भारी संख्या में प्रवासी मजदूरों के आने के बाद अरवल (बिहार) में करीब-करीब अब सभी पंचायतों में मुखिया द्वारा क्वारंटाइन सेंटर चल रहे हैं.
जिला प्रशासन द्वारा फंड नहीं दिया जाने के कारण शुरू काफी लचर व्यवस्था थी. मुखिया को खर्च करने के लिए कहा जाता था, लेकिन लिखित तौर पर इसका कोई आदेश नहीं था. इस वजह से मुखिया अनमने ढंग से क्वारंटाइन केंद्र संचालित कर रहे थे जिससे मजदूरों को बेहतर भोजन एवं अन्य तरह की सुविधाएं नहीं मिल पा रही थीं.
अरवल में दो पंचायतों में भाकपा(माले) के मुखिया जीते हुए हैं. खभइनी पंचायत में 2001 से ही भाकपा(माले) के मुखिया जीतते आ रहे हैं. पंचायत कार्यक्रमों में पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं की भूमिका सकारात्मक रहती है. लिहाजा, क्वारंटाइन सेंटर को बेहतर ढंग से चलाने के लिए माले ने बेहतर पहलकदमी ली और वहां जिला का माॅडल क्वारंटाइन सेंटर स्थापित करने में अपनी पूरी ताकत लगा दी.
12 मई 2020 को प्रवासी मजदूरों का पहला जत्था खभइनी पंचायत पहुंचा तो उन्हें दरियापुर मिड्ल स्कूल एवं उच्च विद्यालय में बने क्वारंटाइन सेंटर में पहुंचाया गया. लाॅकडाउन के प्रथम सप्ताह में 19 प्रवासी मजदूर आये थे जो खभइनी एवं अगल-बगल गांव के ही रहने वाले थे. उसके बाद लाॅकडाउन दो और तीन की अवधि में कोई मजदूर नहीं आए.
पहले जिला प्रशासन द्वारा प्रखंड स्तर पर ही क्वारंटाइन सेंटर बनाने का निर्देश दिया गया था. जिला में कुछ स्कूल एवं काॅलेज के भवनों को ही क्वारंटाइन सेंटर बनाया गया था. लेकिन जब ज्यादा संख्या में प्रवासी मजदूरों का आना शुरू हुआ तो प्रखंड मुख्यालय द्वारा पंचायत स्तर पर क्वारंटाइन सेंटर बनाया गया और मुखिया को इसे संचालित करने की जिम्मेवारी दी गई.
खभैनी पंचायत क्वारंटाइन सेंटर: 12 मई 2020 से आकोपुर मिडिल स्कूल में क्वारंटाइन सेंटर की शुरूआत तब हुई, जब उड़ीसा से साइकिल पर सफर करते हुए 3 मजदूरों का पहला खेप यहां तीन दिनों में पहुंचा. बाद में आने वाले मजदूरों की संख्या भी बढकर 41 हो गई.
13-14 मई 2020 को शुरूआती तैयारी ठीक नहीं हो पाने से खाने-पीने के इंतजाम में अस्तव्यस्तता रही. इस पंचायत में भाकपा(माले) के मुखिया हैं, इस कारण इस विद्यालय के नोडल पदाधिकारी, यानी प्रधानाध्यापक महोदय उन्हें बदनाम करने की नीयत से इन मजदूरों को भड़काते रहते थे और उनके अंदर यह गलत समझ पैदा करते थे कि मुखिया उचित व्यवस्था नहीं कर रहे हैं और वे पूरा फंड लूट ले रहे हैं. लिहाजा, जब पदाधिकारी जांच करने आए तो मजदूरों से यही अनाप-शनाप बुलवाया गया. खबर डीएम तक चली गई, डीएम ने एडीएम को जांच के लिए भेजा. जिला से कुछ फंड तो दिया नहीं जा रहा था, इसलिए जिला प्रशासन को कोई कार्रवाई करने का नैतिक बल नहीं था.
डीएम साहब ने माले जिला सचिव से संपर्क कर सेंटर को थोड़ा बेहतर बनवाने की अपील की. जिला सचिव ने मुखिया समेत पंचायत के सभी प्रमुख नेताओं की अर्जेंट मीटिंग बुलाकर विभिन्न पहलुओं पर बात की. यहां तक कि सरकार द्वारा कोई फंड नहीं दिये जाने की स्थिति में चंदा करके प्रवासी मजदूरों को खाना खिलाने का संकल्प लिया गया. चूंकि ये मजदूर हमारे पार्टी आधार के बीच के ही नौजवान हैं, इसलिए उन्हीं लोगों से सहयोग लेकर बेहतर खाने की व्यवस्था करने का फैसला लिया गया.
