देश के 6 वाम महिला संगठनों के आह्वान पर महिलाओं के जीवन, जीविका और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा, सभी जरूरतमंद महिलाओं को रोजगार, सभी के स्वास्थ्य सुविधा हेतु हर पंचायत में सरकारी अस्पताल बनाने, स्वंय सहायता समूह का लोन माप करने और सभी तरह के छोटे लोन की वसूली पर 31 मार्च 2021 तक रोक लगाने की मांग पर 28 अगस्त 2020 को पूरे देश में प्रतिवाद दर्ज किया गया. ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वुमेन्स एसोसिएशन (ऐडवा), नेशनल फेडरेशन ऑप इंडियन वीमेन (एनएपआइडब्लू), ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वीमेन्स एसोसिएशन (ऐपवा), प्रगति महिला संगठन (पीएमएस), ऑल इंडिया अग्रगामी महिला समिति (एआइएएमएस) और अखिल भारतीय महिला सांस्कृतिक संगठन (एआइएमएसएस) ने संयुक्त रूप से राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया था.
इसके पूर्व इन संगठनों ने दो बैठकों में महिला संगठनों ने 19 और 30 जुलाई 2020 को संयुक्त बैठकें की थीं और इन्हीं सवालों पर पूरे देश में विरोध प्रदर्शन करने का फैसला किया था. इन बैठकों में संगठनों के राष्ट्रीय अध्यक्षों, महासचिवों और संबंधित संगठनों के अन्य पदाधिकारियों ने भाग लिया था. सभी संगठनों के प्रतिनिधियों ने देश में महिलाओं के रोजगार और खाद्य सुरक्षा के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की थी.
दिल्ली में महिला संगठनों की नेताओं ने जीवन, जीविका और जनवाद के मुद्दे पर योजना और श्रम शक्ति भवन के पास एकत्र होकर विरोध प्रदर्शन किया. इस मौके पर महिला संगठनों ने सभी श्रमिकों के बैंक खाते में प्रति माह 7500 रुपये डालने, समूह का कर्जा माप करने, स्कीम वर्कर्स को 10 हजार रु लाॅकडाउन भत्ता देने, सभी पंचायतों में स्वास्थ्य सुविधाएं बहाल करने की मांग की. महिला संगठनों ने कहा कि देश में लोकतंत्र के साथ छेड़छाड़ की जा रही है जिसको महिलाएं नहीं सहेंगी. महिला संगठनों ने कहा कि मोदी सरकार प्रतिरोध की आवाजों को दबाने का काम कर रही है, उसने कई महिला कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाला दिया है. महिला संगठनों ने सभी सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं को रिहा करने की मांग की.
बैठक में महिला नेताओं ने कहा कि फैलती महामारी और बार बार लगाए गए लाॅकडाउन ने हाशिये के वर्गों के जीवन में कहर ढा दिया है. अधिकांश लोगों, विशेषकर महिलाओं ने अपनी आजीविका खो दी है और वे भुखमरी के कगार पर हैं. सरकारों ने वादा किया है कि मनरेगा काम मुहैया कराया जाएगा. लेकिन सच्चाई यह है कि बड़ी संख्या में महिलाओं को कोई काम नहीं मिल रहा है. मुफ्त खाद्यान्न और साथ ही, राशन अनाज का वितरण एक समान नहीं है. बहुत से गरीब परिवारों को खाद्यान्न के अधिकार से वंचित कर दिया गया है. सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के व्यापक निजीकरण ने लोगों को असहाय स्थिति में छोड़ दिया है.
स्वास्थ्य प्रणाली कोविद -19 से संबंधित मामलों के अलावा देश की स्वास्थ्य प्रणाली किसी अन्य आपात स्थिति में कुछ नहीं कर रही है. इससे गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए चिकित्सा देखभाल की तत्काल आवश्यकता में भारी कठिनाई पैदा हो गई है. अस्पतालों में अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मना करने के कारण महिलाओं और बच्चों की मृत्यु की घटनाएं देखी जा रही हैं.
इन संगठनों ने चिंता जताई कि लाॅकडाउन ने महिलाओं को खास तौर पर मुसीबतों में डाल दिया है. घरेलू हिंसा के मामलों में वृद्धि इस तथ्य की ओर इशारा करती है. स्वयं सहायता समूहों में शामिल महिलाओं को एमएपआई द्वारा परेशान किया जाता है, उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है और उन्हें धमकियां दी जाती हैं. और, सरकारें इन वसूली करने वाले एजेंटों के खिलाप कार्रवाई करने के लिए उनकी अपील पर कान नहीं दे रही है. लोगों की समस्याओं पर ध्यान देने के बजाय भाजपा सरकार अपने निजीकरण के व्यापक काॅर्पाेरेट एजेंडे के साथ आगे बढ़ रही है.
