वर्ष - 33
अंक - 34
17-08-2024

प्रीपेड बिजली मीटर के कार्यान्वयन के खिलाफ मुख्य रूप से अडानी-केंद्रित विरोध में विभिन्न ट्रेड यूनियनों, नागरिक संगठनों और राजनीतिक दलों ने हाथ मिलाया है. वे अपना विरोध जताने के लिए प्रदर्शन, बैठकें और हस्ताक्षर अभियान आयोजित कर रहे हैं. प्रीपेड बिजली मीटर और बिजली क्षेत्र को उत्पादन से लेकर पारेषण और वितरण तक को पूरे भारत में कॉरपोरेट सेक्टर के हवाले करने की एक बड़ी योजना का हिस्सा है. इसलिए, इसकी अधिक विस्तार से जांच करना जरूरी है. महाराष्ट्र में, जमीन पर बढ़ते दबाव और आगामी संसदीय और विधानसभा चुनावों के कारण, महायुति सरकार ने यह कहकर रणनीतिक कदम उठाया है कि आवासीय उपभोक्ताओं को ये मीटर लगाने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा. हालांकि, सरकार ने अरबों रुपये के लाखों मीटरों के खरीद आदेश को रद्द नहीं किया है. यह दावा स्पष्ट रूप से अन्य चुनाव पूर्व वादों की तरह झूठा है, क्योंकि स्मार्ट मीटर लगाने की योजना जुलाई 2021 में केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई संशोधित वितरण क्षेत्र योजना (आरडीएसएस) का एक हिस्सा है, और कोई भी राज्य सरकार इस योजना को रद्द नहीं कर सकती है.

आगे बढ़ने से पहले कुछ आंकड़ों पर नज़र डालते हैं. अडानी को अकेले महाराष्ट्र में 14388 करोड़ रुपये के ऑर्डर मिले हैं, जिससे कंपनी को भारत में 30% बाजार हिस्सेदारी मिली है. उन्होंने पांच राज्यों में अनुबंध हासिल किए हैं. एनसीसी ने 6791 करोड़ रुपये का अनुबंध हासिल किया है. मोंटो कार्ला और जीनस ने एक-एक अनुबंध हासिल किया है. प्रीपेड स्मार्ट इलेक्ट्रिसिटी मीटरिंग योजना उपभोक्ताओं, बिजली कर्मचारियों (स्थायी और संविदा दोनों) के लिए नुकसानदायक है, और यह बिजली वितरण को निजी क्षेत्र के कुछ कंपनीयों  के एकाधिकार के लिए आकर्षक बनाने की दिशा में एक कदम है.

टाटा, अडानी, जिंदल, टोरेंट और अन्य जैसी कंपनियों के पास पहले से ही आधे से ज्यादा बिजली उत्पादन पर नियंत्रण है. अब वे उत्पादन, ट्रांसमिशन और वितरण सहित पूरी बिजली आपूर्ति श्रृंखला पर स्वामित्व और नियंत्रण चाहते हैं. वर्तमान में, राज्य की बिजली कंपनियों की कई शाखाएं उत्पादन, ट्रांसमिशन और वितरण को नियंत्रित करती हैं. अडानी और टाटा ने पहले ही ट्रांसमिशन बाजार में कुछ पैठ बना ली है. ये वितरण कंपनियां अपने एकाधिकार को कायम कर ज्यादा मुनाफा के लिए सरकार से निम्नलिखित बातों को सुनिश्चित करने पर जोर दे रही है.

  1. सरकार यह सुनिश्चित करे कि बिजली के सभी भुगतान, चाहे नियमित या रियायती दर पर हों, समय पर एकत्र किए जाएं और बिजली बनाने वाली कंपनियों को दिए जाएं. इसका मतलब है एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करना, जिसमें व्यक्ति, व्यवसाय, उद्योग, कृषि और सरकार सहित विभिन्न क्षेत्रों के ग्राहकों पर कोई बकाया बिल भुगतान न हो. बिजली दरों पर किसी भी सरकारी सब्सिडी का भुगतान प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) प्रणाली का उपयोग करके तुरंत किया जाना चाहिए. हमने एलपीजी गैस के मामले में इस तरह के हस्तांतरण की निरर्थकता देखी है.

