पांच साल पहले गणतंत्र दिवस पर, दिल्ली विधनसभा के पिछले चुनाव की पूर्ववेला में प्रधनमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमरीकी राष्ट्रपति बाराक ओबामा को अपना अतिथि और दोस्त बताकर शेखी बघारी थी और दस लाख रुपये का सूट पहनकर नुमाइश की थी, जिस समूचे सूट पर उनका नाम काढ़ा हुआ था. वर्ष 2020 के गणतंत्र दिवस के अवसर पर नरेन्द्र मोदी के अतिथि थे ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो, जो अपनी नस्लवादी, महिला-विरोधी और समलैंगिकता-विरोधी नफरत भरे भाषणों के लिये, सैनिक तानाशाही और जनसंहारों का महिमा-मंडन करने तथा अमेजन के बरसाती जंगलों की विशाल पट्टियों का विनाश करने के लिये कुख्यात हैं. किसी राष्ट्र-प्रमुख को निश्चय ही उसकी मित्र-मंडली से जाना जाता है. और गणतंत्र दिवस पर मोदी की अतिथि बनाने की पसंद इस तथ्य का एक पैमाना है कि अब अंतराष्ट्रीय जनमत उनको दुनिया के आज के सबसे खतरनाक सत्ताधिकारवादियों में से एक स्वीकार करने लगा है.
ब्राजील और भारत, दोनों की जनता क्रमशः बोल्सोनारो और मोदी से अपने-अपने देश में लोकतंत्र की रक्षा करने के जीवन-मरण के संघर्ष में जूझ रही है. वर्ष 2020 का गणतंत्र दिवस भारत में तमाम जगहों पर और विभिन्न देशों में स्थित भारतीय दूतावासों पर शक्तिशाली प्रतिवादों का साक्षी रहा है, जो प्रतिवाद गणतंत्र का पुनरुद्धार करने और संविधान के मूल्यों पर पुनः दावेदारी पेश करने तथा सत्ताधिकारवादी एवं कट्टर धर्मांधता भरे एनपीआर-एनआरसी-सीएए के विरोध में हो रहे हैं. इस दिन लंदन स्थित भारतीय हाई कमीशन पर भारतीय एवं दक्षिण एशिया के प्रतिवादकारियों के साथ समुचित रूप से ब्राजील के फासीवाद-विरोधी आंदोलनकारी भी शामिल रहे. और दिल्ली में शाहीन बाग में हजारों नागरिक राधिका वेमुला द्वारा राष्ट्रीय झंडा फहराये जाने के समारोह में शामिल हुए.
गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि के बतौर बोल्सोनारो का चुनाव भी इस बात का संकेतक था कि मोदी और उनकी पार्टी दिल्ली के आसन्न विधानसभा चुनाव में दिल्ली के मतदाताओं को क्या भेंट देने जा रही है. इस बार उन्होंने “विकास” अथवा “सुशासन” के उपहार देने का कोई ढोंग नहीं किया. जब मोदी के नोटबंदी के विनाशकारी कदम से विध्वस्त भारतीय अर्थतंत्र के ध्वंसावशेष भारतीय जनता के सिरों पर भहराकर गिर रहे हैं, तब मोदी और शाह अपने नेतृत्व में मंत्रियों और पार्टी के सांसदों के साथ दिल्ली के मतदाताओं को केवल खुल्लमखुल्ला साम्प्रदायिक नफरत और हिंसा भेंट दे रहे हैं.
अमित शाह ने दिल्ली के मतदाताओं से कहा कि वे इतने गुस्से से ईवीएम का बटन दबाएं कि उसकी बिजली का “करेंट” शाहीन बाग की औरतों को महसूस हो सके. भाजपा के मंत्री अनुराग ठाकुर ने एक चुनावी रैली में अपने श्रोताओं से नारे लगवाये “देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को”, जिससे उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वे विपक्षी नेताओं एवं सीएए के विरोध में प्रतिवाद करने वालों को देश का गद्दार मानते हैं. भाजपा के सांसद प्रवेश वर्मा ने दिल्ली के मतदाताओं को यह बात स्वीकार करने को कहा कि मोदी और शाह उनकी उस समुदाय से रक्षा कर रहे हैं जो अन्यथा शाहीन बाग से उठता, हिंदुओं के घरों में घुसता और महिलाओं के साथ बलात्कार एवं लोगों की हत्या कर देता. अब ऐसे नफरत भरे भाषणों का हश्र तो यह होना ही था कि दो आदमी बंदूकों के साथ शाहीन बाग में घुस आये, जिनका इरादा वहां एकत्रित लोगों को नुकसान पहुंचाना और खलबली मचाना था.
इसी बीच दिल्ली पुलिस ने एबीवीपी के किसी भी कार्यकर्ता को गिरफ्तार करने से साफ इन्कार कर दिया है जिन्होंने लगभग एक महीना पहले जेएनयू के छात्रों और शिक्षकों पर सशस्त्र जानलेवा हमले का नेतृत्व किया था. मगर जेएनयू के एक छात्र को गैर-जिम्मेदाराना भाषण देने, जिसे वे “राजद्रोह” मानते हैं, के चलते गिरफ्तार करने के लिये उन्होंने कई जगहों पर छापे मारे (और अंततः बिहार के जहानाबाद में उनकी गिरफ्तारी भी हो गई), और उस छात्र को झूठे तौर पर शाहीन बाग तथा देश भर में तमाम जगहों पर जो महिलाओं द्वारा एनपीआर-एनआरसी-सीएए के खिलाफ प्रतिवाद आंदोलन चलाया जा रहा है, उसका “नेता” बनाकर पेश करने की कोशिश की. दिल्ली और भारत की जनता, अपनी महिलाओं के नेतृत्व में इस तमाम नफरत एवं हिंसा की बरसात के खिलाफ अविचल रूप से डटी हुई है. वे इस बात को सुनिश्चित करने के लिये संकल्पबद्ध हैं कि प्यार, आत्मविवेक का साहस, संविधान की साझी मिल्कियत और शिक्षा, स्वास्थ्य अधिकार एवं लोकतंत्र के मुद्दों को दिल्ली के चुनाव में तथा भारत में नफरत के खिलाफ जरूर विजय हासिल होगी.