झारखंड के कोडरमा लोकसभा क्षेत्र से भाकपा(माले) के उम्मीदवार कामरेड राजकुमार यादव वर्तमान में धनवार विधान सभा क्षेत्र से निर्वाचित विधायक और एक लोकप्रिय जन नेता हैं. और 1995 में तत्कालीन बिहार राज्य के धनवार विधानसभा क्षेत्र में भाकपा(माले) के उम्मीदवार के बतौर चुनाव लड़ने के बाद से हर चुनाव में - चाहे लोकसभा का हो या विधानसभा का - उनके वोट लगातार भारी तादाद में बढ़ते रहे हैं. इस बार तो कोडरमा क्षेत्र से उनकी उम्मीदवारी इतनी भारी पड़ रही है कि शासक भारतीय जनता पार्टी को अपने वर्तमान सांसद रवीन्द्र राय, जो 2014 में भाजपा के राज्य अध्यक्ष थे और जिन्होंने झारखंड की 14 में से 12 सीटों पर भाजपा को जीत दिलाने में अच्छी-खासी भूमिका निभाई थी, उनका टिकट काट दिया गया और उनकी जगह राजद से आई दलबदलू अन्नपूर्णा देवी को भाजपा का टिकट थमा दिया गया. सनद रहे कि कभी जनता दल के कद्दावर नेता रमेश यादव की पत्नी अन्नपूर्णा देवी कोडरमा से राजद की कई बार विधायक रह चुकी हैं और चंद रोज पहले तक अन्नपूर्णा देवी राष्ट्रीय जनता दल की झारखंड अध्यक्ष थीं.
49 वर्षीय युवा कामरेड राजकुमार यादव गिरिडीह जिले के गावां थाने के बिशनीटीकर गांव के निवासी हैं. मध्यम किसान परिवार से आने वाले राजकुमार यादव केवल मैट्रिक तक ही पढ़ाई कर सके. गावां प्रखंड की सीमा, यानी गिरिडीह व कोडरमा जिलों की सीमा के क्षेत्र में जमीन में मिलने वाले माइका (अबरख) का व्यापार 1980 के दशक तक खूब जोरशोर से चलता था. बाद में माइका उद्योग का औपचारिक पतन हो जाने के बाद भी व्यापक ग्रामीण मजदूर जमीन खोदकर माइका लाते थे और उस पर बड़े पैमाने पर व्यापार चलता था. स्वाभाविक है कि इस व्यापार में बिचौलियों की लूट का वर्चस्व था. 1980 के दशक के उत्तरार्ध में कामरेड राजकुमार यादव ने माइका व्यापार के क्षेत्र में अन्याय, लूट, और आपराधिक गतिविधियों के विरुद्ध जुझारू संघर्ष का नेतृत्व किया. इसी संघर्ष में वे जेल गये और वहां कामरेड महेन्द्र सिंह से उनका परिचय हुआ और वे भाकपा(माले) के आदर्श व राजनीति से पहली बार आकृष्ट हुए. जेल से बाहर आकर भाकपा(माले) के साथ उनका जीवंत सांगठनिक संपर्क हुआ और 1990 के दशक के शुरूआती वर्षों में वे भाकपा(माले) की गतिविधियों में भाग लेने लगे. पहली बार माले उम्मीदवार के बतौर उन्होंने 1995 में धनवार से विधानसभा चुनाव लड़ते हुए 7000 वोट प्राप्त किए. उसके बाद लगातार जनसंघर्षों का नेतृत्व करते हुए वर्ष 2000 के झारखंड विधानसभा चुनाव में 31,000 वोट प्राप्त करके भी मात्रा 1,700 बोट से चुनाव हार गए.
