इंत्जिनाइटिस जिसे मुजफ्फरपुर वो स्थानीय लोग ‘चमकी बुखार’ है कहते हैं, ने एक वार फिर से कहर ढाया है. यह अजीब संयोग है कि 2014 में जब केंद्र में पहली बार नरेन्द्र मोदी की सरकार आई थी, इस बीमारी से 300 से अधिक बच्चों की मौतें हुई थी. इस बार फिर से जब मोदी सत्ता में दुबारा लौटे हैं, तो मौतों की संख्या अब तक 150 के पार कर गई है. अपना शपथ ग्रहण के बाद मोदी ने सबका साथ-सबका विकास और सबका विश्वास का नारा दिया था, लेकिन मुजफ्फरपुर की घटना ने केंद्र व राज्य सरकार के इस दावे की पोल खोल कर रख दी है. अव्वल दर्जे की सुस्ती व घोर लापरवाही बतलाती है कि भाजपा-जदयू के नेता सत्ता के मद में चूर हैं. बिहार के मुख्यमंत्री की नींद तो तब खुली जब मरने वाले बच्चों की संख्या 150 के पार करने लगी और जब सर्वत्र उनकी आलोचना होने लगी, क्या बिहार और देश की जनता ने यही दिन देखने के लिए मोदी की दुबारा सत्ता में बैठाया था?
मुजफ्फरपुर की दर्दनाक घटना और गया-औरंगाबाद में लू से मरते लोगों के प्रति भाजपा-जद(यू) ने घोर संवेदनहीनता का परिचय दिया है. इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि लू से मरने वालों की संख्या रोकने के लिए ठोस उपाय करने की बजाए प्रशासन ने इन जिलों में धारा 144 लगा दिया है. अब लोग सवाल कर रहे है कि आखिर धारा 144लगाने से मरने की तादाद कैसे रुकेगी? सरकार के पास कोई जवाब नहीं है कि ऐसा क्यों किया गया. संवदेनहीनता का चरम यह है कि चमकी बुखार पर आपात बैठक में बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय बच्चों की जिन्दगी बचाने की बजाए भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच का स्कोर पूछ रहे थे. जिसे सोशल मीडिया पर लोगों ने खूब लताड़ लगाई. उसके पहले भी उनकी संवेदनहीनता उजागर हुई, जब उनकी कारों के कारवां के चलते यातायात रोक दिया गया और उसकी वजह से चमकी बुखार से पीड़ित बच्चे को ले जा रही एंबुलेंस घंटों जाम में फंसी रही. भाजपा के स्थानीय सांसद ने भी बेहद गैरजिम्मेवार बयान दिया. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्द्धन भी आए. वे 2014 में भी आए थे और ढेर सारी घोषणाएं की थीं. इस बार भी आए और चले गए. उनके पास न तो कोई प्लान था और न ही कोई उत्साह. हर्षवर्द्धन के साथ संवाददाता सम्मेलन में अश्विनी चौबे सोते पाए गए. पत्रकारों ने जब उनसे सोने पर सवाल किया, तब उन्होंने कहा कि दरअसल वे चिंतन-मनन कर रहे थे.
हर कोने से सवाल उठ रहे है कि इन पांच वषों में केंद्र अथवा बिहार की सरकार ने इस अज्ञात बीमारी इंसेफ्लाइटिस की रोकथाम के लिए क्या किया? सरकार कहती है कि इस बीमारी का अभी तक कोई इलाज नहीं निकाला जा सका है. ऐसा कहकर और कुछ ‘लीची’ पर दोष मढ़कर सत्ता का हर एक आदमी अपनी जवाबदेही से बच निकलने में ही है. यदि यह मान भी लिया जाए कि इस बीमारी का सही से इलाज नहीं निकल पाया है, लेकिन डॉक्टरों व विशेषज्ञों से बातचीत के आधार पर जो तथ्य उभरकर सामने आ रहे हैं, उससे साफ जाहिर होता है कि थोड़े से प्रयास में ही सैकड़ों बच्चों की जान बचाई जा सकती है. भाकपा-माले के राज्य सचिव कुणाल विगत 19जून को मुजफ्फरपुर के दौरे पर थे. गोरखपुर के डॉक्टर काफील भी मुजफ्फरपुर आए हुए हैं. डॉक्टरों ने कहा कि यदि चमकी बुखार से पीड़ित होने के 1 घंटे के भीतर पीड़ित का उपचार हो जाता है, तो उसके बचने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है. यह तभी होगा जब गांव व पंचायत स्तर पर स्वास्थ्य केंद्र गतिशील अवस्था में होंगें. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में इमरजेन्सी व्यवस्था होगी और पर्याप्त संख्या में डॉक्टर होंगें. लेकिन डॉक्टरों के बार-बार आग्रह के बावजूद इसकी उपेक्षा की गई. एसकेएमसीएच के आईसीयू में महज 14 बेड थे. बाद में उसे बढ़ाकर 50 किया गया. सहज अंदाज लगाया जा सकता है कि सरकार की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था ही इतनी बड़ी संख्या में मौतों की जिम्मेवार है और इसकी सीधी जवाबदेही नीतीश कुमार की बनती है.
