उत्तर-पूर्व के छोटे से राज्य त्रिपुरा में 27 जुलाई 2019 को त्रि-स्तरीय पंचायती चुनाव होना निर्धारित है. लेकिन व्यापक तौर पर ग्रामीण समाज के बड़े हिस्से यानी मतदाताओं की इस चुनाव में कोई भूमिका ही नहीं बची है! खबर है कि कुल 6111 ग्राम पंचायतों में से 86 प्रतिशत से ज्यादा पंचायत में शासक पार्टी भाजपा के संरक्षण में पल रहे लोगों को “निर्विरोध” विजयी घोषित कर दिया गया है! अन्य प्रतिद्वंद्वियों को छल-बल-कौशल से अपना नामांकन पत्र दाखिल करने से रोक दिया गया अथवा वापस लेने पर बलपूर्वक मजबूर कर दिया गया तथा कई अन्य का नामांकन रिटर्निंग अफसर द्वारा कोई थोथा बहाना बनाकर रद्द कर दिया गया! खबर है कि धर्मनगर इलाके में किसी मनीषा सिन्हा ने तमाम धमकियों को धता बताते हुए अपना नामांकन दाखिल कर दिया लेकिन अंत में रिटर्निंग अफसर ने बिना कोई युक्तिसंगत कारण बताये उसको रद्द कर दिया.
खबर है कि राज्य के धलाई जिले में 393 ग्राम पंचायत सभाओं में से केवल तीन में चुनाव होने वाला है, लेकिन यहां भी लोगों को डर है कि उन्हें अपने वोट देने के अधिकार का इस्तेमाल नहीं करने दिया जायेगा. बाकी 390 ग्राम सभाओं में निर्विरोध निर्वाचन हो चुका है और वहां ग्रामवासियों या मतदाताओं की अब कोई भूमिका नहीं है!
संवैधानिक लोकतंत्र के जो सरकारी तौर पर रक्षक हैं, वे मौन रहकर इस खेल में अपनी भूमिका निभा रहे हैं! इसके खिलाफ अब जनता और केवल जनता को ही उठ खड़ा होना होगा, प्रतिरोध करना होगा और लोकतंत्र की रक्षा करनी होगी.