झारखंड की जनता लाॅकडाउन और सरकारी उपेक्षा के चलते बुरी तरह परेशान हैं. यहां वे भाकपा(माले) विधायक विनोद सिंह सरकारी प्रयासों के अभाव में अन्य राज्यों में पफंसे झारखंडी मजदूरों के बीच राहत कार्य चलाने में लगातार लगे हुए हैं. वे खुद से ऐक्टू द्वारा संचालित हेल्पलाइन की देखरेख कर रहे हैं और उन्होंने स्वयं हजारों फोन काॅल रिसीव किये हैं. विधायक के कोटे की अपनी समस्त विकास राशि उन्होंने प्रदान कर दी है और साथ ही उन्होंने राज्य सरकार से भी एक राहत पैकेज की मांग की है. उन्होंने राज्य के तमाम सांसदों और विधायकों से आह्वान किया है कि वे अपने-अपने कोटे की सम्पूर्ण विकास राशि राहत कार्यों में प्रदान कर दें. दुख की बात यह है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस निधि का केवल एक छोटा अंश राहत कार्य में देने को सहमत हुए हैं जो कि इस बड़े संकट को देखते हुए बिल्कुल नाकाफी है.
इसके पूर्व उन्होंने प्रधानमंत्री को ज्ञापन भेजकर उनसे केन्द्र सरकार द्वारा लाॅकडाउन प्रभावित गरीबों के लिये राशि निर्गत करने की मांग की है. उन्होंने कहा है कि हम आबादी के इतने बड़े हिस्से को भूखा और अमानवीय स्थिति में छोड़ देंगे तो कोरोना के खिलाफ लड़ाई हम नहीं जीत पायेंगेपैदल पांव अपने घरों की ओर लौटने की कोशिश में दर्जनों मजदूर अपनी जान गंवा चुके हैं. ऐसी तकलीफ में फंसे लाखों लोगों की दिल दहला देने वाली तस्वीरें भुलाई नहीं जा सकती हैं. हमने मजदूरों, महिलाओं और बच्चों को अपने सिर पर बैग-गठरी रखे चिलचिलाती धूप में सैकड़ों किलोमीटर चलते देखा है. उन्हें न केवल सूरज की गरमी, भूख और दर्द झेलना पड़ा है; बल्कि उन्हें लगातार पुलिस उत्पीड़न और नफरत भरे प्रचार भी सहने पड़े हैं. कई जगहों पर उन्हें पकड़कर क्वारंटाइन में रखा गया, लेकिन उनकी जांच नहीं कराई गई. जब उनके क्वारंटाइन की अवधि खत्म हुई तो उनके घर जाने का कोई इंतजाम नहीं किया गया.
उन्होंने कहा कि देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा दिहाड़ी मजदूरों का है, जो रोज कमा करके ही अपना पेट भर सकते हैं. प्रवासी मजदूरों का परिवार उन पर ही आश्रित है. वैश्विक महामारी के समय लाॅकडाउन जरूरी है, लेकिन कोरोना के खिलाफ लड़ाई में दिहाड़ी मजदूरों के परिवारों के लिये राशन की गारंटी करना और उनकी सुरक्षित घर वापसी का प्रबंध करना भी उतना ही जरूरी है. जब धनबाद के सांसद कार में दिल्ली से धनबाद लौट सकते हैं, जब उत्तराखंड में फंसे गुजरात के लोगों को लक्जरी बसों में घर वापस लाया जा सकता है, तो प्रवासी मजदूरों के लिये सुरक्षित वापसी का प्रबंध क्यों नहीं किया जा सकता है? यह काफी दुख और आक्रोश की बात है कि जब मोदी जी ने लाॅकडाउन के दूसरे चरण की घोषणा की, तो उनके पास प्रवासी मजदूरों के लिये कोई योजना क्यों नहीं थी?