उन्होंने कहा कि खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, नौकरी के अवसर पैदा करने और प्रवासियों, महिलाओं और अन्य श्रमिकों को पूर्ण व आंशिक लाॅकडाउन जैसे बिना किसी योजना के उठाए गए कदमों से बचने के लिए थोड़ी बहुत नकद सहायता प्रदान करने के अपने घोषित उपायों को भी सरकार अभी तक लागू नहीं कर पाई है. सरकार ने महामारी के कारण लगाए गए प्रतिबंधों का लाभ उठाते हुए लोकतांत्रिक प्रणाली और जनता के लोकतांत्रिक विक्षोभ पर व्यवस्थित हमला भी किया है. झूठे मामले दर्ज किए गए हैं और मोदी सरकार की सर्वसत्तावादी नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले कार्यकर्ताओं के खिलाप पुलिस कार्रवाई शुरू की गई है. इससे छात्रों, पत्रकारों और अन्य प्रमुख कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी हुई है, और ऐसा करने में उनके स्वास्थ्य की कोई चिंता या परवाह नहीं की गई है. यहां तक कि सरकारी कार्यक्रमों में निर्धारित मानक संचालन प्रक्रियाओं का पालन किए बिना कई अन्य बीमारियों से ग्रस्त वरिष्ठ नागरिकों को भी गिरफ्तार कर उन्हें भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर रखा जा रहा है.
इस बिगड़ती स्थिति के मद्देनजर, राष्ट्रीय महिला संगठनों ने संयुक्त रूप से खाद्य सुरक्षा, रोजगार, मुफ्त उपचार के बतौर स्वास्थ्य सुविधाओं तक आसन पहुंच, प्रवासियों और महिलाओं को नकद राशि के हस्तांतरण, तथा गहराते कृषि संकट, श्रम कानूनों में श्रमिक विरोधी सुधार आदि मुद्दों को उठाने का निर्णय लिया. महिला संगठनों ने विशेष रूप से अल्पसंख्यकों, विरोध करने वाले कार्यकर्ताओं व छात्रों को निशाना बनाने के मोदी सरकार के राक्षसी और सर्वसत्तावादी कदमों के खिलाप सतत अभियान चलाने का फैसला किया. बैठक में महिलाओं के खिलाप बढ़ती हिंसा और महामारी के बारे में अंधविश्वास फैलाने से संबंधित मुद्दे भी उठाए गए. राष्ट्रीय महिला संगठनों ने निर्णय लिया है कि हमारे संघर्षों व कुर्बानियों के जरिये हासिल अधिकारों की रक्षा करने, तथा भाजपा शासन की जन-विरोधी नीतियों और महामारी से निपटने के उसके असंगत प्रयासों के चलते पैदा हुई भूख व स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और आर्थिक दुश्वारियों से जूझ रही महिलाओं की सहायता के लिए फौरी कदम सुनिश्चित करने के लिए महिलाओं की बड़ी लामबंदी करनी है. इन महिला संगठनों ने हाशिये पर खड़े हमारी आबादी के विभिन्न तबकों को प्रभावित करने वाले आम मुद्दों पर व्यापक संघर्षों के लिए महिलाओं को गोलबंद करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई. आने वाले दिनों में सभी राज्यों में राज्यस्तरीय महिला संगठनों की संयुक्त बैठकें आयोजित की जाएंगी. संयुक्त महिला संगठनों ने श्रमिकों, किसानों, खेतिहर मजदूरों, युवाओं, छात्रों और विभिन्न लोकतांत्रिक आंदोलनों के सभी संगठनों से 28 अगस्त को इस विरोध प्रदर्शन में शामिल होने की अपील की.
28 अगस्त के दिन बिहार की राजधानी पटना में जहां सभी महिला संगठनों ने संयुक्त रूप से प्रतिवाद किया, वहीं ग्रामीण इलाकों में ऐपवा की पहलकदमी पर सैंकड़ों गांवों में महिलाओं ने विरोध कार्यक्रम में हिस्सा लिया. विदित हो कि छोटे लोन की माफी को लेकर बिहार में महिलाओं की उठी आवाज एक मजबूत आंदोलन का स्वरूप ग्रहण कर चुकी है और जगह-जगह सैंकड़ोंझारों की तादाद में महिलाएं सड़क पर उतर रही हैं.
