ऐतिहासिक रहा ग्रामीण भारत बंद और औद्योगिक-क्षेत्रीय हड़ताल

16 फरवरी 2024 को एसकेएम और सीटीयू/फेडरेशनों द्वारा आहूत और देश की अन्य ट्रेड यूनियनों, खेत मजदूर, छात्र, युवा, महिला, व्यापारी, ट्रांसपोर्ट से जुड़े संगठनों का देश में औद्योगिक/सेक्टोरियल हड़ताल और ग्रामीण भारत बंद का आह्वान ऐतिहासिक रहा। इस अभियान को सफल बनाने के लिए देश के किसानों, मजदूरों, छात्रों, युवा, महिला संगठनों, व्यापार व ट्रांसपोर्ट से जुड़े संगठनों की अहम भूमिका रही है। संयुक्त किसान मोर्चा और केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने इसे ऐतिहासिक करार देते हुए आगे और भी बड़े आंदोलनात्मक अभियान चलाने का ऐलान किया है। इस हड़ताल और बंद का असर सुबह से ही दिखने लगा था, जब कई उद्योगों, स

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों में देशव्यापी उबाल 

देश की खेती, किसानी और खाद्य सुरक्षा को कारपोरेट व बहुराष्ट्रीय कंपनियों का गुलाम बनाने वाले तीन कानूनों को जबरन संसद में पारित किए जाने के विरोध में देश के किसानों और खेत मजदूरों ने 25 सितम्बर 2020 को अपने राष्ट्रव्यापी संघर्ष का बिगुल बजा दिया है. अनुमान है कि 25 सिम्बर को देश भर में एक लाख से ज्यादा स्थानों पर विरोध कार्यक्रम आयोजित हुए और दो करोड़ से ज्यादा लोगों ने इनमें सक्रिय भाग लिया. राष्ट्रपति द्वारा 27 सितम्बर को तीनों कृषि बिलों पर हस्ताक्षर कर दिए जाने के बाद भी किसानों का यह आन्दोलन देश भर में लगातार जारी है.

भारतीय कृषि के सम्मुख चुनौतियां

नेपाल के राष्ट्रीय किसान आयोग द्वारा विगत 10-11 मार्च को काठमांडू में ‘खाद्य संप्रभुता और किसान अधिकार’.विषय पर आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव का. का. पुरुषोत्तम शर्मा द्वारा प्रस्तुत पर्चा

 जीडीपी में कृषि का हिस्सा

भारत जब 1947 में आजाद हुआ तो उस वक्त हमारी जीडीपी में कृषि का हिस्सा 52 प्रतिशत था. हमारी आबादी का 70 प्रतिशत हिस्सा तब सीधे कृषि से जुड़ा था. जबकि आज भी हमारी आबादी का 55 प्रतिशत हिस्सा कृषि से सीधे जुड़ा है और जीडीपी में कृषि का हिस्सा लगभग 14 प्रतिशत बचा है.