  2. वितरण प्रणाली में चोरी सहित घाटे को कम करें, ताकि आपूर्ति की गई अधिकांश बिजली का भुगतान किया जा सके. इससे आपूर्ति की वास्तविक लागत (एसीएस) और स्वीकृत राजस्व आवश्यकता (एआरआर) के बीच कोई अंतर नहीं हो.

  3. वितरण बुनियादी ढांचे में इस तरह से सुधार करें कि निगमों को इसके नवीनीकरण में अपनी पूंजी निवेश करने की आवश्यकता न हो.

इन मुद्दों को हल करने से बिजली वितरण निगमों के लिए वर्तमान की तुलना में अधिक लाभदायक हो जाएगा.

यह उन कठिनाइयों को भी दूर करेगा जो बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियों (जेनको) को डिस्कॉम द्वारा खरीदी गई बिजली के भुगतान में देरी के परिणामस्वरूप आती हैं. उनके पास अग्रिम रूप से एकत्र किए गए हजारों करोड़ रुपये तक पहुंच होगी. यह बिजली उद्योग को और भी अधिक लाभदायक बना देगा यदि इसकी आवश्यक कार्यशील पूंजी का भुगतान ब्याज मुक्त कर दिया जाता है.

  • स्मार्ट मीटरिंग कार्यक्रम के क्रियान्वयन से करीब 2 लाख करोड़ रुपये के कारोबारी अवसर पैदा होंगे.

  • आरडीएसएस का बजट 3 लाख करोड़ रुपये है. इस परियोजना के तहत देशभर में गैर-कृषि उपभोक्ताओं के लिए 25 करोड़ स्मार्ट मीटर लगाने का लक्ष्य है. इसका मतलब है कि करीब 125 करोड़ लोग इसके दायरे में आएंगे.

  • प्रीपेड स्मार्ट मीटरिंग कार्यक्रम समेत आरडीएसएस का उद्देश्य ग्राहकों और बिजली कर्मचारियों के बजाय बड़ी कंपनियों को लाभ पहुंचाना है. स्मार्ट मीटर उपभोक्ता विरोधी हैं, जिसके कारण बिल और अग्रिम भुगतान अधिक होता है.

  • सभी स्मार्ट मीटर प्रीपेड होने की उम्मीद है. ग्राहकों को बिजली का उपयोग करने से पहले अग्रिम भुगतान करना होगा. जब प्रीपेड राशि खत्म हो जाएगी, तो बिजली अपने आप बंद हो जाएगी. इससे व्यक्तियों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा. यदि वे नहीं चाहते कि उनकी बिजली काटी जाए, तो उन्हें अपनी खपत पर नजर रखनी चाहिए और बैलेंस शून्य होने से पहले अपने मीटर को फिर से भरना चाहिए.

  • इसमें प्रावधान है कि स्मार्ट मीटर केवल सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से ही लगाए जाएंगे. इस योजना के तहत सरकारी स्वामित्व वाली डिस्कॉम (वितरण कंपनियों) को अपने दम पर स्मार्ट मीटर लगाने की अनुमति नहीं है. केंद्र सरकार डिस्कॉम को प्रत्येक स्मार्ट मीटर पर 900 रुपये और पूर्वात्तर तथा पहाड़ी राज्यों में प्रति स्मार्ट मीटर 1200 रुपये का प्रोत्साहन देगी.

  • इसमें उचित कामकाज के लिए आवश्यक हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर को समनुरूप करना शामिल है. यह योजना DBFOOT (डिजाइन, बिल्ड, फाइनेंस, ऑपरेट, ओन और ट्रांसफर) प्रतिमान का पालन करेगी. महाराष्ट्र में रिपोर्टों के अनुसार, निजी निगम सरकार को सौंपने से पहले 93 महीने तक सिस्टम का स्वामित्व और संचालन करेगा. हालांकि, हम समझते हैं कि यह गारंटी कितनी मूल्यवान है! एक बार कॉर्पारेट हाथों में जाने के बाद, इसके सार्वजनिक क्षेत्र में वापस आने की संभावना नहीं है.