पटना के कार्यक्रम में महिलाएं अपनी मांगों के समर्थन में पोस्टर व बैनर के साथ शामिल हुईं. डाक बंगला चौराहे पर कार्यक्रम को संबोधित करते हुए महिला संगठनों की प्रतिनिधियों ने कहा कि कोरोना महामारी के दौर में सरकार ने जिस राहत पैकेज की घोषणा की वह आम लोगों के लिए नहीं बल्कि पूंजीपतियों के लिए था. आज प्राइवेट जाॅब करनेवाली महिलाएं हों या गरीब घरेलू कामगारिनों समेत अन्य मजदूर महिलाएं, सबका रोजगार छूट गया है; लेकिन सरकार ने इन्हें कोई मुआवजा नहीं दिया. महिला संगठनों ने यह भी मांग की कि स्वयं सहायता समूहों, माइक्रो फायनेंस कम्पनियों से कर्ज लेने वाली महिलाओं का कर्ज माप किया जाए, उन्हें रोजगार दिया जाए और छोटे कर्जों की वसूली पर 31 मार्च 2021 तक रोक लगे.
महिला संगठनों के प्रतिनिधियों ने कहा कि इस महामारी ने सिद्ध किया है कि संकट के समय प्राइवेट अस्पताल जनता की नहीं अपने मुनाफे की चिंता करता है. जबकि स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच हर व्यक्ति का अधिकार होना चाहिए. इसलिए बिहार के हर पंचायत में सरकारी अस्पताल बनाया जाए. महिला नेताओं ने बिहार में महिलाओं पर बढ़ती हिंसा और अपराध पर अंकुश लगाने में बिहार सरकार की विपलता की भी आलोचना की. इस कार्यक्रम में ऐपवा, एडवा, बिहार महिला समाज, एआईएमएसएस, घरेलू कामगार यूनियन, बिहार मुस्लिम महिला मंच, एएसडब्लूएप समेत कई संगठन शामिल थेे.
पटना के कार्यक्रम का नेतृत्व ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी, एडवा की रामपरी, बिहार महिला समाज की राजश्री किरण, एआईएमएसएस की अनामिका कुमार, बिहार घरेलू कामगार यूनियन की सिस्टर लीमा, एएसडब्ल्युएप की आस्मां खान और बिहार मुस्लिम महिला मंच की शमीमा ने किया. इस मौके पर ऐपवा की बिहार राज्य सचिव शशि यादव, राज्य सह सचिव अनिता सिन्हा, अनुराधा सहित ऐपवा से जुड़ी कई महिलायें उपस्थित रहीं.
मधुबनी के कैटोला में ऐपवा की जिला सचिव पिंकी सिंह, किरण दास व शीला देवी के नेतृत्व में मार्च हुआवहीं, पटना जिले के धनरूआ में ऐपवा व रसोइया संघ के कार्यकर्ताओं ने भी प्रतिवाद में हिस्सा लिया. इसी प्रखंड के किश्ती में स्वयं सहायता महिला संघर्ष समिति की सचिव व ऐपवा की नेता रिंकू देवी के नेतृत्व में कार्यक्रम हुआ. नई हवेली नर्मदा नरवा, मंझावली, मधुबन, चकबीर, बडिहा, मिश्रीचक, छोटकी धमौल आदि गांवों में भी प्रदर्शन हुआ.
दरभंगा के पोलो मैदान में महिलाओं ने अपने सवालों पर धरना दिया. जहानाबाद के मांदेबिगहा में मुखिया पिंकी देवी के नेतृत्व में प्रदर्शन हुआ. मुजफ्फरपुर के मुशहरी, आरा, सिवान, गोपालगंज, नालंदा, गया, जहानाबाद, अरवल आदि जिलों के कई गांवों में महिलाओं की व्यापक भागीदारी देखी गई. बेगूसराय में रसोइया संघ से संबद्ध ऐक्टू नेत्री किरण देवी के नेतृत्व में कार्यक्रम हुआ जहां मीरा देवी, अहिल्या देवी, संजू देवी आदि महिलाएं शामिल हुईं.
झारखंड, पश्चिम बंगाल, असम, ओडीसा, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, पुदुचेरी, कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश समेत कई अन्य राज्यों में ऐपवा के नेतृत्व में बड़ी संख्या में महिलाएं सड़क पर उतरीं. ऐपवा की राष्ट्रीय अध्यक्ष रति राव, राष्ट्रीय सचिव कविता कृष्णन, सुचेता डे, आर. नागमणि, सुधा चौधरी, परहत बानो, मंजू लता, इंद्राणी दत्त, मृणाली देवी, विजया, गीता मंडल, नीता बेदिया, गीता पांडेय, आरती राय, मीना सिंह, सरोज चौबे, रीता वर्णवाल समेत कई नेताओं ने विभिन्न जगह पर आयोजित कार्यक्रमों का नेतृत्व किया.