दूसरे दिन जिला सचिव ने डीएम से सवाल किया कि सरकार द्वारा एक भी पैसा नहीं देने पर भूमिहीन मुखिया कहां से व्यवस्था करेंगे? इसलिए उन्हें फंड दिया जाए, इसके बाद खभइनी पंचायत समेत सभी पंचायतों में खाने-पीने एवं अन्य व्यवस्था के लिए जिला से फंड भेजा गया.
मीटिंग में भोजन बनाने वाले मिस्त्री को बुलाया गया एवं सभी लोकल कमेटी सदस्यों एवं अन्य नेताओं को जिम्मेवारी सौंपी गई. वहां खाना बनवाने से लेकर हर व्यवस्था के लिए अलग-अलग जिम्मेवारी दी गई. इसका नतीजा हुआ कि उसी दिन से भोजन एवं अन्य तरह की व्यवस्था में गुणात्मक परिवर्तन दिखने लगा.
दो तरह की सब्जी, अचार, पापड़ तो अनिवार्य कर दिए गए. भोजन बनाने वाले मिस्त्री पार्टी के कार्यकर्ता ही थे. लिहाजा, उन्होंने मजदूरों की इच्छा के अनुसार भोजन बनाना शुरू कर दिया. व्यवस्था में लगे सभी साथियों से बात की गई कि हमें मजदूरों के साथ अपने परिवार की तरह ही बर्ताव करना है. इसलिए कभी लिट्टी-चोखा, तो कभी खीर भी खिला दे देते. सुबह जहां नाश्ते में पहले चना और गुड़ दिया जाता था; वहीं अब कभी सत्तू पराठा तो कभी पूरी, जलेबी, सब्जी दिया जाने लगा. इसके बाद वहां संख्या बढ़ने लगी और अभी करीब ढाई सौ मजदूर वहां हैं जिन्हें तीन स्कूलों – मिडिल स्कूल (आंकोपुर), हाई स्कूल (दरियापुर) एवं हरना मिडिल स्कूल में – में ठहराया गया है. आंकोपुर और दरियापुर के स्कूल अगल-बगल 200 गज की दूरी पर हैं, जबकि हरना विद्यालय करीब एक किलोमीटर दूर होने के कारण वहां खाना पहुंचाने के लिए एक वाहन की भी व्यवस्था की गई है, ताकि उन्हें समय पर खाना पहुंचाया जा सके.
आठ दिन के बाद जब खभइनी क्वारंटाइन सेंटर का हाल-चाल जानने के लिए जेएनयू के छात्र रह चुके व वामपंथी विचारक रत्नेश जी के साथ माले जिला सचिव गए तो शिक्षकों की पूरी टीम बहुत ही खुश हुई. शिक्षकों का कहना था कि ऐसी व्यवस्था पूरे जिले में कहीं भी नहीं है.
19 मई को डीएम जांच करने के लिए खभइनी क्वारंटाइन सेंटर पहुंचे. उन्होंने पूरी व्यवस्था के बारे में जानकारी ली और फिर उन्होंने सभी सेंटरों पर इसी किस्म का खाना-नाश्ता और अन्य सुविधाएं मुहैया कराने का निर्देश दिया. थोड़ा सा ध्यान देने और बेहतर प्रबंध कर देने से कम पैसे में ही अधिक सुविधा और गुणवत्तापूर्ण भोजन मुहैया कराना संभव हो गया. पूरी व्यवस्था की देखरेख के लिए माले नेता रवीन्द्र यादव, मुखिया विजय पासवान, बादशाह प्रसाद और गोपाल सिंह की चार-सदस्यीय टीम बना दी गई. यह टीम हर दिन देखरेख करती है और किसी भी तरह की समस्या उत्पन्न होने पर तुरंत उसका समाधान भी करती है.
बम्भई पंचायत (करपी) में भी पार्टी मुखिया और पार्टी नेताओं के नेतृत्व में व्यवस्था को दुरुस्त किया गया. हालांकि वहां भी शुरू में सब कुछ राम भरोसे ही चल रहा था. बाद में पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत कर वहां भी भोजन बनाने एवं रहने सहने की सारी व्यवस्था को दुरुस्त कर लिया गया. इस पंचायत में सेंटरों की देखरेख के लिए मुखिया देव मंदिर सिंह एवं पूर्व जिला पार्षद मधेश्वर प्रसाद के नेतृत्व में टीम बनाई है.
शिक्षक नेता का. कुमार अमरेंद्र के नेतृत्व में उनके विद्यालय में बने क्वारंटाइन सेंटर में भी बेहतर व्यवस्था की गई है, और वहां दूध, फल और बेहतर भोजन के अलावा कभी-कभी मिठाई भी खिलाई जा रही है.