इस चुनाव से स्थानीय प्रतिक्रियावादी एवं सामंती शक्तियों को कामरेड राजकुमार यादव के चुनाव जीत लेने का वास्तविक खतरा दिखने लगा और उनके खिलाफ ध्रुवीकरण वाली गोलबंदी शुरू हो गई. वर्ष 2003 में कोडरमा जिला के मरकच्चो में 23 जनवरी को थाना पर जनप्रदर्शन के दौरान शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर पुलिसिया गोलीकांड के साथ ही पुलिस का मकसद राजकुमार यादव की हत्या भी था जो इस बात से जाहिर होता है कि थानेदार पवन उरांव बार बार राजकुमार यादव का नाम लेकर उन्हें खोज रहा था. इसके बाद से राजकुमार यादव को झूठे मुकदमों में फंसाने का सिलसिला शुरू हो गया और उनको कई बार जेल जाना पड़ा. इससे पहले वर्ष 2002 में उनपर क्राइम कंट्रोल कानून लगाया गया था, जो राजद्रोह जैसा ही खतरनाक काला कानून है. एक महीने तक सड़क की लड़ाई और कानूनी लड़ाई के तालमेल से उनपर से क्राइम कंट्रोल कानून हटा था. उनके खिलाफ चार मुकदमे लादे गए हैं, लेकिन ये सब भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 148 और 323 किस्म के मुकदमे हैं. ये मुख्यतः आम अवाम के हितों के लिए सड़कों पर उतर कर उनके द्वारा किए गए जन आंदोलनों से जुड़े मुकदमे हैं, जो प्रशासन ने उनपर थोप दिए हैं. वर्ष 2004 का लोकसभा चुनाव भी उन्होंने जेल से ही लड़ा था. उस चुनाव में कोडरमा लोकसभा से उनको 1,36,000 वोट (चौथा स्थान) मिले थे. अगले साल 2005 में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में उनको 37,000 वोट मिले. इसके बाद भी उनके प्रभाव का दायरा बढ़ता गया और 2009 में हुए विधानसभा चुनाव में उनको 45,000 वोट प्राप्त हुए. 2009 में ही हुए कोडरमा लोकसभा चुनाव में उनको 1,50,000 वोट मिले. वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्होंने 2 लाख 66 हजार वोट (दूसरा स्थान) हासिल कर लिया. आखिरकार वर्ष 2014 में उन्होंने 51,000 हासिल कर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को हराया और राजधनवार विधानसभा सीट जीत ली.
कामरेड राजकुमार यादव बगोदर के जन प्रतिनिधि महेंद्र सिंह को अपना मार्गदर्शक मानते हैं, जिनकी हत्या कर दी गई थी. तीन बार विधायक रहे जुझारू और प्रखर नेता महेंद्र सिंह ने ही राजकुमार यादव के राजनीतिक जीवन को सजाया-संवारा था. अन्य राजनीतिक दल के नेता भी इस धनवार विधायक की तारीफ करते हैं. निरसा विधान सभा क्षेत्र के विधायक अरूप चटर्जी, जो राजकुमार यादव के नामांकन के समय वहां आए थे, ने ई-न्यूजरूम को कहा, “राजकुमार यादव झारखंड विधान सभा में एकमात्र विधायक हैं, जिन्होंने जोरदार ढंग से अनेक मुद्दों को उठाया है. चाहे वह आंगनबाड़ी या पारा शिक्षकों का मुद्दा हो या फिर विस्थापन और सरकार की स्थानीयता नीति का विरोध का मामला हो, रांची से लेकर राज्य के किसी भी हिस्से में आंदोलन होता है तो वे (राजकुमार) अगली पांत में रहकर उसका नेतृत्व करते हैं. अगर ऐसे लोग संसद पहुंचते हैं तो इससे न केवल कोडरमा, बल्कि पूरे देश की जनता को लाभ मिलेगा.”
