मोदी सरकार ने शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शनों व प्रदर्शनकारियों को चुप कराने के लिए पुलिस को अंधधुंध शक्तियां देते हुए सीएए-एनआरसी व एनपीआर और सीरियल इमरजेंसी के माध्यम से संविधान व लोकतंत्र के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी है.
नीतीश जी संविधान व धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों की रक्षा का दावा करते हैं, लेकिन उनका यह दावा पूरी तरह तार-तार हो चुका है. बिहार विधन सभा से पहलकदमी लेते हुए नीतीश जी सीएए-एनआरसी-एनपीआर को लागू न करने का प्रस्ताव पारित करवाएं.
बिहार में भी यूपी की तर्ज पर आंदोलनकारियों का लगातार दमन किया जा रहा है. औरंगाबाद व फुलवारीशरीफ की घटना इसके ज्वलंत उदाहरण हैं. औरंगाबाद में पुलिस ने मुस्लिम मुहल्लों में घुसकर उपद्रव मचाया. कहीं गुंडों से, तो कहीं पुलिस से आंदोलनकारियों पर हमले करवाए जा रहे हैं. हमारी पार्टी पुलिस की इन दमनात्मक कार्रवाइयों पर अविलंब रोक लगाने, थोपे गए सभी फर्जी मुकदमे वापस लेने तथा दोषी पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग करती है.
बिहार में 25 जनवरी को वाम दलों की अपील पर हो रही मानव शृंखला से आरंभ कर एक महीने तक ‘संविधान बचाओ अभियान’ चलाया जाएगा. इस दौरान व्यापक पैमाने पर ग्रामीण बैठकें व सभाएं आयोजित की जाएंगी और संविधान की रक्षा की शपथ ली जाएगी.
नीतीश सरकार की जल-जीवन-हरियाली योजना दरअसल गरीब-कमजोर वर्ग और आम लोगों से छल-कपट व बेदखली का अभियान है. इसके पहले भी शराबबंदी के सवाल पर नीतीश जी ने मानव शृंखला लगवाई थी. लेकिन बिहार में आज शराब माफियाओं की चांदी है. जल-जीवन-हरियाली योजना भी महज एक जुमला है.
नीतीश जी बात तो पर्यावरण सरंक्षण की करते हैं, लेकिन सरकार की नीतियां इसके ठीक उलट हैं. औरंगाबाद में सीमेंट फैक्ट्री को भू-जल के इस्तेमाल व दोहन की खुली छूट मिली हुई है. पूरे राज्य में हानिकारक एस्बेस्टस कारखानों को खोला जा रहा है.
दूसरी ओर, पूरे राज्य में पोखर-आहर-चौर आदि की जमीन पर बरसों से बसे दलितों-गरीबों को बिना वैकल्पिक व्यवस्था किये उजाड़ने की साजिश रची गई है. पूर्वी चंपारण, भोजपुर आदि कई जिलों में तो दलितों-गरीबों को जमीन छोड़ने की नोटिस भी थमा दी गई है. भाकपा(माले) इसका पुरजोर विरोध करती है.
24 फरवरी को पटना में विधानसभा मार्च होगा और भाजपा-जदयू सरकार की घेरेबंदी की जाएगी.