वर्ष - 29
अंक - 28
15-07-2020

विगत 2 जुलाई से 4 जुलाई 2020 तक भारत के कोयला मजदूरों ने देशव्यापी हड़ताल का पालन किया. हड़ताल की संक्षिप्त पृष्ठभूमि यह है कि सरकार एक तरफ वृहत् सार्वजनिक कम्पनी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) का बड़े पैमाने पर विनिवेश कर रही है, कोल ब्लाॅकों का निजी कंपनियों के बीच बड़े पैमाने पर आवंटन कर रही है, उसने कोयला उद्योगों में शत प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) को कानूनी अनुमति दे दी है, तो दूसरी तरफ वर्षों से चली आ रही सन्डे ओवरटाइम का प्रणाली को खत्म कर रही है. सरकार के इन तमाम जन-विरोधी, मजदूर-विरोधी कदमों ने कोयला मजदूरों के बीच आशंका ओर आक्रोश को जन्म दिया था. कोयला क्षेत्र संपूर्ण कमर्शियलाईजेशन की ओर अग्रसर है जिसका मतलब कोयले का उत्पादन एवं परिवहन ही नहीं, बल्कि उसकी मूल्य निर्धरण क्षमता, लक्ष्य निर्धरण का अधिकार, विपणन सब कुछ निजी खिलाड़ियों के हाथ छोड़ दिया रहा है. इन सबने इस उद्योग पर निर्भरशील तमाम लोगों में गंभीर असुरक्षा का भावना पैदा कर दिया था. इसी का परिणाम हुआ कि इस हड़ताल में मजदूर, करो या मरो के मूड में आ गए थे.

इस हड़ताल ने अपनी गोलबंदी, दृढ़ता, व्यापक समर्थन, उपलब्धि आदि के कारण देश की लोकतांत्रिक शक्तियों की दृष्टि आकर्षित की है. डब्लूएफटीयू जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन ने भी इसका संज्ञान लेकर समर्थन दिया है. इसने लाॅकडाउन के बहाने मजदूर अध्किारों पर हमले तेज करने के शासक वर्गीय षड्यंत्र को कारगर ढंग से चुनौती दी. यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि भारतीय मजदूर आंदोलन के इतिहास में इस हड़ताल की चर्चा उल्लेखनीय रहेगी. सीआईएल के सभी सब्सिडियरी, एससीसीएल (सिंगारेनी कोल कम्पनी लिमिटेड), आउटसोर्सिंग से चालू खदानों के मजदूरों की कुल संख्या लगभग साढ़े पांच लाख है, जिन्होंने इस हड़ताल में भागीदारी की और शुरू से अंत तक डटे रहे. ऊपर से ट्रेड यूनियनों की लगभग संपूर्ण एकता ने इस महान मजदूर गोलबंदी को भरपूर सहयोग प्रदान किया.

कोयला मजदूरों का हड़ताल का प्रभाव इस उद्योग के दायरे के बाहर तक फैल गया. एक तरफ इस्पात से लेकर अन्य उद्योगों के मजदूर, राज्य सरकार के कर्मचारी, बैंक कर्मचारी, बीमा कर्मचारी, निर्माण मजदूर आदि कोयला हड़ताल के पक्ष में खड़े हुए. वहीं दूसरी तरफ मोदी जमाने में जल-जंगल-जमीन को कारपोरेटों को सौंपने की खुली साजिश को देखते हुए आम तौर पर झारखंड, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में किसानों और खासकर आदिवासी जनमानस ने भी इस हड़ताल के साथ एकजुटता प्रदर्शित की. यहां तक कि झारखंड समेत कई राज्यों की सरकारों तक ने कमर्शियलाईजेशन पर आपत्ति दर्ज कराई थी.