11 अप्रैल को राजकुमार ने कोडरमा लोकसभा क्षेत्र से भाकपा(माले) प्रत्याशी के बतौर अपना नामांकन भरा. कोडरमा राजनीतिक रूप से झारखंड का एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जहां इस बार त्रिकोणीय संघर्ष होने जा रहा है - यहां राजकुमार यादव भाजपा की अन्नपूर्णा देवी और झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के अध्यक्ष व पूर्व मुख्य मंत्री बाबूलाल मरांडी से टक्कर लेंगे. राजकुमार का मानना है कि इस चुनावी दंगल में बाबूलाल कहीं नहीं हैं, क्योंकि उन्होंने 10 वर्षों तक संसद में कोडरमा का प्रतिनिधित्व किया है, लेकिन कोडरमा अभ्रक नगरी की जनता का वे कोई भला नहीं कर सके. हर साल रोजगार की तलाश में हजारों लोग इस शहर से पलायन करते हैं, इसीलिए पलायन और प्रवासी मजदूरों की समस्याएं राजकुमार के चुनावी अभियान के मुख्य मुद्दों में शामिल रहेंगे. जहां तक कि अन्नपूर्णा की बात है तो राजकुमार यादव दावा करते हैं कि उन्होंने जनता को धोखा दिया है, क्योंकि लोग उन्हें सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता में विश्वास करने वाली नेता मानते रहे थे.
11 अप्रैल को कामरेड राजकुमार यादव के नामांकन के दिन समूचा गिरिडीह शहर लाल झंडों से पट गया. बगोदर, राजधनवार, जमुआ, गांडे, कोडरमा और बरकठ्ठा विधानसभा क्षेत्रों से, खासकर गावां और तिसरी प्रखंडों से, हजारों की तादाद में लाल झंडे के नेता-कार्यकर्ता अलग-अलग जुलूसों की शक्ल में गिरिडीह पहुंचे थे. नामांकन के बाद एक विशाल सभा हुई जिसको केन्द्रीय कमेटी सदस्य एवं बगोदर के पूर्व विधायक विनोद सिंह, निरसा के मासस विधायक अरूप चटर्जी, उम्मीदवार राजकुमार यादव सहित अन्य कई नेताओं ने सम्बोधित किया. ‘जन संघर्षों का उठा तूफान, कोडरमा में लाल निशान’, ‘कोडरमा लोकसभा से बदलाव की आवाज ! अबकी बार राजकुमार’ जैसे नारे लगातार गुंजाते नौजवानों का जोश देखने लायक था. वक्ताओं ने कहा कि भाकपा(माले) की लड़ाई, एकमात्र बदलाव के लिए लड़ाई है. यह महिलाओं, आदिवासियों, दलितों,राजकुमार यादव - जिनके खिलाफ भाजपा ने अपने वर्तमान सांसद को नहीं, एक दलबदलू को खड़ा किया अकलियतों के अधिकारों के लिए लड़ाई है. हम जाति-धर्म की लड़ाई नहीं करते, न इनके नाम पर वोट ही मांगते हैं, हमारी जबान ही सच्ची राजनीति का प्रतीक है. उन्होंने कोडरमा के लोगों से अपील की कि इस मौके को हाथ से जाने न दें, किसानों और मजदूरों की आवाज दिल्ली तक पहुंचे, इसलिए लाल झंडे को, भाकपा(माले) को, शोषितों की आवाज को दिल्ली तक पहुंचाएं. वक्ताओं ने कहा कि सिर्फ कोडरमा ही नहीं, पूरे झारखंड की जनता भाजपा को खारिज कर चुकी है इसलिये उसे कोडरमा में अपना उम्मीदवार बदलना पड़ा है. लेकिन अन्नपूर्णा के भाजपा में जाने से सामाजिक न्याय की ताकतें विक्षुब्ध हो गई हैं और विकल्प के बतौर उन्होंने भाकपा(माले) को चुन लिया है. उधर बाबूलाल भी छद्म रूप से भाजपा को ही जिताने का काम कर रहे हैं इसलिये समूचे झारखंड के अल्पसंख्यक समुदाय के लोग उनसे चिढ़े हुए हैं. इन स्थितियों में चुनावी माहौल भाकपा(माले) के पक्ष में है और उम्मीद है कि महेन्द्र सिंह के सपने को साकार करते हुए इस बार कोडरमा पर लाल परचम लहरायेगा और कोडरमा अपना लाल झंडे का प्रतिनिधि लोकसभा में भेजने में कामयाब होगा.