असमानता जानलेवा है : अमीरों पर टैक्स लगाओ, गरीबों पर नहीं

ऑक्सफैम द्वारा 16 जनवरी, 2023 को जारी वैश्विक असमानता रिपोर्ट 2022 का शीर्षक “सर्वाइवल ऑफ द रिचेस्ट” है.  ‘वर्ल्ड इकनोमिक फोरम’ में दुनियाभर के रईसों और ताकतवर लोगों के होने वाले सालाना जलसे के समय आयी यह रिपोर्ट इस तथ्य का खुलासा करती है कि रईसों की बढ़ती आय और लोगों के बीच धन की असमानता कोविड-19 महामारी के दौरान खतरनाक रूप से बढ़ी है. नवउदारवादी जमाने की प्रतिगामी टैक्सों के जरिये ऐसे हालात कायम कर दिए गए हैं कि जहां गरीबों पर भारी टैक्स का बोझ डाल दिया गया है, वहीं अमीरों से बहुत कम टैक्स वसूला जा रहा है.

भय और झूठ के शासन को खत्म करें ! आजादी और अधिकार के गणतंत्र को पुनस्र्थापित करें !!

कोविड-19 वैश्विक महामारी के घातक विस्फोट के तीन वर्ष बाद अभी तक दुुनिया इसके विनाशकारी परिणामों से निकलने की कोशिश कर रही है. संयोगवश, किसी भी जगह से ज्यादा चीन से यह महामारी शुरू हुई थी और आज भी वह देश इस महामारी के नतीजे झेल रहा है, और यहां तक कि महामारी की रोकथाम के नाम पर राज्य के उत्पीड़नकरी कदमों के खिलाफ वहां बड़े पैमाने पर सामाजिक प्रतिवाद भी देखे गए हैं. दुनिया के अन्य भागों में कोविड महामारी दब जाने के बावजूद, जनता के विशाल तबके इसकी वजह से हुई आर्थिक गिरावट, और खासकर बड़े पैमाने पर रोजगार के नुकसान व मजदूरी में कटौती से परेशान हैं.

उत्तर प्रदेश में ऐक्टू का बढ़ता काम

आशा कर्मियों की यूनियन का फैलाव व पार्टी निर्माण की एक कोशिश

ऐक्टू के प्रदेश अध्यक्ष रहे कामरेड हरि सिंह की निधन के बाद उत्तर प्रदेश में ऐक्टू के काम को संगठित करने व उसे बढाने की चुनौती को नए नेतृत्व ने आगे बढ़ कर उठाया. उत्तर प्रदेश में कताई मिल मजदूरों के बीच कताई मिल मजदूर महासंघ बनाकर प्रदेश की लगभग सभी मिलों मे उसका विस्तार कर एक सेक्टर में ही सही संगठन के व्यापक प्रभाव, नेतृत्व की लोकप्रियता, जन गोलबंदी की ताकत और जुझारू संघर्ष ने प्रदेश में ऐक्टू को शुरुआती दिनों में  पहचान दी थी.

सरकार को समर्थन जारी रखते हुए जन सवालों पर पहलकदमियां तेज करनी होगी

बिहार में सत्ता सेे भाजपाइयों की बेदखली के बाद महागठबंधन सरकार में विगत 13 से 19 दिसंबर तक बिहार विधानसभा का पहला विधिवत शीतकालीन सत्र था. विदित हो कि इस सत्ता परिवर्तन का स्वागत करते हुए भाकपा(माले) नीतीश सरकार को बाहर से समर्थन दे रही है. नीतीश कुमार की ओर से भाकपा(माले) को मंत्रिमंडल में शामिल होने का भी आमंत्रण था लेकिन उसने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि वह सत्ता में भागीदार बनने की बजाए जनता के आंदोलनों व मुद्दों को सरकार तक पहुंचाने और उनके बीच एक सार्थक संवाद बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने का काम करेगी.

तेज हुईं भाकपा(माले) के 11वें पार्टी महाधिवेशन की तैयारियां

विगत 1-3 दिसंबर, 2022 को मुजफ्फरपुर (बिहार) में भाकपा(माले) केन्द्रीय कमेटी की बैठक संपन्न होने तथा  4 दिसंबर व 5 दिसंबर को क्रमशः पटना में बिहार राज्यस्तरीय और कोडरमा में झारखंड राज्यस्तरीय कैडर्र कन्वेंशनों के संपन्न होने के साथ ही इन राज्यों में भाकपा(माले) के 11वें राष्ट्रीय महाधिवेश की तैयारियां तेज हो चुकी हैं. यहां प्रस्तुत हैं इस सिलसिले में प्राप्त कुछेक गतिविधियों की एक संक्षिप्त रिपोर्ट:

बिहार

कार्यकर्ता कन्वेंशन

संविधान को सिर के बल खड़ा करने की संघ-भाजपा मुहिम को शिकस्त दें!

संविधान दिवस, 2022 ने एक बार फिर संविधान की भावना और मूल्यों की रक्षा करने की बड़ी चुनौती को जल्द ही स्वीकार करने की जरूरत को सतह पर ला खड़ा किया है. इधर हमें दो अच्छे संकमेत मिले हैं, हमने देखा कि प्रोफेसर आनंद तेलतुंबड़े जेल में करीबन एक हजार दिन बिताने के बाद जमानत पर बाहर निकल आए हैं और उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय से अपनी जमानत के आदेश पर स्थगन हासिल करने के एनआइए के प्रयासों को धूल चटा दिया दिया; दूसरी ओर, हमने देश भर में किसानों को सड़कों पर मार्च करते देखा जो अपनी सभी फसलों के लिये उचित मूल्य प्राप्त करने के अधिकार तथा कृषि की रक्षा के लिए संकल्पबद्ध थे.

मजदूर तबके पर फासीवादी हमला

-- क्लिफ्टन डी. रोजारियो

आप फासीवाद के खिलाफ सम्मेलन में इसलिये नही जाते कि फासीवाद की पक्की परिभाषा तय करें, बल्कि यह समझने जाते हैं कि विभिन्न तबकों के लिए इसके क्या मायने हैं, उनके अस्तित्व पर फासीवाद का क्या असर पड़ा है, और कितने कारगर तरीके से वे इसका मुकाबला कर रहे हैं. – के. बालगोपाल [1]

[ह्यूमन राइट्स फोरम (एचआरएफ) द्वारा 9 अक्टूबर 2022 को हैदराबाद में आयोजित 13वीं बालगोपाल मेमोरियल मीटिंग में दिए गए भाषण से]