  • केंद्र सरकार ने 2025 के अंत तक टाइम ऑफ डे (ToD) टैरिफ योजना लागू करने की योजना की घोषणा की है. ToD तकनीक दिन के उजाले के दौरान बिजली की खपत को 10-20% तक कम कर देगी और दिन के उजाले के बाद इसे 10-20% तक बढ़ा देगी. इसे आम तौर पर ग्राहकों के लिए उपयोगी बताया जाता है. यह तर्क दिया जाता है कि उपभोक्ता बिजली का उपयोग तब कर सकते हैं जब यह सस्ती हो और जब यह अधिक महंगी हो तो इससे बच सकते हैं. ToD टैरिफ योजना को स्मार्ट मीटर के बिना लागू नहीं किया जा सकता है. स्मार्ट मीटर निगम को दिन भर, घंटे दर घंटे, आवश्यकतानुसार अपनी बिजली दरों को समायोजित करने की अनुमति देंगे.

  • बिजली की बढ़ी हुई दरें-टैरिफ निर्धारित करते समय सभी लागतों पर विचार किया जाना चाहिए. इसमें देरी नहीं की जा सकती.

  • स्मार्ट मीटरों का जीवनकाल सीमित होगा, और उन्हें बदलने की लागत उपभोक्ताओं द्वारा वहन की जाएगी!

  • भले ही वे मूल रूप से पोस्ट-पेड हों, उन्हें एक साधारण कंप्यूटर कमांड से प्रीपेड में बदला जा सकता है!

  • सरकारें झूठ बोल रही हैं जब वे कहती हैं कि स्मार्ट मीटर मुफ्त होंगे. उन्हें बिजली शुल्क का उपयोग करके किश्तों में वसूल किया जाएगा. बिजली, परिवहन, जल आपूर्ति, स्वास्थ्य, शिक्षा और स्वच्छता जैसी बुनियादी सेवाओं को लाभदायक नहीं माना जा सकता है!

स्मार्ट मीटरिंग कार्यक्रम हमारे देश में कई लोगों को बिजली से वंचित करेगा, जिनके  लिए बिजली बड़ी जरूरी है. रविवार, 7 जुलाई, 2024 को, कई संगठन ‘विद्युत स्मार्ट मीटर विरोधी क्रुति समिति’ (बिजली स्मार्ट मीटर का विरोध करने के लिए कार्रवाई समिति) के बैनर तले मुंबई में एकत्र हुए और योजना को वापस लिए जाने तक स्मार्ट बिजली मीटर को लगाने  के खिलाफ लड़ने का संकल्प लिया.

भाजपा शासित राज्य नई आईपीसी लागू करके देश को पुलिस राज्य में बदलने की कोशिश कर रहे हैं. वे विरोध करने वाले संगठनों और कार्यकर्ताओं को ‘शहरी नक्सली’ करार देकर लोगों की एकजुट लड़ाई को दबाने के लिए विशेष अधिनियम पारित कर रहे हैं या पारित करने का प्रयास कर रहे हैं. महाराष्ट्र सरकार ने अपने ट्रिपल इंजन के साथ बजट सत्र के दौरान ‘महाराष्ट्र सुरक्षा अधिनियम’ का मसौदा पेश किया. इस कदम का इंडिया गठबंधन के दलों, नागरिक समाज संगठनों और सोशल मीडिया ने पुरजोर विरोध किया. सरकार ने अंततः अपनी रणनीति के तहत मसौदा को वापस ले लिया है, हालांकि उनके पास अभी भी अध्यादेश का उपयोग करने का विकल्प है. महायुति यह देखने के लिए इंतजार करेगी कि आगामी विधानसभा चुनावों में वे सत्ता में आते हैं या नहीं. लोकतांत्रिक स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों को प्रतिबंधित करने के किसी भी प्रयास को रोकने के लिए सतर्क रहना और चुनावों में युति को हराना महत्वपूर्ण है.