इस हड़ताल में मूलतः 5 मांगें उठाई गईं थीं –

  1. निजी कंपनियों को भारत में कोयला उद्योग में कमर्शियल माइनिंग का खुला छूट देने का निर्णय वापस लो;
  2. सीआईएल एवं एससीसीएल को कमजोर करने अथवा इसके निजी करण की दिशा में उठाए गए कदम पर रोक लगाओ;
  3. सीएमपीडीआई को कोल इंडिया से अलग करने का निर्णय वापस लो;
  4. सीआईएल की हाई पावर कमेटी द्वारा निर्धारित ठेका मजदूरों की मजदूरी वृद्धि को सीआईएल एवं एससीसीएल में अविलंब लागू करो; और
  5. राष्ट्रीय कोयला वेतन समझौता की उन धाराओं को, जो आश्रितों की नौकरी देने से संबंधित हैं, अविलंब लागू करो.

इसके अलावा सीएमडब्लूयू (सम्बद्ध ऐक्टू) ने एक मांग और जोड़ी थी – सीआईएल कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के तहत प्रवासी मजदूरों के लिए वैकल्पिक रोजगार सृजन हेतु कोष मुहैया कराए.

एक नंबर कोयला उत्पादक राज्य होने के नाते झारखंड इस हड़ताल का केंद्रीय रंगमंच था. यहां सीसीएल, बीसीसीएल और ईसीएल के मुग्मा तथा राजमहल एरिया में हड़ताल शत प्रतिशत सफल रही. उत्पादन तथा डिस्पैच पूरी तरह ठप रहा. सीएमपीडीआई (रांची) में भी हड़ताल सफल रही. झारखंड में आउटसोर्सिंग खदानों में कार्यरत मजदूरों ने भी हड़ताल में अच्छी भूमिका निभाई और ऐसे माइंस भी बंद रहे. इसको झारखंड जनाधिकार महासभा (जो जल जंगल जमीन, भूख से मौत जैसे जान मुद्दों पर सक्रिय जनसंगठनों का एक साझा मंच है) का सक्रिय समर्थन मिला. झारखंड सरकार द्वारा कमर्शियल माइनिंग के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय पहुंचना, और यहां तक कि संघ परिवार से सम्बद्ध बीएमएस में असमंजस की स्थिति ने हड़ताल के लिए अनुकूल राजनीतिक माहौल पैदा किया था.

हमारे संगठन कोल माइंस वर्कर्स यूनियन (सीएमडब्लूयू) ने सीसीएल के चार एरिया (अरगड्डा, कुज्जू, गिरिडीह, कथारा), बीसीसीएल के तीन एरिया (एरिया न. 10, 11, 12) प्लस कोयला भवन और ईसीएल के मुग्मा एरिया में अन्य यूनियनों के साथ अगुवा भूमिका निभाई. इसके अलावा सीसीएल के दो एरिया, बीसीसीएल के दो एरिया और बिखरे तौर पर कई अन्य पाॅकेटों में भी उपस्थिति दर्ज कराई. सीसीएल में हमारी भूमिका सबसे प्रभावी रही. सीसीएल के गिरिडीह एरिया में भी हड़ताल उल्लेखनीय रूप से सफल रही. सभी जगह हड़तताल की सफलता के लिये सीएमडब्लूयू ने व्यापक और रंगारंग प्रचार कार्य किया था और गोलबंदी की पुरजोर तैयारी की थी.

स्वाभाविक है कि यह एक दीर्घकालीन लड़ाई है. 18 अगस्त 2020 को एकदिवसीय हड़ताल की घोषणा संयुक्त मोर्चा के द्वारा कर दी गई है. इस हड़ताल के अनुभवों से सीखते हुए हमें अगले दौर में कोलियरियों के इर्द-गिर्द ग्रामीणों के बीच हड़ताल के पक्ष में जनमत निर्माण के कार्य में जोर देना होगा; संयुक्त आह्वान के साथ साथ स्वतंत्र प्रचार, पहलकदमी पर जोर बढ़ाना होगा; बीएमएस की पैतरेबाजी के बारे लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाना होगा ताकि गोलबंदी में कोई कमी ना आए, हर सब्सिडियरी/एरिया में वामपंथियों एवं समान विचाधारा वाली ताकतों से घनिष्ठ संबंध रखा जाये; वर्तमान माहौल का सीआईएल के ठेका मजदूर तथा आउटसोर्सिंग के मजदूरों के बीच पैठ बनाने के लिए भरपूर इस्तेमाल किया जाये.

– हेमलाल महतो