सरकार की भूमिका सवालों के घेरे में यूं को नहीं है. केरल में कुछ वर्ष पहले निपाह जैसी सक्रामक बीमारी फैली थी, जिसमें 11 लोग मारे गए थे. एक साल बाद केरल के एक दूसरे जिले में यही बीमारी फैली लेकिन महज 1 व्यक्ति की मौत हुई. यानि बीमारी का ही दम तोड़ दिया गया. बिहार में 2014 में सरकारी आंकड़ों के अनुसार 300 से अधिक और गैरसरकारी आंकड़े के अनुसार लगभग 500 लोग मरे. साल-दर-साल बच्चे मरते ही रहते हैं और इस वर्ष फिर से एक वार 150 का आंकड़ा छू लिया है. जाहिर है गैरसरकारी आंकड़े इससे भी अधिक हैं, क्योंकि निजी अस्पतालों में इलाज करा रहे लोगों की इस गिनती में शामिल ही नहीं किया गया है. इसलिए जब विगत 17 जून की काफी देरी के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मुजफ्फरपुर पहुंचे तो आम लोगों ने काले झंडे से उनका स्वागत किया. पीड़ित लोगों ने उनके खिलाफ जमकर नारेबाजी की. संवेदनहीनता की पराकाष्ठा तो तब है जब पीड़ित परिवार मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल में शामिल स्थानीय विधायक सुरेश शर्मा से मुलाकात कर अपनी बात रखनी चाहिए तो अधिकारियों ने मिलने नहीं दिया. नेता आते गए, वादे होते रहे, मुख्यमंत्री आकर 2500 बेड के अस्पताल के निर्माण की बात कह गए, लेकिन मौतों का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा. इसकी वजह यह है कि अब भी सरकार युद्ध स्तर पर और तात्कालिक जरूरी चीजों पर कोई ध्यान नहीं दे रही है. जबकि ये बहुत छोटे कार्यभार थे, यदि उसे कर लिया जाता तो बच्चों के मरने की दर तत्काल रोक दी जा सकती थी.
1. आईसीयू में बेड को संख्या 200 करना : एसकेएमसीएच में बच्चों के 14 बेड वाला पीआईसीयू था जिसे अभी बढ़ाकर 50 किया गया है. लेकिन 19 जून तक उसमें 96 बच्चे भर्ती थे. इसका मतलब एक बेड पर दो-दो बच्चे हैं. यदि बेडों की संख्या बढ़ाकर 200 कर दिया जाए, तो सभी बच्चों की तत्काल राहत मिल सकती है. यह ऐसा सवाल भी नहीं है जिसे सरकार को करने में बहुत बड़ी परेशानी हो. यदि एसकेएमसीएच में जगह उपलब्ध नहीं है, तो शहर के दूसरे अस्पतालों में आर्हसीयू व बेड की संख्या बढ़ाकर इस समस्या का समाधान निकाला जा सकता है. पीएमसीएच में बच्चों को रेफर किया जा सकता है. लेकिन इस छोटी सी मांग को पूरा करने के प्रति सरकार की कोई दिलचस्पी नहीं है.
2. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर डॉक्टर, दवा व एंबुलेस : दूसरे सुझाव में यह कहा गया है कि प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेंद्रों की स्थिति ठीक करके इस महामारी पर नियंत्रण किया जा सकता है. यदि इन स्वास्थ्य केंद्रों पर बच्चे के डॉक्टर, दवा व एंबुलेस हो और3 घंटे के भीतर बच्चे को पहुंचा दिया जाए, तो उसकी जिन्दगी बचाई जा सकती है.
