बिहार के वैशाली जिले में 288 पैक्स और 16 व्यापार मंडल हैं जिनमें से 158 का धान खरीद के लिए चयन किया गया था. वैसे पैक्स या व्यापार मंडल धान खरीद से अलग कर दिए गए हैं जिनका लेखा अद्यतन नहीं है और जो डिफाॅल्टर हैं. इनमें से भी जो 31 दिसंबर 2020 तक विभागीय ऐप डाउनलोड कर प्रतिदिन धान खरीद की रिपोर्ट सरकार को नहीं दे सके और किसानों का ऑनलाइन भुगतान नहीं कर सके, उनको धान खरीदने से रोक दिया गया. पैक्स अध्यक्ष या प्रबंधक को धान खरीद के संपूर्ण नियमों का प्रशिक्षण नहीं देने की वजह से करीब 60 पैक्स धान खरीद से वंचित हो गए. जिले में 100 से भी कम पैक्स और व्यापार मंडल धान खरीद का काम कर रहे हैं.
प्रत्येक पैक्स को एक बार में 403 क्विंटल धान खरीदना होता है. उन्हें इस धान को मिलर के यहां पहुंचाना है, चावल तैयार करवाना है और फिर चावल को एसएफसी के गोदाम तक पहुंचाना है. एसएफसी जब 2788 रुपए प्रति क्विंटल की दर से चावल की कीमत पैक्स के खाता में भेज देगी, तब पैक्स फिर से 403 क्विंटल धान खरीद सकता है. रैयत किसानों से 250 क्विंटल तक और गैर रैयत किसानों (बटाईदार) से 75 क्विंटल तक धान खरीदने की सीमा है. यदि दो किसान धान बेचने आ जाए तो उन दोनों से 403 क्विंटल धान ही खरीदा जा सकता है. ऐसी स्थिति में सभी किसानों और बटाईदार किसानों से पूरे साल भर में भी धान की पूरी खरीद नहीं हो सकती.
इस वर्ष धान खरीद की समय सीमा 31 जनवरी तक ही थीै. जब इस अवधि को 31 मार्च तक बढ़ाने की मांग हुई तो इसे 15 फरवरी तक किया गया. पैक्स के जरिए धान की खरीद से कतराने का कारण यह है कि सरकार ने इस वर्ष चावल का रेट 2788 रुपया प्रति क्विंटल निर्धारित किया है. 1 क्विंटल धान में पैक्स को 67 किलो चावल देना होता है जबकि मिलर 60 किलो चावल से ज्यादा नहीं देता है. इस तरह प्रति क्विंटल धान पर 7 किलो चावल कम मिलता है और कुटाई भी एक सौ रुपए प्रति क्विंटल देना पड़ता है. 1868 रु. प्रति क्विंटल की दर से खरीदे गए धान से 2788 रु. प्रति क्विंटल की दर से चावल कहां मिलेगा जब मिलर एक क्विंटल धान लेकर 67 किलो चावल दे? फिर मिल में धान पहुंचाने और वहां से चावल लेकर एसएफसी गोदाम तक पहुंचाने में मजदूरी और भाड़ा भी तो देना होगा. ऐसी स्थिति में तो घाटा ही होगा. इसलिए पैक्स धान की वास्तविक खरीद नहीं करते और उसे कागज पर ही दिखा देते हैं. वे कहीं से भी अरवा चावल खरीद कर एसएफसी गोदामों में गिरवा देते हैं. एसएफसी वाले भी जन वितरण में गबन किए गए चावल को खरीद कर उसे पैक्स द्वारा दिया गया चावल बता देते हैं. जमीन का कागज (एलपीसी) देने से धान खरीद में किसानों को छूट मिलती है. किन्तु, सहकारिता विभाग के पोर्टल पर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवाना अभी भी अनिवार्य है. किसान सलाहकारों को क्षेत्रा में घूम-घूम कर रजिस्ट्रेशन करवाने हेतु किसानों को जागरूक करने की जवाबदेही दी गई थी. फिर भी अधिकांश धान उत्पादक किसानों का रजिस्ट्रेशन नहीं हो सका और बिना रजिस्ट्रेशन के उनका धान क्रय केंद्र पर नहीं बिक सकता है.
– विशेश्वर यादव