या आप तृणमूल के साथ किसी किस्म के समझौते की बात सोच रहे हैं ?

नहीं, मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं. मैं कह रहा हूं कि सबसे पहले वामपंथ को बिल्कुल स्पष्ट होना चाहिए कि उसका जोर सीधेसीधी भाजपा के खिलाफ रहना जरूरी है. इसमें कोई घालमेल नहीं हो सकता. अभी तक, कई वामपंथी पार्टियां तृणमूल को अपना पहला निशाना मान रहे हैं. ... हां, तृणमूल सत्ता में है, लेकिन (हमें) दीवार पर लिखी इबारत साफ-साफ पढ़ लेनी चाहिए. और, इबारत यह है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा एक बढ़ता खतरा बन चुका है.

– बिहार के चुनावों में वामपंथ का पुनरोदय देखा जा रहा है, जबकि देश के अन्य हिस्सों में उन्हें व्यावहारिक तौर पर नकार दिया गया है. बिहार में वामपंथ के लिए क्या कुछ नया था ?

कुछ चुनावी कमजोरियों और गिरावट के चलते वामपंथ को नकारना मुख्यधारा मीडिया की बड़ी समस्या है. जहां तक वामपंथ का सवाल है, हम बिहार में सक्रिय रहे हैं. ये नतीजे दो बातों की पुष्टि करते हैं. पहला तो यह कि वामपंथ और हमारी पार्टी जमीन पर ग्रामीण गरीबों, असंगठित मजदूरों, किसानों, छात्रों आदि के बीच लगातार काम करते हैं. हमारे लिए तीन एजेंडा हैं

– मर्यादा, विकास और लोकतंत्र. जनता ने विकास का अपना आलोचनात्मक विमर्श विकसित किया है.

उदाहरण के लिए, बिहार में आप लोगों को यह कहते सुन सकते हैं कि रोजगार के बगैर विकास नहीं हो सकता है. हमने जनता को इस समझदारी पर पहुंचने और यह सोच बनाने में सिपर्फ मदद ही की है. हमने बेखौफ होकर काम किया है … मसलन, कई पार्टियां मुस्लिम नौजवानों के मानवाधिकार के बारे में बात करने में परेशानी महसूस करती हैं. सत्य और सुसंगत राजनीति क पक्ष में खड़े होने का हमारा साहस हमारी चुनावी जीत का सबसे अहम कारण है.

– वामपंथ के लिए अगली चुनौती अप्रैल 2021 में होने वाला पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव है. बिहार के नतीजे पश्चिम बंगाल के चुनावों को केसे प्रभावित करेंगे ?

वामपंथ को प्रेरित महसूस करना चाहिए, क्योंकि पश्चिम बंगाल में वामपंथ शुरू से ही शक्शिली रहा है. लोग सोचते हैं कि बंगाल की राजनीतिक सरजमीन वामपंथ के लिए ज्यादा अनुकूल है, जबकि बिहार उसके लिए ज्यादा दुर्गम क्षेत्रा है. अगर बिहार जैसे कठिन राज्य में, और वह भी कोविड-19 जैसे कठिन हालात में, वामपंथ उपलब्धियां हासिल कर सकता है, तो बंगाल में बेहतर प्रदर्शन न करने की कोई वजह नहीं है. बिहार में वामपंथ की सफलता का मूल कारण जमीनी स्तर पर उसके द्वारा किया गया काम है. यह किसी का कोई करिश्मा नहीं है, ऐसा इसलिए नहीं हुआ कि किसी ने खूब अच्छा भाषण दे दिया. वामपंथ के द्वारा खामोशी से और लंबे समय तक किये जाने वाले काम ने ही बुनियादी तौर पर यह नतीजा दिया है.

– पश्चिम बंगाल में ज्यादा बड़ा दुश्मन कौन है, टीएमसी या भाजपा ?

निश्चय ही, भाजपा बड़ा राजनीतिक दुश्मन है. टीएमसी सत्ता में है, और बेशक, वामपंथ टीएमसी सरकार का विरोध करेगा. लेकिन टीएमसी और भाजपा को एक ही पलड़े पर नहीं रखना होगा. वामपंथ को इस ख्याल से विमुख नहीं होना होगा कि कल को बंगाल में भाजपा की सरकार बन सकती है. बंगाल में भाजपा की सरकार वामपंथ और पूरे लोकतांत्रिक ढांचे के लिए कहीं ज्यादा बड़ा खतरा बन जाएगी.

– पश्चिम बंगाल चुनावों के लिए रणनीति को लेकर वामपंथ के अंदर मत-भिन्नता है. आपकी टिप्पणी?

वामपंथी पार्टियों के बीच जो कुछ भी मतभेद हैं, हम उसको सुलझाने के लिए विचार-विमर्श करेंगे. बंगाल में माकपा और अन्य वामपंथी पार्टियां भाजपा के द्वारा पैदा किए जा रहे खतरे के बारे में पर्याप्त रूप से चौकन्ने और सतर्क नहीं हैं. मेरे लिए सबसे बड़ी चिंता यह है कि पश्चिम बंगाल में किस तरह वामपंथ के वोटों में गिरावट आ रही है और वामपंथ की कीमत पर भाजपा के वोट बढ़ रहे हैं. कांग्रेस की कोशिश है कि बंगाल में वामपंथ-कांग्रेस समझौते में वह हावी हो जाए. मुझे नहीं मालूम, अन्य वामपंथी पार्टियां इसका क्या प्रत्युत्तर देंगी. बंगाल में वामपंथ को पुनः अपनी दावेदारी जतानी होगी और यह पुनरोदय कांग्रेस के साथ गठबंधन बनाकर हासिल नहीं किया जा सकता है.