3. साफ यानी, ग्लूकोज लेवल मेंटन रखना : तीसरे सुझाव के मुताबिक कहा कि इसके स्रोत पर हमला किया जाना चाहिए. सरकार को इस बात का उपाय करना चाहिए कि दवा का लगातार छिड़काव और साफ पानी की व्यवस्था होता रहे और बच्चों का ग्लूकाजे लेवल मेंटेन कर लिया जाए व उनके लिए उचित भोजन की व्यवस्था कर ली जाए तो इस महामारी पर रोक लगाई जा सकती है.
ये कुछ तात्कालिक उपाय हैं, जिसे पूरा करने में सरकार को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए लेकिन सरकार इसे भी पूरा नहीं कर रही है.
इंसेफ्लाइटिस के कारण जो हों, उसपर रिसर्च करने की आवश्यकता है, लेकिन इतना तय है कि यह कुपोषण की वजह से पनप रहा है. खाली पेट और भयानक गर्मी की वजह है बच्चों की दिमागी बुखार हो रहा है. यह इस बात का भी द्योतक है कि हमारे बच्चे आज भी भरपेट खाना तक नहीं खा पा रहे. इसमें अधिकांश बच्चे गरीब-दलित परिवार है हैं. सरकार गरीबों के लिए अपनी योजनाओं की शेखी बघारते रहती है, लेकिन हकीकत आज सबके सामने है. यह बीमारी 1995 है लगभग प्रतिवर्ष कुछ न कुछ बच्चों की निगल रही है. पटना के एक प्रतिष्ठित डॉक्टर का कहना है कि बीमारी जब महामारी का रूप ले लेती है तब सरकार कुछ समय के लिए हिलती है. न तो वह कोई रिसर्च करवाती है न ही महामारी फैलने से पहले रोकथाम का उपाय करती है. अब यह बीमारी केवल लीची के क्षेत्र तक सीमित नहीं रही क्योंकि इस बार दूध पीने वाले बच्चे भी इसकी चपेट में आए. और इसका दायरा अब केबल मुजफ्फरपुर तक ही सिमटा नहीं रहा, बल्कि इसके लक्षण पूर्वी चंपारण, बेगूसराय, बक्सर आदि जिलों में भी देखे जा रहे हैं.
इसमें कोई संदेह नहीं कि इसकी चपेट में गरीब बच्चे ही हैं. ठीक उसी प्रकार गया-औरगांबाद जिलों में भयानक लू की चपेट में भी गरीब ही हैं और अब तक 200 से अधिक लोगों ने अपनी जान गँवा दी है. चाहे चमकी बुखार हो या गर्मी की लहर अथवा पेयजल का संकट, इन सब के शिकार सिर्फ और सिर्फ मेहनतकश गरीब गुरबे व कमजोर वर्ग के ही लोग होते हैं. ये कठोर तथ्य हमारे विकास मॉडल पर भी सवाल खड़े करते हैं. यानी जो विकास हुआ, वह दरअसल किसका विकास हुआ? बहुत सारे नेता ‘विकाष पुरुष’ का खिताब पाकर बहुत गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं पर सच्चाई कितना दर्दनाक व भयावह है. और अचरज की बात यह है कि कोई भी शासन व्यवस्था इसकी जिम्मेवारी नहीं लेता. मुजफ्फपुर में चमकी बुखार से बच्चे मरते रहे और गया में लू से लेकिन बिहार सरकार पटना में दुकानदारों की दुकानें उजाड़ने में लगी रही. बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी से जब इस बारे में सवाल पूछा गया तो वे भड़क गए, कहने लगे – सिर्फ आज के विषय पर वे अपनी बात रखेगें. तो यह है भाजपा का असली चरित्र.
भाकपा-माले ने इस मामले में तत्काल पहलकदमी ली. माले विधायक दल के नेता महबूब आलम व आरवाईए के राज्य सचिव सुधीर कुमार के नेतृत्व में एक जांच टीम 15 जून की मुजफ्फरपुर पहुंची. उस टीम में माले के जिला सचिव कृष्णमोहन, खेग्रामस नेता शत्रुघ्न सहनी और अन्य स्थानीय नेता भी शामिल थे. माले जांच दल ने सबसे पहले अस्पतालों का दौरा किया और यह पाया कि बच्चों को बीमारी से बचाने के लिए सरकार के पास कोई भी ऐक्शन प्लान नहीं है. उन्होंने पीड़ित बच्चों व उनके परिजनों से मुलाकात की. उस वक्त एक बेड पर दो से तीन बच्चे पड़े हुए थे. बिस्तर का घोर अभाव था. उन्होंने अधीक्षक सुनील कुमार से बात की और केंद्र व राज्य सरकार तत्काल डॉक्टरों की विशेष टीम भेजने का आग्रह किया .
फिर दिनांक 19 जून की माले राज्य सचिव कुणाल व वरिष्ठ माले नेता राजाराम के नेतृत्व में एक दूसरा प्रतिनिधिमंडल मुजफ्फरपुर पहुंचा. माले जांच टीम ने 4 दिन गुजर जाने के बाद भी अस्पताल में नर्सों व वार्ड की घोर कमी पाई. साधारण वार्ड में पंखे तक उपलब्ध नहीं थे. बच्चे बीमारी से कम और लापरवाही से ज्यादा मर रहे थे.
चमकी बुखार के कारण 150 से अधिक बच्चों की दुखद मौत के जिम्मेवार स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय को बर्खास्त करने, उसे राज्य आपदा घोषित करने, मुख्यमंत्री द्वारा उनकी देखरेख में युद्धस्तर पर आपात चिकित्सा की व्यवस्था करने, प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेंद्रों से लेकर प्रखंड, अनुमंडल एवं जिला अस्पतालों में इमरजेंसी सेवा व आईसीयू बहाल करने आदि मांगों पर 19-20 जून को भाकपा-माले ने राज्यव्यापी विरोध दिवस का आयोजन किया. इसके तहत पटना में कारगिल चौक पर विरोध सभा का आयोजन किया गया, जिसे माले विधायक दल के नेता महबूब आलम, ऐपवा की बिहार राज्य सचिव शशि यादव, आइसा की प्रियंका प्रियदर्शिनी, मृणाल यादव, आरवाईए के सुधीर कुमार आदि ने विरोध सभा को संबोधित किया. इस मौके पर अभ्युदय, नवीन कुमार, मोख्तार सहित कई पार्टी व छात्र-युवा नेता उपस्थित थे. कटिहार जिला के बारसोई में आइसा-आरवाईए ने प्रतिवाद मार्च निकाला और स्वास्थ्य मंत्री का पुतला फूंका. प्रतिवाद मार्च निकालकर ब्लॉक चौक को जाम कर दिया गया. भागलपुर में भाकपा-माले के नगर प्रभारी मुकेश मुक्त के नेतृत्व में सुभाष चौक पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया. प्रदर्शन के पहले मृतक बच्चों को श्रद्धांजलि भी दी गई. अरवल में माले-आइसा व आरवाईए ने संयुक्त रूप से मार्च निकाला और सभा आयोजित की. मधुबनी में रेलवे स्टेशन के पास माले नेता अनिल कुमार सिंह, आइसा नेता प्रमोद कामत व इंनौस नेता गोपाल यादव, के नेतृत्व में मार्च निकाला गया. पश्चिम चंपारण में मंगल पांडेय की बर्खास्तगी की मांग के साथ-साध उनका पुतला दहन किया गया. समस्तीपुर में मवेशी अस्पताल में सैकड़ों की संख्या में पार्टी कार्यकर्ता जुटे और सदर अस्पताल, समाहरणालय, अनुमंडल कार्यालय, महिला कॉलेज, नगर एवं मुफस्सिल होते हुए ओवरब्रिज चौराहा पहुंचकर सभा आयोजित की. दरभंगा में विश्वविद्यालय स्थित बाबा नागार्जुन की मूर्ति से मार्च निकाला गया. भोजपुर में इंनौस के राज्य अध्यक्ष अजीत कुशवाहा, माले राज्य कमेटी सदस्य कयामुद्दीन अंसारी, आइसा जिला सचिव शब्बीर कुमार, माले नगर सचिव दिलराज प्रीतम, राजेन्द्र यादव, आइसा राज्य सचिव शिवप्रकाश रंजन, अभय कुशवाहा आदि के नेतृत्व में मार्च निकाला गया. अन्य जिलों में भी मार्च निकला और प्रतिरोध सभाएं आयोजित की गई.
- कुमार परवेज